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पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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कर सकता इस स्थिति में भी धैर्य नहीं खोना, निराश नहीं होना, सन्तुलन नहीं खोना आवश्यक है ।
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कर सकता इस स्थिति में भी धैर्य नहीं खोना, निराश
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ये सब प्रयासपूर्वक सिखाने की बातें हैं क्योंकि ये सब बहुत मूल्यवान बातें हैं ।
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नहीं होना, सन्तुलन नहीं खोना आवश्यक है ।
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६. विभिन्न प्रकार की तपश्चर्या मन की शक्ति को बढाने के लिये बहुत उपयोगी है । तप के बिना सिद्धि नहीं मिलती । इस जगत का कल्याण भी तप करते हैं वे ही कर सकते हैं । तप का अर्थ है कष्ट सहना । परन्तु मजबूरी में कष्ट सहने को तप नहीं कहते । स्वेच्छा से जो कष्ट सहा जाता है वही तप है । अपने ही स्वार्थ के लिये जो कष्ट सहा जाता है वह तप नहीं है, दूसरों के लिये जो कष्ट उठाया जाता है वह तप है । रोते रोते, शिकायत करते करते जो कष्ट उठाया जाता है वह तप नहीं है, अच्छे मन से जो कष्ट उठाया जाता है वह तप है । आयु, अवस्था, परिस्थिति और आवश्यकता के अनुसार तप अनेक प्रकार के होते हैं । ऐसे विभिन्न प्रकार के तप करना सिखाना भी विद्यालयों में होना चाहिये । तप से ही मन की अशुद्धियाँ दूर होती हैं और शक्तियाँ निखरती हैं ।
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ये सब प्रयासपूर्वक सिखाने की बातें हैं क्योंकि ये
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७. सत्संग और स्वाध्याय मन को प्रेरणा और प्रोत्साहन देते हैं और बल तथा धैर्य बढाते हैं । सत्संग का अर्थ है अच्छे लोगों का संग । जहाँ अच्छे लोग हैं, वे अच्छा काम कर रहे हैं वहाँ जाना और उनसे बात करना उन्हें जानना एक प्रकार है, ऐसे लोगों को विद्यालय में आमन्त्रित करना और उनकी सेवा करना दूसरा प्रकार है । विद्यार्थियों के लिये उनके शिक्षकों का संग भी सत्संग ही बनना चाहिये । स्वाध्याय का अर्थ है अच्छी पुस्तकें पढ़ना । हम विभिन्न विषयों की जानकारी देने वाली पुस्तकें तो पढ़ते हैं परन्तु मन को अच्छी सीख मिले ऐसी पुस्तकों का वाचन भी करना चाहिये ।
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सब बहुत मूल्यवान बातें हैं ।
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मन की शिक्षा को परीक्षा से मुक्त रखना चाहिये । परीक्षा आते ही सबकुछ कृत्रिम हो जाता है, कर्मकाण्ड हो जाता है । कर्मकाण्ड हुआ तो मन अच्छा नहीं होता, चालाक बन जाता है । यह तो अनर्थ है ।
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विभिन्न प्रकार की तपश्चर्या मन की शक्ति को बढाने के
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मन की शिक्षा जबतक नहीं होती तब तक बुद्धि भी अनर्थकारी होती है । अनेक बुद्धिमान लोग अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिये और दूसरों को परेशान करने के लिये बुद्धि का प्रयोग करते हैं । मन अच्छा नहीं है और बुद्धि मन की दासी बन गई है इसीलिये ऐसा होता है । अतः बुद्धि की शिक्षा से भी पहले मन की शिक्षा आवश्यक है ।
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लिये बहुत उपयोगी है । तप के बिना सिद्धि नहीं
