Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 458: Line 458:  
लिये डिटर्जन्ट का प्रयोग बन्द कर उसके स्थान पर प्राकृतिक पदार्थों का प्रयोग करना चाहिये । बर्तन की सफाई के लिये मिट्टी या राख तथा कपड़ों की सफाई के लिये साबुन का प्रयोग करने से पानी की बचत भी होती है और प्रदूषण भी नहीं होता।  
 
लिये डिटर्जन्ट का प्रयोग बन्द कर उसके स्थान पर प्राकृतिक पदार्थों का प्रयोग करना चाहिये । बर्तन की सफाई के लिये मिट्टी या राख तथा कपड़ों की सफाई के लिये साबुन का प्रयोग करने से पानी की बचत भी होती है और प्रदूषण भी नहीं होता।  
   −
१५. पीने के लिये प्याले में उतना ही पानी लेना चाहिये जितना कि पीना है। प्याला भरकर लेना, थोडा पीना और बचा हुआ फेंक देना कम बुद्धि का लक्षण है। १६. पानी का बहुत अधिक अपव्यय होता है शौचालयों में। फ्लश की व्यवस्था वाले शौचालय पानी के प्रयोग की दृष्टि से अनुकूल नहीं है। उनके पर्याय खोजने चाहिये ।  
+
१५. पीने के लिये प्याले में उतना ही पानी लेना चाहिये जितना कि पीना है। प्याला भरकर लेना, थोडा पीना और बचा हुआ फेंक देना कम बुद्धि का लक्षण है।
 +
 
 +
१६. पानी का बहुत अधिक अपव्यय होता है शौचालयों में। फ्लश की व्यवस्था वाले शौचालय पानी के प्रयोग की दृष्टि से अनुकूल नहीं है। उनके पर्याय खोजने चाहिये ।  
    
१७. आवश्यकता से अधिक पानी का संग्रह करना और बाद में फैंक देना भी उचित नहीं है । इससे पानी का बहुत अपव्यय होता है।  
 
१७. आवश्यकता से अधिक पानी का संग्रह करना और बाद में फैंक देना भी उचित नहीं है । इससे पानी का बहुत अपव्यय होता है।  
Line 469: Line 471:     
पानी का प्रयोग करना सीखना चाहिये यह जितना महत्त्वपूर्ण है उतना ही महत्त्वपूर्ण पानी का निष्कासन उचित पद्धति से करना भी सीखना है। उसकी भी क्रियात्मक शिक्षा आवश्यक है। कुछ इन बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।  
 
पानी का प्रयोग करना सीखना चाहिये यह जितना महत्त्वपूर्ण है उतना ही महत्त्वपूर्ण पानी का निष्कासन उचित पद्धति से करना भी सीखना है। उसकी भी क्रियात्मक शिक्षा आवश्यक है। कुछ इन बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।  
 
+
# पीने का पानी पेड पौधों को मिल सके इस प्रकार ही फेंकना चाहिये । पीते समय बचाना नहीं यह तो पहली बात है परन्तु, बच गया तो वह या तो पक्षियों और पशुओं को पीने के लिये या तो बर्तन आदि धोने के लिये अथवा पेड पौधों के लिये काम में आना चाहिये।  
१. पीने का पानी पेड पौधों को मिल सके इस प्रकार ही फेंकना चाहिये । पीते समय बचाना नहीं यह तो पहली बात है परन्तु, बच गया तो वह या तो पक्षियों और पशुओं को पीने के लिये या तो बर्तन आदि धोने के लिये अथवा पेड पौधों के लिये काम में आना चाहिये।  
+
# जिनमें पानी भरा जाता है वे बर्तन खाली करते समय भी यह बातें ध्यान में रखना आवश्यक है।  
 
+
# भोजन के पात्र साफ करते समय प्रथम तो सारी जूठन धोकर वह पानी एक पात्र में इकट्ठा करना चाहिये । वह पानी गाय, बकरी, कुत्ते आदि पशुओं को पिलाना चाहिये । चावल, दाल आदि धोने के बाद उसके पानी का भी ऐसा ही उपयोग करना चाहिये । इससे पशुओं को अन्न के अच्छे अंश मिलते हैं और अन्न का सदुपयोग होता है।  
२. जिनमें पानी भरा जाता है वे बर्तन खाली करते समय भी यह बातें ध्यान में रखना आवश्यक है।  
+
# बर्तन साफ किया हुआ पानी पेड पौधों को ही देना चाहिये । कपडे साफ करने के बाद का साबन वाला पानी खुले में रेत या मिट्टी पर या ये दोनों नहीं है तो पथ्थर पर गिराना चाहिये । रेत या मिट्टी पानी को सोख लेते हैं, पथ्थर पर गिरा पानी सूर्यप्रकाश और हवा से सूख जाता है। इससे जमीन की और वातावरण की नमी बनी रहती है और तापमान अप्राकृतिकरूप से नहीं बढता ।  
 
