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आचार्य को विद्यार्थीप्रिय होना चाहिये लेकिन लाड़ करने के लिए प्रिय नहीं । आचार्य उसका चखित्रि निर्माण, उसके कल्याण की चिंता करने वाला होना चाहिये । छात्र को अनुशासन में रखना, सयम सिखाना भी आवश्यक है ।
आचार्य को विद्यार्थीप्रिय होना चाहिये लेकिन लाड़ करने के लिए प्रिय नहीं । आचार्य उसका चखित्रि निर्माण, उसके कल्याण की चिंता करने वाला होना चाहिये । छात्र को अनुशासन में रखना, सयम सिखाना भी आवश्यक है ।
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आचार्य कभी विद्या का सौदा नहीं करता । पद, पैसा,
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आचार्य कभी विद्या का सौदा नहीं करता । पद, पैसा, मान, प्रतिष्ठा के लिए कभी कुपात्र को विद्यादान नहीं करता ।
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मान, प्रतिष्ठा के लिए कभी कुपात्र को विद्यादान नहीं करता ।
योग्य विद्यार्थी को ही आगे बढ़ाता है ।
योग्य विद्यार्थी को ही आगे बढ़ाता है ।