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{{ToBeEdited}}<ref>लेखक : डॉ. बेन्जामिन हेईने, १ सित. १७७५, धर्मपाली की पुस्तक - १८वीं शताब्दी में भारत में विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान से उद्धृत</ref>लक्षमपुरम लोहे के कारखाने की मेरी पिछली रिपोर्ट के संदर्भ में लोहे जैसी किसी भी वस्तु के प्रति ध्यान आकर्षित होते ही सहज प्रवृत्ति के अनुसार मेरे मस्तिष्क में भी वही विचार पुन: घूमने लगते थे जिन्हें मैं ने पहले उस कार्य के द्वारा विवेचित-विश्लेषित किया था तथा मैं इस कार्य के दौरान यह भी विचार करके कार्यरत था कि विज्ञान की इस शाखा से या भारतीय लोह उत्पादन से आवश्यक लाभ प्राप्त होगा जिससे प्रेरित होकर मैं प्रथम अवसर मिलते ही कार्य में प्रवृत्ति हो गया तथा इस प्रकार का कार्य अन्य स्थानों पर भी देखने लगा। जबकि मुझे यह भी आशा थी कि इससे इस कार्य के लिए सर्वथा अनुकूल अन्य स्थानों के संबंध में भी पता लगाया जा सकेगा, जिसके परिणाम स्वरूप ऐसे कारखाने लगाए जाने के विषय में सोचा जाए तो उसमें पूर्ण सफलता अवश्य प्राप्त होगी।
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{{ToBeEdited}}<ref>लेखक : डॉ. बेन्जामिन हेईने, १ सित. १७७५, धर्मपाली की पुस्तक - १८वीं शताब्दी में भारत में विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान से उद्धृत</ref>लक्षमपुरम लोहे के कारखाने की मेरी पिछली रिपोर्ट के संदर्भ में लोहे जैसी किसी भी वस्तु के प्रति ध्यान आकर्षित होते ही सहज प्रवृत्ति के अनुसार मेरे मस्तिष्क में भी वही विचार पुन: घूमने लगते थे जिन्हें मैं ने पहले उस कार्य के द्वारा विवेचित-विश्लेषित किया था तथा मैं इस कार्य के दौरान यह भी विचार करके कार्यरत था कि विज्ञान की इस शाखा से या धार्मिक लोह उत्पादन से आवश्यक लाभ प्राप्त होगा जिससे प्रेरित होकर मैं प्रथम अवसर मिलते ही कार्य में प्रवृत्ति हो गया तथा इस प्रकार का कार्य अन्य स्थानों पर भी देखने लगा। जबकि मुझे यह भी आशा थी कि इससे इस कार्य के लिए सर्वथा अनुकूल अन्य स्थानों के संबंध में भी पता लगाया जा सकेगा, जिसके परिणाम स्वरूप ऐसे कारखाने लगाए जाने के विषय में सोचा जाए तो उसमें पूर्ण सफलता अवश्य प्राप्त होगी।
रामनकपेठ में नूजीद की तुलना में भवन भी अधिक अच्छे हैं। गलियाँ अपेक्षाकृत काफी चौड़ी हैं तथा स्थानीय प्रचलन के अनुसार घर अच्छे एवं बड़े हैं। गाँव की बसाहट अत्यन्त सुंदर एवं आकर्षक रूप में सुव्यवस्थित है। इसके समीप अत्यंत विशाल जलाशय है। गाँव की दक्षिण दिशा में रहने वाले निवासियों को अत्यंत आनंदानुभूति होती है। इसके पूर्व में अत्यंत ही समीप पहाड़ियाँ हैं। इसके दक्षिण की ओर एक प्रकार की रंगभूमि का मनोरम दृश्य उभरता है। इस तरह से गाँव के लोगों के ये रमणीय आवास हैं। इसके समीप ही लोहे के अयस्क की खदानें है। अकाल पड़ने से पूर्व यहाँ ४० से भी अधिक लोहा गलाने की भट्ियां थीं। बहुत बड़ी संख्या में चाँदी एवं ताँबे के व्यवसाय से जुड़े लोग थे जो कि अत्यंत समृद्ध थे लेकिन उनके परिवार के अब बचे लोग अत्यंत गरीब हैं तथा अत्यंत दयनीय स्थिति में हैं।
रामनकपेठ में नूजीद की तुलना में भवन भी अधिक अच्छे हैं। गलियाँ अपेक्षाकृत काफी चौड़ी हैं तथा स्थानीय प्रचलन के अनुसार घर अच्छे एवं बड़े हैं। गाँव की बसाहट अत्यन्त सुंदर एवं आकर्षक रूप में सुव्यवस्थित है। इसके समीप अत्यंत विशाल जलाशय है। गाँव की दक्षिण दिशा में रहने वाले निवासियों को अत्यंत आनंदानुभूति होती है। इसके पूर्व में अत्यंत ही समीप पहाड़ियाँ हैं। इसके दक्षिण की ओर एक प्रकार की रंगभूमि का मनोरम दृश्य उभरता है। इस तरह से गाँव के लोगों के ये रमणीय आवास हैं। इसके समीप ही लोहे के अयस्क की खदानें है। अकाल पड़ने से पूर्व यहाँ ४० से भी अधिक लोहा गलाने की भट्ियां थीं। बहुत बड़ी संख्या में चाँदी एवं ताँबे के व्यवसाय से जुड़े लोग थे जो कि अत्यंत समृद्ध थे लेकिन उनके परिवार के अब बचे लोग अत्यंत गरीब हैं तथा अत्यंत दयनीय स्थिति में हैं।