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* अन्याय ही नहीं हो ऐसी शासन व्यवस्था हो। जिस राज्य में माँगने से न्याय मिलता है वह घटिया शासन है। जिस राज्य में झगडने से न्याय मिलता है वह निकम्मा शासन है। माँगने से मिलने वाला न्याय घटिया होता है। झगडकर मिलने वाले न्याय में तो अन्याय होने की ही सम्भावनाएँ रहतीं हैं। झगड कर (मुकदमे चलाकर) मिलने वाला न्याय बलवानों के पक्ष में ही जाता है।  
 
* अन्याय ही नहीं हो ऐसी शासन व्यवस्था हो। जिस राज्य में माँगने से न्याय मिलता है वह घटिया शासन है। जिस राज्य में झगडने से न्याय मिलता है वह निकम्मा शासन है। माँगने से मिलने वाला न्याय घटिया होता है। झगडकर मिलने वाले न्याय में तो अन्याय होने की ही सम्भावनाएँ रहतीं हैं। झगड कर (मुकदमे चलाकर) मिलने वाला न्याय बलवानों के पक्ष में ही जाता है।  
 
* लोकतंत्र की मर्यादाएं और दोषों को समझना। सर्वसहमति का लोकतंत्र ही धार्मिक (भारतीय) लोकतंत्र है। लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था नहीं सुशासन - जिससे “सर्वे भवन्तु सुखिन: साध्य होगा” वह लक्ष्य हो।  
 
* लोकतंत्र की मर्यादाएं और दोषों को समझना। सर्वसहमति का लोकतंत्र ही धार्मिक (भारतीय) लोकतंत्र है। लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था नहीं सुशासन - जिससे “सर्वे भवन्तु सुखिन: साध्य होगा” वह लक्ष्य हो।  
* भारतीय शासन व्यवस्था में किसी अधिकारी के दायरे में अपराध होने से वह व्यक्ति अपराधी माना जाता था। किसी अधिकारी के क्षेत्र में आनेवाले किसी के घर में चोरी हुए माल को वह अधिकारी यदि ढूण्ढने में असफल हो जाता था तो जिसका नुकसान हुआ है उस की नुकसान भरपाई उस अधिकारी को करनी पडती थी।  
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* भारतीय शासन व्यवस्था में किसी अधिकारी के दायरे में अपराध होने से वह व्यक्ति अपराधी माना जाता था। किसी अधिकारी के क्षेत्र में आनेवाले किसी के घर में चोरी हुए माल को वह अधिकारी यदि ढूण्ढने में असफल हो जाता था तो जिसका नुकसान हुआ है उस की नुकसान भरपाई उस अधिकारी को करनी पडती थी।<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड २, अध्याय ३१, लेखक - दिलीप केलकर</ref>
    
== राज्य की आवश्यकता - धार्मिक (भारतीय) दृष्टि ==
 
== राज्य की आवश्यकता - धार्मिक (भारतीय) दृष्टि ==

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