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− | बच्चो में संस्कारो का वर्धन ५ वर्ष की आयु से पाठांतर पठन माध्यम से प्रारंभ कर देना चाहिए । बच्चो में अपने धर्म के प्रति ,अपने राष्ट्र के प्रति और अपने देशवाशियो एवं माता-पिता गुरुजनों का आदर सम्मान करने की शिक्षा सर्वप्रथम देनी चाहिये । इसलिए हमें सर्वदा यह प्रयास करना चाहिए की विद्या का का प्रारंभ अपनी प्राचीन भाषा संस्कृत में किया जाये । इसी विषय को अग्रेसर करते हुए सम्पूर्ण भारत का परिचय सभी अभिभावक सरल रूप में और सहजता से प्राप्त कर सके। | + | बच्चो में संस्कारो का वर्धन ५ वर्ष की आयु से पाठांतर पठन माध्यम से प्रारंभ कर देना चाहिए । बच्चो में अपने धर्म के प्रति ,अपने राष्ट्र के प्रति और अपने देशवाशियो एवं माता-पिता गुरुजनों का आदर सम्मान करने की शिक्षा सर्वप्रथम देनी चाहिये । अतः हमें सर्वदा यह प्रयास करना चाहिए की विद्या का का प्रारंभ अपनी प्राचीन भाषा संस्कृत में किया जाये । इसी विषय को अग्रेसर करते हुए सम्पूर्ण भारत का परिचय सभी अभिभावक सरल रूप में और सहजता से प्राप्त कर सके। |
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− | इसलिए " एकात्मता स्तोत्र " नामक यह पाठांतर आपके लिए प्रस्तुत है । एकात्मता-स्तोत्र के पूर्वरूप – भारत-भक्ति-स्तोत्र – से हम लोग भली भाँति परिचित हैं, जो बोलचाल में 'प्रात: स्मरण' नाम से जाना जाता है, क्योंकि वह प्रात: स्मरण की हमारी प्राचीन परम्परा से ही प्रेरित था। राष्ट्रीय एकात्मता की दृष्टि से इसमें कुछ और नाम जोड़कर इसे अधिक व्यापकता प्रदान करने तथा दिन या रात में भी पाठयोग्य बनाने के उद्देश्य से विक्रमी संवत् २०४२ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने वर्तमान एकात्मता-स्तोत्र का अनुमोदन किया।
| + | अतः " एकात्मता स्तोत्र " नामक यह पाठांतर आपके लिए प्रस्तुत है । एकात्मता-स्तोत्र के पूर्वरूप – भारत-भक्ति-स्तोत्र – से हम लोग भली भाँति परिचित हैं, जो बोलचाल में 'प्रात: स्मरण' नाम से जाना जाता है, क्योंकि वह प्रात: स्मरण की हमारी प्राचीन परम्परा से ही प्रेरित था। राष्ट्रीय एकात्मता की दृष्टि से इसमें कुछ और नाम जोड़कर इसे अधिक व्यापकता प्रदान करने तथा दिन या रात में भी पाठयोग्य बनाने के उद्देश्य से विक्रमी संवत् २०४२ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने वर्तमान एकात्मता-स्तोत्र का अनुमोदन किया। |
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| यह'भारत-एकात्मता-स्तोत्र' भारत की सनातन और सर्वकष एकात्मता के प्रतीकभूत नामों का श्लोकबद्ध संग्रह है। सम्पूर्ण भारतवर्ष की एकात्मता के संस्कार दृढ़मूल करने के लिए इस नाममाला का ग्रथन किया गया है। | | यह'भारत-एकात्मता-स्तोत्र' भारत की सनातन और सर्वकष एकात्मता के प्रतीकभूत नामों का श्लोकबद्ध संग्रह है। सम्पूर्ण भारतवर्ष की एकात्मता के संस्कार दृढ़मूल करने के लिए इस नाममाला का ग्रथन किया गया है। |
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| '''<u><big>रामायण</big></u>''' | | '''<u><big>रामायण</big></u>''' |
