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| यद्यपि इन पांच ग्रन्थों में “पश्चिमीकरण से शिक्षा की मुक्ति' एक ग्रन्थ है, और वह चौथे क्रमांक पर है तो भी शिक्षा | | यद्यपि इन पांच ग्रन्थों में “पश्चिमीकरण से शिक्षा की मुक्ति' एक ग्रन्थ है, और वह चौथे क्रमांक पर है तो भी शिक्षा |
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− | के भारतीयकरण का विषय इससे या इससे भी पूर्व से प्रारम्भ होता है । शिक्षा के पश्चिमीकरण से मुक्ति का विषय तो तब | + | के धार्मिककरण का विषय इससे या इससे भी पूर्व से प्रारम्भ होता है । शिक्षा के पश्चिमीकरण से मुक्ति का विषय तो तब |
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| आता है जब शिक्षा का पश्चिमीकरण हुआ हो । भारत में शिक्षा के पश्चिमीकरण का मामला पाँचसौ वर्ष पूर्व से प्रारम्भ | | आता है जब शिक्षा का पश्चिमीकरण हुआ हो । भारत में शिक्षा के पश्चिमीकरण का मामला पाँचसौ वर्ष पूर्व से प्रारम्भ |
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| हैं, उन अवरोधों को कैसे पार करना आदि विषयों की यथासम्भव विस्तार से चर्चा की गई है । | | हैं, उन अवरोधों को कैसे पार करना आदि विषयों की यथासम्भव विस्तार से चर्चा की गई है । |
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− | आज भारत में अच्छी शिक्षा की चर्चा सर्वत्र होती है परन्तु भारतीय शिक्षा की नहीं । अर्थात् एक छोटा वर्ग है जो | + | आज भारत में अच्छी शिक्षा की चर्चा सर्वत्र होती है परन्तु धार्मिक शिक्षा की नहीं । अर्थात् एक छोटा वर्ग है जो |
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− | भारतीय शिक्षा की बात करता है । परन्तु दोनों वर्गों की अपने अपने विषय की कल्पनायें बहुत मजेदार हैं । अच्छी शिक्षा
| + | धार्मिक शिक्षा की बात करता है । परन्तु दोनों वर्गों की अपने अपने विषय की कल्पनायें बहुत मजेदार हैं । अच्छी शिक्षा |
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| के पक्षधर अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा को, तो कभी ऊँचे शुल्क वाली शिक्षा को, तो कभी संगणक जैसे भरपूर साधनसामग्री | | के पक्षधर अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा को, तो कभी ऊँचे शुल्क वाली शिक्षा को, तो कभी संगणक जैसे भरपूर साधनसामग्री |
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| अच्छी शिक्षा कहते हैं । ये सभी आयाम एक साथ हों तो वह उत्तमोत्तम शिक्षा है। ऐसी शिक्षा देने वाले विद्यालय, | | अच्छी शिक्षा कहते हैं । ये सभी आयाम एक साथ हों तो वह उत्तमोत्तम शिक्षा है। ऐसी शिक्षा देने वाले विद्यालय, |
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− | महाविद्यालय या विश्वविद्यालय श्रेष्ठ हैं । भारतीय शिक्षा के पक्षधर संस्कृत में लिखे गये ज्योतिष, व्याकरण जैसे वेदांगों | + | महाविद्यालय या विश्वविद्यालय श्रेष्ठ हैं । धार्मिक शिक्षा के पक्षधर संस्कृत में लिखे गये ज्योतिष, व्याकरण जैसे वेदांगों |
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− | की, न्यायशास्त्र जैसे ग्रन्थों की, वैदिक गणित जैसे विषयों की शिक्षा को भारतीय शिक्षा कहते हैं । वेदों, dard और | + | की, न्यायशास्त्र जैसे ग्रन्थों की, वैदिक गणित जैसे विषयों की शिक्षा को धार्मिक शिक्षा कहते हैं । वेदों, dard और |
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− | योगदर्शन, उपनिषद आदि की शिक्षा को भारतीय शिक्षा कहते हैं । दोनों ही वर्गों में उत्तम विद्याकेन्द्रों के नमूने हैं । परन्तु | + | योगदर्शन, उपनिषद आदि की शिक्षा को धार्मिक शिक्षा कहते हैं । दोनों ही वर्गों में उत्तम विद्याकेन्द्रों के नमूने हैं । परन्तु |
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| देश और दुनिया की स्थिति तो उत्तरोत्तर बिगडती ही जा रही है, संकट बढ़ते ही जा रहे हैं । | | देश और दुनिया की स्थिति तो उत्तरोत्तर बिगडती ही जा रही है, संकट बढ़ते ही जा रहे हैं । |
