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| | ११. पानी का अमर्याद उपयोग करना, पानी का प्रदूषण करना, पानी बचाने की कोई व्यवस्था न करना, पानी के स्रोतों को अवरुद्ध करना आदि विनाशक गतिविधियों के पीछे कौनसी विचारधारा, कौनसी मनोवृत्ति और कौनसी प्रवृत्ति होती है इसका मूलगामी चिन्तन करना सिखाना चाहिये । पानी को लेकर हमारे छोटे से कार्य के परिणाम दूरगामी होते हैं यह समझने की आवश्यकता है। | | ११. पानी का अमर्याद उपयोग करना, पानी का प्रदूषण करना, पानी बचाने की कोई व्यवस्था न करना, पानी के स्रोतों को अवरुद्ध करना आदि विनाशक गतिविधियों के पीछे कौनसी विचारधारा, कौनसी मनोवृत्ति और कौनसी प्रवृत्ति होती है इसका मूलगामी चिन्तन करना सिखाना चाहिये । पानी को लेकर हमारे छोटे से कार्य के परिणाम दूरगामी होते हैं यह समझने की आवश्यकता है। |
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| − | ये सारी बातें शिक्षा का सार्थक अंग बनेंगी तभी विश्व कानून बनाये जाने के बाद भी नदियों को नहीं बचाया जा सकता है इसका कारण क्या है ? इस स्थिति को ठीक करने के लिये विद्यालय या विद्याक्षेत्र क्या कर सकता है इसका विचार होना चाहिये । | + | ये सारी बातें शिक्षा का सार्थक अंग बनेंगी तभी विश्व कानून बनाये जाने के बाद भी नदियों को नहीं बचाया जा सकता है इसका कारण क्या है ? इस स्थिति को ठीक करने के लिये विद्यालय या विद्याक्षेत्र क्या कर सकता है इसका विचार होना चाहिये । |
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| − | तरह गूँधकर उसके पराठे बनाये जाते हैं ।
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| − | उसमें बेसन मिलाकर पकौडे तले जाते हैं या गेहूँ चने आदि दो
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| − | तीन प्रकार का आटा मिलाकर उसके छोटे छोटे गोले बनाकर,
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| − | उन्हे भाँप पर पकाकर फिर छौँक कर बडे या बडियाँ बनाई
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| − | | |
| − | जाती हैं। खिचडी में इसी प्रकार से आटा मिलाकर, उसे
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| − | | |
| − | गूँधकर खाखरा या सूखी रोटी बनाई जाती है।
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| − | ४. दालभात मिक्स
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| − | बचे हुए चावल और दाल अच्छी तरह मिलाकर
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| − | छौंककर गरम किया जाता है।
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| − | इसी प्रकार चावल या खिचडी भी मसाला डालकर
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| − | छौँकी जाती है।
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| − | ५. दाल पापडी
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| − | बची हुई दाल को छौँककर उसे पानी डालकर पतली
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| − | बनाकर उसमें मसालेदार आटे की रोटी बेलकर उसके छोटे
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| − | छोटे टुकडे डालकर उबाले जाते हैं और उस पर छौंक
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| − | लगाई जाती है।
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| − | ६. कटलेस
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| − | बचे हुए दाल, चावल, सब्जी, चूरा बनाई हुई रोटी
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| − | आदि को मिलाकर, मसलकर उसमें आवश्यकता के अनुसार
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| − | सूजी या मोटा आटा मिलाकर छोटी छोटी कटलेस सेंकी या
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| − | तली जाती हैं।
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| − | ७. भेल
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| − | दीपावली, जन्माष्टमी, आदि त्योहारों पर जब विविध
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| − | प्रकार के व्यंजन थोडे थोडे बचे हुए होते हैं तब सबको
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| − | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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| − | मिलाकर खट्टी मीट्टी चटनी के साथ खाया जाता है।
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| − | ८. सखडी
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| − | जितने भी पदार्थ भोजन में बने हैं उन सबको अच्छी
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| − | तरह मिलाकर नमक मिर्च तेल डालकर खाया जाता है।
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| − | ९. रात की बची हुई रोटी
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| − | | |
| − | बासी रोटी और दही बहुत लोगों को बहुत अच्छा
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| − | | |
| − | लगता है। इसलिये सुबह खाने के लिये रात्रि में बनाकर
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| − | | |
| − | बासी बनाकर खाई जाती है।
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| − | | |
| − | ये सारे जंकफूड के नमूने हैं क्यों कि ये बासी और
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| − | | |
| − | बचे हुए पदार्थों से ही बनते हैं। आयुर्वेद इन्हें खाने के लिये
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| − | स्पष्ट मना करता है क्यों कि स्वास्थ्यकारक आहार की
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| − | परिभाषा में इसका स्थान नहीं है।
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| − | | |
| − | फिर भी प्रत्येक घर में ये प्रतिष्ठा प्राप्त हैं। इसका एक
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| − | | |
| − | कारण यह है कि खाने वाले को ये अत्यन्त रुचिकर लगते
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| − | | |
| − | हैं। इस प्रकार से ही उसका रुपान्तरण होता है। दूसरा
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| − | | |
| − | कारण यह है कि बचे हुए पदार्थों को फैंकना गृहिणी को
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| − | | |
| − | अच्छा नहीं लगता है। आर्थिक रुप से भी वह परवडता
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| − | | |
| − | नहीं है। अतः बचे हुए अन्न का उपयोग करने में गृहिणी
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| − | | |
| − | अपना कौशल दिखाती है।
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| − | सम्पूर्ण भारत में घर घर में जंकफूड का प्रचलन है।
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| − | | |
| − | भारत की गृहिणियाँ भाँति भाँति के जंक व्यंजन बनाने में
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| − | | |
| − | माहिर होती हैं। घर के सदस्य भी उन्हे चाव से खाते हैं ।
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| − | | |
| − | परन्तु ये पदार्थ बासी हैं और अनारोग्यकर हैं यह बात
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| − | हमेशा ध्यान में रखना आवश्यक है ।
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| − | अन्न विचार
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| − | अन्न सभी प्राणियों का जीवन
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| − | अन्न ब्रह्म है ।
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| − | | |
| − | अन्न की निन्दा न करें ।
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| − | | |
| − | अन्न को पवित्र मानें ।
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| − | | |
| − | अन्न को देवता मानें ।
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| − | | |
| − | अन्न का सम्मान करें ।
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| − | | |
| − | अन्न का प्रभाव पाँचों कोशों पर
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| − | | |
| − | अन्न से शरीर आरोग्यवान होता है ।
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| − | | |
| − | अन्न से प्राणों का पोषण होता है ।
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| − | | |
| − | जैसा अन्न वैसा मन ।
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| − | | |
| − | अन्न से बुद्धि का विकास होता है ।
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| − | | |
| − | अन्न से चित्तशुद्धि होती है ।
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| − | | |
| − | इस बात को समझ कर भोजन करें ।
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| − | पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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| − | भोजनयज्ञ
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| − | | |
| − | भोजन भोग नहीं है ।
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| − | | |
| − | भोजन विलास नहीं है ।
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| − | | |
| − | भोजन यज्ञ है ।
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| − | | |
| − | भोजन जठरान्नि में दी हुई आहुति है ।
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| − | | |
| − | भोजन से पुष्ट शरीर धर्माचरण का साधन है ।
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| − | | |
| − | भोजन पर सबका अधिकार
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| − | | |
| − | स्मरण रहे
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| − | | |
| − | जीवनरक्षा हेतु भोजन आवश्यक है ।
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| − | | |
| − | सभी प्राणियों को जीना होता है,
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| − | | |
| − | अतः सभी प्राणियों के भोजन प्राप्त करने के
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| − | | |
| − | अधिकार को मान्य करें ।
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| − | | |
| − | स्मरण रहे
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| − | | |
| − | भगवान भूखा जगाते हैं, भूखा सोने नहीं देते ।
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| − | | |
| − | भगवान ने दाँत दिये हैं तो चबेना देंगे ही ।
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| − | | |
| − | हम भगवान का निमित्त बनें और भूखों को
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| − | | |
| − | भोजन देकर उन्हें सन्तुष्ट करें ।
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| − | | |
| − | हितभुकू, मितभुक्, कऋतभुक्
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| − | | |
| − | हितभुक् : शरीर को अनुकूल ऐसा भोजन करें
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| − | | |
| − | प्रतिकूल भोजन का त्याग करें ।
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| − | | |
| − | मितभुक् : भूख से जरा कम खायें । दूँस ga
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| − | | |
| − | कर न खायें । स्मरण रहे पेट का आधा हिस्सा
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| − | | |
| − | भोजन से भरें, एक चौथाई हिस्सा पानी से भरें और
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| − | | |
| − | एक चौथाई हिस्सा वायु के लिये खाली छोडें ।
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| − | | |
| − | ऋऋतभुक् : नीतिपूर्वक प्राप्त किया हुआ अन्न
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| − | | |
| − | ही सेवन करें । लूटकर, चोरीकर, छीनकर, किसीको
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| − | | |
| − | दुःख पहुँचा कर,कपटपूर्वक प्राप्त किया हुआ भोजन
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| − | | |
| − | a at | fern, frp, ऋतभुक् व्यक्ति ही पूर्ण
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| − | | |
| − | स्वस्थ रहता है ।
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| − | 93
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| − | | |
| − | ae
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| − | | |
| − | LVN DAADAAA
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| − | | |
| − | ८ ७
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| − | | |
| − | LAAAA
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| − | | |
| − | Y कि फेक फेक फेर
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| − | टॉप
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| − | भोजन और संस्कार
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| − | | |
