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| युगानुकूल और देशानुकूल | | युगानुकूल और देशानुकूल |
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| तत्त्व एवं व्यवहार में अन्तर क्यों | | तत्त्व एवं व्यवहार में अन्तर क्यों |
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| SEM APT के आठ अंगों में पहला अंग है यम । यम | | SEM APT के आठ अंगों में पहला अंग है यम । यम |
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| पाँच हैं, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य । इनके | | पाँच हैं, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य । इनके |
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| विषय में कहा गया है कि वे सार्वभोम महाब्रत हैं । इसका अर्थ | | विषय में कहा गया है कि वे सार्वभोम महाब्रत हैं । इसका अर्थ |
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| है कि वह समय के प्रवाह में और स्थान के बदलने से परिवर्तित | | है कि वह समय के प्रवाह में और स्थान के बदलने से परिवर्तित |
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| नहीं होते, वे हमेशा किसी भी परिस्थिति में और किसी भी | | नहीं होते, वे हमेशा किसी भी परिस्थिति में और किसी भी |
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| समय में लागू हैं । इनका आचरण करना ही है । फिर भी उनका | | समय में लागू हैं । इनका आचरण करना ही है । फिर भी उनका |
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| स्वरूप परिवर्तित होते रहता है । तत्त्व की अहिंसा और व्यवहार | | स्वरूप परिवर्तित होते रहता है । तत्त्व की अहिंसा और व्यवहार |
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| की अहिंसा का स्वरूप अलग होता है । तत्त्व के रूप में वे | | की अहिंसा का स्वरूप अलग होता है । तत्त्व के रूप में वे |
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| अमूर्त है परंतु व्यवहार के रूप में वे मूर्त हैं । हम सब जानते | | अमूर्त है परंतु व्यवहार के रूप में वे मूर्त हैं । हम सब जानते |
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| हैं कि मन, कर्म, वचन से किसी को भी दुःख नहीं पहुँचाना, | | हैं कि मन, कर्म, वचन से किसी को भी दुःख नहीं पहुँचाना, |
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| किसी का भी अहित नहीं करना अहिंसा है । किसी चींटी को | | किसी का भी अहित नहीं करना अहिंसा है । किसी चींटी को |
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| भी मारना हिंसा है । किसी को कठोर वचन कहना हिंसा है । | | भी मारना हिंसा है । किसी को कठोर वचन कहना हिंसा है । |
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| परंतु न्यायालय में न्यायाधीश अपराधी को कोड़े लगाने की सजा | | परंतु न्यायालय में न्यायाधीश अपराधी को कोड़े लगाने की सजा |
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| देते ही हैं । किसी अपराधी को फाँसी की सजा भी दी जाती | | देते ही हैं । किसी अपराधी को फाँसी की सजा भी दी जाती |
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| है । इतना ही क्यों भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बार-बार युद्ध | | है । इतना ही क्यों भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बार-बार युद्ध |
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| करने का उपदेश दिया । युद्ध में हिंसा होती है । श्री कृष्ण | | करने का उपदेश दिया । युद्ध में हिंसा होती है । श्री कृष्ण |