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− | जो लोग अच्छी शिक्षा के पक्षधर हैं उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा की संकल्पना समझने की और जो लोग भारतीय शिक्षा के | + | जो लोग अच्छी शिक्षा के पक्षधर हैं उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा की संकल्पना समझने की और जो लोग धार्मिक शिक्षा के |
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| प्रयासों में रत हैं उन्हें युगानुकूल शिक्षा की संकल्पना समझने की आवश्यकता है । प्रत्येक राष्ट्र का एक विशेष स्वभाव होता | | प्रयासों में रत हैं उन्हें युगानुकूल शिक्षा की संकल्पना समझने की आवश्यकता है । प्रत्येक राष्ट्र का एक विशेष स्वभाव होता |
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| एक पीढ़ी से दूसरी पीढी को हस्तान्तरित होते होते उसकी परम्परा बनती है । शिक्षा संस्कृति की परम्परा बनाये रखने का, | | एक पीढ़ी से दूसरी पीढी को हस्तान्तरित होते होते उसकी परम्परा बनती है । शिक्षा संस्कृति की परम्परा बनाये रखने का, |
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− | उसे निरन्तर परिष्कृत करने का, उसे नष्ट नहीं होने देने का एकमात्र साधन है । अच्छी शिक्षा और भारतीय शिक्षा दोनों के | + | उसे निरन्तर परिष्कृत करने का, उसे नष्ट नहीं होने देने का एकमात्र साधन है । अच्छी शिक्षा और धार्मिक शिक्षा दोनों के |
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| पक्षधरों को राष्ट्रीता और उसके सभी व्यावहारिक आयामों को एक साथ रखकर समग्रता में अपना चिन्तन विकसित करने की | | पक्षधरों को राष्ट्रीता और उसके सभी व्यावहारिक आयामों को एक साथ रखकर समग्रता में अपना चिन्तन विकसित करने की |
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| आवश्यकता है । यह ग्रन्थमाला इसके लिये संकेत मात्र देने का प्रयास करती है । | | आवश्यकता है । यह ग्रन्थमाला इसके लिये संकेत मात्र देने का प्रयास करती है । |
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− | शिक्षा का भारतीयकरण करने की दिशा में यदि समग्रता में प्रयास करना है तो हमें एक सर्वआयामी प्रतिमान का | + | शिक्षा का धार्मिककरण करने की दिशा में यदि समग्रता में प्रयास करना है तो हमें एक सर्वआयामी प्रतिमान का |
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| विचार करना होगा । इस बात का विशेष उल्लेख इसलिये करना है क्योंकि भारत में एक बहुत बडा वर्ग ऐसा है जो | | विचार करना होगा । इस बात का विशेष उल्लेख इसलिये करना है क्योंकि भारत में एक बहुत बडा वर्ग ऐसा है जो |
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− | वर्तमान ढाँचे में ही भारतीय जीवन मूल्यों के अनुसार कुछ बातें जोडने का आग्रह रखता है । सरकार भी इनमें एक है । ये | + | वर्तमान ढाँचे में ही धार्मिक जीवन मूल्यों के अनुसार कुछ बातें जोडने का आग्रह रखता है । सरकार भी इनमें एक है । ये |
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| प्रयास उपयोगी नहीं हैं ऐसा तो नहीं कहा जा सकता क्योंकि आज सर्वथा विपरीत स्थिति में भी भारत जीवित है तो इन | | प्रयास उपयोगी नहीं हैं ऐसा तो नहीं कहा जा सकता क्योंकि आज सर्वथा विपरीत स्थिति में भी भारत जीवित है तो इन |
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| का एक एक पडाव, छोटे से छोटा कदम भी हमें अव्यावहारिक लगने लगेगा । उदाहरण के लिये यदि हम कहें कि शिक्षा | | का एक एक पडाव, छोटे से छोटा कदम भी हमें अव्यावहारिक लगने लगेगा । उदाहरण के लिये यदि हम कहें कि शिक्षा |
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− | की भारतीय संकल्पना के अनुसार शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिये तो यह बात सर्वथा अव्यावहारिक लगेगी । यदि हम कहें | + | की धार्मिक संकल्पना के अनुसार शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिये तो यह बात सर्वथा अव्यावहारिक लगेगी । यदि हम कहें |
