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रामनकपेठ में नूजीद की तुलना में भवन भी अधिक अच्छे हैं। गलियाँ अपेक्षाकृत काफी चौड़ी हैं तथा स्थानीय प्रचलन के अनुसार घर अच्छे एवं बड़े हैं। गाँव की बसाहट अत्यन्त सुंदर एवं आकर्षक रूप में सुव्यवस्थित है। इसके समीप अत्यंत विशाल जलाशय है। गाँव की दक्षिण दिशा में रहने वाले निवासियों को अत्यंत आनंदानुभूति होती है। इसके पूर्व में अत्यंत ही समीप पहाड़ियाँ हैं। इसके दक्षिण की ओर एक प्रकार की रंगभूमि का मनोरम दृश्य उभरता है। इस तरह से गाँव के लोगों के ये रमणीय आवास हैं। इसके समीप ही लोहे के अयस्क की खदानें है। अकाल पड़ने से पूर्व यहाँ ४० से भी अधिक लोहा गलाने की भट्ियां थीं। बहुत बड़ी संख्या में चाँदी एवं ताँबे के व्यवसाय से जुड़े लोग थे जो कि अत्यंत समृद्ध थे लेकिन उनके परिवार के अब बचे लोग अत्यंत गरीब हैं तथा अत्यंत दयनीय स्थिति में हैं।
रामनकपेठ में नूजीद की तुलना में भवन भी अधिक अच्छे हैं। गलियाँ अपेक्षाकृत काफी चौड़ी हैं तथा स्थानीय प्रचलन के अनुसार घर अच्छे एवं बड़े हैं। गाँव की बसाहट अत्यन्त सुंदर एवं आकर्षक रूप में सुव्यवस्थित है। इसके समीप अत्यंत विशाल जलाशय है। गाँव की दक्षिण दिशा में रहने वाले निवासियों को अत्यंत आनंदानुभूति होती है। इसके पूर्व में अत्यंत ही समीप पहाड़ियाँ हैं। इसके दक्षिण की ओर एक प्रकार की रंगभूमि का मनोरम दृश्य उभरता है। इस तरह से गाँव के लोगों के ये रमणीय आवास हैं। इसके समीप ही लोहे के अयस्क की खदानें है। अकाल पड़ने से पूर्व यहाँ ४० से भी अधिक लोहा गलाने की भट्ियां थीं। बहुत बड़ी संख्या में चाँदी एवं ताँबे के व्यवसाय से जुड़े लोग थे जो कि अत्यंत समृद्ध थे लेकिन उनके परिवार के अब बचे लोग अत्यंत गरीब हैं तथा अत्यंत दयनीय स्थिति में हैं।
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लोहे की खदानें गाँव की उत्तरी दिशा में एक मील दूरी पर तथा पहाड़ी से आधामील दूरी पर स्थित हैं जहाँ से वे कच्चा लोहा टोकरियों में भरकर गाँव के समीपवर्ती भाग में स्थित भट्ियों में लाते हैं। पहले उन्हें इसके नजदीक कच्चा लोहा मिल जाता था। लोहा पिघलाने वाले लोग लक्षमपुरम की भाँति न स्वयं लोहे की खदानों में काम करते हैं न अपना कोयला जलाते हैं। वे खदानों से टोकरियों में भरकर लानेबालों से लोहा खरीद लेते हैं तथा पहाड़ियों से लानेबाले श्रमिकों से वे कोयला खरीद लेते हैं।
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लोहे की खदानें गाँव की उत्तरी दिशा में एक मील दूरी पर तथा पहाड़ी से आधामील दूरी पर स्थित हैं जहाँ से वे कच्चा लोहा टोकरियों में भरकर गाँव के समीपवर्ती भाग में स्थित भट्ियों में लाते हैं। पहले उन्हें इसके समीप कच्चा लोहा मिल जाता था। लोहा पिघलाने वाले लोग लक्षमपुरम की भाँति न स्वयं लोहे की खदानों में काम करते हैं न अपना कोयला जलाते हैं। वे खदानों से टोकरियों में भरकर लानेबालों से लोहा खरीद लेते हैं तथा पहाड़ियों से लानेबाले श्रमिकों से वे कोयला खरीद लेते हैं।