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| योगेश्वर थे, इसका अर्थ है कि वे योगसाधना करते ही थे । योग | | योगेश्वर थे, इसका अर्थ है कि वे योगसाधना करते ही थे । योग |
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| का उपदेश भी वे देते ही हैं । फिर उन्होंने हिंसा का उपदेश | | का उपदेश भी वे देते ही हैं । फिर उन्होंने हिंसा का उपदेश |
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| क्यों दिया ? क्या यह सार्वभौम महाव्रत का उल्लंघन नहीं है, | | क्यों दिया ? क्या यह सार्वभौम महाव्रत का उल्लंघन नहीं है, |
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| ऐसा प्रश्न कोई भी पूछ सकता है । अनेक लोगों ने पूछा भी | | ऐसा प्रश्न कोई भी पूछ सकता है । अनेक लोगों ने पूछा भी |
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| है । यही तो रहस्य है । किसी को भी दुःख पहुँचाना, किसी | | है । यही तो रहस्य है । किसी को भी दुःख पहुँचाना, किसी |
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| को भी हानि पहुँचाना हिंसा ही है । फिर भी भगवान कृष्ण | | को भी हानि पहुँचाना हिंसा ही है । फिर भी भगवान कृष्ण |
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| की दिखने वाली हिंसा, हिंसा नहीं है । क्यों कि धर्म की रक्षा | | की दिखने वाली हिंसा, हिंसा नहीं है । क्यों कि धर्म की रक्षा |
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| के लिए की जाने वाली तथा दिखाई देने वाली हिंसा, हिंसा | | के लिए की जाने वाली तथा दिखाई देने वाली हिंसा, हिंसा |
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| नहीं है । धर्म की रक्षा करना विश्व का कल्याण करना ही है । | | नहीं है । धर्म की रक्षा करना विश्व का कल्याण करना ही है । |
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| विश्व का कल्याण करने के लिए एक व्यक्ति को या उस व्यक्ति | | विश्व का कल्याण करने के लिए एक व्यक्ति को या उस व्यक्ति |
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| के पक्ष में युद्ध करने वाले अनेक व्यक्तियों को मारना आवश्यक | | के पक्ष में युद्ध करने वाले अनेक व्यक्तियों को मारना आवश्यक |
| + | |
| है । यदि उन्हें नहीं मारेंगे तो व्यापक हिंसा होगी इस अर्थ में | | है । यदि उन्हें नहीं मारेंगे तो व्यापक हिंसा होगी इस अर्थ में |
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| वह कल्याण होगा । इसलिए उनको मार कर व्यापक रूप में | | वह कल्याण होगा । इसलिए उनको मार कर व्यापक रूप में |
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| विश्व की रक्षा करना अहिंसा है । अधर्म के पक्ष के लोगों को | | विश्व की रक्षा करना अहिंसा है । अधर्म के पक्ष के लोगों को |
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| मारने पर या मरवाने पर भी भगवान कृष्ण के हृदय में सबके | | मारने पर या मरवाने पर भी भगवान कृष्ण के हृदय में सबके |
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| लिए प्रेम की ही भावना थी और सब के कल्याण की ही इच्छा | | लिए प्रेम की ही भावना थी और सब के कल्याण की ही इच्छा |
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| थी । इसलिए उन्होंने करवाई हुई हिंसा, अहिंसा ही है । तत्त्व | | थी । इसलिए उन्होंने करवाई हुई हिंसा, अहिंसा ही है । तत्त्व |
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| की और व्यवहार की अहिंसा का यही अंतर है । यही बात | | की और व्यवहार की अहिंसा का यही अंतर है । यही बात |