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| कि अंग्रेजी से अध्ययन को मुक्त करना चाहिये तो वह भी अव्यावहारिक लगेगा । यदि कहा जाय कि साधनसामग्री की | | कि अंग्रेजी से अध्ययन को मुक्त करना चाहिये तो वह भी अव्यावहारिक लगेगा । यदि कहा जाय कि साधनसामग्री की |
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| हृदयस्थ और मस्तिष्कस्थ करना होगा । बाद में उसके क्रियान्वयन की भी बात आयेगी । दूसरा चरण होगा पश्चिमीकरण से | | हृदयस्थ और मस्तिष्कस्थ करना होगा । बाद में उसके क्रियान्वयन की भी बात आयेगी । दूसरा चरण होगा पश्चिमीकरण से |
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− | शिक्षा को मुक्त कर उसे भारतीय बनाना । यह भी पर्याप्त अध्ययन की अपेक्षा करेगा । इस प्रकार शिक्षा के भारतीयकरण | + | शिक्षा को मुक्त कर उसे धार्मिक बनाना । यह भी पर्याप्त अध्ययन की अपेक्षा करेगा । इस प्रकार शिक्षा के धार्मिककरण |
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| का विषय विश्लेषणपूर्वक समझना होगा । | | का विषय विश्लेषणपूर्वक समझना होगा । |
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− | एक बार भारतीय शिक्षा की भारत में प्रतिष्ठा होगी और भारत भारत बनेगा तब फिर भारत की विश्व में क्या भूमिका | + | एक बार धार्मिक शिक्षा की भारत में प्रतिष्ठा होगी और भारत भारत बनेगा तब फिर भारत की विश्व में क्या भूमिका |
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| है इस विषय का विचार करने का विषय आता है। आज विश्व संकटों से ग्रस्त है उसका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण | | है इस विषय का विचार करने का विषय आता है। आज विश्व संकटों से ग्रस्त है उसका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण |
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| पश्चिमी जीवनदृष्टि का प्रभाव ही है । पश्चिम की जीवनदृष्टि शेष विश्व के लिये ही नहीं तो उसके अपने लिये भी विनाशक | | पश्चिमी जीवनदृष्टि का प्रभाव ही है । पश्चिम की जीवनदृष्टि शेष विश्व के लिये ही नहीं तो उसके अपने लिये भी विनाशक |
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− | ही है । विश्व को और पश्चिम को बचाने वाली तो भारतीय जीवनदृष्टि ही है । हमें चार आयामों में विश्वस्थिति और भारत | + | ही है । विश्व को और पश्चिम को बचाने वाली तो धार्मिक जीवनदृष्टि ही है । हमें चार आयामों में विश्वस्थिति और भारत |
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| के बारे में विचार करना होगा । एक, पश्चिम की दृष्टि में पश्चिम, दो, पश्चिम की दृष्टि में भारत, तीन, भारत की दृष्टि में | | के बारे में विचार करना होगा । एक, पश्चिम की दृष्टि में पश्चिम, दो, पश्चिम की दृष्टि में भारत, तीन, भारत की दृष्टि में |
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| में भारत विश्व का कल्याण कर सकता है । | | में भारत विश्व का कल्याण कर सकता है । |
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− | इस प्रकार सभी आयामों में शिक्षा के भारतीय करण का विचार इस ग्रन्थमाला में किया गया है । | + | इस प्रकार सभी आयामों में शिक्षा के धार्मिक करण का विचार इस ग्रन्थमाला में किया गया है । |
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| 3. | | 3. |
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| प्रकार से अध्ययन यात्रा का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न महानगरों में जाकर विद्वान प्राध्यापकों से मार्गदर्शन | | प्रकार से अध्ययन यात्रा का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न महानगरों में जाकर विद्वान प्राध्यापकों से मार्गदर्शन |
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− | प्राप्त किया गया | तीसरा माध्यम था विट्रतू गोष्टियों का । प्रत्येक ग्रन्थ के विषय में एक, ऐसी पाँच अखिल भारतीय स्तर | + | प्राप्त किया गया | तीसरा माध्यम था विट्रतू गोष्टियों का । प्रत्येक ग्रन्थ के विषय में एक, ऐसी पाँच अखिल धार्मिक स्तर |