| − | पेटू की तरह भोजन न करें ।
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| − | | |
| − | अपवित्र और अस्वच्छ परिवेश में भोजन न
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| − | | |
| − | करें ।
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| − | | |
| − | अन्न का अपव्यय न करें ।
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| − | | |
| − | हाथ और थाली गंदी कर, अन्न को इधरउधर
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| − | | |
| − | गिरा कर, मुँह से आवाज करते हुए, बडे बडे कौर
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| − | | |
| − | मुँह में दूँसते हुए भोजन न करें ।
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| − | | |
| − | शिष्ट और सभ्य तरीके से भोजन करें ।
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| − | | |
| − | भोजन केवल पेट भरने के लिये नहीं होता,
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| − | | |
| − | भोजन मन की शिक्षा के लिये भी होता है ।
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| − | | |
| − | खिलाकर खायें
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| − | | |
| − | अपने स्वयं के धन से खरीद किये हुए, अपने
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| − | | |
| − | स्वयं के श्रम से पैदा किये हुए अथवा प्रकृति की
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| − | | |
| − | कृपा से प्राप्त भोजन पर भूखों का अधिकार मानें
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| − | | |
| − | और
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| − | | |
| − | अपने अन्न में से अधिकतम जितने लोगों को
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| − | | |
| − | और प्राणियों को दे सकते हैं दें और बाद में जिसे
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| − | | |
| − | आप अपना मानते हैं उस अन्न का उपभोग करें ।
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| − | | |
| − | सात्त्विक आहार
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| − | | |
| − | जिससे अधिकतम रस बनता है,
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| − | | |
| − | जो स्निग्ध है, घर्षण कम करता है,
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| − | | |
| − | जो स्थिरता प्रदान करता है,
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| − | | |
| − | जो मन को प्रसन्न बनाता है,
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| − | | |
| − | वह आहार सात्त्विक होता है ।सात्त्तिक आहार
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| − | | |
| − | का सेवन करने से आयु, बल बुद्धि, वीर्य, सुख और
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| − | | |
| − | प्रसन्नता में वृद्धि होती है ।
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| − | | |
| − | राजस आहार
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| − | | |
| − | तीखा, चरपरा, खट्टा, खारा, बहुत गरम,
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| − | | |
| − | रूखा, आँखों में, नाक में पानी लाने वाला आहार
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| − | | |
| − | राजस है ।
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| − | | |
| − | राजस आहार से दुःख, शोक और अस्वास्थ्य
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| − | | |
| − | बढ़ता है ।
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| − | | |
| − | तामस आहार
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| − | | |
| − | बासी, बिगडा हुआ, अपवित्र, जूठा, निषिद्ध
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| − | | |
| − | आहार तामस है ।
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| − | | |
| − | तामस आहार से जडता, मूढ़ता, आलस्य और
| |
| − | | |
| − | Ware sed हैं ।
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| − | | |
| − | बाजार का अन्न न खायें
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| − | | |
| − | बाजार का अन्न किसी ने प्रेम से बनाया हुआ
| |
| − | | |
| − | नहीं होता है ।
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| − | | |
| − | वह पैसा कमाने हेतु बनाया होता है ।
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| − | | |
| − | बाजार का अन्न ताजा और शुद्ध होने की
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| − | | |
| − | निश्चितता नहीं होती ।
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| − | | |
| − | बाजार का अन्न पवित्र होने की सम्भावना
| |
| − | | |
| − | नहीं होती ।
| |
| − | | |
| − | बाजार का अन्न संस्कारवान व्यक्ति द्वारा बना
| |
| − | | |
| − | होने की निश्चितता नहीं होती ।
| |
| − | | |
| − | इसलिये बाजार का अन्न खाने से असंस्कारिता
| |
| − | | |
| − | और तामसी वृत्ति बढ़ने की सम्भावना होती है ।
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| − | | |
| − | उससे बचना ही अच्छा है ।
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| − | | |
| − | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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| − | | |
| − | भोजन बनाना श्रेष्ठ कार्य है ।
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| − | | |
| − | भोजन से चरित्र निर्माण होता है ।
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| − | | |
| − | भोजन से सुदूढ सम्बन्ध स्थापित होते हैं ।
| |
| − | | |
| − | भोजन से शरीर पुष्ट बनता है ।
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| − | | |
| − | भोजन बनाने से उत्तम और श्रेष्ठ बातों के लिये
| |
| − | | |
| − | निमित्त बना जा सकता है ।
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| − | | |
| − | इसलिये भोजन बनाना श्रेष्ठ कार्य है ।
| |
| − | | |
| − | अन्न का दान होता है, विक्रय नहीं
| |
| − | | |
| − | अन्न जीवनधारक है ।
| |
| − | | |
| − | अन्न प्रकृति का दान है ।
| |
| − | | |
| − | अन्न को प्रकृति ने सबके लिये बनाया है ।
| |
| − | | |
| − | इसलिये उसका मूल्य पैसे से नहीं होता है ।
| |
| − | | |
| − | उसका दान ही होता है ।
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| − | | |
| − | हम अन्नदान इतना अधिक करें कि उसका
| |
| − | | |
| − | विक्रय बन्द हो जाय ।
| |
| − | | |
| − | अन्न का अपमान न करें
| |
| − | | |
| − | अन्न को कूडेदान में न फेंके ।
| |
| − | | |
| − | अन्न को गटर में न बहायें ।
| |
| − | | |
| − | अन्न को पैरों तले न कुचलें ।
| |
| − | | |
| − | अन्न को झाड़ू से न बुहारें ।
| |
| − | | |
| − | अन्न को गंदी चीजों के साथ न मिलायें ।
| |
| − | | |
| − | अन्न देवता है ।
| |
| − | | |
| − | अन्न पत्रित्र है ।
| |
| − | | |
| − | अन्न का अपमान नहीं करना सुसंस्कृत मनुष्य
| |
| − | | |
| − | का लक्षण है ।
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| − | | |
| − | श्9्ढ
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| − | | |
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| − | | |
| − | पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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| − | | |
| − | शुद्ध भोजन करें
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| − | | |
| − | भोजन बनाने में प्रयुक्त सामग्री शुद्ध है कि नहीं
| |
| − | | |
| − | यह परख लें ।
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| − | | |
| − | भोजन बनाने में प्रयुक्त पात्र और इंधन शुद्ध हैं
| |
| − | | |
| − | कि नहीं यह देख लें ।
| |
| − | | |
| − | भोजन बनाने वाले व्यक्ति की भावना शुद्ध है
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| − | | |
| − | कि नहीं यह जान लें ।
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| − | | |
| − | भोजन बनाने हेतु सारी सामग्री नीतिपूर्वक
| |
| − | | |
| − | अर्जित किये हुए धन से खरीदी गई है कि नहीं
| |
| − | | |
| − | उसका विचार करें ।
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| − | | |
| − | इन बातों के होने पर ही भोजन शुद्ध कहा
| |
| − | | |
| − | जायेगा ।
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| − | | |
| − | स्मरण रहे
| |
| − | | |
| − | आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः ।
| |
| − | | |
| − | शुद्ध आहार से ही हमारा व्यक्तित्व शुद्ध
| |
| − | | |
| − | बनेगा ।
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| − | | |
| − | भोज्येषु माता
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| − | | |
| − | भोजन बनाने वाला माता समान है
| |
| − | | |
| − | क्योंकि
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| − | | |
| − | माता जीवन देती है ।
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| − | | |
| − | माता जीवन की रक्षा करती है ।
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| − | | |
| − | माता जीवन का पोषण करती है ।
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| − | | |
| − | माता जीवन का संस्करण करती है ।
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| − | | |
| − | माता जीवन को सार्थक बनाना सिखाती है ।
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| − | | |
| − | इसलिये भोजन बनाने वाले ने मातृत्वभाव
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| − | | |
| − | धारण करना चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | Rok
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| − | | |
| − | भोजन ठीक समय पर करें
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| − | | |
| − | जठरान्नि प्रदीप्त होने पर भोजन करने से ही
| |
| − | | |
| − | अन्न का पाचन ठीक होता है ।
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| − | | |
| − | सूर्य के ऊपर आने के साथ जठराग्नि प्रदीप
| |
| − | | |
| − | होता है ।
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| − | | |
| − | इसलिये भोजन का समय सूर्य की गति के
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| − | | |
| − | अनुकूल रखें ।
| |
| − | | |
| − | दिन का भोज मध्याह्न से पूर्व करें ।
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| − | | |
| − | सायंकाल का भोजन सूर्यास्त से पूर्व करें ।
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| − | | |
| − | प्रातःकाल का अल्पाहार सूर्याद्य के बाद दो
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| − | | |
| − | घडी बीतने पर करें । हल्का आहार लें ।
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| − | | |
| − | रात्रि भोजन टालें ।
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| − | | |
| − | देर रात्रि में भोजन कभी भी न करें ।
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| − | | |
| − | यह कालभोजन होता है ।
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| − | | |
| − | स्मरण रहे
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| − | | |
| − | प्रकृति के नियमों का पालन न करने से हमारा
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| − | | |
| − | ही नुकसान होता है, प्रकृति का नहीं ।
| |
| − | | |
| − | साथ साथ भोजन करें
| |
| − | | |
| − | साथ बैठकर भोजन करने से स्नेह बढता है ।
| |
| − | | |
| − | साथ बैठखर भोजन करने से सम्बन्ध सुदृढ़
| |
| − | | |
| − | बनते हैं ।
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| − | | |
| − | साथ बैठकर भोजन करने से समझ बढती है ।
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| − | | |
| − | साथ बैठकर भोजन करने से समस्यायें पैदा
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| − | | |
| − | नहीं होतीं । हुई हों तो दूर हो जाती हैं ।
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| − | | |
| − | साथ बैठकर भोजन करने से एकात्मता बढती
| |
| − | | |
| − | है।
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| − | | |
| − | इसलिये सौ काम छोड़कर परिवार के सदस्यों
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| − | | |
| − | को साथ बैठकर भोजन करने की अनुकूलता बनानी
| |
| − | | |
| − | चाहिये ।
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| − | | |
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| − | | |
| − | 9. विद्यालय में पानी की व्यवस्था क्यों होनी
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| − | | |
| − | चाहिये ?