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| सत्य के विषय में भी सही है, सत्य सार्वभौमक वैश्विक नियमों | | सत्य के विषय में भी सही है, सत्य सार्वभौमक वैश्विक नियमों |
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| की वाचिक अभिव्यक्ति है । वह भी सार्वभौम महाब्रत है परंतु | | की वाचिक अभिव्यक्ति है । वह भी सार्वभौम महाब्रत है परंतु |
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| विभिन्न परिस्थितियों में यह अभिव्यक्ति भिन्न-भिन्न होती है, | | विभिन्न परिस्थितियों में यह अभिव्यक्ति भिन्न-भिन्न होती है, |
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| यह तो हमारा सब का अनुभव है । एक महात्मा वृक्ष के नीचे | | यह तो हमारा सब का अनुभव है । एक महात्मा वृक्ष के नीचे |
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| ध्यान लगा कर बैठे थे । उस समय एक घबराई हुई महिला | | ध्यान लगा कर बैठे थे । उस समय एक घबराई हुई महिला |
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| भागती-भागती आई और उसने महात्मा से छिपने का उपाय | | भागती-भागती आई और उसने महात्मा से छिपने का उपाय |
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| पूछा । महात्मा ने उसे कुछ दूरी पर स्थित अपने आश्रम में छिप | | पूछा । महात्मा ने उसे कुछ दूरी पर स्थित अपने आश्रम में छिप |
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| जाने के लिए बताया । वह महिला वहाँ जाकर छिप गई कुछ | | जाने के लिए बताया । वह महिला वहाँ जाकर छिप गई कुछ |
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| देर पश्चात एक मनुष्य आया । उसने महात्मा को उस महिला | | देर पश्चात एक मनुष्य आया । उसने महात्मा को उस महिला |
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| के बारे में पूछा । महात्मा को पता चल गया की वह उस | | के बारे में पूछा । महात्मा को पता चल गया की वह उस |
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| महिला को परेशान करना चाहता था । महात्मा ने उस महिला | | महिला को परेशान करना चाहता था । महात्मा ने उस महिला |
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| को बचाने की दृष्टि से झूठ बोला और कहा कि वह महिला | | को बचाने की दृष्टि से झूठ बोला और कहा कि वह महिला |
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| यहाँ नहीं आई । उस मनुष्य ने महात्मा पर विश्वास कर लिया | | यहाँ नहीं आई । उस मनुष्य ने महात्मा पर विश्वास कर लिया |
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| और वह दूसरी दिशा में चला गया । यह तो सरासर झूठ है । | | और वह दूसरी दिशा में चला गया । यह तो सरासर झूठ है । |
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| महात्मा ने झूठ बोला ही है, फिर भी महिला को बचाने की | | महात्मा ने झूठ बोला ही है, फिर भी महिला को बचाने की |
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| दृष्टि से वह एकमात्र मार्ग था, इसलिए उन्होंने असत्य कहा । | | दृष्टि से वह एकमात्र मार्ग था, इसलिए उन्होंने असत्य कहा । |
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| व्यापक अर्थ में या व्यापक संदर्भ में यह असत्य नहीं कहा | | व्यापक अर्थ में या व्यापक संदर्भ में यह असत्य नहीं कहा |
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| जाएगा । यही बात सभी महाब्रतों को लागू है । जो स्वार्थी | | जाएगा । यही बात सभी महाब्रतों को लागू है । जो स्वार्थी |
