Line 2: |
Line 2: |
| | | |
| == गुरुकुल के प्रति आस्था == | | == गुरुकुल के प्रति आस्था == |
− | “गुरुकुल' शब्द आज भी भारत के लोगों के मन में एक आकर्षण पैदा करता है<ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १): पर्व ४, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। गुरुकुल की पढ़ाई उत्तम थी | + | “गुरुकुल' शब्द आज भी भारत के लोगों के मन में एक आकर्षण पैदा करता है<ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १): पर्व ४, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। गुरुकुल की पढ़ाई उत्तम थी ऐसा ही भाव मन में जाग्रत होता है । आज कहाँ वे गुरुकुल सम्भव है ऐसा एक खेद का भाव भी पैदा होता है । एक रम्य चित्र मनःचक्षु के सामने आता है जहाँ वन के प्राकृतिक वातावरण में आश्रम बने हुए हैं, आश्रम में पर्णकुटियाँ हैं, ऋषि और ऋषिकुमार यज्ञ कर रहे हैं, मृग निर्भयता से विचरण कर रहे हैं, विद्याध्ययन हो रहा है, वेदपाठ हो रहा है, वातावरण तथा सबके मन प्रसन्न और निश्चिन्त हैं । यह एक ऐसा रम्य चित्र है जिसे आज हमने खो दिया है, आज हमें उस चित्र को बनाना नहीं आता है । आधुनिक काल में अरण्य, पर्णकुटी, यज्ञ, वेदाध्ययन, गुरुगृहवास, ऋषि और कऋषिकुमार इनमें से कुछ भी सम्भव नहीं है, क्योंकि जीवन आपाधापी से व्यस्त, व्यवसाय पाने की चिन्ता से ग्रस्त, चारों ओर भीड़, कोलाहल, प्रदूषण से त्रस्त हो गया है तब वह सौभाग्य कहाँ मिलेगा ऐसा एक दर्द मन में संजोये हम अपने भव्य भवनों में चलने वाले आवासी विद्यालयों को 'गुरुकुल' संज्ञा देते हैं। उसे 'आधुनिक गुरुकुल' कहते हैं । केवल परिवेश बदला है, केवल भाषा बदली है, केवल अध्ययन के विषय बदले हैं, केवल सन्दर्भ बदले हैं, केवल पढ़ने पढ़ाने तथा पढ़वाने वालों के मनोभाव ही बदले हैं, फिर भी यह है तो गुरुकुल ऐसा हमारा प्रतिपादन होता है । |
| | | |
− | ऐसा ही भाव मन में जाग्रत होता है । आज कहाँ वे गुरुकुल | + | इतना सब कुछ बदल जाने के बाद भी ऐसा कौन सा तत्त्व है जो वही का वही है और जिस कारण से हम उसे गुरुकुल कहते हैं इस विषय में हम स्पष्ट नहीं होते हैं, कदाचित हम जानते भी हैं कि उस गुरुकुल और इस गुरुकुल में केवल शब्दसाम्य ही है, और कोई साम्य नहीं है, फिर भी हमें यह नामाभिधान अच्छा लगता है । |
| | | |
− | सम्भव है ऐसा एक खेद का भाव भी पैदा होता है । एक
| + | इसका कारण यह है कि आज भी हमारे अन्तर्मन में शिक्षा के उस स्वरूप के प्रति अटूट आस्था है और उसे येन केन प्रकारेण जिस किसी भी रूपमें जीवित रखना चाहते हैं। सर्वजन समाज की इस आस्था का दम्भपूर्वक और सफलता पूर्वक व्यावसायिक लाभ कमाना यह भी इसका एक पहलू है । |
| | | |
− | wa fa मनःचक्षु के सामने आता है जहाँ वन के