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| आवश्यकता है । | | आवश्यकता है । |
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− | -. यह ग्रन्थमाला भारतीय शिक्षा के प्रश्न को समग्रता में समझना और सुलझाना चाहते हैं उनके लिये है । | + | -. यह ग्रन्थमाला धार्मिक शिक्षा के प्रश्न को समग्रता में समझना और सुलझाना चाहते हैं उनके लिये है । |
| | | |
− | -. यह ग्रन्थमाला भारतीय शिक्षा के विषय में अनुसन्धान करना चाहते हैं उनके लिये है । | + | -. यह ग्रन्थमाला धार्मिक शिक्षा के विषय में अनुसन्धान करना चाहते हैं उनके लिये है । |
| | | |
− | -. यह ग्रन्थमाला शिक्षा के भारतीय प्रतिमान को लेकर जो प्रयोग करना चाहते हैं उनके लिये चिन्तन प्रस्तुत करती | + | -. यह ग्रन्थमाला शिक्षा के धार्मिक प्रतिमान को लेकर जो प्रयोग करना चाहते हैं उनके लिये चिन्तन प्रस्तुत करती |
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| है । | | है । |
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− | -. यह verre विश्वविद्यालयों के अध्ययन मण्डलों को भारतीय संकल्पना के अनुसार विभिन्न विषयों के स्वरूप | + | -. यह verre विश्वविद्यालयों के अध्ययन मण्डलों को धार्मिक संकल्पना के अनुसार विभिन्न विषयों के स्वरूप |
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| Tet Sg सूत्र देने का प्रयास करती है । | | Tet Sg सूत्र देने का प्रयास करती है । |
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| हेतु, कार्ययोजना की एक रूपरेखा प्रस्तुत करती है । | | हेतु, कार्ययोजना की एक रूपरेखा प्रस्तुत करती है । |
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− | -. यह ग्रन्थमाला पश्चिमीकरण से भारतीय मानस की मुक्ति हेतु प्रयास करने वाले सबको एक सन्दर्भ प्रस्तुत करने | + | -. यह ग्रन्थमाला पश्चिमीकरण से धार्मिक मानस की मुक्ति हेतु प्रयास करने वाले सबको एक सन्दर्भ प्रस्तुत करने |
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| का प्रयास करती है । | | का प्रयास करती है । |
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− | अधिकांश ऐसा समझा जाता है कि शिक्षा का भारतीयकरण शिक्षा विभाग का विषय है । इसलिये इस विषय की | + | अधिकांश ऐसा समझा जाता है कि शिक्षा का धार्मिककरण शिक्षा विभाग का विषय है । इसलिये इस विषय की |
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| चर्चा विश्वविद्यालयों के शिक्षाविभाग में, बी.एड. या एम.एड. कोलेजों में, शिक्षकों की सभाओं में की जाती है । गोष्टियों | | चर्चा विश्वविद्यालयों के शिक्षाविभाग में, बी.एड. या एम.एड. कोलेजों में, शिक्षकों की सभाओं में की जाती है । गोष्टियों |
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− | शिक्षा के भारतीयकरण हेतु इतनी सीमित भूमिका से काम नहीं चलेगा । उस अर्थ में यह एक वैचारिक विषय है | + | शिक्षा के धार्मिककरण हेतु इतनी सीमित भूमिका से काम नहीं चलेगा । उस अर्थ में यह एक वैचारिक विषय है |
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| और देश के सर्वसामान्य बौद्धिक वर्ग के लिये इसकी चिन्ता और चिन्तन करने की आवश्यकता है । पढने वाले छोटे से | | और देश के सर्वसामान्य बौद्धिक वर्ग के लिये इसकी चिन्ता और चिन्तन करने की आवश्यकता है । पढने वाले छोटे से |
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| पश्चिमीकरण ने अर्थक्षेत्र, राजनीति, शासन, समाज व्यवस्था, कुट्म्ब जीवन, उद्योगतन्त्र आदि सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया | | पश्चिमीकरण ने अर्थक्षेत्र, राजनीति, शासन, समाज व्यवस्था, कुट्म्ब जीवन, उद्योगतन्त्र आदि सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया |
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− | है इसलिये भारतीयकरण भी सभी क्षेत्रों के सरोकार का विषय बनेगा । शिक्षा अपने आपमें तो ऐसा कोई विषय नहीं है । | + | है इसलिये धार्मिककरण भी सभी क्षेत्रों के सरोकार का विषय बनेगा । शिक्षा अपने आपमें तो ऐसा कोई विषय नहीं है । |