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| के लिए सत्य है, जो केवल अपनी ही दृष्टि से या अनिष्ट हेतु | | के लिए सत्य है, जो केवल अपनी ही दृष्टि से या अनिष्ट हेतु |
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| पर्व १ : विषय प्रवेश | | पर्व १ : विषय प्रवेश |
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| सिद्ध करने के लिए बोला जाता है, वह दिखने में सत्य होने | | सिद्ध करने के लिए बोला जाता है, वह दिखने में सत्य होने |
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| पर भी असत्य है, दिखने में अहिंसा होने पर भी हिंसा है । | | पर भी असत्य है, दिखने में अहिंसा होने पर भी हिंसा है । |
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| अपराधी के पक्ष में लाभ हो और निरपराधी को हानि हो ऐसा | | अपराधी के पक्ष में लाभ हो और निरपराधी को हानि हो ऐसा |
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| सत्य भी असत्य ही होता है या ऐसी अहिंसा भी हिंसा ही होती | | सत्य भी असत्य ही होता है या ऐसी अहिंसा भी हिंसा ही होती |
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| है । अन्याय का पक्ष लेना असत्य है, अपराधी का पक्ष लेना | | है । अन्याय का पक्ष लेना असत्य है, अपराधी का पक्ष लेना |
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| हिंसा है, फिर हम चाहे कितने ही सत्यवादी हैं या अहिंसावादी | | हिंसा है, फिर हम चाहे कितने ही सत्यवादी हैं या अहिंसावादी |
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| हैं । अन्याय होते हुए देखकर मौन रहना भी असत्य भाषण | | हैं । अन्याय होते हुए देखकर मौन रहना भी असत्य भाषण |
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| है । शक्तिमान के आगे निष्क्रिय रहना, दुर्बल को नहीं बचाना | | है । शक्तिमान के आगे निष्क्रिय रहना, दुर्बल को नहीं बचाना |
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| और अपनी सुरक्षा कर लेना हिंसा है । इस प्रकार सभी बातों | | और अपनी सुरक्षा कर लेना हिंसा है । इस प्रकार सभी बातों |
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| के लिए तत्त्व और व्यवहार का स्वरूप अलग अलग होता | | के लिए तत्त्व और व्यवहार का स्वरूप अलग अलग होता |
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| है । तत्त्व अमूर्त है इसलिए भिन्नता दिखती नहीं है परंतु व्यवहार | | है । तत्त्व अमूर्त है इसलिए भिन्नता दिखती नहीं है परंतु व्यवहार |
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| दिखते हैं, इसलिए यह भिन्नता दिखाई देती है । कहाँ क्या | | दिखते हैं, इसलिए यह भिन्नता दिखाई देती है । कहाँ क्या |
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| करना इसके विवेक से और मनोभाव प्रेमपूर्ण होने से विभिन्न | | करना इसके विवेक से और मनोभाव प्रेमपूर्ण होने से विभिन्न |
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| परिस्थितियों में कौन सा अच्छा है, कौन सा व्यवहार सत्य | | परिस्थितियों में कौन सा अच्छा है, कौन सा व्यवहार सत्य |
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| और अहिंसा का होगा इसका निर्णय होता है । कहने का तात्पर्य | | और अहिंसा का होगा इसका निर्णय होता है । कहने का तात्पर्य |
| + | |
| यह है कि व्यवहार करते समय हमें अनेक बातों का विचार | | यह है कि व्यवहार करते समय हमें अनेक बातों का विचार |
| + | |
| करना होता है । व्यवहार का मूल्यांकन करते समय भी हमें | | करना होता है । व्यवहार का मूल्यांकन करते समय भी हमें |