| + | इस भौतिक और मानसिक परिप्रेक्ष्य में गुरुकुल संकल्पना का शैक्षिक स्वरूप क्या आज भी सम्भव है, और यदि है तो क्या ऐसा करना उचित है इस प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास करना चाहिये । इस विमर्श का उद्देश्य भी वही है । |
− | | |
− | प्राकृतिक वातावरण में आश्रम बने हुए हैं, आश्रम में
| |
− | | |
− | पर्णकुटियाँ हैं, ऋषि और ऋषिकुमार यज्ञ कर रहे हैं, मृग
| |
− | | |
− | निर्भयता से विचरण कर रहे हैं, विद्याध्ययन हो रहा है,
| |
− | | |
− | वेदपाठ हो रहा है, वातावरण तथा सबके मन प्रसन्न और
| |
− | | |
− | निश्चिन्त हैं । यह एक ऐसा we चित्र है जिसे आज हमने
| |
− | | |
− | खो दिया है, आज हमें उस चित्र को बनाना नहीं आता है ।
| |
− | | |
− | आधुनिक काल में अरण्य, पर्णकुटी, यज्ञ, वेदाध्ययन,
| |
− | | |
− | गुरुगृहवास, ऋषि और कऋषिकुमार इनमें से कुछ भी सम्भव
| |
− | | |
− | नहीं है, क्योंकि जीवन आपाधापी से व्यस्त, व्यवसाय पाने
| |
− | | |
− | की चिन्ता से ग्रस्त, चारों ओर भीड़, कोलाहल, प्रदूषण से
| |
− | | |
− | त्रस्त हो गया है तब वह सौभाग्य कहाँ मिलेगा ऐसा एक दर्द
| |
− | | |
− | मन में संजोये हम अपने भव्य भवनों में चलने वाले
| |
− | | |
− | आवासी विद्यालयों को 'गुरुकुल' संज्ञा देते हैं। उसे
| |
− | | |
− | “आधुनिक गुरुकुल' कहते हैं । केवल परिवेश बदला है,
| |
− | | |
− | केवल भाषा बदली है, केवल अध्ययन के विषय बदले हैं,
| |
− | | |
− | केवल सन्दर्भ बदले हैं, केवल पढ़ने पढ़ाने तथा पढ़वाने
| |
− | | |
− | वालों के मनोभाव ही बदले हैं, फिर भी यह है तो गुरुकुल
| |
− | | |
− | ऐसा हमारा प्रतिपादन होता है ।
| |
− | | |
− | इतना सब कुछ बदल जाने के बाद भी ऐसा कौन सा
| |
− | | |
− | तत्त्व है जो वही का वही है और जिस कारण से हम उसे
| |
− | | |
− | गुरुकुल कहते हैं इस विषय में हम स्पष्ट नहीं होते हैं,
| |
− | | |
− | कदाचित हम जानते भी हैं कि उस गुरुकुल और इस
| |
− | | |
− | गुरुकुल में केवल शब्दसाम्य ही है, और कोई साम्य नहीं
| |
− | | |
− | श्७५
| |
− | | |
− | है, फिर भी हमें यह नामाभिधान अच्छा लगता है ।
| |
− | | |
− | इसका कारण यह है कि आज भी हमारे अन्तर्मन में
| |
− | | |
− | शिक्षा के उस स्वरूप के प्रति अटूट आस्था है और उसे येन
| |
− | | |
− | केन प्रकारेण जिस किसी भी रूपमें जीवित रखना चाहते
| |
− | | |
− | हैं।
| |
− | | |
− | सर्वजन समाज की इस आस्था का दम्भपूर्वक और
| |
− | | |
− | सफलता पूर्वक व्यावसायिक लाभ कमाना यह भी इसका
| |
− | | |
− | एक पहलू है ।
| |
− | | |
− | इस भौतिक और मानसिक परिप्रेक्ष्य में गुरुकुल | |
− | | |
− | संकल्पना का शैक्षिक स्वरूप क्या आज भी सम्भव है, और | |
− | | |
− | यदि है तो क्या ऐसा करना उचित है इस प्रश्न का उत्तर | |
− | | |
− | खोजने का प्रयास करना चाहिये । इस विमर्श का उद्देश्य भी | |
− | | |
− | वही है । | |
| | | |
| == “गुरुकुल' संज्ञा == | | == “गुरुकुल' संज्ञा == |