“परम पवित्र वेद, वैशेषिक दर्शन, रामायण, सृष्टि निर्मित पक्षीरूपी विमान व निरालंब परमधाम पहुँचाने वाला मनुष्य शरीर रूपी विमान, इन पांच साधनों द्वारा प्राचीन विमान कलाके तत्त्वों संदर्भमे मैं दश वर्षोंसे खोज कर रहा हूँ । इस प्रयत्न में अनेक सूक्ष्म तत्त्वों की खोज हुई है । इन उपलब्ध सभी उपयुक्त बातोंको सिद्ध कर और प्रायोगिक रूपसे मेरे देशबंधुओं के सामने प्रदर्शित कर उन्हें अपने पूर्वजों के कला-कौशल विषयक प्रत्यक्ष ज्ञान की जानकारी देने के लिये मैं यह प्रयत्न कर रहा हूँ, पर इसे सिद्ध कर प्रदर्शित करने के लिये बड़े पैमाने पर धन की आवश्यकता है, इसलिए कम से कम दस हजार रूपये तो प्रारम्भिक रूपमें इस कामके लिये हमारे पास होना आवश्यक है । इन सूक्ष्म सृष्टि तत्वों का निरीक्षण-परीक्षण करने के लिये प्रयोगशाला की आवश्यकता है । इसके बिना प्रयोगों की शरुआत ही संभव नहीं है । ऐसे काम या तो राज्याश्रय से या नव-नवीन अनुसंधान करने के लिये ही स्थापित लोकसंस्थाओंकी ओरसे होने चाहिए । परन्तु संप्रति इस प्रकार के सहयोग मिल पाने की कोई आशा और सम्भावना नहीं है । यह देखकर यह विचार किया है कि यथासम्भव स्वयं अपने आप ही कुछ करके देखा जाय । इसलिये मैंने “प्राचीन विमान कला' के सन्दर्भमें अब तक जो अनुसंधान किया है उसे पुस्तक रूपमें जनताके सामने रखनेका निश्चय किया है और इस प्रकार प्रस्तुत संकल्पित शोध-प्रयोगको और अधिक विकसित करनेके लिये लगनेवाली जो राशि है उसे प्राप्त करनेका विचार है । इसी ध्येय से प्रेरित होकर यह कार्य प्रारम्भ किया है । पूर्वजों के कला-कौशलादिको स्मरण कर मैं जो अपना यह कर्तव्य कर्म कर रहा हूँ उसे अब पूर्ण करना मेरे देशबंधुओं का कर्तव्य है । इसीलिये यह अनुरोध है कि वे इस पुस्तक के अधिकाधिक ग्राहक बनायें ।' | “परम पवित्र वेद, वैशेषिक दर्शन, रामायण, सृष्टि निर्मित पक्षीरूपी विमान व निरालंब परमधाम पहुँचाने वाला मनुष्य शरीर रूपी विमान, इन पांच साधनों द्वारा प्राचीन विमान कलाके तत्त्वों संदर्भमे मैं दश वर्षोंसे खोज कर रहा हूँ । इस प्रयत्न में अनेक सूक्ष्म तत्त्वों की खोज हुई है । इन उपलब्ध सभी उपयुक्त बातोंको सिद्ध कर और प्रायोगिक रूपसे मेरे देशबंधुओं के सामने प्रदर्शित कर उन्हें अपने पूर्वजों के कला-कौशल विषयक प्रत्यक्ष ज्ञान की जानकारी देने के लिये मैं यह प्रयत्न कर रहा हूँ, पर इसे सिद्ध कर प्रदर्शित करने के लिये बड़े पैमाने पर धन की आवश्यकता है, इसलिए कम से कम दस हजार रूपये तो प्रारम्भिक रूपमें इस कामके लिये हमारे पास होना आवश्यक है । इन सूक्ष्म सृष्टि तत्वों का निरीक्षण-परीक्षण करने के लिये प्रयोगशाला की आवश्यकता है । इसके बिना प्रयोगों की शरुआत ही संभव नहीं है । ऐसे काम या तो राज्याश्रय से या नव-नवीन अनुसंधान करने के लिये ही स्थापित लोकसंस्थाओंकी ओरसे होने चाहिए । परन्तु संप्रति इस प्रकार के सहयोग मिल पाने की कोई आशा और सम्भावना नहीं है । यह देखकर यह विचार किया है कि यथासम्भव स्वयं अपने आप ही कुछ करके देखा जाय । इसलिये मैंने “प्राचीन विमान कला' के सन्दर्भमें अब तक जो अनुसंधान किया है उसे पुस्तक रूपमें जनताके सामने रखनेका निश्चय किया है और इस प्रकार प्रस्तुत संकल्पित शोध-प्रयोगको और अधिक विकसित करनेके लिये लगनेवाली जो राशि है उसे प्राप्त करनेका विचार है । इसी ध्येय से प्रेरित होकर यह कार्य प्रारम्भ किया है । पूर्वजों के कला-कौशलादिको स्मरण कर मैं जो अपना यह कर्तव्य कर्म कर रहा हूँ उसे अब पूर्ण करना मेरे देशबंधुओं का कर्तव्य है । इसीलिये यह अनुरोध है कि वे इस पुस्तक के अधिकाधिक ग्राहक बनायें ।' |