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| '''श्रीभगवानुवाच''' काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः । महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ॥३- ३७॥ | | '''श्रीभगवानुवाच''' काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः । महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ॥३- ३७॥ |
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| + | śrī-bhagavān uvāca kāma eṣa krodha eṣa rajo-guṇa-samudbhavaḥ mahāśano mahā-pāpmā viddhy enam iha vairiṇam ॥ 3-37 ॥ |
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| धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च । यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् ॥३- ३८॥ | | धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च । यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् ॥३- ३८॥ |
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| + | dhūmenāvriyate vahnir yathādarśo malena ca yatholbenāvṛto garbhas tathā tenedam āvṛtam ॥ 3-38 ॥ |
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| आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा । कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ॥३- ३९॥ | | आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा । कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ॥३- ३९॥ |
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| + | āvṛtaṁ jñānam etena jñānino nitya-vairiṇā kāma-rūpeṇa kaunteya duṣpūreṇānalena ca ॥ 3-39 ॥ |
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| इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते । एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् ॥३- ४०॥ | | इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते । एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् ॥३- ४०॥ |
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| + | indriyāṇi mano buddhir asyādhiṣṭhānam ucyate etair vimohayaty eṣa jñānam āvṛtya dehinam ॥ 3-40 ॥ |
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| तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ । पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् ॥३- ४१॥ | | तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ । पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् ॥३- ४१॥ |
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| + | tasmāt tvam indriyāṇy ādau niyamya bharatarṣabha pāpmānaṁ prajahi hy enaṁ jñāna-vijñāna-nāśanam ॥ 3-41 ॥ |
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| इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः । मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥३- ४२॥ | | इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः । मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥३- ४२॥ |
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| + | indriyāṇi parāṇy āhur indriyebhyaḥ paraṁ manaḥ manasas tu parā buddhir yo buddheḥ paratas tu saḥ ॥ 3-42 ॥ |
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| एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना । जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥३- ४३॥ | | एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना । जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥३- ४३॥ |
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| + | evaṁ buddheḥ paraṁ buddhvā saṁstabhyātmānam ātmanā jahi śatruṁ mahā-bāho kāma-rūpaṁ durāsadam ॥ 3-43 ॥ |
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| ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मयोगो नाम तृतीयोऽध्यायः ॥ ३ ॥ | | ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मयोगो नाम तृतीयोऽध्यायः ॥ ३ ॥ |