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महाराज कृष्णदेवराय जी के पास एक बहुत ही सुन्दर एवं मनमोहक मुद्रिका थी जिसे वे हमेशा धारण करते थे कभी भी उस मुद्रिका को अपने से दूर नहीं करते थे। महाराज की दृष्टि हमेशा उस मुद्रिका को देखती रहती। सभा में सभी मंत्री गणों एवं सभाियों को मुद्रिका दिखाते रहते और उस मुद्रिका की सुन्दरता की प्रसंशा करते रहते ।  
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महाराज कृष्णदेवराय जी के पास एक बहुत ही सुन्दर एवं मनमोहक मुद्रिका थी जिसे वे हमेशा धारण करते थे कभी भी उस मुद्रिका को अपने से दूर नहीं करते थे। महाराज की दृष्टि हमेशा उस मुद्रिका को देखती रहती। सभा में सभी मंत्री गणों एवं सभासदों को मुद्रिका दिखाते रहते और उस मुद्रिका की सुन्दरता की प्रसंशा करते रहते ।  
    
एक दिन महाराज कृष्णदेवराय उदास अपने आसन पर बैठे थे तभी वहां तेनालीरामा आए उन्होंने महाराज को उदास देखकर पूछा महाराज आप उदास क्यों है? क्या कोई चिंता का विषय है मुझे बताइए मैं उसका समाधान करने का प्रयास करता हूँ । महाराज ने अपनी उदासी का पूरा वृतांत तेनालीरामा  को सुनाया कि मेरी प्रिय मुद्रिका मील नही रही है । मैंंने  मुद्रिका ढूढ़ने का पूरा प्रयास किया ,मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है मेरी मुद्रिका चोरी हो गई है । तेनालीरामा ने महाराज  से पूछा <nowiki>''</nowiki>महाराज  आप  को किसी पर संदेह है जो आपकी की मुद्रिका चोरी कर सकता है ।
 
एक दिन महाराज कृष्णदेवराय उदास अपने आसन पर बैठे थे तभी वहां तेनालीरामा आए उन्होंने महाराज को उदास देखकर पूछा महाराज आप उदास क्यों है? क्या कोई चिंता का विषय है मुझे बताइए मैं उसका समाधान करने का प्रयास करता हूँ । महाराज ने अपनी उदासी का पूरा वृतांत तेनालीरामा  को सुनाया कि मेरी प्रिय मुद्रिका मील नही रही है । मैंंने  मुद्रिका ढूढ़ने का पूरा प्रयास किया ,मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है मेरी मुद्रिका चोरी हो गई है । तेनालीरामा ने महाराज  से पूछा <nowiki>''</nowiki>महाराज  आप  को किसी पर संदेह है जो आपकी की मुद्रिका चोरी कर सकता है ।

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