| दो दिन पहले ही हमने न्यूयोर्क को घेर कर बहती नदियों में नाव में बैठकर शहर की परिक्रमा की थी। कितना रमणीय दिखता था वह शहर ! किनारे पर स्थित वह रमणीय उद्यान, विश्वविद्यालय का रमणीय परिसर, खेल के विशाल मैदान, उसमे चल रहे युवक -युवतिओं के खेल,नदी पर बना वह प्रचंड सेतु । नदी में चल रहा युवाओं का स्वच्छंद नौकाविहार, हडसन नदी पर से न्यूजर्सी की ऑर जानेवाला वह प्रचण्ड पुल । तिमंजिले रास्ते,मोटरों की कतारें, उत्तुंग भवन, और फिर भी इतनी ही समृद्ध वनसंपदा । स्वातंत्र्यदेवी की प्रतिमा से मेनहटन की ओर बोट मुडते ही अपनी सौ सवासौ मंजिलों वाली इमारतों पर विद्युतदीपों को झगमगाती और सहस्र कुबेरों का ऐश्वर्य प्रकट करनेवाली वह न्यूयोर्क नगरी । मन ही मन कह रहा था, कितने सौभाग्यशाली हैं ये लोग ? परंतु यहां तो बात कुछ और ही सुनने को मिलि । तो फिर क्या यह अंदर से सडे गले सेवों का बगीचा था ? | | दो दिन पहले ही हमने न्यूयोर्क को घेर कर बहती नदियों में नाव में बैठकर शहर की परिक्रमा की थी। कितना रमणीय दिखता था वह शहर ! किनारे पर स्थित वह रमणीय उद्यान, विश्वविद्यालय का रमणीय परिसर, खेल के विशाल मैदान, उसमे चल रहे युवक -युवतिओं के खेल,नदी पर बना वह प्रचंड सेतु । नदी में चल रहा युवाओं का स्वच्छंद नौकाविहार, हडसन नदी पर से न्यूजर्सी की ऑर जानेवाला वह प्रचण्ड पुल । तिमंजिले रास्ते,मोटरों की कतारें, उत्तुंग भवन, और फिर भी इतनी ही समृद्ध वनसंपदा । स्वातंत्र्यदेवी की प्रतिमा से मेनहटन की ओर बोट मुडते ही अपनी सौ सवासौ मंजिलों वाली इमारतों पर विद्युतदीपों को झगमगाती और सहस्र कुबेरों का ऐश्वर्य प्रकट करनेवाली वह न्यूयोर्क नगरी । मन ही मन कह रहा था, कितने सौभाग्यशाली हैं ये लोग ? परंतु यहां तो बात कुछ और ही सुनने को मिलि । तो फिर क्या यह अंदर से सडे गले सेवों का बगीचा था ? |
− | शहर और अपराध एकदूसरे का हाथ पकडकर ही आते हैं। मैं दस वर्ष पूर्व इस शहर में आया था। सेंट्रल पार्क में बहुत घुमाफिरा था । परंतु हमें किसी ने आधी रात को न घुमने की हिदायत नहीं दी थी । और आज दस वर्ष | + | शहर और अपराध एकदूसरे का हाथ पकडकर ही आते हैं। मैं दस वर्ष पूर्व इस शहर में आया था। सेंट्रल पार्क में बहुत घुमाफिरा था । परंतु हमें किसी ने आधी रात को न घुमने की हिदायत नहीं दी थी । और आज दस वर्ष बाद दिन में दस बजे यह वृद्धा केवल मेरे ‘एस्क्युझ मी' से कांप उठी थी । प्रत्येक व्यक्ति सूचना दे रहा था, शाम को इक्कादुक्का कहीं मत जाइएगा। हर १५ मिनिट पर पुलिस की गाडियाँ साइरन बजाती हुई अपराधियों को पकड़ने के लिये घूम रही थी। दूसरे ही दिन अखबार में खबर पढी की केवल आधे डोलर के लिये एक १६ वर्षीय बालकने एक विख्यात प्राध्यापक की दिनदहाडे हत्या कर दी। प्रोफेसर कार में बैठने जा रहे थे तब यह लडके ने आकर २५ सेंट मांगे । बखेडा टालने के लिये प्राध्यापक ने उसे पैसे दे दिये । इस दौरान लडके की द्रष्टि उन्होंने पहनी हुई मूल्यवान घडी पर पड़ी । लडके ने उसकी माँग की और प्रोफेसर के नानुकर करते ही गोली चला दी। |