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| अनेक बातों का विचार करना होता है । सत्य और असत्य | | अनेक बातों का विचार करना होता है । सत्य और असत्य |
| + | |
| का, हिंसा और अहिंसा का, इसी प्रकार अच्छे और बुरे का | | का, हिंसा और अहिंसा का, इसी प्रकार अच्छे और बुरे का |
| + | |
| विवेक करना आवश्यक होता है । इसका अर्थ यह है कि | | विवेक करना आवश्यक होता है । इसका अर्थ यह है कि |
| + | |
| शास्त्रों में और स्मृतियों में भिन्न-भिन्न बातें कही हुई होती हैं | | शास्त्रों में और स्मृतियों में भिन्न-भिन्न बातें कही हुई होती हैं |
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| परंतु वह निरपेक्ष रूप से हमारे लिए प्रमाण नहीं हो सकती, | | परंतु वह निरपेक्ष रूप से हमारे लिए प्रमाण नहीं हो सकती, |
| + | |
| हमें या तो विवेक सीखना है या फिर महाजनों के उदाहरण | | हमें या तो विवेक सीखना है या फिर महाजनों के उदाहरण |
| + | |
| देखकर अपना आचरण निश्चित करना है । | | देखकर अपना आचरण निश्चित करना है । |
| + | |
| युग क्या है | | युग क्या है |
| + | |
| आजकल हम युग के अनुकूल ऐसी संज्ञा बार-बार सुनते | | आजकल हम युग के अनुकूल ऐसी संज्ञा बार-बार सुनते |
| + | |
| हैं । लोग कहते हैं कि हमें आज के जमाने के अनुसार चलना | | हैं । लोग कहते हैं कि हमें आज के जमाने के अनुसार चलना |
| + | |
| चाहिए । प्राचीन काल का सिद्धांत आज लागू नहीं हो | | चाहिए । प्राचीन काल का सिद्धांत आज लागू नहीं हो |
| + | |
| सकता । हमें समय के अनुसार परिवर्तन करना ही चाहिए, यही | | सकता । हमें समय के अनुसार परिवर्तन करना ही चाहिए, यही |
| + | |
| व्यावहारिक है । इस बात में कितना तथ्य है ? इस कथन में | | व्यावहारिक है । इस बात में कितना तथ्य है ? इस कथन में |
| + | |
| तो सत्यता है, परंतु इसे ठीक से समझा नहीं जाता है । युग के | | तो सत्यता है, परंतु इसे ठीक से समझा नहीं जाता है । युग के |
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| अनुकूल होना, इसका अर्थ है, समय के साथ परिवर्तन करना । | | अनुकूल होना, इसका अर्थ है, समय के साथ परिवर्तन करना । |
| + | |
| यह तो बिल्कुल सत्य है । यह तो सर्वथा व्यावहारिक है । जरा | | यह तो बिल्कुल सत्य है । यह तो सर्वथा व्यावहारिक है । जरा |
| + | |
| ठीक से इसे समझें । सत्य युग में समाज व्यवस्था में धर्म | | ठीक से इसे समझें । सत्य युग में समाज व्यवस्था में धर्म |
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| स्वाभाविक रूप से प्रतिष्ठित था । इसलिए | | स्वाभाविक रूप से प्रतिष्ठित था । इसलिए |
| + | |
| वहाँ राज्य की, राजा की या दंड की आवश्यकता नहीं थी । | | वहाँ राज्य की, राजा की या दंड की आवश्यकता नहीं थी । |
| + | |
| धर्म से ही प्रजा अपने आप नियंत्रित होती थी । परंतु त्रेता युग | | धर्म से ही प्रजा अपने आप नियंत्रित होती थी । परंतु त्रेता युग |
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| में धर्म के ट्वारा नियंत्रित होना इतना संभव नहीं रहा । यह काल | | में धर्म के ट्वारा नियंत्रित होना इतना संभव नहीं रहा । यह काल |
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| का प्रभाव था । इसलिए राज्य की और राजा की व्यवस्था | | का प्रभाव था । इसलिए राज्य की और राजा की व्यवस्था |
| + | |
| निर्माण हुई । इसी प्रकार त्रेता से द्वापर में और ट्रापर से कलियुग | | निर्माण हुई । इसी प्रकार त्रेता से द्वापर में और ट्रापर से कलियुग |
| + | |
| में मनुष्य की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक क्षमता कम हुई । | | में मनुष्य की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक क्षमता कम हुई । |