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मन ही मनुष्य को सज्जन या दुर्जन बनाता है । दुर्जन मनुष्य अपनी और औरों की हानि करता है । सज्जन अपना और औरों का भला करता है । मन को सज्जन बनाना शेष सभी कार्य से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है इस बात को हमेशा स्मरण में रखना चाहिये ।
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मिलती । इस जगत का कल्याण भी तप करते हैं वे ही
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=== अध्ययन की समस्या ===
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कर सकते हैं । तप का अर्थ है कष्ट सहना । परन्तु
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==== आज की शिक्षा समझ नहीं बढाती ====
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विद्यार्थी का स्कूल बडा है, अनेक प्रकार की सुविधाओं से युक्त है, विद्यालय की फीस ऊँची है, स्कूल बस वातानुकूलित है, गणवेश बहुत सुन्दर है, साधनसामग्री उत्तम है, घर सम्पन्न है । परन्तु उसे गणित, भाषा, विज्ञान आदि कुछ भी नहीं आता है । विद्यार्थी परीक्षा पास कर लेता है परन्तु उसके पास जिसमें प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ है उस विषय का ज्ञान नहीं है । वह समझता नहीं है, स्मरण में नहीं रख सकता है, लागू करने की तो बात ही नहीं है । जो पढ़ता है वह उसे अच्छा नहीं लगता । जो पढ़ रहा है उसका कोई प्रयोजन होता है इसकी तो कोई कल्पना भी नहीं है । कुछ नमूने देखें...
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मजबूरी में कष्ट सहने को तप नहीं कहते । स्वेच्छा से
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०... प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक बनने हेतु आये सभी प्रत्याशियों को पूछा गया कि चौथी कक्षा के गणित के सवाल यदि आपको दिये गये तो कौन कौन हैं जिन्हें सौ प्रतिशत अंक मिलने का विश्वास है । एक ने भी ऐसा विश्वास नहीं बताया ।
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जो कष्ट सहा जाता है वही तप है । अपने ही स्वार्थ
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०... माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक बनने के प्रत्याशियों को दक्षिण भारत के चार राज्यों के नाम तो ऐसे ही हैं । बताने को कहा गया तब राजस्थान, आसाम आदि इसका अर्थ यह है कि शिक्षाक्षेत्र में सामान्य अर्थ में कहने वाले अनेक लोग निकले । भी कोई शिक्षित नहीं है, सामान्य अर्थ में भी यहाँ शिक्षा नहीं
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के लिये जो कष्ट सहा जाता है वह तप नहीं है, दूसरों
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०... चौबीस गुणा पाँच, पचीस गुणा सात आदि पूछने पर. चलती | कैल्क्युलैटर का प्रयोग करने वाले भी कम नहीं है ।
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के लिये जो कष्ट उठाया जाता है वह तप है । रोते रोते,
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०". शिक्षकों के एक वर्ग में प्रयोग किया गया। कोई एक पुस्तक खडे होकर पढ़ना । जहाँ गलती हो वहाँ बैठ जाना । तीस शिक्षकों के वर्ग में अधिकतम ढाई पंक्तियाँ पढ़ी गईं । कहीं नहीं लिखा है ऐसा पढ़ना, कहीं लिखा है वह नहीं पढना और कहीं लिखा है उससे अलग पढना ऐसी तीन प्रकार की गलतियाँ पायी गईं ।
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शिकायत करते करते जो कष्ट उठाया जाता है वह तप