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− | भारत के दो श्रेष्ठ प्राचीन महाकाव्य हैं: रामायण और महाभारत, जिन्हें इतिहास—ग्रथों की संज्ञा प्राप्त हुई है। मुनि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य रामायण में संस्कृत भाषा में सम्पूर्ण रामकथा का वर्णन किया गया है। नरश्रेष्ठ राम और उनके परिवार के लोगों तथा सम्पर्क में आये व्यक्तियों के चरित्रों में भारतीय संस्कृति केउच्च जीवन-मूल्यों की रमणीक एवं भव्य झाँकी प्रस्तुत की गयी है। अन्यान्य भारतीय भाषाओं के लिए रामायण सदैव उपजीव्य रहा है। वाल्मीकि-रामायण में वर्णित रामकथा का तुलसीदास ने रामचरितमानस के रूप में लोकभाषा अवधी में पुनलेंखन किया और उसे जन-जन तक पहुँचा दिया। बंगला की कृत्तिवासी रामायण, असमिया की माधव-कदली रामायण, तमिल की कम्ब रामायण के अतिरिक्त भी विभिन्न भारतीय भाषाओं में समय-समय पर रामायण ग्रंथों का प्रणयन होता रहा है। अध्यात्म रामायण और गुरु गोविन्दसिंह द्वारा रचित गोविन्द रामायण भी प्रसिद्ध हैं। अनेक जनजातियों में भी स्थानीय अंतर के साथ रामकथा प्रचलित है। भारत वर्ष का कोना-कोना राममय है,इसलिए स्वाभाविक रूप से लोकगीतों में भी रामकथा गूंथी गयी है। | + | भारत के दो श्रेष्ठ प्राचीन महाकाव्य हैं: रामायण और महाभारत, जिन्हें इतिहास—ग्रथों की संज्ञा प्राप्त हुई है। मुनि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य रामायण में संस्कृत भाषा में सम्पूर्ण रामकथा का वर्णन किया गया है। नरश्रेष्ठ राम और उनके परिवार के लोगों तथा सम्पर्क में आये व्यक्तियों के चरित्रों में भारतीय संस्कृति केउच्च जीवन-मूल्यों की रमणीक एवं भव्य झाँकी प्रस्तुत की गयी है। अन्यान्य भारतीय भाषाओं के लिए रामायण सदैव उपजीव्य रहा है। वाल्मीकि-रामायण में वर्णित रामकथा का तुलसीदास ने रामचरितमानस के रूप में लोकभाषा अवधी में पुनलेंखन किया और उसे जन-जन तक पहुँचा दिया। बंगला की कृत्तिवासी रामायण, असमिया की माधव-कदली रामायण, तमिल की कम्ब रामायण के अतिरिक्त भी विभिन्न भारतीय भाषाओं में समय-समय पर रामायण ग्रंथों का प्रणयन होता रहा है। अध्यात्म रामायण और गुरु गोविन्दसिंह द्वारा रचित गोविन्द रामायण भी प्रसिद्ध हैं। अनेक जनजातियों में भी स्थानीय अंतर के साथ रामकथा प्रचलित है। भारत वर्ष का कोना-कोना राममय है,अतः स्वाभाविक रूप से लोकगीतों में भी रामकथा गूंथी गयी है। |
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| '''<u><big>भारत (महाभारत)</big></u>''' | | '''<u><big>भारत (महाभारत)</big></u>''' |
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| <u>'''<big>त्रिपिटक</big>'''</u> | | <u>'''<big>त्रिपिटक</big>'''</u> |
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− | बौद्ध मत के तीन मूल ग्रंथ-समूह-विनय पिटक,सुत्त पिटक और अभिधम्मपिटक,जिनमें भगवान् बुद्ध के वचन और उपदेश संकलित हैं। प्रत्येक पिटक में अनेक ग्रंथ हैं, इसलिए इनका पिटक अर्थात् पेटी नाम पड़ा। इनमें अन्तर्निहित ग्रंथों में ब्रह्मजाल सुत,समज्जफल सुत,पोट्ठपाद सुत्त,महानिदान सुत, मज्झिम निकाय,दीघ निकाय,संयुक्त निकाय उल्लेखनीय हैं। ये सभी पालि भाषा में हैं। विशेषत: हीनयान सम्प्रदाय के ये ही प्रधान ग्रंथ हैं। विनय पिटक में संघ के नियमों का,सुत्त पिटक में