+
# पानी की निकासी की भूमिगत व्यवस्था पानी के शुद्धीकरण की दृष्टि से अत्यन्त घातक है यह बात आज किसी को समझ में आना बहुत कठिन है । हमारी सोच इतनी उपरी सतह की हो गई है, कि हमें ऊपरी स्वच्छता तो दिखाई देती । है परन्तु अन्दर की स्वच्छता का विचार भी नहीं आता। बाह्य और अभ्यन्तर स्वच्छता का विषय स्वतन्त्र रूप से विचार करने लायक है ।  
३. भोजन के पात्र साफ करते समय प्रथम तो सारी जूठन धोकर वह पानी एक पात्र में इकट्ठा करना चाहिये । वह पानी गाय, बकरी, कुत्ते आदि पशुओं को पिलाना चाहिये । चावल, दाल आदि धोने के बाद उसके पानी का भी ऐसा ही उपयोग करना चाहिये । इससे पशुओं को अन्न के अच्छे अंश मिलते हैं और अन्न का सदुपयोग होता है।  
+
# पानी की निकासी के विषय में इतनी सावधानी रखनी चाहिये कि एक बंद भी बर्बाद न हो।
 
  −
४. बर्तन साफ किया हुआ पानी पेड पौधों को ही देना चाहिये । कपडे साफ करने के बाद का साबन वाला पानी खुले में रेत या मिट्टी पर या ये दोनों नहीं है तो पथ्थर पर गिराना चाहिये । रेत या मिट्टी पानी को सोख लेते हैं, पथ्थर पर गिरा पानी सूर्यप्रकाश और हवा से सूख जाता है। इससे जमीन की और वातावरण की नमी बनी रहती है और तापमान अप्राकृतिकरूप से नहीं बढता ।  
  −
 
  −
५. पानी की निकासी की भूमिगत व्यवस्था पानी के शुद्धीकरण की दृष्टि से अत्यन्त घातक है यह बात आज किसी को समझ में आना बहुत कठिन है । हमारी सोच इतनी उपरी सतह की हो गई है, कि हमें ऊपरी स्वच्छता तो दिखाई देती । है परन्तु अन्दर की स्वच्छता का विचार भी नहीं आता। बाह्य और अभ्यन्तर स्वच्छता का विषय स्वतन्त्र रूप से विचार करने लायक है ।  
  −
 
  −
६. पानी की निकासी के विषय में इतनी सावधानी रखनी चाहिये कि एक बंद भी बर्बाद न हो।
      
==== पानी को शुद्ध करने के प्राकृतिक उपाय ====
 
==== पानी को शुद्ध करने के प्राकृतिक उपाय ====
१. मोटे खादी के कपडे से पानी को छानना चाहिये । यह कपडा और पानी भरने का पात्र स्वच्छ ही हो यह पहले ही सुनिश्चित करना चाहिये ।  
+
# मोटे खादी के कपडे से पानी को छानना चाहिये । यह कपडा और पानी भरने का पात्र स्वच्छ ही हो यह पहले ही सुनिश्चित करना चाहिये ।  
 
+
# पानी में यदि अशुद्धि धुलमिल गई हो तो उसमें फिटकरी घुमाना चाहिये । उससे अशुद्धि नीचे बैठ जाती है। उसके बाद पानी को छानना चाहिये ।  
२. पानी में यदि अशुद्धि धुलमिल गई हो तो उसमें फिटकरी घुमाना चाहिये । उससे अशुद्धि नीचे बैठ जाती है। उसके बाद पानी को छानना चाहिये ।  
+
# मिट्टी, रेत और कंकड पथ्थर से गुजरा हुआ पानी कचरा रहित हो जाता है। ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिये । ऐसे पानी को छान लेना चाहिये ।  
 
+
# मिट्टी का और ताँबे का पात्र पानी को निर्जन्तुक बनाता है।  
३. मिट्टी, रेत और कंकड पथ्थर से गुजरा हुआ पानी कचरा रहित हो जाता है। ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिये । ऐसे पानी को छान लेना चाहिये ।  
+
# पानी यदि क्षारों के कारण भारी हुआ हो तो उसे उबालकर ठण्डा करना चाहिये और बाद में छान लेना चाहिये।  
 