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०... वर्ण्माला के, वाक्य के उच्चारण की अशुद्धियों का तो कोई हिसाब ही नहीं। वर्तनी शुद्ध होने की अपेक्षा ही नहीं की जा सकती। श्रुतलेखन तो क्या अनुलेखन भी नहीं आता है।
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नहीं है, अच्छे मन से जो कष्ट उठाया जाता है वह तप
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०... वैज्ञानिक और भौगोलिक तथ्यों की कोई जानकारी नहीं है । इतिहास और समाजशाख्र से कोई लेनादेना नहीं है।
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है । आयु, अवस्था, परिस्थिति और आवश्यकता के
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© हमें क्या खाना चाहिये, कया नहीं खाना चाहिये, क्यों खाना या नहीं खाना चाहिये इसकी कोई सुध नहीं है ।
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अनुसार तप अनेक प्रकार के होते हैं । ऐसे विभिन्न
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०... ये सब उत्तीर्ण होने वाले, अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने.वाले विद्यार्थियों के नमूने हैं, अनुस्नातक पदवी प्राप्त.करने वाले, कभी तो पीएचडी प्राप्त करने वाले. विद्यार्थियों के उदाहरण हैं, शिक्षकों के उदाहरण हैं, अच्छे विद्यालयों में पढने वाले विद्यार्थियों के उदाहरण हैं । सरकारी विद्यालयों में पढने वाले विद्यार्थियों को तो आठवीं तक पढ़ने के बाद भी अक्षरज्ञान या अंकज्ञान नहीं होता है।
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प्रकार के तप करना सिखाना भी विद्यालयों में होना
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०... जानकारी तो शिक्षा का प्रथम चरण है । समझना, उसका मर्म और प्रयोजन जानना, उसे लागू करना आगे के चरण हैं । प्रथम चरण ही ठीक नहीं है तो आगे के और चरणों की तो बात ही नहीं की जा सकती । कोई दो पाँच प्रतिशत ऐसे होंगे जो तेजस्वी छात्र हैं, अधिकांश तो ऐसे ही है।
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चाहिये । तप से ही मन की अशुद्धियाँ दूर होती हैं और
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इसका अर्थ यह है की शिक्षाक्षेत्र में सामान्य अर्थ में भी कोई शिक्षित नहीं है, सामान्य अर्थ में भी यहाँ शिक्षा नहीं चलती।
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शक्तियाँ निखरती हैं ।
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==== इसका क्या अर्थ है ? ====
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क्या हमारे छात्र इतने निर्बुद्ध हैं कि उन्हें कुछ भी आता जाता नहीं ? क्या उनमें शिक्षा ग्रहण करने की जरा भी क्षमता नहीं है ?
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सत्संग और स्वाध्याय मन को प्रेरणा और प्रोत्साहन
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क्या हमारे विद्यार्थियों के मातापिता इतने अनाडी हैं कि उन्हें अपनी सन्तानों को वास्तव में कुछ आता नहीं है इसका पता ही नहीं चलता ? या उसकी कोई परवाह ही नहीं है ?
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देते हैं और बल तथा धैर्य बढाते हैं । सत्संग का अर्थ
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क्या हमारे शिक्षक ऐसे हैं जो पढाना जानते नहीं हैं या चाहते नहीं हैं ?
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है अच्छे लोगों का संग । जहाँ अच्छे लोग हैं, वे
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क्या हमारी व्यवस्थायें ऐसी है जिसमें बिना पढ़े विद्यार्थी उत्तीर्ण हो?