बुद्ध के वार्तालापों और उपदेशों का तथा अभिधम्म पिटक मेंदार्शनिक विचारों का वर्णन है। | + | बौद्ध मत के तीन मूल ग्रंथ-समूह-विनय पिटक,सुत्त पिटक और अभिधम्मपिटक,जिनमें भगवान् बुद्ध के वचन और उपदेश संकलित हैं। प्रत्येक पिटक में अनेक ग्रंथ हैं, अतः इनका पिटक अर्थात् पेटी नाम पड़ा। इनमें अन्तर्निहित ग्रंथों में ब्रह्मजाल सुत,समज्जफल सुत,पोट्ठपाद सुत्त,महानिदान सुत, मज्झिम निकाय,दीघ निकाय,संयुक्त निकाय उल्लेखनीय हैं। ये सभी पालि भाषा में हैं। विशेषत: हीनयान सम्प्रदाय के ये ही प्रधान ग्रंथ हैं। विनय पिटक में संघ के नियमों का,सुत्त पिटक में बुद्ध के वार्तालापों और उपदेशों का तथा अभिधम्म पिटक मेंदार्शनिक विचारों का वर्णन है। |
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| '''<u><big>गुरुग्रंथ</big></u>''' | | '''<u><big>गुरुग्रंथ</big></u>''' |
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| '''<u><big>भीष्म</big></u>''' | | '''<u><big>भीष्म</big></u>''' |
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− | महाभारत कालीन श्रेष्ठ पुरुष तथा कौरव-पाण्डवों के पितामह। ये कुरुवंशी राजा शान्तनु के पुत्र थे,नाम था देवव्रत। भगवती गंगा इनकी माता थीं,इसलिए इन्हें गांगेय भी कहते हैं। ये परशुराम के शिष्य और महान् योद्धा थे। शान्तनु-सत्यवती के विवाह की बाधा को दूर करने के लिए इन्होंने आजीवन ब्रहमचारी रहने तथा सिंहासन परन बैठने की कठोर प्रतिज्ञा की थी जिसका इन्होंने सदैव दृढ़ता से पालन किया। भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही ये भीष्म कहलाये। शस्त्र और शास्त्र दोनों विद्याओं में निष्णात भीष्म महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे और उनकी सेनाओं का सेनापतित्व भी किया था। अर्जुन के वाणोंसेबिंधा शरीर लिये भीष्मउत्तरायण होने तक शर—शय्या पर लेटे रहे और धर्मराज युधिष्ठिर को राजधर्म का उत्कृष्ट उपदेश दिया, जो महाभारत के शान्तिपर्वमें उपलब्धहै। इसमें भारतीय राजनीति,समाजनीति और धर्मनीति का विस्तृत वर्णन है। | + | महाभारत कालीन श्रेष्ठ पुरुष तथा कौरव-पाण्डवों के पितामह। ये कुरुवंशी राजा शान्तनु के पुत्र थे,नाम था देवव्रत। भगवती गंगा इनकी माता थीं,अतः इन्हें गांगेय भी कहते हैं। ये परशुराम के शिष्य और महान् योद्धा थे। शान्तनु-सत्यवती के विवाह की बाधा को दूर करने के लिए इन्होंने आजीवन ब्रहमचारी रहने तथा सिंहासन परन बैठने की कठोर प्रतिज्ञा की थी जिसका इन्होंने सदैव दृढ़ता से पालन किया। भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही ये भीष्म कहलाये। शस्त्र और शास्त्र दोनों विद्याओं में निष्णात भीष्म महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे और उनकी सेनाओं का सेनापतित्व भी किया था। अर्जुन के वाणोंसेबिंधा शरीर लिये भीष्मउत्तरायण होने तक शर—शय्या पर लेटे रहे और धर्मराज युधिष्ठिर को राजधर्म का उत्कृष्ट उपदेश दिया, जो महाभारत के शान्तिपर्वमें उपलब्धहै। इसमें भारतीय राजनीति,समाजनीति और धर्मनीति का विस्तृत वर्णन है। |
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| '''<u><big>युधिष्ठिर</big></u>''' | | '''<u><big>युधिष्ठिर</big></u>''' |