| + | |
| प्रकृति में भी क्षरण हुआ । इसलिए नियंत्रण की अधिक | | प्रकृति में भी क्षरण हुआ । इसलिए नियंत्रण की अधिक |
| + | |
| आवश्यकता पड़ने लगी । इस प्रकार कलियुग की व्यवस्थाएँ | | आवश्यकता पड़ने लगी । इस प्रकार कलियुग की व्यवस्थाएँ |
| + | |
| सत्ययुग की अपेक्षा अथवा अन्य तीनों युगों की अपेक्षा भिन्न | | सत्ययुग की अपेक्षा अथवा अन्य तीनों युगों की अपेक्षा भिन्न |
| + | |
| प्रकार की होना स्वाभाविक है । जीवन के मूल तत्त्वों के | | प्रकार की होना स्वाभाविक है । जीवन के मूल तत्त्वों के |
| + | |
| सिद्धांत सत्ययुग में और कलियुग में तो एक ही रहेंगे परंतु उनके | | सिद्धांत सत्ययुग में और कलियुग में तो एक ही रहेंगे परंतु उनके |
| + | |
| आविष्कार में और उनकी व्यवस्था में उनका स्वरूप भिन्न | | आविष्कार में और उनकी व्यवस्था में उनका स्वरूप भिन्न |
| + | |
| होगा । इसे ही युगों की व्यवस्थाएँ कहते हैं । यह बात केवल | | होगा । इसे ही युगों की व्यवस्थाएँ कहते हैं । यह बात केवल |
| + | |
| कलियुग, दट्वापरयुग आदि युगों को ही लागू नहीं होती अपितु | | कलियुग, दट्वापरयुग आदि युगों को ही लागू नहीं होती अपितु |
| + | |
| दो-तीन पीढ़ियों में भी लागू होती है । ५००० वर्ष पहले जो | | दो-तीन पीढ़ियों में भी लागू होती है । ५००० वर्ष पहले जो |
| + | |
| स्थिति थी, वह आज नहीं है । तीन पीढ़ियों पहले जो स्थिति | | स्थिति थी, वह आज नहीं है । तीन पीढ़ियों पहले जो स्थिति |
| + | |
| थी वह भी आज नहीं है, इस बात को ध्यान में रखकर हमें | | थी वह भी आज नहीं है, इस बात को ध्यान में रखकर हमें |
| + | |
| अपनी अपेक्षाओं में और अपनी व्यवस्थाओं में परिवर्तन | | अपनी अपेक्षाओं में और अपनी व्यवस्थाओं में परिवर्तन |
| + | |
| करना होता है, इसे युग के अनुकूल परिवर्तन कहते हैं । इतना | | करना होता है, इसे युग के अनुकूल परिवर्तन कहते हैं । इतना |
| + | |
| ही क्यों समय के परिवर्तन के साथ हम छोटी मोटी बातों में | | ही क्यों समय के परिवर्तन के साथ हम छोटी मोटी बातों में |
| + | |
| परिवर्तन करते ही हैं । ठंड के दिनों में जो कपड़े पहनते हैं, | | परिवर्तन करते ही हैं । ठंड के दिनों में जो कपड़े पहनते हैं, |
| + | |
| वह गर्मी के दिनों में नहीं पहनते । वर्षा की तु में जो आहार | | वह गर्मी के दिनों में नहीं पहनते । वर्षा की तु में जो आहार |
| + | |
| लेते हैं, वह गर्मी की क्रतु में नहीं लेते । दो पीढ़ियों पहले | | लेते हैं, वह गर्मी की क्रतु में नहीं लेते । दो पीढ़ियों पहले |
| + | |
| मनुष्य की आकलन शक्ति और स्मरण शक्ति अधिक थी । | | मनुष्य की आकलन शक्ति और स्मरण शक्ति अधिक थी । |
| + | |
| उसकी श्रवण शक्ति और दर्शन शक्ति भी अधिक थी । इसलिए | | उसकी श्रवण शक्ति और दर्शन शक्ति भी अधिक थी । इसलिए |
| + | |
| उनकी शिक्षा योजना में अधिक उपकरणों की और अधिक | | उनकी शिक्षा योजना में अधिक उपकरणों की और अधिक |
| + | |
| परिश्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती थी । आज उस पीढ़ी की | | परिश्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती थी । आज उस पीढ़ी की |
| + | |
| अपेक्षा यह सारी शक्तियाँ और साथ साथ संयम शक्ति, एकाग्रता | | अपेक्षा यह सारी शक्तियाँ और साथ साथ संयम शक्ति, एकाग्रता |
| + | |
| की शक्ति आदि भी कम हुई हैं । मनुष्य की भावना शक्ति और | | की शक्ति आदि भी कम हुई हैं । मनुष्य की भावना शक्ति और |
| + | |
| संवेदना शक्ति भी कम हुई है । इस बात को ध्यान में रखकर | | संवेदना शक्ति भी कम हुई है । इस बात को ध्यान में रखकर |
