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तेनालीरामा ने एक योजना बनाई वो राजगुरु के कंधे से उतर गयें। राजगुरु से क्षमा मांगी और उनकी प्रशंसा करने लगे। तेनालीरामा की चाटूकारिता से राजगुरु प्रसन्न हो गये, तेनालीरामा ने राजगुरु से कहा आप बहुत बड़े ज्ञानी हैं और मैं आपके साथ ऐसा व्यवहार कर रहा हूँ मुझे क्षमा करे। मुझे अपनी गलती की सजा मिलनी चाहिए। मैं आप को अपने कंधे पर बैठाकर राजमहल ले जाऊंगा। तेनालीरामा राजगुरु को अपने कंधे पर बैठाकर राजमहल के समीप पहुचते है, महाराज द्वारा भेजा हुआ सैनिक भी आ जाता है । सैनिक ने तेनालीरामा और राजगुरु को रोका और अपने महाराज की आज्ञा का पालन करते हुए राजगुरु को पीटने लगा । राजगुरु ने कहा क्या तुम हमे पहचानते नही हो, सैनिक क्रोधित होकर और जोर से पीटने लगा । सैनिक तेनालीरामा को सम्मान पूर्वक महाराज के पास ले गया ।
 
तेनालीरामा ने एक योजना बनाई वो राजगुरु के कंधे से उतर गयें। राजगुरु से क्षमा मांगी और उनकी प्रशंसा करने लगे। तेनालीरामा की चाटूकारिता से राजगुरु प्रसन्न हो गये, तेनालीरामा ने राजगुरु से कहा आप बहुत बड़े ज्ञानी हैं और मैं आपके साथ ऐसा व्यवहार कर रहा हूँ मुझे क्षमा करे। मुझे अपनी गलती की सजा मिलनी चाहिए। मैं आप को अपने कंधे पर बैठाकर राजमहल ले जाऊंगा। तेनालीरामा राजगुरु को अपने कंधे पर बैठाकर राजमहल के समीप पहुचते है, महाराज द्वारा भेजा हुआ सैनिक भी आ जाता है । सैनिक ने तेनालीरामा और राजगुरु को रोका और अपने महाराज की आज्ञा का पालन करते हुए राजगुरु को पीटने लगा । राजगुरु ने कहा क्या तुम हमे पहचानते नही हो, सैनिक क्रोधित होकर और जोर से पीटने लगा । सैनिक तेनालीरामा को सम्मान पूर्वक महाराज के पास ले गया ।
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महाराज ने तेनालीरामा से क्रोधित स्वर में पूछा "तुम कौन हो और अन्दर कैसे आ गये? राजगुरु कहाँ है?" तेनालीरामा ने उत्तर दिया "महाराज मैं रामाकृष्णा तेनाली गाँव से आया हूँ । मैं आप से मिलना चाहता था परन्तु राजगुरु ने मिलने नहीं दिया । इसलिए मैंंने ये सब कृत्य किया मुझे क्षमा करे।" तेनालीरामा ने सारा वृतांत विस्तार पूर्वक सुनाया । महाराज कृष्णदेवराय पूरी घटना सुनने के बाद जोर जोर से हँसने लगे । कुछ समय पश्चात राजगुरु भी टूटी फूटी हालत में अन्दर आये। राजगुरु को देखकर महाराज और अधिक हँसने लगते है। महाराज कृष्णदेव तेनालीरामा के बुद्धिकौशल और सूझबुझ से अत्यंत प्रसन्न हुए। महाराज ने तेनालीरामा से कहा कि आप जैसे विद्वानों की हमारे राज्य को बहुत अधिक आवश्कता है । तेनालीरामा को विजयनगर राज्य का विशेष मार्गदर्शक नियुक्त किया गया और चारों तरफ उनकी कार्यो के चर्चे होने लगे।
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महाराज ने तेनालीरामा से क्रोधित स्वर में पूछा "तुम कौन हो और अन्दर कैसे आ गये? राजगुरु कहाँ है?" तेनालीरामा ने उत्तर दिया "महाराज मैं रामाकृष्णा तेनाली गाँव से आया हूँ । मैं आप से मिलना चाहता था परन्तु राजगुरु ने मिलने नहीं दिया । अतः मैंंने ये सब कृत्य किया मुझे क्षमा करे।" तेनालीरामा ने सारा वृतांत विस्तार पूर्वक सुनाया । महाराज कृष्णदेवराय पूरी घटना सुनने के बाद जोर जोर से हँसने लगे । कुछ समय पश्चात राजगुरु भी टूटी फूटी हालत में अन्दर आये। राजगुरु को देखकर महाराज और अधिक हँसने लगते है। महाराज कृष्णदेव तेनालीरामा के बुद्धिकौशल और सूझबुझ से अत्यंत प्रसन्न हुए। महाराज ने तेनालीरामा से कहा कि आप जैसे विद्वानों की हमारे राज्य को बहुत अधिक आवश्कता है । तेनालीरामा को विजयनगर राज्य का विशेष मार्गदर्शक नियुक्त किया गया और चारों तरफ उनकी कार्यो के चर्चे होने लगे।
    
[[Category:बाल कथाए एवं प्रेरक प्रसंग]]
 
[[Category:बाल कथाए एवं प्रेरक प्रसंग]]

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