+
# पानी भरा रहता है ऐसी टंकियों में सहजन या निर्मली के बीज तथा चूने का पथ्थर पानी की मात्रा के अनुपात में डालना चाहिये ये पानी को कचरारहित और जन्तुरहित बनाते हैं।  
४. मिट्टी का और ताँबे का पात्र पानी को निर्जन्तुक बनाता है।  
+
# हवा और सूर्यप्रकाश पानी के लिये प्राकृतिक शुद्धीकारक हैं । इनका सम्पर्क नित्य रहना चाहिये ।  
 
+
# पानी कहीं पर भी रुका न रहे इस ओर ध्यान देना चाहिये । इसी प्रकार एक ही पात्र में पानी तीन चार दिन भरा रहे ऐसा भी नहीं होना चाहिये।  
५. पानी यदि क्षारों के कारण भारी हुआ हो तो उसे उबालकर ठण्डा करना चाहिये और बाद में छान लेना चाहिये।  
+
# कारखानों के रसायनों से जब नदियों का पानी अशुद्द होता है तब उसे शुद्ध करने का कोई प्राकृतिक उपाय नहीं है । उसे रसायनों से ही शुद्ध करना पडता हैं । रसायनों से शुद्ध किया हुआ पानी वास्तव में शुद्ध नहीं होता, शुद्ध दिखाई देता है। यांत्रिक मानको से उसे शुद्ध सिद्ध किया जा सकता है। जहाँ यांत्रिक मानक ही स्वीकार्य है वहाँ ऐसे पानी को अशुद्ध बताना अपराध होता है, परन्तु यह अप्राकृतिक शुद्धि शरीर में और पर्यावरण में अप्राकतिक बिमारियाँ लाती है। प्राकतिक और अप्राकृतिक तत्त्व को समझने की आवश्यकता है।  
 
+
# इसी प्रकार यंत्रों से जो शुद्धि होती है वह भी अप्राकृतिक है।  
६. पानी भरा रहता है ऐसी टंकियों में सहजन या निर्मली के बीज तथा चूने का पथ्थर पानी की मात्रा के अनुपात में डालना चाहिये ये पानी को कचरारहित और जन्तुरहित बनाते हैं।  
+
# सार्वजनिक स्थानों पर जो पानी होता है उसे भी अशुद्ध होने से बचाना चाहिये ।
 
  −
७. हवा और सूर्यप्रकाश पानी के लिये प्राकृतिक शुद्धीकारक हैं । इनका सम्पर्क नित्य रहना चाहिये ।  
  −
 
  −
८. पानी कहीं पर भी रुका न रहे इस ओर ध्यान देना चाहिये । इसी प्रकार एक ही पात्र में पानी तीन चार दिन भरा रहे ऐसा भी नहीं होना चाहिये।  
  −
 
  −
९. कारखानों के रसायनों से जब नदियों का पानी अशुद्द होता है तब उसे शुद्ध करने का कोई प्राकृतिक उपाय नहीं है । उसे रसायनों से ही शुद्ध करना पडता हैं । रसायनों से शुद्ध किया हुआ पानी वास्तव में शुद्ध नहीं होता, शुद्ध दिखाई देता है। यांत्रिक मानको से उसे शुद्ध सिद्ध किया जा सकता है। जहाँ यांत्रिक मानक ही स्वीकार्य है वहाँ ऐसे पानी को अशुद्ध बताना अपराध होता है, परन्तु यह अप्राकृतिक शुद्धि शरीर में और पर्यावरण में अप्राकतिक बिमारियाँ लाती है। प्राकतिक और अप्राकृतिक तत्त्व को समझने की आवश्यकता है।  
  −
 
  −
१०. इसी प्रकार यंत्रों से जो शुद्धि होती है वह भी अप्राकृतिक है।  
  −
 
  −
११. सार्वजनिक स्थानों पर जो पानी होता है उसे भी अशुद्ध होने से बचाना चाहिये ।
      
==== पानी को लेकर अनुचित आदतें इस प्रकार हैं । ====
 
==== पानी को लेकर अनुचित आदतें इस प्रकार हैं । ====
    
==== उन्हें दूर करने की आवश्यकता है । ====
 
==== उन्हें दूर करने की आवश्यकता है । ====
१. खडे खडे पानी पीना । यह आदत सार्वत्रिक दिखाई देती है। यह स्वास्थ्य के लिये जरा भी उचित नहीं है। पानी पीने वाले ने इस आदत का त्याग करना चाहिये और पानी पिलाने वाले पीने वाले बैठकर पी सकें ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये ।
+
# खडे खडे पानी पीना । यह आदत सार्वत्रिक दिखाई देती है। यह स्वास्थ्य के लिये जरा भी उचित नहीं है। पानी पीने वाले ने इस आदत का त्याग करना चाहिये और पानी पिलाने वाले पीने वाले बैठकर पी सकें ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये ।
 