| + | |
| ही आज शिक्षा व्यवस्था और कानून व्यवस्था करनी होगी । | | ही आज शिक्षा व्यवस्था और कानून व्यवस्था करनी होगी । |
| + | |
| इसे ही युग के अनुकूल परिवर्तन कहते हैं । | | इसे ही युग के अनुकूल परिवर्तन कहते हैं । |
| + | |
| तत्त्व के अनुकूल युग, युग के अनुकूल व्यवहार | | तत्त्व के अनुकूल युग, युग के अनुकूल व्यवहार |
| + | |
| फिर भी एक बात का स्मरण रखना आवश्यक है । | | फिर भी एक बात का स्मरण रखना आवश्यक है । |
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| + | |
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| + | |
| कुछ बातों में जमाने के अनुसार परिवर्तन | | कुछ बातों में जमाने के अनुसार परिवर्तन |
| + | |
| करना होता है और कुछ बातों में जमाने का परिवर्तन करना | | करना होता है और कुछ बातों में जमाने का परिवर्तन करना |
| + | |
| होता है। इसका विवेक करना अत्यंत आवश्यक है। | | होता है। इसका विवेक करना अत्यंत आवश्यक है। |
| + | |
| उदाहरण के लिए छात्रों के अध्ययन की क्षमताएँ कम हुई हैं, | | उदाहरण के लिए छात्रों के अध्ययन की क्षमताएँ कम हुई हैं, |
| + | |
| इस बात को स्वीकार कर अध्यापन पद्धति का निरूपण करना | | इस बात को स्वीकार कर अध्यापन पद्धति का निरूपण करना |
| + | |
| चाहिए । यह नहीं किया तो छात्रों के लिए अध्ययन असंभव | | चाहिए । यह नहीं किया तो छात्रों के लिए अध्ययन असंभव |
| + | |
| हो जाएगा । उस समय में क्या या आज के समय में क्या ज्ञान | | हो जाएगा । उस समय में क्या या आज के समय में क्या ज्ञान |
| + | |
| कभी बेचा नहीं जा सकता । अर्थ और काम धर्मानुसार होने | | कभी बेचा नहीं जा सकता । अर्थ और काम धर्मानुसार होने |
| + | |
| ही चाहिए । इस बात में समझौता नहीं हो सकता । इसलिए | | ही चाहिए । इस बात में समझौता नहीं हो सकता । इसलिए |
| + | |
| ज्ञान की सर्वोपरिता के विषय में आज के जमाने को परिवर्तित | | ज्ञान की सर्वोपरिता के विषय में आज के जमाने को परिवर्तित |
| + | |
| करना चाहिए । यह बात सभी व्यवस्थाओं को और सभी | | करना चाहिए । यह बात सभी व्यवस्थाओं को और सभी |
| + | |
| विषयों को लागू होती है । यही व्यवहार का नियम है । | | विषयों को लागू होती है । यही व्यवहार का नियम है । |
| + | |
| तत्त्वानुसारी व्यवहार की यही विशेषता है । | | तत्त्वानुसारी व्यवहार की यही विशेषता है । |
| + | |
| आज के समय में शब्दों के अर्थ बहुत बदल गए हैं | | आज के समय में शब्दों के अर्थ बहुत बदल गए हैं |
| + | |
| इसलिए उनके स्वाभाविक अर्थों को हम जल्दी से और | | इसलिए उनके स्वाभाविक अर्थों को हम जल्दी से और |
| + | |
| सरलता से समझ नहीं सकते हैं । इसलिए युग के अनुकूल | | सरलता से समझ नहीं सकते हैं । इसलिए युग के अनुकूल |
| + | |
| परिवर्तन के मामले में हम उलझ जाते हैं । युग के अनुकूल | | परिवर्तन के मामले में हम उलझ जाते हैं । युग के अनुकूल |
| + | |
| परिवर्तन केवल हमारे करने से ही नहीं होता । हमारी इच्छा | | परिवर्तन केवल हमारे करने से ही नहीं होता । हमारी इच्छा |
| + | |
| से भी नहीं होता । वह प्रकृति के नियमों के अनुसार होता | | से भी नहीं होता । वह प्रकृति के नियमों के अनुसार होता |
| + | |
| है । प्रकृति स्वभाव से नित्य परिवर्तनशील है । हमें प्रकृति के | | है । प्रकृति स्वभाव से नित्य परिवर्तनशील है । हमें प्रकृति के |
| + | |
| परिवर्तन को समझ कर उसके अनुसार हमारी व्यवस्था और | | परिवर्तन को समझ कर उसके अनुसार हमारी व्यवस्था और |
| + | |
| व्यवहार में भी परिवर्तन करना होता है । इसे ही युगानुकूल | | व्यवहार में भी परिवर्तन करना होता है । इसे ही युगानुकूल |
