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== वर्तमान की वास्तविकता ==
== वर्तमान की वास्तविकता ==
स्त्री और पुरुष संबन्धों के विषय में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य समझे बिना वर्तमान में स्त्री की दुर्दशा का समाधान नहीं निकल सकता। ये तथ्य निम्न हैं:
स्त्री और पुरुष संबन्धों के विषय में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य समझे बिना वर्तमान में स्त्री की दुर्दशा का समाधान नहीं निकल सकता। ये तथ्य निम्न हैं:
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# धार्मिक (धार्मिक) मान्यता के अनुसार स्त्री और पुरुष दोनों को परमात्मा ने साथ में निर्माण किया है। दोनों में स्पर्धा नहीं है। दोनों एक दुसरे के पूरक हैं। पूरक का अर्थ है एक दुसरे के अभाव में अधूरे होना। जब अधूरापन महसूस होता है तो मनुष्य उसकी पूर्ति करने के प्रयास करता है। स्त्री और पुरुष में जो स्वाभाविक आकर्षण है वह इसी अधूरेपन को पूरा करने के लिए होता है। इसलिए स्त्री और पुरुष दोनों परस्पर पूरक हैं। इनमें दोनों अलग अलग सन्दर्भ में एक दूसरे से श्रेष्ठ हैं।
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# धार्मिक (धार्मिक) मान्यता के अनुसार स्त्री और पुरुष दोनों को परमात्मा ने साथ में निर्माण किया है। दोनों में स्पर्धा नहीं है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। पूरक का अर्थ है एक दूसरे के अभाव में अधूरे होना। जब अधूरापन महसूस होता है तो मनुष्य उसकी पूर्ति करने के प्रयास करता है। स्त्री और पुरुष में जो स्वाभाविक आकर्षण है वह इसी अधूरेपन को पूरा करने के लिए होता है। इसलिए स्त्री और पुरुष दोनों परस्पर पूरक हैं। इनमें दोनों अलग अलग सन्दर्भ में एक दूसरे से श्रेष्ठ हैं।
# सामान्यत: स्त्री शारीरिक दृष्टि से पुरुष से दुर्बल है। अपवाद हो सकते हैं। अपवादों से ही नियम सिद्ध होते हैं।
# सामान्यत: स्त्री शारीरिक दृष्टि से पुरुष से दुर्बल है। अपवाद हो सकते हैं। अपवादों से ही नियम सिद्ध होते हैं।
# नर और मादा तो सभी जीवों में होते ही है। उनमें आकर्षण भी स्वाभाविक ही है। मानवेतर किसी भी जीव-जाति के नर द्वारा उस जीव-जाति की मादा पर बलात्कार संभव नहीं है। उनकी शारीरिक रचना ही ऐसी बनी हुई है। शरीर रचना के अंतर के कारण केवल मानव जाति में नारी के ऊपर नर बलात्कार कर सकता है। इसलिए मानव जाति को सुखी, सौहार्दपूर्ण, सुसंस्कृत सहजीवन जीने के लिए संस्कारों की और शिक्षण प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। इसी हेतु से विवाह होते हैं। परिवारों की रचना स्त्री की सुरक्षा के लिए भी होती है। पिता, भाई और पति ये तीनों ही पारिवारिक रिश्ते ही तो हैं जिनसे स्त्री की रक्षा की अपेक्षा होती है। इसी दृष्टि से विद्यालयीन और लोक शिक्षा की व्यवस्था में भी मार्गदर्शन होना चाहिए।
# नर और मादा तो सभी जीवों में होते ही है। उनमें आकर्षण भी स्वाभाविक ही है। मानवेतर किसी भी जीव-जाति के नर द्वारा उस जीव-जाति की मादा पर बलात्कार संभव नहीं है। उनकी शारीरिक रचना ही ऐसी बनी हुई है। शरीर रचना के अंतर के कारण केवल मानव जाति में नारी के ऊपर नर बलात्कार कर सकता है। इसलिए मानव जाति को सुखी, सौहार्दपूर्ण, सुसंस्कृत सहजीवन जीने के लिए संस्कारों की और शिक्षण प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। इसी हेतु से विवाह होते हैं। परिवारों की रचना स्त्री की सुरक्षा के लिए भी होती है। पिता, भाई और पति ये तीनों ही पारिवारिक रिश्ते ही तो हैं जिनसे स्त्री की रक्षा की अपेक्षा होती है। इसी दृष्टि से विद्यालयीन और लोक शिक्षा की व्यवस्था में भी मार्गदर्शन होना चाहिए।