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| − | | |
| − | २.. पानी की व्यवस्था में सुविधा की दृष्टि से कया
| |
| − | | |
| − | क्या उपाय करने चाहिये ?
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| − | | |
| − | ३... पानी का शुद्धीकरण कैसे हो ?
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| − | | |
| − | ४. पानी ठण्डा करने की अच्छी व्यवस्था क्या हो
| |
| − | | |
| − | सकती है ?
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| − | | |
| − | ५... पानी के पात्र कैसे होने चाहिये ?
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| − | | |
| − | ६... आजकल छात्र एवं आचार्य घर से पानी लेकर
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| − | | |
| − | आते हैं । यह व्यवस्था कितनी उचित है ?
| |
| − | | |
| − | 9. विद्यालय में पानी कहां रखना चाहिये ?
| |
| − | | |
| − | ८... पानी का दुर्व्यय एवं अपव्यय रोकने के लिये हम
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| − | | |
| − | क्या क्या कर सकते हैं ?
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| − | | |
| − | ९... पानी की निकासी की व्यवस्था कैसी हो ?
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| − | | |
| − | १०. पानी का प्रदूषण रोकने के लिये क्या क्या कर
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| − | | |
| − | सकते हैं ?
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| − | | |
| − | ११, पानी का आर्थिक पक्ष क्या है ?
| |
| − | | |
| − | प्रश्नावली से ura उत्तर
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| − | | |
| − | इस प्रश्नचावली में कुल १० प्रश्न थे । ८ शिक्षक, २
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| − | | |
| − | प्रधानाचार्य और २४ अभिभावकों ने इन प्रश्नों से सम्बन्धित
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| − | | |
| − | अपने मत व्यक्त किये हैं ।
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| − | | |
| − | g. पाँच घण्टे की विद्यालय अवधि में पीने के पानी की
| |
| − | | |
| − | व्यवस्था होनी ही चाहिए । छात्रों को भोजनोपरान्त पीने
| |
| − | | |
| − | का पानी चाहिए । इसलिए विद्यालय में पीने के पानी
| |
| − | | |
| − | की व्यवस्था होना अनिवार्य है । यह मत सबका था ।
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| − | | |
| − | अच्छी व्यवस्था के सन्दर्भ में, मटके को टोटी लगाना,
| |
| − | | |
| − | मटके छाया में रखना, सुविधाजनक स्थान पर रखना,
| |
| − | | |
| − | पीने के पानी की व्यवस्था एक ही स्थान पर न कर
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| − | | |
| − | अलग-अलग स्थानों पर करना, पीते समय गिरा हुआ
| |
| − | | |
| − | पानी बहकर पौधों में जायें ऐसी व्यवस्था बनाना आदि
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| − | | |
| − | बातों में तो सर्वानुमति थी, किन्तु पानी पीकर गिलास
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| − | | |
| − | धो कर रखना किसी ने नहीं सुझाया इसका आश्चर्य है ।
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| − | | |
| − | विद्यालय में पानी की व्यवस्था
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| − | | |
| − | १७६
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| − | | |
| − | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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| − | | |
| − | क्योंकि यह एक आवश्यक संस्कार है ।
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| − | | |
| − | जल शुद्धिकरण हेतु पानी में फिटकरी डालना, पानी
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| − | | |
| − | छानकर उसमें खस डालना, पानी में क्लोरिन की
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| − | | |
| − | गोलियाँ डालना आदि सुझाव प्राप्त हुए । कुछ लोगों ने
| |
| − | | |
| − | पीने का पानी उबालकर रखना, आर.ओ. प्लान्ट
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| − | | |
| − | लगाकर पानी को शुद्ध करना जैसे सुझाव भी दिये ।
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| − | | |
| − | वर्षा का पानी उचित प्रकार से उचित स्थान पर जमा
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| − | | |
| − | करना । पीने के लिए वर्षभर इसी पानी का उपयोग
| |
| − | | |
| − | करने जैसी अच्छी बातें भी कही ।
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| − | | |
| − | पानी ठंडा रखने के लिए मिट्टी के पात्र ही सर्वात्तिम हैं,
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| − | | |
| − | इस बात का भी सबने आग्रह किया । पानी के पात्र
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| − | | |
| − | की रोज सफाई करना, उसे हर समय ढककर रखना
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| − | | |
| − | जैसी सभी बातों की अनिवार्यता भी बताई । पानी की
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| − | | |
| − | टंकी की सफाई भी प्रति मास होनी चाहिए ।
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| − | | |
| − | आजकल आचार्य और छात्र पीने का पानी घर से साथ
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| − | | |
| − | लेकर आते हैं, जो सर्वथा गलत है ।
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| − | | |
| − | पानी के आर्थिक पक्ष पर सभी मौन रहे ।
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| − | | |
| − | पानी का अपव्यय रोकने के लिए, जितना चाहिए
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| − | | |
| − | उतना ही पानी लेना । यह संस्कार दृढ़ करना चाहिए ।
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| − | | |
| − | जो पानी बह गया वह पौधों व वृक्षों में ही जाना
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| − | | |
| − | चाहिए । आदि सुझाव बताये ।
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| − | | |
| − | अभिमत :
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| − | | |
| − | अन्य प्रश्नावलियों से प्राप्त उत्तरों की तुलना में इस
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| − | | |
| − | विद्यालय से प्राप्त उत्तर सही एवं भारतीय दृष्टि की पहचान
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| − | | |
| − | बताने वाले थे । इसका कारण यह था कि इस विद्यालय में
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| − | | |
| − | समग्र विकास अभ्यासक्रमानुसार शिक्षण होता है । जब शिक्षा
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| − | | |
| − | से सही दृष्टि मिलती है तो व्यवहार भी तदूनुसार सही ही होता
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| − | | |
| − | है। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि इस प्रश्नावली में
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| − | | |
| − | अभिभावकों की सहभागिता अधिक रही । उनमें से कुछ
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| − | | |
| − | अभिभावक कम पढ़े लिखे भी थे, फिर भी अनेक उत्तर
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| − | | |
| − | एकदम सटीक थे । यह आश्चर्य की बात थी । अल्पशिक्षित
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| − | | |
| − | व्यक्ति भी अच्छा व्यवहार कर सकता है बात को उन्होंने
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| − | | |
| − | सत्यसिद्ध किया ।
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| − | | |
| − | ............. page-193 .............
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| − | | |
| − | पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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| − | | |
| − | आज हर कोई कार्यालय में, व्याख्यान में, सिनेमामें ... यह व्यवहार अत्यन्त सहज हो गया है ।
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| − | | |
| − | जाते समय पानी की बोटल साथ लेकर जाता है । परन्तु यहाँ. प्यासे को पानी पिलाने के भाव ही अब उत्पन्न नहीं होता ।
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| − | | |
| − | सब लोगों ने मटके के पानी का उपयोग ही सबके लिए श्रेष्ठ एक विद्यालय की ट्रिप रेल से जा रही थी । उसमें ५०
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| − | | |
| − | बताया है । प्लास्टिक बोतल में रखा पानी प्रदूषित हो जाता... विद्यार्थी थे । प्रत्येक विद्यार्थी को ५-५- बोतल दी गईं थी ।
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| − | | |
| − | है । ऐसा उनका मत था । हिसाब लगाये तो ५ » ५० » २० - ५००० रु, केवल पानी
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| − | | |
| − | जैसे घर में पानी की व्यवस्था करना घर के लोगों का... का खर्च था । फिर आवश्यकता, स्वतन्त्रता का अधिकार,
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| − | | |
| − | दायित्व होता है, वैसे ही विद्यालय में पानी की व्यवस्था करना... अपव्यय, आर्थिकपक्ष आदि बिन्दुओं का विचार ही नहीं
| |
| − | | |
| − | विद्यालय का दायित्व होता है इस सीधी सादी बात को हम. किया जाता । हमें इसका विचार करना चाहिए ।
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| − | | |
| − | भूल रहे हैं । विद्यालय में पानी भरना, उसकी स्वच्छता रखना ईश्वर हमें पर्याप्त जल निःशुल्क देता है, परन्तु हम लोग
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| − | | |
| − | यह हमारा काम है, आज के चतुर्थश्रेणी कर्मचारियों को इसका... उसका व्यवसाय करते हैं, आर्थिक लाभ करमा रहे हैं । हमें
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| − | | |
| − | भान ही नहीं है । उधर अभिभावक भी वॉटर बोतल देकर, ... कुछ तो विचार करना चाहिए ।
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| − | | |
| − | अपने बालक की सुरक्षा का ध्यान हमें ही रखना है ऐसा मानता x
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| − | | |
| − | है और उसमें धन्यता अनुभव करता है । प्लास्टिक बोतल का विद्यालय में पानी की व्यवस्था
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| − | | |
| − | उपयोग हानिकर है इसे वे भूल जाते हैं । जल से जुड़े संस्कार पानी का विषय भी कोई विषय है ऐसा ही कोई भी
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| − | | |
| − | जो उसे विद्यालय से मिलने चाहिए उनसे वह वंचित रह जाता... कहेगा । परन्तु विचार करने लगते हैं तब कई बिन्दु सामने
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| − | | |
| − | है । जैसे कि समूह में कैसा व्यवहार करना, अपने से अधिक... आते हैं ...