| + | कितना सम्पन्न देश । बडे बडे वस्तुभंडार । नजर न पहुंचे ऐसी विराट इमारतें, पर हर मंजिल पर सशस्त्र पुलिस का पहरा । कब चिनगारी भडकेगी, कहा नहीं जा सकता । सुन्न हो गए अमेरिकन विचारकों के दिमाग, किसी भी अमेरिकन से बात करने पर पहले तो वे अनेक तर्क देगा पर अंत में निस्सहाय होकर सर हिलाएंगे । कोई विएतनाम युद्ध की बात करेगा, कोई राजनीतिकों को दोष देगा । कोई इसे अनर्गल संपत्ति का राक्षसी संतान बताएगा । हम लोग आधे भूखे होने के कारण बदनसीब तो दूसरी ओर अमेरिका अत्याहार के कारण हुई बदहजमी से परेशान । |
| + | न्यूयोर्क के रास्तों पर से जाते समय शब्दशः चीथडे जैसे पहन कर घुम रही सोलह सत्रह वर्ष की किशोरियों को देखकर मैं अत्यंत सुन्न हो जाता था। अपना घर परिवार छोडकर स्वातंत्र्य की खोज में भाग नीकली यह अभागी बालाओं के बारे में पुलिस द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम देखा । घोंसले से गिरे हुए बच्चों के समान यह लडकियाँ । कोई गाँजा-चरस जैसे मादक पदार्थों के सेवन में सुख और स्वातंत्र्य खोज रही थी तो कोई रास्ता भटक कर अपने जैसे ही नाबालिग लडकों के साथ सार्वजनिक उद्यानों में कुत्ते बिल्ली के समान शरीर सुख खोज रही थी । इन दुर्भागी बालाओं की कहानी अत्यंत करुण थी। आयु के दसवे - ग्यारहवे वर्ष में ही यहाँ कौमार्यभंग हो रहा था। वास्तव में अच्छे संपन्न परिवारों की लडकियाँ थी । पेट भरने के लिये यह सब करने की बाध्यता नहीं थी, परन्तु शालेय जीवन में ही किसी न किसी गुट से जुड़ गई । एक लडकी तो पुलिस चौकी पर अपने गुट के नाम पर स्वयं ने अपने देह की कैसी दुर्दशा कर दी इसका वर्णन कर रही थी। अंत में उस अधिकारी ने पूछा, तुम्हें माँ की याद आती है ? इस प्रश्न के साथ ही वह 'मोम' ऐसा चिल्ला कर दहाड मार कर रो पडी। |
| + | १३ से १९ वर्ष के बालक टीन एजर्स कहे जाते है। अमेरिकनों को ऐसे विचित्र शब्दप्रयोग कर किसी भी चीज पर अपना ठप्पा लगाने की बहुत बुरी आदत है। उसी में से यह 'मोडस', हिप्पी, टीनएजर्स' पैदा हुए हैं । उसमें भी थर्टीन-फोर्टीन या सेवंटीन - नाइंटीन जैसे अलग हिस्से हैं। इन बच्चों को उपद्रव करने की खुली छूट होती है। हर गुट के कपड़ों की भी अलग अलग विशेषताएँ हैं ।जैसे जनजातियों के लोग अपनी अपनी विशेषताएँ दिखाने के लिये विभिन्न वेश पहनते है ऐसा ही इन लोगों का होता है। वेशभूषा के समाजमान्य बंधन फेंक देने वाले हिप्पियों ने भी अंत में 'हिप्पी' वेशभूषा और केशभूषा का बन्धन अपना ही लिया है। अच्छे कपड़ों को चीथडा बनाकर पहनने की भी किसी गुट की फैशन बन गयी है। कारण अंत में तो अनुकरण करनेवालों की संख्या ही अधिक होती है। फिर चाहे वह एस्टाब्लिशमेंट वाला हो या एण्टी एस्टाब्लिशमेंट वाला। |