| | | |
| अतः सभी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों को अपने अपने क्षेत्र के विचार और व्यवस्था के सम्बन्ध में तथा शिक्षा के सम्बन्ध में | | अतः सभी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों को अपने अपने क्षेत्र के विचार और व्यवस्था के सम्बन्ध में तथा शिक्षा के सम्बन्ध में |
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− | साथ साथ विचार करना होगा । भारतीयकरण का विचार भी समग्रता में ही हो सकता है । | + | साथ साथ विचार करना होगा । धार्मिककरण का विचार भी समग्रता में ही हो सकता है । |
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| इस ग्रन्थमाला में इसी प्रकार की भूमिका अपनाई गई है । | | इस ग्रन्थमाला में इसी प्रकार की भूमिका अपनाई गई है । |
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| सुधी लोग आवश्यकता के अनुसार इस विषय को आगे बढ़ाते ही रहेंगे ऐसा विश्वास है । | | सुधी लोग आवश्यकता के अनुसार इस विषय को आगे बढ़ाते ही रहेंगे ऐसा विश्वास है । |
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− | इस ग्रन्थमाला के माध्यम से विद्यापीठ ऐसे सभी लोगों का भारतीय शिक्षा के विषय पर ध्रुवीकरण करना चाहता है | + | इस ग्रन्थमाला के माध्यम से विद्यापीठ ऐसे सभी लोगों का धार्मिक शिक्षा के विषय पर ध्रुवीकरण करना चाहता है |
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− | जो भारतीय शिक्षा के विषय में चिन्तित हैं, कुछ करना चाहते हैं, अन्यान्य प्रकार से कुछ कर रहे हैं और जिज्ञासु और | + | जो धार्मिक शिक्षा के विषय में चिन्तित हैं, कुछ करना चाहते हैं, अन्यान्य प्रकार से कुछ कर रहे हैं और जिज्ञासु और |
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| प्रयोगशील हैं । इस दृष्टि से भविष्य में इसका भारत की अन्याय भाषाओं में अनुवाद हो यह पुनरुत्थान विद्यापीठ की | | प्रयोगशील हैं । इस दृष्टि से भविष्य में इसका भारत की अन्याय भाषाओं में अनुवाद हो यह पुनरुत्थान विद्यापीठ की |
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| हो ऐसी भी अपेक्षा रहेगी । | | हो ऐसी भी अपेक्षा रहेगी । |
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− | शिशुअवस्था में घर से प्रास्भ कर विश्वविद्यालय तक और बाद में समाज के व्यापक क्षेत्र में शिक्षा के भारतीयकरण के | + | शिशुअवस्था में घर से प्रास्भ कर विश्वविद्यालय तक और बाद में समाज के व्यापक क्षेत्र में शिक्षा के धार्मिककरण के |
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| प्रभावी प्रयास हो इस दृष्टि से इस ग्रन्थमाला जैसे सैंकडों ग्रन्थों की स्वना करने की आवश्यकता रहेगी । श्रेष्ठ विद्वानों से लेकर | | प्रभावी प्रयास हो इस दृष्टि से इस ग्रन्थमाला जैसे सैंकडों ग्रन्थों की स्वना करने की आवश्यकता रहेगी । श्रेष्ठ विद्वानों से लेकर |
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| जो सद्यग्राही होते हैं उनके लिये समासशैली अनुकूल होती है, वे व्यासशैली से कभी कभी चिढते भी हैं परन्तु सर्वसामान्य | | जो सद्यग्राही होते हैं उनके लिये समासशैली अनुकूल होती है, वे व्यासशैली से कभी कभी चिढते भी हैं परन्तु सर्वसामान्य |
| | | |
− | पाठक वर्ग के लिये व्यासशैली अनुकूल होती है । भारतीय शिक्षा का विषय ज्ञानात्मक दृष्टि से गम्भीर है, व्यवहार की | + | पाठक वर्ग के लिये व्यासशैली अनुकूल होती है । धार्मिक शिक्षा का विषय ज्ञानात्मक दृष्टि से गम्भीर है, व्यवहार की |
| | | |
| दृष्टि से तो और भी गम्भीर और उलझा हुआ है इसलिये उसे सलझाने के लिये व्यासशैली ही चाहिये । कभी कभी तो यह | | दृष्टि से तो और भी गम्भीर और उलझा हुआ है इसलिये उसे सलझाने के लिये व्यासशैली ही चाहिये । कभी कभी तो यह |
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| और स्पर्धा, विकास और यास्त्रकीकरण | | और स्पर्धा, विकास और यास्त्रकीकरण |