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| − | | |
| − | प्यासे मित्र को पहले पानी पीने देना, व्यर्थ बहने वाले पानी... १. . विद्यालय में पानी की व्यवस्था होती ही है परन्तु उसके
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| − | | |
| − | का कैसे उपयोग करना आदि । प्रकार अलग अलग होते हैं ।
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| − | | |
| − | २... कई स्थानों पर टंकी होती है और उसे नल लगे होते
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| − | | |
| − | पानी का आर्थिक पक्ष हैं । पानी की टंकी या तो सिमेन्ट की होती है अथवा
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| − | | |
| − | पानी के आर्थिक पक्ष को देखें तो ईश्वर ने हमारे लिए प्लास्टिक की । टंकी में से पानी लाने वाली नलिकायें
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| − | | |
| − | विपुल मात्रा में जल की व्यवस्था की है । जल पर सबका भी या तो प्लास्टिक की होती हैं या सिमेन्ट की । नल
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| − | | |
| − | समान अधिकार है । किसी ने भी पानी माँगा तो उसे सेवाभाव स्टील के, लोहे के अथवा प्लास्टिक के । पानी पीने
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| − | | |
| − | से पानी पिलाना यह भारतीय दृष्टि है । परन्तु पाश्चात्य विचारों के प्याले अधिकांश प्लास्टिक के और कभी कभी
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| − | | |
| − | के प्रभाव में आकर हमने पानी को भी बिकाऊ बना दिया । स्टील के होते हैं ।
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| − | | |
| − | बड़ी-बड़ी व्यावसायिक कम्पनियों के मनमोहक विज्ञापनों के... ३... अनेक विद्यालयों में पानी शुद्धीकरण के यन्त्र लगाए
| |
| − | | |
| − | सहारे धडछ्ठे से पानी बिक रहा है । परिणाम स्वरूप सेवाभाव जाते हैं । कई स्थानों पर मिट्टी के मटके होते हैं । कई
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| − | | |
| − | से चलने वाले जलमंदिर बन्द हो रहे हैं । स्थानों पर बाजार में जो मिनरल पानी मिलता है वह
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| − | | |
| − | तरह तरह के वाटर बेग्ज, उनके आकर्षक रंग व लाया जाता है । छात्रों को शुद्ध पानी मिले ऐसा आग्रह
| |
| − | | |
| − | आकार पर मोहित हो अभिभावक अपने पुत्र के नाम पर विद्यालय का और अभिभावकों का होता है ।
| |
| − | | |
| − | कितना पैसा व्यर्थ में लुटा देते हैं । आर ओ प्लान्ट के बिना... ४... अनेक विद्यालयों में छात्र घर से पानी लेकर आते हैं ।
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| − | | |
| − | जल शुद्ध हो ही नहीं सकता इस विचार के कारण कितना वे ऐसा करें इसका आग्रह विद्यालय और अभिभावक
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| − | | |
| − | अनावश्यक धन खर्च होता है इसका अभिभावकों को भान दोनों का होता है । विद्यालय कभी कभी विचार करता
| |
| − | | |
| − | ही नहीं है । मेरा खरीदा हुआ पानी, इसलिए उस पर केवल है कि छात्र यदि घर से पानी लाते हैं तो विद्यालय का
| |
| − | | |
| − | मेरा अधिकार, मैं जैसा चाहूँगा, वैसा उसका उपयोग करूँगा बोज कम होगा । अभिभावकों को कभी कभी
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| − | | |
| − | १७७
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| − | | |
| − | ............. page-194 .............
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| − | | |
| − | 4,
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| − | | |
| − | ६.
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| − | | |
| − | विद्यालय की व्यवस्था पर सन्देह होता
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| − | | |
| − | है। वहाँ शुद्ध पानी मिलेगा कि नहीं इसकी आशंका
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| − | | |
| − | रहती है । इसलिए वे घर से ही पानी भेजते हैं ।
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| − | | |
| − | विद्यालय में भीड़ होने के कारण भी अपना पानी
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| − | | |
| − | अलग रखने की आवश्यकता उन्हें लगती है । घर से
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| − | | |
| − | विद्यालय की दूरी भी होती है और रास्ते में पानी की
| |
| − | | |
| − | आवश्यकता होती है इसलिए भी अभिभावक पानी घर
| |
| − | | |
| − | से देते हैं ।
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| − | | |
| − | अब इसमें शैक्षिक दृष्टि से विचारणीय बातें कौनसी
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| − | | |
| − | हैं सपहली बात तो यह है कि विद्यालय में पानी की
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| − | | |
| − | व्यवस्था है और वह अच्छी है इस बात पर
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| − | | |
| − | अभिभावकों का विश्वास बनना चाहिये । इसके आधार
| |
| − | | |
| − | पर ही आगे की बातें सम्भव हो सकती हैं ।
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| − | | |
| − | आजकल जो बात सर्वाधिक प्रचलन में है वह है
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| − | | |
| − | प्लास्टिक का प्रयोग । टंकी, बोतल, नलिका और
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| − | | |
| − | नल, प्याले आदि सबकुछ प्लास्टिक का ही बना होता
| |
| − | | |
| − | है। भौतिक विज्ञान स्पष्ट कहता है कि प्लास्टिक
| |
| − | | |
| − | पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है ।
| |
| − | | |
| − | इसलिए विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का
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| − | | |
| − | प्रयोग न करे और उसके निषेध के लिए छात्रों की
| |
| − | | |
| − | सिद्धता बनाए और अभिभावकों का प्रबोधन करे ।
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| − | | |
| − | विद्यालय के शिक्षाक्रम का यह एक महत्त्वपूर्ण अंग
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| − | | |
| − | होना चाहिये | faa के संकट मनुष्य की अनुचित
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| − | | |
| − | मन:स्थिति और उससे प्रेरित होने वाले अनुचित
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| − | | |
| − | व्यवहार के कारण ही तो निर्माण होते हैं । मन और
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| − | | |
| − | व्यवहार ठीक करने का प्रमुख अथवा कहो कि एकमेव
| |
| − | | |
| − | केन्द्र ही तो विद्यालय है । वहाँ भी यदि प्लास्टिक का
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| − | | |
| − | प्रयोग किया जाय तो इससे बढ़कर पाप कौनसा होगा ।
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| − | | |
| − | इस सन्दर्भ में सुभाषित देखें
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| − | | |
| − | अन्यक्षेत्रे कृतं पापं तीर्थक्षेत्रे विनश्यति ।
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| − | | |
| − | तीर्थक्षेत्रे कृत पाप॑ वज़लेपो भविष्यति ।॥।
| |
| − | | |
| − | अर्थात अन्य स्थानों पर किया गया पाप तीर्थक्षेत्र में
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| − | | |
| − | धुल जाता है परन्तु तीर्थक्षेत्र में किया हुआ पाप
| |
| − | | |
| − | वज़लेप बन जाता है ।
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| − | | |
| − | विद्यालय ज्ञान के क्षेत्र में तीर्थक्षेत्र ही तो है । अतः
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| − | | |
| − | १७८
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| − | | |
| − | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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| − | | |
| − | विद्यालय ने इसे अपना कर्तव्य समझना चाहिये ।
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| − | | |
| − | एक ओर प्लास्टीक का आतंक है तो दूसरी ओर
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| − | | |
| − | शुद्धीकरण का भूत बुद्धि पर सवार हो गया है । हम
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| − | | |
| − | कहते हैं कि आज का जमाना वैज्ञानिकता का है ।
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| − | | |
| − | परन्तु पानी के शुद्धीकरण के लिए जो यंत्र लगाए जाते
| |
| − | | |
| − | हैं और जो प्रक्रिया अपनाई जाती है वह विज्ञापनों ने
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| − | | |
| − | रची हुई मायाजाल है । विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं
| |
| − | | |
| − | से 'शुद्ध' हुआ पानी शरीर के लिए उपयोगी क्षारों को
| |
| − | | |
| − | भी गँवा चुका होता है । अभ्यस्त लोगों को स्वाद से
| |
| − | | |
| − | भी इसका पता चल जाता है। हमारे बड़े बड़े
| |
| − | | |
| − | कार्यक्रमों में और घरों में शुद्ध पानी के नाम पर मिनरल
| |
| − | | |
| − | पानी और प्लास्टिक के पात्र प्रयोग में लाये जाते हैं
| |
| − | | |
| − | वह हमारी बुद्धि कितनी विपरीत हो गई है और
| |
| − | | |
| − | अआतार्किक तर्कों से ग्रस्त हो गई है इसका ही द्योतक
| |
| − | | |
| − | है। विद्यालयों ने इस संकट के ज्ञानात्मक और
| |
| − | | |
| − | भावनात्मक उपाय करने चाहिए । इस दृष्टि से तो प्रथम
| |
| − | | |
| − | इन दोनों बातों का प्रयोग बन्द करना चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | भौतिक विज्ञान के प्रयोगों ने यह सिद्ध किया है कि
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| − | | |
| − | मिट्टी के पात्र पानी के शुद्धिकारण के लिए बहुत
| |
| − | | |
| − | लाभकारी हैं । तांबे के पात्र भी उतने ही लाभकारी
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| − | | |
| − | हैं । पीने के पानी के लिए गर्मी के दिनों में मिट्टी के
| |
| − | | |
| − | और ठंड के दिनों में तांबे के पात्र सर्वाधिक उपयुक्त
| |
| − | | |
| − | होते हैं । शुद्धीकरण के कृत्रिम उपायों में पैसा खर्च
| |
| − | | |
| − | करने के स्थान पर मिट्टी और तांबे के पात्रों का प्रयोग
| |
| − | | |
| − | करना दूरगामी और तात्कालिक दोनों दृष्टि से अधिक
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| − | | |
| − | समुचित है । टंकियों में भरे पानी को शुद्ध करने के
| |
| − | | |
| − | लिए भी रसायनों का प्रयोग करने के स्थान पर
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| − | | |
| − | सहजन और निर्मली के बीज और फिटकरी जैसे
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| − | | |
| − | पदार्थों का प्रयोग अधिक लाभकारी होते हैं । छात्रों
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| − | | |
| − | को कूलर और शीतागार का पानी भी नहीं पिलाना
| |
| − | | |
| − | चाहिये ।
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| − | | |
| − | पानी के सम्यक उपयोग का ज्ञान भी देने की
| |
| − | | |
| − | आवश्यकता है । पानी निकासी की व्यवस्था भी
| |
| − | | |
| − | गम्भीरतापूर्वक करनी चाहिये । इसकी चर्चा भी
| |
| − | | |
| − | स्वतन्त्र रूप से अन्यत्र की गई है ।
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| − | | |
| − | ............. page-195 .............
