मनुष्यजीवन अत्यन्त मूल्यवान है। भगवानने हमें अनेक अद्भुत शक्तियाँ दी हैं और असीम सम्भावनायें दी हैं। इन सम्भावनाओं को प्रकट करने के लिये और शक्तियों का विनियोग करने के लिये हमें बहुत कुछ करना होता है। जिस प्रकार से सुन्दर वस्त्र को धोना पडता है, प्रेस करना होता है, सुरक्षित रखना होता है, उत्तम अनाज और सब्जी को सावधानीपूर्वक उत्तम पौष्टिक, स्वादिष्ट, सात्त्विक भोजन में रूपान्तरित करना होता है उसी प्रकार हमारी क्षमताओं को भी उचित उपायों से निखारना और कसना होता है ।
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उदाहरण के लिये हमें शरीर रूपी श्रेष्ठ प्रकार का यन्त्र प्राप्त हुआ है। उसे साफ नहीं रखा, उसका रक्षण और पोषण नहीं किया और उसे कार्यकुशल नहीं बनाया तो उसकी क्षमतायें निरर्थक हो जायेंगी। भगवानने हमें शक्तिशाली मन और तेजस्वी बुद्धि दी है परन्तु उस मन को एकाग्र और शान्त नहीं बनाया और बुद्धि को कसा नहीं तो उनकी सार्थकता कैसे होगी ? यह विश्व अत्यन्त सुन्दर है परन्तु हमारे भीतर रसिकता ही न हो तो उस सौन्दर्य का आस्वाद कैसे ले पायेंगे ? अनेक कवियों और साहित्यकारों ने काव्यों और उपन्यासों की रचना की है परन्तु हमें यदि उन्हें पढना ही नहीं आया तो हमारे हृदय और बुद्धि का क्या करेंगे ? यदि सच्चरित्र लोगों से मिलकर, किसी के श्रेष्ठ कार्यों को देखकर, किसी की श्रेष्ठ और उत्तम उपलब्धि को देखकर हृदय गद्गदित नहीं हुआ तो हम कैसे मनुष्य कहे जायेंगे ?
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अर्थात भगवान ने तो हमारी चारों ओर अद्भुत सुन्दर सृष्टि बनाई है, हमारे जीवन को उन्नत सम्भावनाओं से भर दिया है परन्तु हमें उसके मूल्य का ही पता नहीं है क्योंकि हमने अपने आपको उसके योग्य नहीं बनाया है। इसलिये श्रेष्ठ लोग हमें अपने जीवन को नियमन में ढालने का परामर्श देते हैं।