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| # प्रत्याशी लोगों को क्या आश्वासन दे इस के कोई नियम नहीं बनाये जाते। चाँद तोडकर लाने जैसे झूठे आश्वासन भी वे दे सकते हैं। सामान्यत: सभी प्रत्याशी लोगों के काम (अपेक्षाओं) और मोह को बढाने वाले आश्वासन ही देते हैं। आश्वासनों की पूर्ति नहीं होने पर समाज में अराजक निर्माण होता है। | | # प्रत्याशी लोगों को क्या आश्वासन दे इस के कोई नियम नहीं बनाये जाते। चाँद तोडकर लाने जैसे झूठे आश्वासन भी वे दे सकते हैं। सामान्यत: सभी प्रत्याशी लोगों के काम (अपेक्षाओं) और मोह को बढाने वाले आश्वासन ही देते हैं। आश्वासनों की पूर्ति नहीं होने पर समाज में अराजक निर्माण होता है। |
| # चुन कर आने के लिये प्रत्याशी का चालाक होना अनिवार्य होता है। बुद्धिमान होना, विवेकी होना इन गुणों से चालाकी को वरीयता मिलती है। चालाक प्रत्याशी लोगों को अच्छी तरह से भ्रमित कर (वास्तव में बेवकूफ बना) सकता है। बार बार भ्रमित कर सकता है। | | # चुन कर आने के लिये प्रत्याशी का चालाक होना अनिवार्य होता है। बुद्धिमान होना, विवेकी होना इन गुणों से चालाकी को वरीयता मिलती है। चालाक प्रत्याशी लोगों को अच्छी तरह से भ्रमित कर (वास्तव में बेवकूफ बना) सकता है। बार बार भ्रमित कर सकता है। |
− | # कोई भी ऐरा गैरा श्रेष्ठ शासक नहीं बन सकता। श्रेष्ठ शासक तो जन्मजात होता है ऐसी धार्मिक (भारतीय) मान्यता है। ऐसा व्यक्ति जो जन्मजात शासक के गुण लक्षणोंवाला हो, जिसे संस्कार, शिक्षण और प्रशिक्षण भी शासक बनने का मिला हो, मिलना लोकतंत्र में अपघात से ही होता है। ऐसे शासक निर्माण की व्यवस्था धार्मिक (भारतीय) राज-कुटुम्ब अपने बच्चों के लिये करते थे। वर्तमान अधार्मिक (अभारतीय) लोकतंत्र में नौकरशाही और नौकरशाहों का निर्माण मात्र हो सकता है। | + | # कोई भी ऐरा गैरा श्रेष्ठ शासक नहीं बन सकता। श्रेष्ठ शासक तो जन्मजात होता है ऐसी धार्मिक (भारतीय) मान्यता है। ऐसा व्यक्ति जो जन्मजात शासक के गुण लक्षणोंवाला हो, जिसे संस्कार, शिक्षण और प्रशिक्षण भी शासक बनने का मिला हो, मिलना लोकतंत्र में अपघात से ही होता है। ऐसे शासक निर्माण की व्यवस्था धार्मिक (भारतीय) राज-कुटुम्ब अपने बच्चों के लिये करते थे। वर्तमान अधार्मिक (अधार्मिक) लोकतंत्र में नौकरशाही और नौकरशाहों का निर्माण मात्र हो सकता है। |
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| == भारतीय समाज की व्यवस्थाओं का स्वरूप == | | == भारतीय समाज की व्यवस्थाओं का स्वरूप == |