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| − | | |
| − | पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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| − | | |
| − | विद्यालय में केवल पानी की व्यवस्था करना ही
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| − | | |
| − | पर्याप्त नहीं है, पानी के प्रयोग की शिक्षा देना भी अत्यन्त
| |
| − | | |
| − | आवश्यक है । छोटी आयु से ही पानी के विषय में शिक्षा
| |
| − | | |
| − | नहीं देने का परिणाम इतना भीषण हो रहा है कि लोग अब
| |
| − | | |
| − | कह रहे हैं कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा ।
| |
| − | | |
| − | इसका अर्थ यह है कि वैश्विक स्तर पर पानी का संकट बढ
| |
| − | | |
| − | गया है । इस वैश्विक संकट को विद्यालयीन शिक्षा के साथ
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| − | | |
| − | जोडकर समस्या के हल का विचार करना चाहिये ।
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| − | | |
| − | शिक्षा योजना के बिन्दु
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| − | | |
| − | पानी के सम्बन्ध में शिक्षा की योजना करते समय इन
| |
| − | | |
| − | बिन्दुओं को ध्यान में लेना आवश्यक है ।
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| − | | |
| − | g. पानी विषयक शिक्षा छोटी से लेकर बड़ी कक्षाओं
| |
| − | | |
| − | तक देने की आवश्यकता है ।
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| − | | |
| − | पानी जीवनधारणा के लिये अनिवार्य रूप से
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| − | | |
| − | आवश्यक है । पानी के बिना जीवन सम्भव नहीं ।
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| − | | |
| − | पानी का एक नाम ही जीवन है ।
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| − | | |
| − | पानी पंचमहाभूतों में एक है । वह सर्वव्यापी है ।
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| − | | |
| − | सृष्टि के हर पदार्थ में पानी होता है । पानी के कारण
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| − | | |
| − | ही पदार्थ का संधारण होता है ।
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| − | | |
| − | भौतिक विज्ञान कहता है कि पानी स्वयं ead
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| − | | |
| − | है, उसका अपना कोई स्वाद नहीं है, परन्तु यह भी
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| − | | |
| − | सत्य है कि पानी के कारण ही किसी भी पदार्थ को
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| − | | |
| − | स्वाद प्राप्त होता है ।
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| − | | |
| − | पानी पंचमहाभूतों में एक महाभूत है । पंचमहाभूतों के
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| − | | |
| − | सूक्ष्म स्वरूप को तन्मात्रा कहते हैं। पानी की
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| − | | |
| − | wit रस है। रस का अनुभव करने वाली
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| − | | |
| − | ज्ञानेन्द्र जीभ है । वह रस का अनुभव करती है
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| − | | |
| − | इसलिये उसे रसना कहते हैं। रसना स्वाद का
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| − | | |
| − | अनुभव करती है । हम सब जानते हैं कि जीभ के
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| − | | |
| − | बिना हम सृष्टि में जो रस अर्थात् स्वाद है उसका
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| − | | |
| − | अनुभव नहीं कर सकते ।
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| − | | |
| − | पानी पतित्र है । पानी देवता है । वेदों में जलदेवता
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| − | | |
| − | पानी के विषय में शिक्षा
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| − | | |
| − | R98
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| − | | |
| − | को ही वरुण देवता कहा है । पदार्थों का संधारण
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| − | | |
| − | करने का, प्राणियों और वनस्पति का जीवन सम्भव
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| − | | |
| − | बनाने का महत्त्वपूर्ण कार्य पानी करता है इसीलिये
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| − | | |
| − | वह पवित्र है । हम देवता की पूजा करते हैं, उन्हें
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| − | | |
| − | आदर देते हैं और सन्तुष्ट भी करते हैं । पानी का
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| − | | |
| − | आदर करना और उसकी पवित्रता की रक्षा करना
| |
| − | | |
| − | हमारा धर्म है । इसीकी शिक्षा छोटे बडे सबको
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| − | | |
| − | मिलनी चाहिये ।
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| − | | |
| − | सभी विषयों की शिक्षा की तरह पानी विषयक शिक्षा
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| − | | |
| − | भी ज्ञान, भावना और क्रिया के रूप में देनी चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | स्वाभाविक रूप से ही प्रथम क्रियात्मक, दूसरे क्रम में
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| − | | |
| − | भावात्मक और बाद में ज्ञानात्मक शिक्षा देनी चाहिये ।
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| − | | |
| − | पानी के सम्बन्ध में क्रियात्मक शिक्षा
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| − | | |
| − | g. पानी को हमेशा शुद्ध रखे, अशुद्ध न करें, शुद्ध पानी
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| − | | |
| − | ही पियें ।
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| − | | |
| − | खडे खडे, लेटे लेटे पानी न पियें । हमेशा बैठकर ही
| |
| − | | |
| − | पियें ।
| |
| − | | |
| − | पानी जल्दबाजी में न पियें, धीरे धीरे एक एक घूंट
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| − | | |
| − | लेकर ही पियें ।
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| − | | |
| − | प्लास्टिक की बोतलों में भरा हुआ, यंत्रों और
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| − | | |
| − | रसायनों से शुद्ध किया हुआ पानी वास्तव में शुद्ध
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| − | | |
| − | नहीं होता । उसे शुद्ध मानना और कहना हमारी
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| − | | |
| − | वैज्ञानिक अंधश्रद्धा ही है। tar agg ot
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| − | | |
| − | अप्राकृतिक बीमारियों को जन्म देता है ।
| |
| − | | |
| − | भोजन के प्रारम्भ में और भोजन के तुरन्त बाद पानी
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| − | | |
| − | न पियें । मुँह साफ करने के लिये एकाध ye ही
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| − | | |
| − | पियें ।
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| − | | |
| − | दिनभर में पर्याप्त पानी पीना चाहिये, न बहुत अधिक,
| |
| − | | |
| − | न बहुत कम ।
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| − | | |
| − | पीने के साथ साथ पानी भोजन बनाने के, स्थान और
| |
| − | | |
| − | वस्तुओं को साफ करने के, पेड पौधों का पोषण
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| − | | |
| − | करने के काम में भी आता है । उन बातों का भी
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| − | | |
| − | ............. page-196 .............
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| − | | |
| − | é.
| |
| − | | |
| − | Ro.
| |
| − | | |
| − | 8.
| |
| − | | |
| − | x.
| |
| − | | |
| − | 2.
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| − | | |
| − | RY.