+
# कूलर और फ्रीज का पानी पीना । यह प्राकृतिक सीमा से अधिक ठण्डा पानी स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। यह अज्ञान इतना बढ़ गया है कि अब रेलवे स्थानक जैसी जगहों पर भी कूलर का ठण्डा पानी मिलता है । कूलर और फ्रीज पर्यावरण के लिये तो घातक हैं ही।
२. कूलर और फ्रीज का पानी पीना । यह प्राकृतिक सीमा से अधिक ठण्डा पानी स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। यह अज्ञान इतना बढ़ गया है कि अब रेलवे स्थानक जैसी जगहों पर भी कूलर का ठण्डा पानी मिलता है । कूलर और फ्रीज पर्यावरण के लिये तो घातक हैं ही।
+
# यंत्रों से शुद्ध किया हुआ पानी पीना । यह भी स्वास्थ्य के लिये घातक है ही।  
 
+
# प्लास्टीक की बोतल का पानी पीना । बोतल सीधी मुँह को लगाकर पानी पीने की आदत असंस्कारिता की निशानी है। प्लास्टिक भी हानिकारक, उसका 'शुद्ध' पानी भी हानिकारक और मुँह लगाकर पीने की पद्धति भी हानिकारक ।  
३. यंत्रों से शुद्ध किया हुआ पानी पीना । यह भी स्वास्थ्य के लिये घातक है ही।  
+
# मिनरल वॉटर की बिमारी इतनी फैली हुई है कि लोग मटके का पानी नहीं पिते, स्थानकों पर की हुई पानी की व्यवस्था से प्राप्त पानी नहीं पीते, यात्रा में घर से पानी साथ में नहीं ले जाते । इन सब अच्छी बातों को छोडकर पन्द्रह से बीस रूपये का एक लीटर पानी खरीदने वाली प्रजा असंस्कारी और दरिद्र बन जाने की पूरी सम्भावना है। विद्यालय में सिखाने लायक यह महत्त्वपूर्ण विषय है।  
 
+
# विद्यालय के समारोहों में मंच पर जब प्लास्टीक की 'मिनरल वॉटर' की बोतलें दिखाई देती है तब वह व्यापक विचार का और संस्कारयुक्त सोच का अभाव ही दर्शाती है।  
४. प्लास्टीक की बोतल का पानी पीना । बोतल सीधी मुँह को लगाकर पानी पीने की आदत असंस्कारिता की निशानी है। प्लास्टिक भी हानिकारक, उसका 'शुद्ध' पानी भी हानिकारक और मुँह लगाकर पीने की पद्धति भी हानिकारक ।  
+
# साथ में पानी की बोतल रखना और जब मन करे तब बोतल मुँह को लगाकर पानी पीना प्रचलन में आ गया है । तर्क यह दिया जाता है कि पानी स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है और प्यास लगे तब पानी पीना ही चाहिये । परन्तु कक्षा चल रही हो या कार्यक्रम, वार्तालाप चल रहा हो या बैठक, मन चाहे तब पानी पीना असभ्यता का ही लक्षण है । साधारण रूप से कोई कक्षा कोई बैठक, कोई कार्यक्रम बिना विराम के दो घण्टे से अधिक चलता नहीं है । इतना समय बिना पानी के रहना असम्भव नहीं है। इतना संयम करना शरीरस्वास्थ्य के लिये हानिकारक नहीं है और मनोस्वास्थ्य के लिये लाभकारी है। बच्चों और बड़ों में बढती हुई इस आदत को जल्दी ही ठीक करने की आवश्यकता है।
 
+
# यही आदत बिना किसी प्रयोजन के बोतल का पानी फेंक देने की है। केवल मजे मजे में पानी गिराना पैसे बर्बाद करना ही है। इस आदत को भी ठीक करना चाहिये।  
५. मिनरल वॉटर की बिमारी इतनी फैली हुई है कि लोग मटके का पानी नहीं पिते, स्थानकों पर की हुई पानी की व्यवस्था से प्राप्त पानी नहीं पीते, यात्रा में घर से पानी साथ में नहीं ले जाते । इन सब अच्छी बातों को छोडकर पन्द्रह से बीस रूपये का एक लीटर पानी खरीदने वाली प्रजा असंस्कारी और दरिद्र बन जाने की पूरी सम्भावना है। विद्यालय में सिखाने लायक यह महत्त्वपूर्ण विषय है।  
+
# पैसा खर्च करके खरीदे हुए पानी को एक क्षण में फैंक देने का प्रचलन भी बहुत बढ़ रहा है। पानी की बर्बादी के साथ साथ यह पैसे की भी बर्बादी है। बुद्धि हीनता के साथ साथ यह असंस्कारिता की भी निशानी है।  
 