| | | |
− | 'विकास की भारतीय संकल्पना एवं स्वरूप ३१ | + | 'विकास की धार्मिक संकल्पना एवं स्वरूप ३१ |
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| समन्वित विकास | | समन्वित विकास |
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| ३. पाश्चात्य देशों में शिशुशिक्षा की व्यवस्था, ४. वर्तमान भारत | | ३. पाश्चात्य देशों में शिशुशिक्षा की व्यवस्था, ४. वर्तमान भारत |
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− | में शिशुशिक्षा की स्थिति, ५. भारतीय वातावरण में शिशुशिक्षा | + | में शिशुशिक्षा की स्थिति, ५. धार्मिक वातावरण में शिशुशिक्षा |
| | | |
| का स्वरूप, शिशु शिक्षा का पाठ्यक्रम, आत्मतत्त्व की अनुभूति | | का स्वरूप, शिशु शिक्षा का पाठ्यक्रम, आत्मतत्त्व की अनुभूति |
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| ६. वरवधूचयन और विवाहसंस्कार Bey | | ६. वरवधूचयन और विवाहसंस्कार Bey |
| | | |
− | पाठ्यक्रम, विवाहविषयक पाश्चात्य एवं भारतीय दृष्टिकोण, | + | पाठ्यक्रम, विवाहविषयक पाश्चात्य एवं धार्मिक दृष्टिकोण, |
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− | पाश्चात्य दृष्टिकोण, भारतीय दृष्टिकोण, गृहस्थाश्रम : पति पत्नी | + | पाश्चात्य दृष्टिकोण, धार्मिक दृष्टिकोण, गृहस्थाश्रम : पति पत्नी |
| | | |
| का सम्बन्ध | | का सम्बन्ध |
Line 1,077: |
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| महाविद्यालयीन शिक्षा, अध्ययन के विषयनवकृति, अनुसन्धान, | | महाविद्यालयीन शिक्षा, अध्ययन के विषयनवकृति, अनुसन्धान, |
| | | |
− | १, हम है भारतीय गायें, २. देशी और विदेशी गाय का अन्तर, | + | १, हम है धार्मिक गायें, २. देशी और विदेशी गाय का अन्तर, |
| | | |
| अद्भुत गाय, गाय की Asya A, 3. अद्भुत गाय | | अद्भुत गाय, गाय की Asya A, 3. अद्भुत गाय |
Line 1,136: |
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| तत्त्वचिन्तन | | तत्त्वचिन्तन |
| | | |
− | भारतीय ज्ञानधारा का आधार लेकर शिक्षा के समग्र विकास प्रतिमान की
| + | धार्मिक ज्ञानधारा का आधार लेकर शिक्षा के समग्र विकास प्रतिमान की |
| | | |
− | प्रस्तुति यहाँ की गई है । भारतीय ज्ञानधारा का प्रवाह क्षीण रूप में अभी | + | प्रस्तुति यहाँ की गई है । धार्मिक ज्ञानधारा का प्रवाह क्षीण रूप में अभी |
| | | |
| अस्तित्व में तो है परन्तु शिक्षा तथा अन्य व्यवस्थाओं में वह अनुस्यूत नहीं | | अस्तित्व में तो है परन्तु शिक्षा तथा अन्य व्यवस्थाओं में वह अनुस्यूत नहीं |
Line 1,144: |
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| होने के कारण से पुष्ट नहीं हो रहा है । ज्ञानधारा पुष्ट नहीं होने के कारण | | होने के कारण से पुष्ट नहीं हो रहा है । ज्ञानधारा पुष्ट नहीं होने के कारण |
| | | |
− | भारतीय जीवन को भी स्वाभाविक पोषण नहीं मिलता है । इसका परिणाम यह
| + | धार्मिक जीवन को भी स्वाभाविक पोषण नहीं मिलता है । इसका परिणाम यह |
| | | |
| होता है कि भारत का जनजीवन अधार्मिक ज्ञानधारा से आप्लावित होता है । | | होता है कि भारत का जनजीवन अधार्मिक ज्ञानधारा से आप्लावित होता है । |
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Line 1,188: |
| ३. ... विकास की वर्तमान संकल्पना एवं स्वरूप 83 | | ३. ... विकास की वर्तमान संकल्पना एवं स्वरूप 83 |
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− | ४... विकास की भारतीय संकल्पना एवं स्वरूप ३१ | + | ४... विकास की धार्मिक संकल्पना एवं स्वरूप ३१ |
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| ५. .... व्यक्तित्व मीमांसा ¥¥ | | ५. .... व्यक्तित्व मीमांसा ¥¥ |
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| हुई हैं उन्हें दूर करने हेतु, विद्याक्षेत्र को परिष्कृत करने हेतु, | | हुई हैं उन्हें दूर करने हेतु, विद्याक्षेत्र को परिष्कृत करने हेतु, |
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− | भारतीय ज्ञानधारा के अवरुद्ध प्रवाह को पुन: प्रवाहित करने