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| − | | |
| − | सम्यक विचार करना आवश्यक है ।
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| − | | |
| − | भोजन बनाने के लिये हमेशा शुद्ध और पवित्र पानी
| |
| − | | |
| − | का ही प्रयोग करना चाहिये । ताँबे या पीतल के पात्र
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| − | | |
| − | में भरे पानी का प्रयोग करें । स्टील, प्लास्टिक,
| |
| − | | |
| − | एल्युमिनियम या अन्य पदार्थों से बने पात्रों में भरे
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| − | | |
| − | पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिये । चाँदी और
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| − | | |
| − | सुवर्ण तो अति उत्तम हैं ही परन्तु हम व्यवहार में
| |
| − | | |
| − | सामान्य रूप से इन पात्रों का प्रयोग नहीं करते ।
| |
| − | | |
| − | सिमेन्ट से बनी टॉँकियों में भरा पानी भी उतना अधिक
| |
| − | | |
| − | शुद्ध नहीं होता है, सिमेन्ट के ऊपर यदि चूने से पुताई की
| |
| − | | |
| − | जायतो वह अच्छा है, लाभदायी है । प्लास्टिक की टँंकियाँ
| |
| − | | |
| − | किसी भी तरह लाभदायी नहीं हैं ।
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| − | | |
| − | पानी का उपयोग पेड पौधों और प्राणियों के लिये
| |
| − | | |
| − | होता है । विद्यार्थियों को इसके क्रियात्मक संस्कार
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| − | | |
| − | मिलने चाहिये । इस दृष्टि से विद्यालय में पक्षी पानी
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| − | | |
| − | पी सके ऐसे पात्र टाँगने चाहिये । विद्यार्थी इन पात्रों
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| − | | |
| − | को साफ करें और उन्हें पानी से भरें ऐसी योजना
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| − | | |
| − | करना चाहिये । यह व्यवस्था हर विद्यार्थी के घर तक
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| − | | |
| − | पहुँचे यह देखना चाहिये । साथ ही पशुओं को पानी
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| − | | |
| − | पीने की व्यवस्था भी करनी चाहिये । रास्ते पर आते
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| − | | |
| − | जाते पशु इससे पानी पी सकें ऐसी जगह पर यह
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| − | | |
| − | व्यवस्था होनी चाहिये । इसकी स्वच्छता भी विद्यार्थी
| |
| − | | |
| − | ही करें यह देखना चाहिये ।
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| − | | |
| − | मनुष्यों को पानी पिलाने की व्यवस्था भी होना
| |
| − | | |
| − | आवश्यक है । इस दृष्टि से प्याऊ की व्यवस्था की
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| − | | |
| − | जा सकती है । इस प्याऊ की व्यवस्था का संचालन
| |
| − | | |
| − | विद्यार्थियों को करना चाहिये ।
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| − | | |
| − | हाथ पैर धोने या नहाने के लिये हम कितने कम पानी
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| − | | |
| − | का प्रयोग कर सकते हैं यह सिखाने की आवश्यकता
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| − | | |
| − | है । अधिक पानी का प्रयोग करना बुद्धिमानी नहीं है ।
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| − | | |
| − | इसी प्रकार वर्तन साफ करने के लिये, कपडे धोने के
| |
| − | | |
| − | लिये कम पानी का प्रयोग करने की कुशलता प्राप्त
| |
| − | | |
| − | करनी चाहिये ।
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| − | | |
| − | डीटे्जन्ट से कपडे और बर्तन साफ करने से अधिक
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| − | | |
| − | पानी का प्रयोग करना पडता है । इससे बचने के
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| − | | |
| − | १८०
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| − | | |
| − | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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| − | | |
| − | जल साक्षरता
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| − | | |
| − | बूँदबूँद पानी को आज हम बचाएँगे ।
| |
| − | | |
| − | हरीभरी वसुंधरा फिर से हम बसाएँगे ।।धृ।।
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| − | | |
| − | कोसों दूर बहनें जातीं, घर से पानी के लिये
| |
| − | | |
| − | उन बहनों की सेवा करने गाँव में पानी लाएँगे
| |
| − | | |
| − | उन बहनों की सेवा करने बावड़ियाँ बँधवाएँगे ।।१।।
| |
| − | | |
| − | मिट्ते जाते तालाबोंसे जलस्तर नीचे जाता है
| |
| − | | |
| − | नये-नये तालाब बनाकर, जलस्तर ऊपर लाएँगे 1२11
| |
| − | | |
| − | अब ना कोई प्यासा होगा पानी के अभावमें
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| − | | |
| − | चर अचर की तृषा शांतिका संबल हम जगाएँगे || ३।।
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| − | | |
| − | समझ नहीं है जिसको नलसे बहते रहते पानी की
| |
| − | | |
| − | उन लोगों को समझाकर जलसाक्षसता लाएंगे ।1४।।
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| − | | |
| − | लिये डिटर्जन्ट का प्रयोग बन्द कर उसके स्थान पर
| |
| − | | |
| − | प्राकृतिक पदार्थों का प्रयोग करना चाहिये । बर्तन की
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| − | | |
| − | सफाई के लिये मिट्टी या राख तथा कपड़ों की सफाई
| |
| − | | |
| − | के लिये साबुन का प्रयोग करने से पानी की बचत भी
| |
| − | | |
| − | होती है और प्रदूषण भी नहीं होता ।
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| − | | |
| − | पीने के लिये प्यालें में उतना ही पानी लेना चाहिये
| |
| − | | |
| − | जितना कि पीना है । प्याला भरकर लेना, थोडा पीना
| |
| − | | |
| − | और बचा हुआ फेंक देना कम बुद्धि का लक्षण है ।
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| − | | |
| − | पानी का बहुत अधिक अपव्यय होता है शौचालयों
| |
| − | | |
| − | में । फ्लश की व्यवस्था वाले शौचालय पानी के
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| − | | |
| − | प्रयोग की दृष्टि से अनुकूल नहीं है । उनके पर्याय
| |
| − | | |
| − | खोजने चाहिये ।
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| − | | |
| − | आवश्यकता से अधिक पानी का संग्रह करना और
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| − | | |
| − | बाद में फैंक देना भी उचित नहीं है । इससे पानी का
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| − | | |
| − | बहुत अपव्यय होता है ।
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| − | | |
| − | विद्यालय में पानी के संग्रह की योजना बहुत
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| − | | |
| − | सोचविचार कर बनानी चाहिये ।
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| − | | |
| − | वर्षा के पानी का संग्रह करने की व्यवस्था हर
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| − | | |
| − | विद्यालय के लिये अनिवार्य है । विद्यालय से यह
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| − | | |
| − | योजना विद्यार्थियों के घर तक पहुँचनी चाहिये ।
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| − | | |
| − | a4.
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| − | | |
| − | &&.
| |
| − | | |
| − | Ru.
| |
| − | | |
| − | RC.
| |
| − | | |
| − | 88.
| |
| − | | |
| − | ............. page-197 .............
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| − | | |
| − | पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
| |
| − | | |
| − | २०. जिस प्रकार पानी को शुद्ध करने के बाद ही पीना
| |
| − | | |
| − | चाहिये उस प्रकार शुद्ध पानी को अशुद्ध नहीं करने
| |
| − | | |
| − | की सावधानी भी रखनी चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | पानी का प्रयोग करना सीखना चाहिये यह जितना
| |
| − | | |
| − | महत्त्वपूर्ण है उतना ही महत्त्वपूर्ण पानी का निष्कासन उचित
| |
| − | | |
| − | पद्धति से करना भी सीखना है । उसकी भी क्रियात्मक
| |
| − | | |
| − | शिक्षा आवश्यक है। कुछ इन बातों पर ध्यान देना
| |
| − | | |
| − | आवश्यक है ।
| |
| − | | |
| − | श्,
| |
| − | | |
| − | पीने का पानी पेड पौधों को मिल सके इस प्रकार ही
| |
| − | | |
| − | फेंकना चाहिये । पीते समय बचाना नहीं यह तो
| |
| − | | |
| − | पहली बात है परन्तु, बच गया तो वह या तो पक्षियों
| |
| − | | |
| − | और पशुओं को पीने के लिये या तो बर्तन आदि
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| − | | |
| − | धोने के लिये अथवा पेड पौधों के लिये काम में
| |
| − | | |
| − | आना चाहिये ।
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| − | | |
| − | जिनमें पानी भरा जाता है वे बर्तन खाली करते समय
| |
| − | | |
| − | भी यह बातें ध्यान में रखना आवश्यक है ।
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| − | | |
| − | भोजन के पात्र साफ करते समय प्रथम तो सारी जूठन
| |
| − | | |
| − | धोकर वह पानी एक पात्र में इकट्ठा करना चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | वह पानी गाय, बकरी, कुत्ते आदि पशुओं को
| |
| − | | |
| − | पिलाना चाहिये । चावल, दाल आदि धोने के बाद
| |
| − | | |
| − | उसके पानी का भी ऐसा ही उपयोग करना चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | इससे पशुओं को अन्न के अच्छे अंश मिलते हैं और
| |
| − | | |
| − | अन्न का सदुपयोग होता है ।
| |
| − | | |
| − | बर्तन साफ किया हुआ पानी पेड पौधों को ही देना
| |
| − | | |
| − | चाहिये । कपडे साफ करने के बाद का साबुन वाला
| |
| − | | |
| − | पानी खुले में रेत या मिट्टी पर या ये दोनों नहीं है तो
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| − | | |
| − | पथ्थर पर गिराना चाहिये । रेत या मिट्टी पानी को
| |
| − | | |
| − | are लेते हैं, पथ्थर पर गिरा पानी सूर्यप्रकाश और
| |
| − | | |
| − | हवा से सूख जाता है। इससे जमीन की और
| |
| − | | |
| − | वातावरण की नमी बनी रहती है और तापमान
| |
| − | | |
| − | अप्राकृतिकरूप से नहीं बढता ।
| |
| − | | |
| − | पानी की निकासी की भूमिगत व्यवस्था पानी के
| |
| − | | |
| − | शुद्धीकरण की दृष्टि से अत्यन्त घातक है यह बात
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| − | | |
| − | आज किसी को समझ में आना बहुत कठिन है ।
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| − | | |
| − | हमारी सोच इतनी उपरी सतह की हो गई है, कि हमें
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| − | | |
| − | श्८्१
| |
| − | | |
| − | ऊपरी स्वच्छता तो दिखाई देती
| |
| − | | |
| − | है परन्तु अन्दर की स्वच्छता का विचार भी नहीं
| |
| − | | |
| − | ad | Ta ah अभ्यन्तर स्वच्छता का विषय
| |
| − | | |
| − | स्वतन्त्र रूप से विचार करने लायक है ।
| |
| − | | |
| − | पानी की निकासी के विषय में इतनी सावधानी रखनी
| |
| − | | |
| − | चाहिये कि एक बूंद भी बर्बाद न हो ।
| |
| − | | |
| − | पानी को शुद्ध करने के प्राकृतिक उपाय
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| − | | |
| − | श्,
| |
| − | | |
| − | मोटे खादी के कपडे से पानी को छानना चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | यह कपडा और पानी भरने का पात्र स्वच्छ ही हो
| |
| − | | |
| − | यह पहले ही सुनिश्चित करना चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | पानी में यदि अशुद्धि धुलमिल गई हो तो उसमें
| |
| − | | |
| − | फिटकरी घुमाना चाहिये । उससे अशुद्धि नीचे बैठ
| |
| − | | |
| − | जाती है । उसके बाद पानी को छानना चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | मिट्टी, रेत और कंकड पथ्थर से गुजरा हुआ पानी
| |
| − | | |
| − | कचरा रहित हो जाता है । ऐसी व्यवस्था बनानी
| |
| − | | |
| − | चाहिये । ऐसे पानी को छान लेना चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | मिट्टी का और ताँबे का पात्र पानी को निर्जन्तुक
| |
| − | | |
| − | बनाता है ।
| |
| − | | |
| − | पानी यदि क्षारों के कारण भारी हुआ हो तो उसे
| |
| − | | |
| − | उबालकर SS HT चाहिये और बाद में छान लेना
| |
| − | | |
| − | चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | पानी भरा रहता है ऐसी टँकियों में सहजन या निर्मली
| |
| − | | |
| − | के बीज तथा चूने का पथ्थर पानी की मात्रा के
| |
| − | | |
| − | अनुपात में डालना चाहिये ये पानी को कचरारहित
| |
| − | | |
| − | और जन्तुरहित बनाते हैं ।
| |
| − | | |
| − | हवा और सूर्यप्रकाश पानी के लिये प्राकृतिक
| |
| − | | |
| − | शुद्धीकारक हैं । इनका सम्पर्क नित्य रहना चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | पानी कहीं पर भी रुका न रहे इस ओर ध्यान देना
| |
| − | | |
| − | चाहिये । इसी प्रकार एक ही पात्र में पानी तीन चार
| |
| − | | |
| − | दिन भरा रहे ऐसा भी नहीं होना चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | कारखानों के रसायनों से जब नदियों का पानी अशुद्द
| |
| − | | |
| − | होता है तब उसे शुद्ध करने का कोई प्राकृतिक उपाय
| |
| − | | |
| − | नहीं है । उसे रसायनों से ही शुद्ध करना पडता हैं ।
| |
| − | | |
| − | रसायनों से शुद्ध किया हुआ पानी वास्तव में शुद्ध
| |
| − | | |
| − | ............. page-198 .............