+
# बडे बडे समारोहों में पीने का पानी और हाथ धोने का पानी एक साथ रखा भी जाता है और गिराया भी जाता है। ऐसे स्थानों पर गन्दगी हो जाती है और
६. विद्यालय के समारोहों में मंच पर जब प्लास्टीक की 'मिनरल वॉटर' की बोतलें दिखाई देती है तब वह व्यापक विचार का और संस्कारयुक्त सोच का अभाव ही दर्शाती है।  
+
# पानी की बहुत बर्बादी होती है । इसे ठीक करने की क्रियात्मक शिक्षा विद्यालय में ही देने की आवश्यकता है।
 
+
# पानी के सम्बन्ध में भावात्मक शिक्षा
७. साथ में पानी की बोतल रखना और जब मन करे तब बोतल मुँह को लगाकर पानी पीना प्रचलन में आ गया है । तर्क यह दिया जाता है कि पानी स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है और प्यास लगे तब पानी पीना ही चाहिये । परन्तु कक्षा चल रही हो या कार्यक्रम, वार्तालाप चल रहा हो या बैठक, मन चाहे तब पानी पीना असभ्यता का ही लक्षण है । साधारण रूप से कोई कक्षा कोई बैठक, कोई कार्यक्रम बिना विराम के दो घण्टे से अधिक चलता नहीं है । इतना समय बिना पानी के रहना असम्भव नहीं है। इतना संयम करना शरीरस्वास्थ्य के लिये हानिकारक नहीं है और मनोस्वास्थ्य के लिये लाभकारी है। बच्चों और बड़ों में बढती हुई इस आदत को जल्दी ही ठीक करने की
+
# क्रियात्मक शिक्षा के साथ ही भावात्मक शिक्षा भी देनी चाहिये । भावात्मक शिक्षा से क्रिया के साथ श्रद्धा जुडती है और निष्ठा बनती है। कुछ इन बातों पर विचार किया जा सकता है...
 
  −
आवश्यकता है।  
  −
 
  −
८. यही आदत बिना किसी प्रयोजन के बोतल का पानी फेंक देने की है। केवल मजे मजे में पानी गिराना पैसे बर्बाद करना ही है। इस आदत को भी ठीक करना चाहिये।  
  −
 
  −
९. पैसा खर्च करके खरीदे हुए पानी को एक क्षण में फैंक देने का प्रचलन भी बहुत बढ़ रहा है। पानी की बर्बादी के साथ साथ यह पैसे की भी बर्बादी है। बुद्धि हीनता के साथ साथ यह असंस्कारिता की भी निशानी है।  
  −
 
  −
१०. बडे बडे समारोहों में पीने का पानी और हाथ धोने का पानी एक साथ रखा भी जाता है और गिराया भी जाता है। ऐसे स्थानों पर गन्दगी हो जाती है और
  −
 
  −
पानी की बहुत बर्बादी होती है । इसे ठीक करने की क्रियात्मक शिक्षा विद्यालय में ही देने की आवश्यकता है।
     −
==== पानी के सम्बन्ध में भावात्मक शिक्षा ====
+
# पानी को पवित्र मानना सिखाना चाहिये । पवित्रता केवल शुद्धता नहीं है। शुद्धता के साथ जब सात्त्विकता जुडती है तब पवित्रता बनती है ।  
क्रियात्मक शिक्षा के साथ ही भावात्मक शिक्षा भी देनी चाहिये । भावात्मक शिक्षा से क्रिया के साथ श्रद्धा जुडती है और निष्ठा बनती है। कुछ इन बातों पर विचार किया जा सकता है...
+
# पवित्र पदार्थ या स्थान के साथ आदरयुक्त व्यवहार होता है। पवित्रता की रक्षा करने के लिये हम अपवित्र शरीर और मन से उसके पास नहीं जाते हैं । उदाहरण के लिये घर में जहाँ पीने का पानी रखा जाता है वहाँ कोई जूते पहनकर या बिना स्नान किये नहीं जाता है। यह दीर्घकाल की परम्परा है। हम विद्यालय में भी ऐसी व्यवस्था कर सकते हैं ।
 
+
# जहाँ पीने का पानी रखा होता है वहाँ सायंकाल संध्या के समय दीपक जलाया जाता है। इससे पर्यावरण की शुद्धि होती है । पवित्रता की भावना भी निर्माण होती है।  
१. पानी को पवित्र मानना सिखाना चाहिये । पवित्रता केवल शुद्धता नहीं है। शुद्धता के साथ जब सात्त्विकता जुडती है तब पवित्रता बनती है ।  
+
# पानी को जलदेवता मानने का प्रचलन शुरू करना चाहिये । जलदेवता की स्तुति करनेवाले मंत्र ऋग्वेद में तो हैं परन्तु हिन्दी में और हर भारतीय भाषा में रचे जा सकते हैं । जलदेवता की स्तुति के गीत भी रचे जा सकते हैं । पानी का प्रयोग करते समय इन मन्त्रों का उच्चारण करने की प्रथा भी शुरु की जा सकती है।  
 