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| धर्मराज्य को हम आज की भाषा में संवैधानिक शासन कह सकते हैं। लेकिन संवैधानिक शासन में संविधान बनानेवाले लोग कौन हैं यह महत्त्वपूर्ण है। धर्म के सिद्धांत समाधि अवस्था प्राप्त लोगों ने तय किये हुए हैं। वे काल की कसौटीपर भी खरे उतरे हैं। ऐसे धर्म के तत्त्वोंपर आधारित संविधान के अनुसार चलनेवाला शासन धर्मराज्य ही होगा। धर्मविरोधी शासक को बदलने का अधिकार प्रजा को होता है। लेकिन धर्माधिष्ठित शासन चलाने वाले शासक को हटाने का अधिकार प्रजा को नहीं होता। धर्म के अनुसार आचरण करना यह प्रजा का धर्म है। राजा को हटाना यह प्रजा का धर्म नहीं है। लेकिन जब प्रजा के धर्म पालन में राजा अवरोध बनता है तब राजा को हटाना प्रजा का धर्म बन जाता है। | | धर्मराज्य को हम आज की भाषा में संवैधानिक शासन कह सकते हैं। लेकिन संवैधानिक शासन में संविधान बनानेवाले लोग कौन हैं यह महत्त्वपूर्ण है। धर्म के सिद्धांत समाधि अवस्था प्राप्त लोगों ने तय किये हुए हैं। वे काल की कसौटीपर भी खरे उतरे हैं। ऐसे धर्म के तत्त्वोंपर आधारित संविधान के अनुसार चलनेवाला शासन धर्मराज्य ही होगा। धर्मविरोधी शासक को बदलने का अधिकार प्रजा को होता है। लेकिन धर्माधिष्ठित शासन चलाने वाले शासक को हटाने का अधिकार प्रजा को नहीं होता। धर्म के अनुसार आचरण करना यह प्रजा का धर्म है। राजा को हटाना यह प्रजा का धर्म नहीं है। लेकिन जब प्रजा के धर्म पालन में राजा अवरोध बनता है तब राजा को हटाना प्रजा का धर्म बन जाता है। |
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− | वर्तमान अधार्मिक (अभारतीय) प्रजातंत्र में राजा और प्रजा के हितसंबंधों में स्थाई विरोध होता है ऐसा मानकर एक विरोधी दल का प्रावधान किया होता है। राजा को प्रजा के हित का विरोधी नहीं बनने देना ही इस विरोधी दल का उद्देष्य होता है। धार्मिक (भारतीय) जीवनदृष्टि के ज्ञाता और एकात्म मानव दर्शन के प्रस्तोता पं. दीनदयालजी उपाध्याय कहते हैं कि प्रजातंत्र के इस स्वरूप का विचार शायद बायबल के गॉड और इंप (शैतान) इनके द्वैतवादी सिद्धांत से उभरा होगा। धर्मराज्य में कोई विरोधक नहीं होता। शुभेच्छुक और अभिभावक ही होते हैं। अभिभावक बच्चों के विरोधक नहीं होते किंतु बच्चा अच्छा बने, बिगडे नहीं यह देखना उनका दायित्व होता है, उसी प्रकार धर्मराज्य में विरोधक नहीं होते हुए भी अभिभावक धर्मसत्ता के कारण शासन बिगड नहीं पाता। | + | वर्तमान अधार्मिक (अधार्मिक) प्रजातंत्र में राजा और प्रजा के हितसंबंधों में स्थाई विरोध होता है ऐसा मानकर एक विरोधी दल का प्रावधान किया होता है। राजा को प्रजा के हित का विरोधी नहीं बनने देना ही इस विरोधी दल का उद्देष्य होता है। धार्मिक (भारतीय) जीवनदृष्टि के ज्ञाता और एकात्म मानव दर्शन के प्रस्तोता पं. दीनदयालजी उपाध्याय कहते हैं कि प्रजातंत्र के इस स्वरूप का विचार शायद बायबल के गॉड और इंप (शैतान) इनके द्वैतवादी सिद्धांत से उभरा होगा। धर्मराज्य में कोई विरोधक नहीं होता। शुभेच्छुक और अभिभावक ही होते हैं। अभिभावक बच्चों के विरोधक नहीं होते किंतु बच्चा अच्छा बने, बिगडे नहीं यह देखना उनका दायित्व होता है, उसी प्रकार धर्मराज्य में विरोधक नहीं होते हुए भी अभिभावक धर्मसत्ता के कारण शासन बिगड नहीं पाता। |