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अच्छा काम कर रहे हैं वहाँ जाना और उनसे बात
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करना उन्हें जानना एक प्रकार है,
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ऐसे लोगों को विद्यालय में आमन्त्रित करना और
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उनकी सेवा करना दूसरा प्रकार है । विद्यार्थियों के
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लिये उनके शिक्षकों का संग भी सत्संग ही बनना
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चाहिये । स्वाध्याय का अर्थ है अच्छी पुस्तकें
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पढ़ना । हम विभिन्न विषयों की जानकारी देने वाली
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पुस्तकें तो पढ़ते हैं परन्तु मन को अच्छी सीख मिले
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ऐसी पुस्तकों का वाचन भी करना चाहिये ।
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मन की शिक्षा को परीक्षा से मुक्त रखना चाहिये ।
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परीक्षा आते ही सबकुछ कृत्रिम हो जाता है, कर्मकाण्ड हो
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जाता है । कर्मकाण्ड हुआ तो मन अच्छा नहीं होता,
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चालाक बन जाता है । यह तो अनर्थ है ।
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मन की शिक्षा जबतक नहीं होती तब तक बुद्धि भी
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अनर्थकारी होती है । अनेक बुद्धिमान लोग अपने स्वार्थ की
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सिद्धि के लिये और दूसरों को परेशान करने के लिये बुद्धि
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का प्रयोग करते हैं । मन अच्छा नहीं है और बुद्धि मन की
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दासी बन गई है इसीलिये ऐसा होता है । अतः बुद्धि की
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शिक्षा से भी पहले मन की शिक्षा आवश्यक है ।
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मन ही मनुष्य को सज्जन या दुर्जन बनाता है । दुर्जन
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मनुष्य अपनी और औरों की हानि करता है । सज्जन अपना
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और औरों का भला करता है ।
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मन को सज्जन बनाना शेष सभी कार्य से भी अधिक
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महत्त्वपूर्ण है इस बात को हमेशा स्मरण में रखना चाहिये ।
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अध्ययन की समस्या
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आज की शिक्षा समझ नहीं बढाती
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विद्यार्थी का स्कूल बडा है, अनेक प्रकार की
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सुविधाओं से युक्त है, विद्यालय की फीस ऊँची है, स्कूल बस
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वातानुकूलित है, WHA बहुत सुन्दर है, साधनसामग्री उत्तम
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है, घर सम्पन्न है । परन्तु उसे गणित, भाषा, विज्ञान आदि
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कुछ भी नहीं आता है । विद्यार्थी परीक्षा पास कर लेता है
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परन्तु उसके पास जिसमें प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ है उस
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विषय का ज्ञान नहीं है । वह समझता नहीं है, स्मरण में नहीं
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रख सकता है, लागू करने की तो बात ही नहीं है । जो पढ़ता
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है वह उसे अच्छा नहीं लगता । जो पढ़ रहा है उसका कोई
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प्रयोजन होता है इसकी तो कोई कल्पना भी नहीं है । कुछ
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नमूने देखें...
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०... प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक बनने हेतु आये सभी
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प्रत्याशियों को पूछा गया कि चौथी कक्षा के गणित के
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सवाल यदि आपको दिये गये तो कौन कौन हैं जिन्हें
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सौ प्रतिशत अंक मिलने का विश्वास है । एक ने भी
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ऐसा विश्वास नहीं बताया ।
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०... माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक बनने के प्रत्याशियों को
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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दक्षिण भारत के चार राज्यों के नाम तो ऐसे ही हैं ।
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बताने को कहा गया तब राजस्थान, आसाम आदि इसका अर्थ यह है कि शिक्षाक्षेत्र में सामान्य अर्थ में
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कहने वाले अनेक लोग निकले । भी कोई शिक्षित नहीं है, सामान्य अर्थ में भी यहाँ शिक्षा नहीं
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०... चौबीस गुणा पाँच, पचीस गुणा सात आदि पूछने पर. चलती |
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कैल्क्युलैटर का प्रयोग करने वाले भी कम नहीं है ।
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०". शिक्षकों के एक वर्ग में प्रयोग किया गया। कोई एक
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पुस्तक खडे होकर पढ़ना । जहाँ गलती हो वहाँ बैठ
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जाना । तीस शिक्षकों के वर्ग में अधिकतम ढाई
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पंक्तियाँ पढ़ी गईं । कहीं नहीं लिखा है ऐसा पढ़ना,
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कहीं लिखा है वह नहीं पढना और कहीं लिखा है
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उससे अलग पढना ऐसी तीन प्रकार की गलतियाँ पायी
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गईं ।
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०... वर्ण्माला के, वाक्य के उच्चारण की अशुद्धियों का तो
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इसका क्या अर्थ है ?
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क्या हमारे छात्र इतने निर्बुद्ध हैं कि उन्हें कुछ भी आता
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जाता नहीं ? क्या उनमें शिक्षा ग्रहण करने की जरा भी क्षमता
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नहीं है ?