+
# पानी का संग्रह जहाँ किया जाता है वहाँ भी जूते पहनकर नहीं जाना, आसपास में गन्दगी नहीं करना, उस स्थान की सफाई के लिये अलग से झाडू आदि की व्यवस्था करना आदि माध्यमो से पवित्रता का भाव जगाया जा सकता है।  
२. पवित्र पदार्थ या स्थान के साथ आदरयुक्त व्यवहार होता है। पवित्रता की रक्षा करने के लिये हम अपवित्र शरीर और मन से उसके पास नहीं जाते हैं । उदाहरण के लिये घर में जहाँ पीने का पानी रखा जाता है वहाँ कोई जूते पहनकर या बिना स्नान किये नहीं जाता है। यह दीर्घकाल की परम्परा है। हम
+
# जलदेवता को सन्तुष्ट और प्रसन्न करने के लिये यज्ञों की रचना करनी चाहिये । यज्ञ में जलदेवता के लिये आहुति देनी चाहिये । जलदेवता प्रसन्न हों इस दृष्टि से जिस प्रकार नये मन्त्रों की रचना होगी उसी प्रकार यज्ञ में होम करने की सामग्री का भी भौतिक विज्ञान की दृष्टि से विचार होगा। यज्ञ तो वैज्ञानिक अनुष्ठान है ही, उसे आज की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके ऐसा स्वरूप दिया जाना चाहिये
 
+
# पानी का मुख्य स्रोत वर्षा है। संग्रहित पानी का प्राकृतिक स्रोत नदियाँ हैं। संग्रहित पानी का मानवसर्जिक स्रोत तालाब, कुएँ, बावडी आदि हैं । संग्रहित पानी के इससे भी कृत्रिम स्रोत पानी की टँकियों से लेकर घर के छोटे मटकों तक के पात्र हैं । वर्षा की और नदियों की स्तुति के अनुष्टान किये जाने चाहिये तथा मानव सर्जित पानी के संग्रहस्थानों के सम्बन्ध में विवेकपूर्ण विचार होना चाहिये । यहीं से पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा शुरू होती है ।
विद्यालय में भी ऐसी व्यवस्था कर सकते हैं ।  
  −
 
  −
३. जहाँ पीने का पानी रखा होता है वहाँ सायंकाल संध्या के समय दीपक जलाया जाता है। इससे पर्यावरण की शुद्धि होती है । पवित्रता की भावना भी निर्माण होती है।  
  −
 
  −
४. पानी को जलदेवता मानने का प्रचलन शुरू करना चाहिये । जलदेवता की स्तुति करनेवाले मंत्र ऋग्वेद में तो हैं परन्तु हिन्दी में और हर भारतीय भाषा में रचे जा सकते हैं । जलदेवता की स्तुति के गीत भी रचे जा सकते हैं । पानी का प्रयोग करते समय इन मन्त्रों का उच्चारण करने की प्रथा भी शुरु की जा सकती है।  
  −
 
  −
५. पानी का संग्रह जहाँ किया जाता है वहाँ भी जूते पहनकर नहीं जाना, आसपास में गन्दगी नहीं करना, उस स्थान की सफाई के लिये अलग से झाडू आदि की व्यवस्था करना आदि माध्यमो से पवित्रता का भाव जगाया जा सकता है।  
  −
 
  −
६. जलदेवता को सन्तुष्ट और प्रसन्न करने के लिये यज्ञों
  −
 
  −
की रचना करनी चाहिये । यज्ञ में जलदेवता के लिये आहुति देनी चाहिये । जलदेवता प्रसन्न हों इस दृष्टि से जिस प्रकार नये मन्त्रों की रचना होगी उसी प्रकार यज्ञ में होम करने की सामग्री का भी भौतिक विज्ञान की दृष्टि से विचार होगा। यज्ञ तो वैज्ञानिक अनुष्ठान है ही, उसे आज की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके ऐसा स्वरूप दिया जाना चाहिये  
  −
 
  −
७. पानी का मुख्य स्रोत वर्षा है। संग्रहित पानी का प्राकृतिक स्रोत नदियाँ हैं। संग्रहित पानी का मानवसर्जिक स्रोत तालाब, कुएँ, बावडी आदि हैं । संग्रहित पानी के इससे भी कृत्रिम स्रोत पानी की टँकियों से लेकर घर के छोटे मटकों तक के पात्र हैं । वर्षा की और नदियों की स्तुति के अनुष्टान किये जाने चाहिये तथा मानव सर्जित पानी के संग्रहस्थानों के सम्बन्ध में विवेकपूर्ण विचार होना चाहिये । यहीं से पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा शुरू होती है ।
      
==== पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा ====
 
==== पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा ====
 
क्रिया और भावना के साथ ज्ञान नहीं जुडा तो क्रिया कर्मकाण्ड बन जाती है और भावना निरुद्धेश्य । दोनों ही अपनी सार्थकता खो बैठते हैं । इसलिये ज्ञानात्मक पक्ष का भी विचार अनिवार्य रूप से करना चाहिये, ज्ञानात्मक शिक्षा के पहलु इस प्रकार सोचे जा सकते हैं...  
 
क्रिया और भावना के साथ ज्ञान नहीं जुडा तो क्रिया कर्मकाण्ड बन जाती है और भावना निरुद्धेश्य । दोनों ही अपनी सार्थकता खो बैठते हैं । इसलिये ज्ञानात्मक पक्ष का भी विचार अनिवार्य रूप से करना चाहिये, ज्ञानात्मक शिक्षा के पहलु इस प्रकार सोचे जा सकते हैं...  
 
+
# क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा के बाद ही अथवा कम से कम साथ ही ज्ञानात्मक शिक्षा होनी चाहिये । आज के सन्दर्भ में तो इस बात की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आज की शिक्षा क्रियाशून्य और भावनाशून्य हो गई है, केवल जानकारी प्राप्त कर, उसे याद कर, परीक्षा में लिखकर अंक प्राप्त करने तक सीमित हो गई है। इससे अधिक निरर्थक या अनर्थक क्या हो सकता है ? अतः क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा का क्रम प्रथम होना अनिवार्य है।  
१. क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा के बाद ही अथवा कम से कम साथ ही ज्ञानात्मक शिक्षा होनी चाहिये । आज के सन्दर्भ में तो इस बात की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आज की शिक्षा क्रियाशून्य और भावनाशून्य हो गई है, केवल जानकारी प्राप्त कर, उसे याद कर, परीक्षा में लिखकर अंक प्राप्त करने तक सीमित हो गई है। इससे अधिक निरर्थक या अनर्थक क्या हो सकता है ? अतः क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा का क्रम प्रथम होना अनिवार्य है।  
+
# पानी कहाँ से आता है, पानी के क्या क्या उपयोग हैं, पानी शुद्ध और अशुद्द कैसे होता है, पानी को शुद्ध किस प्रकार किया जाना चाहिये आदि बातों का ज्ञान प्रारम्भिक स्तर पर देना चाहिये ।  
 
+
# पानी कम पड जाने से, पानी अशुद्द हो जाने से कौन कौन से संकट निर्माण होते हैं इसका ज्ञान दिया जाना चाहिये । इन संकटों का उपाय क्या हो सकता है इसका भी ज्ञान दिया जाना चाहिये ।  
२. पानी कहाँ से आता है, पानी के क्या क्या उपयोग हैं, पानी शुद्ध और अशुद्द कैसे होता है, पानी को शुद्ध किस प्रकार किया जाना चाहिये आदि बातों का ज्ञान प्रारम्भिक स्तर पर देना चाहिये ।  
+
# पानी के वर्तमान संकट का स्वरूप क्या है इसकी विस्तारपूर्वक चर्चा की जानी चाहिये।  
 
+
# कुएँ, तालाब, बावडी वर्षाजल संग्रह की घर घर में की जानेवाली व्यवस्था नष्ट हो जाने के कितने गम्भीर परिणाम हुए हैं इसका भी विचार होना चाहिये ।  
३. पानी कम पड जाने से, पानी अशुद्द हो जाने से कौन कौन से संकट निर्माण होते हैं इसका ज्ञान दिया जाना चाहिये । इन संकटों का उपाय क्या हो सकता है इसका भी ज्ञान दिया जाना चाहिये ।  
+
# खेतों को पानी क्यों नहीं मिलता, पीने के लिये पानी क्यों नहीं मिलता, अनावृष्टि क्यों होती हैं, नदियाँ क्यों सूख जाती हैं इत्यादि बातों की गम्भीर चर्चा होना आवश्यक है।  
 