| + | धार्मिक ज्ञानधारा के अवरुद्ध प्रवाह को पुन: प्रवाहित करने |
| | | |
| हेतु, शिक्षा के विषय में जो भी जिज्ञासु, अभ्यासु और | | हेतु, शिक्षा के विषय में जो भी जिज्ञासु, अभ्यासु और |
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| कार्यच्छु हैं उनकी सहायता और सेवा करने हेतु तथा | | कार्यच्छु हैं उनकी सहायता और सेवा करने हेतु तथा |
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− | भारतीय ज्ञानधारा की प्रतिष्ठा कर विश्वकल्याण का मार्ग
| + | धार्मिक ज्ञानधारा की प्रतिष्ठा कर विश्वकल्याण का मार्ग |
| | | |
| प्रशस्त करने हेतु “शिक्षा का समग्र विकास प्रतिमान के | | प्रशस्त करने हेतु “शिक्षा का समग्र विकास प्रतिमान के |
Line 1,273: |
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| हमारे देश को शिक्षा के एक ऐसे प्रतिमान की आवश्यकता | | हमारे देश को शिक्षा के एक ऐसे प्रतिमान की आवश्यकता |
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− | है जो शत प्रतिशत भारतीय हो । शिक्षा का भारतीयकारण | + | है जो शत प्रतिशत धार्मिक हो । शिक्षा का धार्मिककारण |
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| करने के देशभर में अनेक प्रकार से प्रयास चल रहे हैं । उन | | करने के देशभर में अनेक प्रकार से प्रयास चल रहे हैं । उन |
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| में समग्रता में विचार किया जाय । शिक्षा के केवल शैक्षिक | | में समग्रता में विचार किया जाय । शिक्षा के केवल शैक्षिक |
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− | पक्ष का विचार करने से शिक्षा का भारतीयकरण नहीं | + | पक्ष का विचार करने से शिक्षा का धार्मिककरण नहीं |
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| होगा । शिक्षा का व्यवस्था पक्ष और आर्थिक पक्ष भी | | होगा । शिक्षा का व्यवस्था पक्ष और आर्थिक पक्ष भी |
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| सम्पूर्ण तंत्र को बहुत प्रभावित करता है । अत: इन दोनों | | सम्पूर्ण तंत्र को बहुत प्रभावित करता है । अत: इन दोनों |
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− | पक्षों के भी भारतीयकरण की आवश्यकता है। ऐसी | + | पक्षों के भी धार्मिककरण की आवश्यकता है। ऐसी |
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− | भारतीय व्यवस्थाओं के सन्दर्भ में प्रतिष्ठित हो सके ऐसे
| + | धार्मिक व्यवस्थाओं के सन्दर्भ में प्रतिष्ठित हो सके ऐसे |
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| शैक्षिक प्रतिमान का विचार करने का मानस हमने बनाया | | शैक्षिक प्रतिमान का विचार करने का मानस हमने बनाया |
Line 1,388: |
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| सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है | | सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है |
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− | भारतीय विचारविश्व का यह सर्वस्वीकृत, आधारभूत
| + | धार्मिक विचारविश्व का यह सर्वस्वीकृत, आधारभूत |
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| और प्रिय सिद्धान्त है । यह सारी सृष्टि परमात्मा ने बनाई | | और प्रिय सिद्धान्त है । यह सारी सृष्टि परमात्मा ने बनाई |
Line 1,394: |
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| यह तो ठीक है । विश्व की अन्यान्य विचारधारायें यह तो | | यह तो ठीक है । विश्व की अन्यान्य विचारधारायें यह तो |
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− | मानती ही हैं । परन्तु भारतीय विचार विशेष रूप से यह | + | मानती ही हैं । परन्तु धार्मिक विचार विशेष रूप से यह |
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| कहता है कि परमात्मा ने अपने में से ही यह सृष्टि बनाई | | कहता है कि परमात्मा ने अपने में से ही यह सृष्टि बनाई |
Line 2,438: |