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| '''<u><big>मार्कण्डेय</big></u>''' | | '''<u><big>मार्कण्डेय</big></u>''' |
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− | भूगुवंश में उत्पन्न नैष्ठिक ब्रह्मचारी और कठोर तपस्वी। बाल्यावस्था में ही भविष्यवक्ताओं ने इन्हेंअल्पायु घोषित कर दिया था,इसलिए इन्होंने ऋषि-मुनियोंसे आशीर्वाद लेकर घोर तपस्या करके मृत्यु पर विजय पायी थी और कल्पान्त में सृष्टि का प्रलय प्रत्यक्ष देखा था। रामायण में सर्वत्र इनका निर्देश दीर्घायु नाम से किया गया है। मार्कण्डेय मुनि ने पाण्डवों को धर्म का उपदेश दिया था, विशेष रूप से युधिष्ठिर इनके धर्मोपदेश एवं तत्वज्ञान से बहुत प्रभावित थे। | + | भूगुवंश में उत्पन्न नैष्ठिक ब्रह्मचारी और कठोर तपस्वी। बाल्यावस्था में ही भविष्यवक्ताओं ने इन्हेंअल्पायु घोषित कर दिया था,अतः इन्होंने ऋषि-मुनियोंसे आशीर्वाद लेकर घोर तपस्या करके मृत्यु पर विजय पायी थी और कल्पान्त में सृष्टि का प्रलय प्रत्यक्ष देखा था। रामायण में सर्वत्र इनका निर्देश दीर्घायु नाम से किया गया है। मार्कण्डेय मुनि ने पाण्डवों को धर्म का उपदेश दिया था, विशेष रूप से युधिष्ठिर इनके धर्मोपदेश एवं तत्वज्ञान से बहुत प्रभावित थे। |
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| '''<u><big>हरिश्चन्द्र</big></u>''' | | '''<u><big>हरिश्चन्द्र</big></u>''' |
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| '''<u><big>पृथु</big></u>''' | | '''<u><big>पृथु</big></u>''' |
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− | राजा पृथुने धरती पर विभित्र प्रकार के धान्यों का आविष्कार किया, धरती में निहित रत्नों का अन्वेषण किया, धरती की सकल सम्पदाओं का दोहन किया, कृषि का अपूर्व विकास किया और प्रजा की समृद्धि के लिए पृथ्वी को वैभव सम्पन्न बनाया। फलत: यह धरती पृथु की कन्या कहलायी और पृथ्वी नाम से अभिहित हुई। ये अत्याचारी राजा वेन के पुत्र थे, इसलिए इन्हें वैन्य भी कहते हैं। राजा वेन का वध करके ऋषियों ने पृथु को राज्याभिषिक्त किया था। | + | राजा पृथुने धरती पर विभित्र प्रकार के धान्यों का आविष्कार किया, धरती में निहित रत्नों का अन्वेषण किया, धरती की सकल सम्पदाओं का दोहन किया, कृषि का अपूर्व विकास किया और प्रजा की समृद्धि के लिए पृथ्वी को वैभव सम्पन्न बनाया। फलत: यह धरती पृथु की कन्या कहलायी और पृथ्वी नाम से अभिहित हुई। ये अत्याचारी राजा वेन के पुत्र थे, अतः इन्हें वैन्य भी कहते हैं। राजा वेन का वध करके ऋषियों ने पृथु को राज्याभिषिक्त किया था। |
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| '''<u><big>वाल्मीकि</big></u>''' | | '''<u><big>वाल्मीकि</big></u>''' |
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| <blockquote>'''भगीरथश्चैकलव्यो मनुर्धन्वन्तरिस्तथा । शिबिश्च रन्तिदेवश्च पुराणोद्गीतकीर्तयः ॥ १४ ॥'''</blockquote>'''<big>भगीरथ</big>''' | | <blockquote>'''भगीरथश्चैकलव्यो मनुर्धन्वन्तरिस्तथा । शिबिश्च रन्तिदेवश्च पुराणोद्गीतकीर्तयः ॥ १४ ॥'''</blockquote>'''<big>भगीरथ</big>''' |