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| लोकतंत्र की व्यवस्था का वर्णन लोगों का लोगों के हित में लोगोंद्वारा चलायी जानेवाली शासन व्यवस्था ऐसा लोकतंत्र का वर्णन किया जाता है। वर्तमान में विश्व के १२५ से ऊपर देशों में लोकतंत्रात्मक शासन चलते हैं। इन सब के लोकतंत्रों में भिन्नता है। लेकिन इन लोकतंत्रों से जो समाज के अंतिम छोर के व्यक्ति के भी हित में काम करने की अपेक्षा की जाती है वह ये जबतक सर्वे भवन्तु सुखिन: के आधारपर शासन नहीं चलाते पूर्ण नहीं होतीं। इसलिये हम कह सकते हैं कि लोकतंत्र हो तानाशाही हो या राजा का तंत्र वह लोगों के लिये तभी होगा, लोकराज्य तब ही कहलाएगा जब वह धर्मराज्य हो। | | लोकतंत्र की व्यवस्था का वर्णन लोगों का लोगों के हित में लोगोंद्वारा चलायी जानेवाली शासन व्यवस्था ऐसा लोकतंत्र का वर्णन किया जाता है। वर्तमान में विश्व के १२५ से ऊपर देशों में लोकतंत्रात्मक शासन चलते हैं। इन सब के लोकतंत्रों में भिन्नता है। लेकिन इन लोकतंत्रों से जो समाज के अंतिम छोर के व्यक्ति के भी हित में काम करने की अपेक्षा की जाती है वह ये जबतक सर्वे भवन्तु सुखिन: के आधारपर शासन नहीं चलाते पूर्ण नहीं होतीं। इसलिये हम कह सकते हैं कि लोकतंत्र हो तानाशाही हो या राजा का तंत्र वह लोगों के लिये तभी होगा, लोकराज्य तब ही कहलाएगा जब वह धर्मराज्य हो। |
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| उपर्युक्त विवेचन से निम्न बातें ध्यान में आतीं हैं: | | उपर्युक्त विवेचन से निम्न बातें ध्यान में आतीं हैं: |
| # हजारों लाखों वर्षों में हमारे पूर्वजों ने जो सोच और व्यवस्थाएँ निर्माण की थीं वह कालसिद्ध हैं। | | # हजारों लाखों वर्षों में हमारे पूर्वजों ने जो सोच और व्यवस्थाएँ निर्माण की थीं वह कालसिद्ध हैं। |
− | # अभारतीय समाजों द्वारा पुरस्कृत की हुई और आग्रहपूर्वक लादी गई व्यवस्थाएँ तो उन के लिये भी हितकारी सिद्ध नहीं हुईं हैं। तो भारत के लिये हितकारी कैसे सिद्ध होंगी। | + | # अधार्मिक समाजों द्वारा पुरस्कृत की हुई और आग्रहपूर्वक लादी गई व्यवस्थाएँ तो उन के लिये भी हितकारी सिद्ध नहीं हुईं हैं। तो भारत के लिये हितकारी कैसे सिद्ध होंगी। |
| # 'धर्मराज्य' ही वास्तव में लोगों का, लोगों (चराचर के हित की चिंता करनेवालों) द्वारा चलाया गया, लोगों के ही नहीं तो चराचर के हित में काम करनेवाले शासन का श्रेष्ठ स्वरूप है। इसी को हम रामराज्य भी कहते हैं। रामराज्य का वर्णन [[Ramrajya (राम राज्य)|यहाँ]] है। | | # 'धर्मराज्य' ही वास्तव में लोगों का, लोगों (चराचर के हित की चिंता करनेवालों) द्वारा चलाया गया, लोगों के ही नहीं तो चराचर के हित में काम करनेवाले शासन का श्रेष्ठ स्वरूप है। इसी को हम रामराज्य भी कहते हैं। रामराज्य का वर्णन [[Ramrajya (राम राज्य)|यहाँ]] है। |
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