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| शिक्षा सर्व प्रकार की परम्पराओं को संजोकर रखने का | | शिक्षा सर्व प्रकार की परम्पराओं को संजोकर रखने का |
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− | माध्यम होती है । जब तक भारत में भारतीय शिक्षा चली ये | + | माध्यम होती है । जब तक भारत में धार्मिक शिक्षा चली ये |
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| सारी बातें परम्परा के रूप में लोगों के व्यवहार में और मानस | | सारी बातें परम्परा के रूप में लोगों के व्यवहार में और मानस |
Line 2,458: |
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| हैं परन्तु शिक्षित लोगों ने बनाया हुआ सजमाना' ऐसा करने | | हैं परन्तु शिक्षित लोगों ने बनाया हुआ सजमाना' ऐसा करने |
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− | नहीं देता । इसलिये भारतीय व्यवस्था के अवशेष तो दिखाई | + | नहीं देता । इसलिये धार्मिक व्यवस्था के अवशेष तो दिखाई |
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| देते हैं परन्तु उनकी दुर्गति भी त्वरित गति से हो रही है | | | देते हैं परन्तु उनकी दुर्गति भी त्वरित गति से हो रही है | |
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| है । परन्तु परिस्थिति तो सर्वथा विपरीत है । तब यह कार्य | | है । परन्तु परिस्थिति तो सर्वथा विपरीत है । तब यह कार्य |
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− | होगा कैसे ? शिक्षा तो भारतीय बनाकर समाज को ठीक | + | होगा कैसे ? शिक्षा तो धार्मिक बनाकर समाज को ठीक |
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| करने की चर्चा तो की जा सकती है परन्तु व्यवहार और | | करने की चर्चा तो की जा सकती है परन्तु व्यवहार और |
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| we : १ तत्त्वचिन्तन | | we : १ तत्त्वचिन्तन |
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− | भारतीयों के मानस और विचार बदले । बदले हुए विचार और
| + | धार्मिकों के मानस और विचार बदले । बदले हुए विचार और |
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| मानस ने व्यवस्थायें भी बदलना शुरू किया । परिवर्तन की यह | | मानस ने व्यवस्थायें भी बदलना शुरू किया । परिवर्तन की यह |
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| परन्तु यह भी महतू आश्चर्य की बात है कि दोसौ वर्ष | | परन्तु यह भी महतू आश्चर्य की बात है कि दोसौ वर्ष |
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− | के आक्रमण के बाद भी हम अभी भी भारतीय बनकर ही | + | के आक्रमण के बाद भी हम अभी भी धार्मिक बनकर ही |
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− | जी रहे हैं। भारतीय प्रज्ञा का एक हिस्सा ऐसा है जो | + | जी रहे हैं। धार्मिक प्रज्ञा का एक हिस्सा ऐसा है जो |
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| ब्रिटीशों और यूरोपीय जीवनदृष्टि से अत्यधिक प्रभावित है । | | ब्रिटीशों और यूरोपीय जीवनदृष्टि से अत्यधिक प्रभावित है । |
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− | परन्तु सामान्य जन अभी भी भारतीय मानस के साथ ही जी | + | परन्तु सामान्य जन अभी भी धार्मिक मानस के साथ ही जी |
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| रहा है। इसका कारण यह है कि भगवती प्रकृति की | | रहा है। इसका कारण यह है कि भगवती प्रकृति की |
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| अध्ययन व्यापक था और चिन्तन गहरा था । उन्होंने | | अध्ययन व्यापक था और चिन्तन गहरा था । उन्होंने |
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− | भारतीय पण्डित का वेश धारण किया हुआ था । वे वास्तव
| + | धार्मिक पण्डित का वेश धारण किया हुआ था । वे वास्तव |
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| में ऋषि ही लग रहे थे । उन्होंने वेदमंत्रों के गान से अपनी | | में ऋषि ही लग रहे थे । उन्होंने वेदमंत्रों के गान से अपनी |