+
# पानी की निकासी के लिये जो व्यवस्था बनाई जाती है वह कितनी उचित या अनुचित है इसका विमर्श होना चाहिये।
४. पानी के वर्तमान संकट का स्वरूप क्या है इसकी विस्तारपूर्वक चर्चा की जानी चाहिये।  
+
# गंगा जैसी पवित्र नदी सहित देश की अन्य नदियों का पानी बडे बडे कारखानों के विषैले रासायनिक कचरे के कारण प्रदूषित होता है। इस कचरे से नदियों को बचाने के क्या उपाय हैं ? सरकार की ओर से अनेक कानून बनाये जाने के बाद भी नदियों को नहीं बचाया जा सकता है इसका कारण क्या है ? इस स्थिति को ठीक करने के लिये विद्यालय या विद्याक्षेत्र क्या कर सकता है इसका विचार होना चाहिये ।  
 
+
# बडे बडे बाँध बाँधने से क्या वास्तव में देश का जलसंकट दर हो सकता है इसका विचार भी करना चाहिये । यदि संकट दूर नहीं हो सकता है तो फिर हम क्यों बाँधते हैं ?  
५. कुएँ, तालाब, बावडी वर्षाजल संग्रह की घर घर में की जानेवाली व्यवस्था नष्ट हो जाने के कितने गम्भीर परिणाम हुए हैं इसका भी विचार होना चाहिये ।  
+
# कुएँ, तालाब, बावडियाँ आदि पुनः निर्माण करने के क्या तरीके हो सकते हैं इसकी भी चर्चा होनी जरूरी
 
+
# पानी का अमर्याद उपयोग करना, पानी का प्रदूषण करना, पानी बचाने की कोई व्यवस्था न करना, पानी के स्रोतों को अवरुद्ध करना आदि विनाशक गतिविधियों के पीछे कौनसी विचारधारा, कौनसी मनोवृत्ति और कौनसी प्रवृत्ति होती है इसका मूलगामी चिन्तन करना सिखाना चाहिये । पानी को लेकर हमारे छोटे से कार्य के परिणाम दूरगामी होते हैं यह समझने की आवश्यकता है।  
६. खेतों को पानी क्यों नहीं मिलता, पीने के लिये पानी क्यों नहीं मिलता, अनावृष्टि क्यों होती हैं, नदियाँ क्यों सूख जाती हैं इत्यादि बातों की गम्भीर चर्चा होना आवश्यक है।  
  −
 
  −
७. पानी की निकासी के लिये जो व्यवस्था बनाई जाती है वह कितनी उचित या अनुचित है इसका विमर्श होना चाहिये।
  −
 
  −
८. गंगा जैसी पवित्र नदी सहित देश की अन्य नदियों का पानी बडे बडे कारखानों के विषैले रासायनिक कचरे के कारण प्रदूषित होता है। इस कचरे से नदियों को बचाने के क्या उपाय हैं ? सरकार की ओर से अनेक
  −
 
  −
कानून बनाये जाने के बाद भी नदियों को नहीं बचाया जा सकता है इसका कारण क्या है ? इस स्थिति को ठीक करने के लिये विद्यालय या विद्याक्षेत्र क्या कर सकता है इसका विचार होना चाहिये । बडे बडे बाँध बाँधने से क्या वास्तव में देश का जलसंकट दर हो सकता है इसका विचार भी करना चाहिये । यदि संकट दूर नहीं हो सकता है तो फिर
  −
 
  −
हम क्यों बाँधते हैं ? १०. कुएँ, तालाब, बावडियाँ आदि पुनः निर्माण करने के
  −
 
  −
क्या तरीके हो सकते हैं इसकी भी चर्चा होनी जरूरी
  −
 
  −
११. पानी का अमर्याद उपयोग करना, पानी का प्रदूषण करना, पानी बचाने की कोई व्यवस्था न करना, पानी के स्रोतों को अवरुद्ध करना आदि विनाशक गतिविधियों के पीछे कौनसी विचारधारा, कौनसी मनोवृत्ति और कौनसी प्रवृत्ति होती है इसका मूलगामी चिन्तन करना सिखाना चाहिये । पानी को लेकर हमारे छोटे से कार्य के परिणाम दूरगामी होते हैं यह समझने की आवश्यकता है।  
  −
 
   
ये सारी बातें शिक्षा का सार्थक अंग बनेंगी तभी विश्व कानून बनाये जाने के बाद भी नदियों को नहीं बचाया जा सकता है इसका कारण क्या है ? इस स्थिति को ठीक करने के लिये विद्यालय या विद्याक्षेत्र क्या कर सकता है इसका विचार होना चाहिये ।
 
ये सारी बातें शिक्षा का सार्थक अंग बनेंगी तभी विश्व कानून बनाये जाने के बाद भी नदियों को नहीं बचाया जा सकता है इसका कारण क्या है ? इस स्थिति को ठीक करने के लिये विद्यालय या विद्याक्षेत्र क्या कर सकता है इसका विचार होना चाहिये ।
1,815

edits

Navigation menu