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− | राजा सगर के वंशज और इक्ष्वाकुवंशी राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ की कीर्ति गंगा को भूलोक पर लाकरअपने उन पूर्वजों (राजा सगर के पुत्रों) का उद्धार करने के कारण हैजो कपिल मुनि के कोप से दग्ध हुए थे। गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए राजा भगीरथ के पिता और पितामह ने भी प्रयास किये थे,पर वे सफल नहीं हो पाये थे। भगीरथ अपने कठोर तप से इस कार्य में सफल हुए, इसलिए गंगा को भागीरथी नाम से अभिहित किया जाता है। गंगा की धारा को भूतल पर लाकर राजा भगीरथ ने भारत को श्रीवृद्धि प्रदान की और पितृ-ऋण से भी मुक्त हुए। कठोर साधना के लिए भगीरथ—प्रयत्न एक मुहावरा बन गया है। | + | राजा सगर के वंशज और इक्ष्वाकुवंशी राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ की कीर्ति गंगा को भूलोक पर लाकरअपने उन पूर्वजों (राजा सगर के पुत्रों) का उद्धार करने के कारण हैजो कपिल मुनि के कोप से दग्ध हुए थे। गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए राजा भगीरथ के पिता और पितामह ने भी प्रयास किये थे,पर वे सफल नहीं हो पाये थे। भगीरथ अपने कठोर तप से इस कार्य में सफल हुए, अतः गंगा को भागीरथी नाम से अभिहित किया जाता है। गंगा की धारा को भूतल पर लाकर राजा भगीरथ ने भारत को श्रीवृद्धि प्रदान की और पितृ-ऋण से भी मुक्त हुए। कठोर साधना के लिए भगीरथ—प्रयत्न एक मुहावरा बन गया है। |
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| '''<big>एकलव्य</big>''' | | '''<big>एकलव्य</big>''' |
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| '''<big>मनु</big>''' | | '''<big>मनु</big>''' |
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− | मानव जाति के आदि-पुरुष और धर्मशास्त्र के प्रणेता मनुने जलप्लावन के समय पृथ्वी के डूब जाने पर अपनी नौका में सृष्टि के सब बीज सुरक्षित रख लिये थे, जिनके आधार पर जलप्लावन उतर जाने के बाद उन्होंने धरती को सर्व सम्पन्नता प्रदान की और नूतन मानव संस्कृति का निर्माण किया। ईसाइयों और मुसलमानों में भी नोअह और हजरत नूह के नाम से यही कथा प्रचलित है। मनु अनेक हुए हैं। पुराणों के अनुसार प्रत्येक कल्प के चौदह मन्वन्तरों में अलग-अलग चौदह मनुओं का शासन होता है। वर्तमान मनुवैवस्वत अर्थात् सूर्यपुत्र कहलाते हैं और इसलिए यह मन्वन्तर भी वैवस्वत मन्वन्तर कहलाता है। | + | मानव जाति के आदि-पुरुष और धर्मशास्त्र के प्रणेता मनुने जलप्लावन के समय पृथ्वी के डूब जाने पर अपनी नौका में सृष्टि के सब बीज सुरक्षित रख लिये थे, जिनके आधार पर जलप्लावन उतर जाने के बाद उन्होंने धरती को सर्व सम्पन्नता प्रदान की और नूतन मानव संस्कृति का निर्माण किया। ईसाइयों और मुसलमानों में भी नोअह और हजरत नूह के नाम से यही कथा प्रचलित है। मनु अनेक हुए हैं। पुराणों के अनुसार प्रत्येक कल्प के चौदह मन्वन्तरों में अलग-अलग चौदह मनुओं का शासन होता है। वर्तमान मनुवैवस्वत अर्थात् सूर्यपुत्र कहलाते हैं और अतः यह मन्वन्तर भी वैवस्वत मन्वन्तर कहलाता है। |
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| '''<big>धन्वन्तरि</big>''' | | '''<big>धन्वन्तरि</big>''' |