| |
| − | | |
| − | Ro.
| |
| − | | |
| − | 8.
| |
| − | | |
| − | नहीं होता, शुद्ध दिखाई देता है।
| |
| − | | |
| − | यांत्रिक मानको से उसे शुद्ध सिद्ध किया जा सकता
| |
| − | | |
| − | है। जहाँ यांत्रिक मानक ही स्वीकार्य है वहाँ ऐसे
| |
| − | | |
| − | पानी को अशुद्ध बताना अपराध होता है, परन्तु यह
| |
| − | | |
| − | अप्राकृतिक शुद्धि शरीर में और पर्यावरण में
| |
| − | | |
| − | अप्राकृतिक बिमारियाँ लाती है । प्राकृतिक और
| |
| − | | |
| − | अप्राकृतिक तत्त्व को समझने की आवश्यकता है ।
| |
| − | | |
| − | इसी प्रकार यंत्रों से जो शुद्धि होती है वह भी
| |
| − | | |
| − | अप्राकृतिक है ।
| |
| − | | |
| − | सार्वजनिक स्थानों पर जो पानी होता है उसे भी
| |
| − | | |
| − | अशुद्ध होने से बचाना चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | पानी को लेकर अनुचित आदतें इस प्रकार हैं ।
| |
| − | | |
| − | उन्हें दूर करने की आवश्यकता है ।
| |
| − | | |
| − | श्,
| |
| − | | |
| − | खडे खडे पानी पीना । यह आदत सार्वत्रिक दिखाई
| |
| − | | |
| − | देती है । यह स्वास्थ्य के लिये जरा भी उचित नहीं
| |
| − | | |
| − | है। पानी पीने वाले ने इस आदत का त्याग करना
| |
| − | | |
| − | चाहिये और पानी पिलाने वाले पीने वाले बैठकर पी
| |
| − | | |
| − | सकें ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | कूलर और फ्रीज का पानी पीना । यह प्राकृतिक
| |
| − | | |
| − | सीमा से अधिक ठण्डा पानी स्वास्थ्य के लिये
| |
| − | | |
| − | हानिकारक है । यह अज्ञान इतना बढ गया है कि
| |
| − | | |
| − | अब रेलवे स्थानक जैसी जगहों पर भीं कूलर का
| |
| − | | |
| − | ठण्डा पानी मिलता है । कूलर और फ्रीज पर्यावरण के
| |
| − | | |
| − | लिये तो घातक हैं ही ।
| |
| − | | |
| − | यंत्रों से शुद्ध किया हुआ पानी पीना । यह भी
| |
| − | | |
| − | स्वास्थ्य के लिये घातक है ही ।
| |
| − | | |
| − | प्लास्टीक की बोतल का पानी पीना । बोतल सीधी
| |
| − | | |
| − | मुँह को लगाकर पानी पीने की आदत असंस्कारिता
| |
| − | | |
| − | की निशानी है । प्लास्टिक भी हानिकारक, उसका
| |
| − | | |
| − | “शुद्ध' पानी भी हानिकारक और मुँह लगाकर पीने
| |
| − | | |
| − | की पद्धति भी हानिकारक ।
| |
| − | | |
| − | मिनरल वॉटर की बिमारी इतनी फैली हुई है कि लोग
| |
| − | | |
| − | मटके का पानी नहीं पिते, स्थानकों पर की हुई पानी
| |
| − | | |
| − | की व्यवस्था से प्राप्त पानी नहीं पीते, यात्रा में घर से
| |
| − | | |
| − | 822
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| − | | |
| − | Ro.
| |
| − | | |
| − | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
| |
| − | | |
| − | पानी साथ में नहीं ले जाते । इन सब अच्छी बातों
| |
| − | | |
| − | को छोडकर पन्द्रह से बीस रूपये का एक लीटर पानी
| |
| − | | |
| − | खरीदने वाली प्रजा असंस्कारी और दरिद्र बन जाने
| |
| − | | |
| − | की पूरी सम्भावना है । विद्यालय में सिखाने लायक
| |
| − | | |
| − | यह महत्त्वपूर्ण विषय है ।
| |
| − | | |
| − | विद्यालय के समारोहों में मंच पर जब प्लास्टीक की
| |
| − | | |
| − | “मिनरल वॉटर' की बोतलें दिखाई देती है तब वह
| |
| − | | |
| − | व्यापक विचार का और संस्कारयुक्त सोच का अभाव
| |
| − | | |
| − | ही दर्शाती है ।
| |
| − | | |
| − | साथ में पानी की बोतल रखना और जब मन करे तब
| |
| − | | |
| − | बोतल मुँह को लगाकर पानी पीना प्रचलन में आ गया
| |
| − | | |
| − | है । तर्क यह दिया जाता है कि पानी स्वास्थ्य के लिये
| |
| − | | |
| − | आवश्यक है और प्यास लगे तब पानी पीना ही
| |
| − | | |
| − | चाहिये । परन्तु कक्षा चल रही हो या कार्यक्रम,
| |
| − | | |
| − | वार्तालाप चल रहा हो या बैठक, मन चाहे तब पानी
| |
| − | | |
| − | पीना असभ्यता का ही लक्षण है । साधारण रूप से कोई
| |
| − | | |
| − | कक्षा कोई बैठक, कोई कार्यक्रम बिना विराम के दो
| |
| − | | |
| − | घण्टे से अधिक चलता नहीं है । इतना समय बिना पानी
| |
| − | | |
| − | के रहना असम्भव नहीं है। इतना संयम करना
| |
| − | | |
| − | शरीरस्वास्थ्य के लिये हानिकारक नहीं है और
| |
| − | | |
| − | मनोस्वास्थ्य के लिये लाभकारी है । बच्चों और बडों
| |
| − | | |
| − | में बढती हुई इस आदत को जल्दी ही ठीक करने की
| |
| − | | |
| − | आवश्यकता है ।
| |
| − | | |
| − | यही आदत बिना किसी प्रयोजन के बोतल का पानी
| |
| − | | |
| − | फेंक देने की है । केवल मजे मजे में पानी गिराना पैसे
| |
| − | | |
| − | बर्बाद करना ही है । इस आदृत को भी ठीक करना
| |
| − | | |
| − | चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | पैसा खर्च करके खरीदे हुए पानी को एक क्षण में
| |
| − | | |
| − | फैंक देने का प्रचलन भी बहुत बढ रहा है । पानी की
| |
| − | | |
| − | बर्बादी के साथ साथ यह पैसे की भी बर्बादी है ।
| |
| − | | |
| − | बुद्धि हीनता के साथ साथ यह असंस्कारिता की भी
| |
| − | | |
| − | निशानी है ।
| |
| − | | |
| − | बडे बडे समारोहों में पीने का पानी और हाथ धोने
| |
| − | | |
| − | का पानी एक साथ रखा भी जाता है और गिराया भी
| |
| − | | |
| − | जाता है । ऐसे स्थानों पर गन्दगी हो जाती है और
| |
| − | | |
| − | ............. page-199 .............