कच्चा लोहखनिज जमीन के प्रथम स्तर के नीचे (जो कि पूर्वोछ्लिखित विवरण के अनुसार कंकड़ एवं बालू से निर्मित होती है) परत के रूप में होता हैं। मोटाई में मुश्किल से डेढ फुट मोटी यह परत होती है। ये परतें समस्त परिमाप में कम परिमाण में होती है। कई बार ये परतें दो फीट से भी अधिक चौड़ी तथा मौटाई में दो से चार फीट तक होती हैं । इस कच्चे लोह खनिज को बड़ी आसानी से निकाला जाता है क्योंकि यह गोल पत्थरों के रूप में होता है जो एक दूसरे से अलग होते हैं। लक्षमपुरमू की तरह गलनीयता भी किसी भी तरह से चूना के साथ मिश्रित करके प्राप्त नहीं होती है। या गुणवत्ता में वृद्धि करने के लिए किसी भी प्रकार की दूसरी तरह की मिट्टी का उपयोग भी नहीं किया जाता। यद्यपि यूरोप के अन्य किसी प्राकृतिक सामान्य कच्चे लोहखनिज की तुलना इससे नहीं की जा सकती तो भी ये हेमाटाइट के लगभग समान हैं। इसके अपने कई गुण हैं जिनमें से एक गुण यह है कि भिगोए जाने पर यह चिमटे की धार की दरारों से चिपकता है तथा यह इतने अच्छे कणों में परिवर्तित किया जा सकता है कि इससे उत्कृष्ट कोटि का चूर्ण बना लिया जाता है जिसे एसिड़ के. साथ मिलाए जाने से कुछ मात्रा में सिलिकामय सम्मिश्रण होता है तथा इसमें गेरुआ मिट्टी के साथ सिलिकामय संचित सीमेंट की पूर्ण मात्रा में कुछ पत्थर होता है जिसे ये लोहा पिघलाने वाले लोग अनुपयोगी मानकर फैंक देते है। मेरे पास चुम्बक पत्थर न होने से नहीं कह सकता कि इसमें लोहा संगलनीय स्थिति में होता है या नहीं लेकिन यदि मैं इस संबंध में अनुमान का सहारा लूँ तो इसमें आधी मात्रा में होता है। कुछ प्रबुद्ध खनिजविदों ने मेरे तथ्यों को स्वीकार किया इसलिये मुझे अपने इस अनुमान से संतोष है। मैंने लक्षमपुरम्ू के कार्य को अपनी रिपोर्ट में केवल अभिप्राय के रूप में व्यक्त किया था।
कच्चा लोहखनिज जमीन के प्रथम स्तर के नीचे (जो कि पूर्वोछ्लिखित विवरण के अनुसार कंकड़ एवं बालू से निर्मित होती है) परत के रूप में होता हैं। मोटाई में मुश्किल से डेढ फुट मोटी यह परत होती है। ये परतें समस्त परिमाप में कम परिमाण में होती है। कई बार ये परतें दो फीट से भी अधिक चौड़ी तथा मौटाई में दो से चार फीट तक होती हैं । इस कच्चे लोह खनिज को बड़ी आसानी से निकाला जाता है क्योंकि यह गोल पत्थरों के रूप में होता है जो एक दूसरे से अलग होते हैं। लक्षमपुरमू की तरह गलनीयता भी किसी भी तरह से चूना के साथ मिश्रित करके प्राप्त नहीं होती है। या गुणवत्ता में वृद्धि करने के लिए किसी भी प्रकार की दूसरी तरह की मिट्टी का उपयोग भी नहीं किया जाता। यद्यपि यूरोप के अन्य किसी प्राकृतिक सामान्य कच्चे लोहखनिज की तुलना इससे नहीं की जा सकती तो भी ये हेमाटाइट के लगभग समान हैं। इसके अपने कई गुण हैं जिनमें से एक गुण यह है कि भिगोए जाने पर यह चिमटे की धार की दरारों से चिपकता है तथा यह इतने अच्छे कणों में परिवर्तित किया जा सकता है कि इससे उत्कृष्ट कोटि का चूर्ण बना लिया जाता है जिसे एसिड़ के. साथ मिलाए जाने से कुछ मात्रा में सिलिकामय सम्मिश्रण होता है तथा इसमें गेरुआ मिट्टी के साथ सिलिकामय संचित सीमेंट की पूर्ण मात्रा में कुछ पत्थर होता है जिसे ये लोहा पिघलाने वाले लोग अनुपयोगी मानकर फैंक देते है। मेरे पास चुम्बक पत्थर न होने से नहीं कह सकता कि इसमें लोहा संगलनीय स्थिति में होता है या नहीं लेकिन यदि मैं इस संबंध में अनुमान का सहारा लूँ तो इसमें आधी मात्रा में होता है। कुछ प्रबुद्ध खनिजविदों ने मेरे तथ्यों को स्वीकार किया इसलिये मुझे अपने इस अनुमान से संतोष है। मैंने लक्षमपुरम्ू के कार्य को अपनी रिपोर्ट में केवल अभिप्राय के रूप में व्यक्त किया था।