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क्या हमारे विद्यार्थियों के मातापिता इतने अनाडी हैं कि
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उन्हें अपनी सन्तानों को वास्तव में कुछ आता नहीं है इसका
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पता ही नहीं चलता ? या उसकी कोई परवाह ही नहीं है ?
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क्या हमारे शिक्षक ऐसे हैं जो पढाना जानते नहीं हैं या
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a चाहते नहीं हैं ?
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जाई दिजाब है नहीं है करनी eee क्या हमारी व्यवस्थायें ऐसी हैं जिसमें बिना पढ़े
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अनुलेखन भी नहीं आता है । शब्दों के अर्थ नहीं आते विद्यार्थी उत्तीर्ण हो ?
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हैं। गड़बड़ क्या है ?
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०... वैज्ञानिक और भौगोलिक तथ्यों की कोई जानकारी अनेक लोगों की चर्चा सुनते हैं तो ध्यान में आता है
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नहीं है । इतिहास और समाजशाख्र से कोई लेनादेना कि कुछ इन बातों का प्रचलन है
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नहीं है । सरकारी तन्त्र में पढाने की, निरीक्षण करने की, परीक्षा
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© हमें क्या खाना चाहिये, कया नहीं खाना चाहिये, क्यों की, प्रशिक्षण की पूरी व्यवस्था होती है, पुस्तकें, गणवेश
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खाना या नहीं खाना चाहिये इसकी कोई सुध नहीं है । . आदि भी दिये जाते हैं, मध्याहन भोजन योजना भी चलती है
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०... ये सब उत्तीर्ण होने वाले, अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने. परन्तु त्त्र इतना व्यक्तिविहिन है कि पढने पढाने का काम ही
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वाले विद्यार्थियों के नमूने हैं, अनुस्नातक पदवी प्राप्त. नहीं चलता है। तर्क यह दिया जाता है कि सरकारी
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करने वाले, कभी तो पीएचडी प्राप्त करने वाले... विद्यालयों में झुग्गी झोंपडियों के बच्चे ही आते हैं इसलिये
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विद्यार्थियों के उदाहरण हैं, शिक्षकों के उदाहरण हैं, . वहाँ पढाई अच्छी नहीं होती । परन्तु यह तर्क सही नहीं है ।
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अच्छे विद्यालयों में पढने वाले विद्यार्थियों के उदाहरण. झुग्गयों में रहनेवाले बच्चें निर्बुद्ध ही होंगे ऐसा कोई नियम
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हैं । सरकारी विद्यालयों में पढने वाले विद्यार्थियों को नहीं है। वे भी पढ सकते हैं, अच्छा पढ़ सकते हैं परन्तु
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तो आठवीं तक पढ़ने के बाद भी अआक्षरज्ञान या... पढ़ाने की कोई परवाह नहीं करता । सरकारी प्राथमिक
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अंकज्ञान नहीं होता है । विद्यालयों के नहीं पढाने के कारनामे इतने अधिक प्रसिद्ध हैं
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०... जानकारी तो शिक्षा का प्रथम चरण है । समझना, कि उनका वर्णन करने की आवश्यकता ही नहीं ।
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उसका मर्म और प्रयोजन जानना, उसे लागू करना आगे बिना पढ़े पढ़ाये पास कर देना सरकारी मजबूरी है ।
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के चरण हैं । प्रथम चरण ही ठीक नहीं है तो आगे के . निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का कानून, सर्व शिक्षा
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चरणों की तो बात ही नहीं की जा सकती । कोई दो... अभियान आदि योजनाओं को चलाने की मजबूरी है, न
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पाँच प्रतिशत ऐसे होंगे जो तेजस्वी छात्र हैं, अधिकांश... सम्हलने वाले तन्त्र को सम्हालने की मजबूरी है, शिक्षा को
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