| |
| − | | |
| − | पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
| |
| − | | |
| − | पानी की बहुत बर्बादी होती है । इसे ठीक करने की
| |
| − | | |
| − | क्रियात्मक शिक्षा विद्यालय में ही देने की
| |
| − | | |
| − | आवश्यकता है ।
| |
| − | | |
| − | पानी के सम्बन्ध में भावात्मक शिक्षा
| |
| − | | |
| − | क्रियात्मक शिक्षा के साथ ही भावात्मक शिक्षा भी
| |
| − | | |
| − | देनी चाहिये । भावात्मक शिक्षा से क्रिया के साथ श्रद्धा
| |
| − | | |
| − | जुडती है और निष्ठा बनती है । कुछ इन बातों पर विचार
| |
| − | | |
| − | किया जा सकता है
| |
| − | | |
| − | श्,
| |
| − | | |
| − | पानी को पवित्र मानना सिखाना चाहिये । पवित्रता
| |
| − | | |
| − | केवल शुद्धता नहीं है। शुद्धता के साथ जब
| |
| − | | |
| − | सात्त्विकता जुडती है तब पवित्रता बनती है ।
| |
| − | | |
| − | पवित्र पदार्थ या स्थान के साथ आदरयुक्त व्यवहार
| |
| − | | |
| − | होता है। पवित्रता की रक्षा करने के लिये हम
| |
| − | | |
| − | अपवित्र शरीर और मन से उसके पास नहीं जाते हैं ।
| |
| − | | |
| − | उदाहरण के लिये घर में जहाँ पीने का पानी रखा
| |
| − | | |
| − | जाता है वहाँ कोई जूते पहनकर या बिना स्नान किये
| |
| − | | |
| − | नहीं जाता है । यह दीर्घकाल की परम्परा है। हम
| |
| − | | |
| − | विद्यालय में भी ऐसी व्यवस्था कर सकते हैं ।
| |
| − | | |
| − | जहाँ पीने का पानी रखा होता है वहाँ सायंकाल
| |
| − | | |
| − | संध्या के समय दीपक जलाया जाता है । इससे
| |
| − | | |
| − | पर्यावरण की शुद्धि होती है । पवित्रता की भावना भी
| |
| − | | |
| − | निर्माण होती है ।
| |
| − | | |
| − | पानी को जलदेवता मानने का प्रचलन शुरू करना
| |
| − | | |
| − | चाहिये । जलदेवता की स्तुति करनेवाले मंत्र ्रग्वेद में
| |
| − | | |
| − | तो हैं परन्तु हिन्दी में और हर भारतीय भाषा में रचे जा
| |
| − | | |
| − | सकते हैं । जलदेवता की स्तुति के गीत भी रचे जा
| |
| − | | |
| − | सकते हैं । पानी का प्रयोग करते समय इन मन्त्रों का
| |
| − | | |
| − | उच्चारण करने की प्रथा भी शुरु की जा सकती है ।
| |
| − | | |
| − | पानी का संग्रह जहाँ किया जाता है वहाँ भी जूते
| |
| − | | |
| − | पहनकर नहीं जाना, आसपास में गन्दगी नहीं करना,
| |
| − | | |
| − | उस स्थान की सफाई के लिये अलग से झाड़ू आदि
| |
| − | | |
| − | की व्यवस्था करना आदि माध्यमों से पवित्रता का
| |
| − | | |
| − | भाव जगाया जा सकता है ।
| |
| − | | |
| − | जलदेवता को सन्तुष्ट और प्रसन्न करने के लिये यज्ञों
| |
| − | | |
| − | श्८्३
| |
| − | | |
| − | की रचना करनी चाहिये । यज्ञ में
| |
| − | | |
| − | जलदेवता के लिये आहुति देनी चाहिये । जलदेवता
| |
| − | | |
| − | प्रसन्न हों इस दृष्टि से जिस प्रकार नये मन्त्रों की रचना
| |
| − | | |
| − | होगी उसी प्रकार यज्ञ में होम करने की सामग्री का भी
| |
| − | | |
| − | भौतिक विज्ञान की दृष्टि से विचार होगा । यज्ञ तो
| |
| − | | |
| − | वैज्ञानिक अनुष्ठान है ही, उसे आज की
| |
| − | | |
| − | आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके ऐसा स्वरूप दिया
| |
| − | | |
| − | जाना चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | पानी का मुख्य स्रोत वर्षा है। संग्रहित पानी का
| |
| − | | |
| − | प्राकृतिक स्रोत नदियाँ हैं। संग्रहित पानी का
| |
| − | | |
| − | मानवसर्जिक स्रोत तालाब, कुएँ, बावडी आदि हैं ।
| |
| − | | |
| − | संग्रहित पानी के इससे भी कृत्रिम स्रोत पानी की
| |
| − | | |
| − | टँकियों से लेकर घर के छोटे मटकों तक के पात्र हैं ।
| |
| − | | |
| − | वर्षा की और नदियों की स्तुति के अनुष्टान किये
| |
| − | | |
| − | जाने चाहिये तथा मानव सर्जित पानी के संग्रहस्थानों
| |
| − | | |
| − | के सम्बन्ध में विवेकपूर्ण विचार होना चाहिये । यहीं
| |
| − | | |
| − | से पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा शुरू होती है ।
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| − | | |
| − | पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा
| |
| − | | |
| − | क्रिया और भावना के साथ ज्ञान नहीं जुड़ा तो क्रिया
| |
| − | | |
| − | कर्मकाण्ड बन जाती है और भावना निस्द्धेश्य । दोनों ही
| |
| − | | |
| − | अपनी सार्थकता खो बैठते हैं । इसलिये ज्ञानात्मक पक्ष का
| |
| − | | |
| − | भी विचार अनिवार्य रूप से करना चाहिये, ज्ञानात्मक शिक्षा
| |
| − | | |
| − | के पहलु इस प्रकार सोचे जा सकते हैं
| |
| − | | |
| − | श्,
| |
| − | | |
| − | रे.
| |
| − | | |
| − | क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा के बाद ही
| |
| − | | |
| − | अथवा कम से कम साथ ही ज्ञानात्मक शिक्षा होनी
| |
| − | | |
| − | चाहिये । आज के सन्दर्भ में तो इस बात की ओर
| |
| − | | |
| − | विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आज
| |
| − | | |
| − | की शिक्षा क्रियाशून्य और भावनाशूत्य हो गई है,
| |
| − | | |
| − | केवल जानकारी प्राप्त कर, उसे याद कर, परीक्षा में
| |
| − | | |
| − | लिखकर अंक प्राप्त करने तक सीमित हो गई है ।
| |
| − | | |
| − | इससे अधिक Peete a अनर्थक क्या हो सकता
| |
| − | | |
| − | है ? अतः क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा का
| |
| − | | |
| − | क्रम प्रथम होना अनिवार्य है ।
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| − | | |
| − | पानी कहाँ से आता है, पानी के क्या क्या उपयोग
| |
| − | | |
| − | ............. page-200 .............
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| − | | |
| − | हैं, पानी शुद्ध और अशुद्द कैसे होता है,
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| − | | |
| − | पानी को शुद्ध किस प्रकार किया जाना चाहिये आदि
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| − | | |
| − | बातों का ज्ञान प्रारम्भिक स्तर पर देना चाहिये ।
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| − | | |
| − | पानी कम पड जाने से, पानी अशुद्द हो जाने से कौन
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| − | | |
| − | कौन से संकट निर्माण होते हैं इसका ज्ञान दिया जाना
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| − | | |
| − | चाहिये । इन संकटों का उपाय क्या हो सकता है
| |
| − | | |
| − | इसका भी ज्ञान दिया जाना चाहिये ।
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| − | | |
| − | पानी के वर्तमान संकट का स्वरूप क्या है इसकी
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| − | | |
| − | विस्तारपूर्वक चर्चा की जानी चाहिये ।
| |
| − | | |
| − | कुएँ, तालाब, बावडी वर्षाजल संग्रह की घर घर में की
| |
| − | | |
| − | जानेवाली व्यवस्था नष्ट हो जाने के कितने गम्भीर
| |
| − | | |
| − | परिणाम हुए हैं इसका भी विचार होना चाहिये ।
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| − | | |
| − | खेतों को पानी क्यों नहीं मिलता, पीने के लिये पानी
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| − | क्यों नहीं मिलता, अनावृष्टि क्यों होती हैं, नदियाँ
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| − | क्यों सूख जाती हैं इत्यादि बातों की गम्भीर चर्चा
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| − | होना आवश्यक है ।
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| − | पानी की निकासी के लिये जो व्यवस्था बनाई जाती
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| − | है वह कितनी उचित या अनुचित है इसका विमर्श
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| − | होना चाहिये ।
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| − | गंगा जैसी पवित्र नदी सहित देश की अन्य नदियों का
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| − | पानी बडे बडे कारखानों के विषैले रासायनिक कचरे के
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| − | कारण प्रदूषित होता है । इस कचरे से नदियों को
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| − | Ro.
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| − | 8.
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| − | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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| − | कानून बनाये जाने के बाद भी नदियों को नहीं बचाया
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| − | जा सकता है इसका कारण क्या है ? इस स्थिति को
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| − | ठीक करने के लिये विद्यालय या विद्याक्षेत्र क्या कर
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| − | सकता है इसका विचार होना चाहिये |
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| − | बडे बडे बाँध बाँधने से क्या वास्तव में देश का
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| − | जलसंकट दूर हो सकता है इसका विचार भी करना
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| − | चाहिये । यदि संकट दूर नहीं हो सकता है तो फिर
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| − | हम क्यों बाँधते हैं ?
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| − | कुएँ, तालाब, बावडियाँ आदि पुनः निर्माण करने के
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| − | क्या तरीके हो सकते हैं इसकी भी चर्चा होनी जरूरी
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| − | a |
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| − | पानी का अमर्याद उपयोग करना, पानी का प्रदूषण
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| − | करना, पानी बचाने की कोई व्यवस्था न करना,
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| − | पानी के स्रोतों को अवरुद्ध करना आदि विनाशक
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| − | गतिविधियों के पीछे कौनसी विचारधारा, कौनसी
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| − | मनोवृत्ति और कौनसी प्रवृत्ति होती है इसका मूलगामी
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| − | चिन्तन करना सिखाना चाहिये । पानी को लेकर
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| − | हमारे छोटे से कार्य के परिणाम दूरगामी होते हैं यह
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| − | समझने की आवश्यकता है ।
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| − | ये सारी बातें शिक्षा का सार्थक अंग बनेंगी तभी विश्व
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| − | के संकट कम होने की सम्भावना बनेगी । ऐसा सारा विचार
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| − | करने के बाद विद्यालय की व्यवस्थाओं और गतिविधियों
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| − | बचाने के क्या उपाय हैं ? सरकार की ओर से अनेक. का नियोजन होना चाहिये ।
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