| + | |
| परिवर्तन कहते हैं । आज हम जिसे युगानुकूल परिवर्तन कहते | | परिवर्तन कहते हैं । आज हम जिसे युगानुकूल परिवर्तन कहते |
| + | |
| हैं उसके लिए प्रचलित शब्द है, आधुनिक काल के अनुसार | | हैं उसके लिए प्रचलित शब्द है, आधुनिक काल के अनुसार |
| + | |
| परिवर्तन । आधुनिक काल का अर्थ है आज का समय । वह | | परिवर्तन । आधुनिक काल का अर्थ है आज का समय । वह |
| + | |
| भी स्वाभाविक है परंतु हम उसे अपने आसपास के लोगों के | | भी स्वाभाविक है परंतु हम उसे अपने आसपास के लोगों के |
| + | |
| विचार और व्यवहार के साथ जोड़ते हैं । इसलिए वह कृत्रिम | | विचार और व्यवहार के साथ जोड़ते हैं । इसलिए वह कृत्रिम |
| + | |
| अर्थात् अप्राकृतिक हो जाता है । जो भी कृत्रिम है वह | | अर्थात् अप्राकृतिक हो जाता है । जो भी कृत्रिम है वह |
| + | |
| हानिकारक होता है, वह या तो अपने स्वास्थ्य के लिए या | | हानिकारक होता है, वह या तो अपने स्वास्थ्य के लिए या |
| + | |
| तो प्रकृति के पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है। | | तो प्रकृति के पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है। |
| + | |
| इसलिए लोगों की मानसिकता के अनुसार या लोगों के | | इसलिए लोगों की मानसिकता के अनुसार या लोगों के |
| + | |
| व्यवहार के अनुसार परिवर्तन करना अनुकूल परिवर्तन नहीं | | व्यवहार के अनुसार परिवर्तन करना अनुकूल परिवर्तन नहीं |
| + | |
| है । प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार किया जाने | | है । प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार किया जाने |
| + | |
| वाला परिवर्तन युगानुकूल परिवर्तन है । और तभी हमारी | | वाला परिवर्तन युगानुकूल परिवर्तन है । और तभी हमारी |
| + | |
| सारी व्यवस्थाएँ स्वाभाविक बनेंगी । | | सारी व्यवस्थाएँ स्वाभाविक बनेंगी । |
| + | |
| भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम | | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम |
| + | |
| देशानुकूल संकल्पना क्या है | | देशानुकूल संकल्पना क्या है |
| + | |
| देशानुकूल का अर्थ है, देश के अनुकूल । इसे समझना | | देशानुकूल का अर्थ है, देश के अनुकूल । इसे समझना |
| + | |
| तो सरल है । विश्व में अनेक देश हैं, अनेक प्रजाएँ हैं । इन | | तो सरल है । विश्व में अनेक देश हैं, अनेक प्रजाएँ हैं । इन |
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| सब का खानपान, वेशभूषा, दिनचर्या आदि सब अलग | | सब का खानपान, वेशभूषा, दिनचर्या आदि सब अलग |
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| अलग ही होते हैं । यह सारी तो बाहरी बातें हैं । एक दूसरे के | | अलग ही होते हैं । यह सारी तो बाहरी बातें हैं । एक दूसरे के |
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| साथ के संबंध, उनकी घटनाओं के प्रति देखने की दृष्टि, | | साथ के संबंध, उनकी घटनाओं के प्रति देखने की दृष्टि, |
| + | |
| जीवन को समझने की पद्धति, सुविधाओं की आवश्यकता | | जीवन को समझने की पद्धति, सुविधाओं की आवश्यकता |
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| आदि सभी भिन्न-भिन्न होते हैं । जब यह प्रजा एक दूसरे के | | आदि सभी भिन्न-भिन्न होते हैं । जब यह प्रजा एक दूसरे के |
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| साथ संपर्क में आती है तब वह एक दूसरे को प्रभावित करती | | साथ संपर्क में आती है तब वह एक दूसरे को प्रभावित करती |
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| है और एक दूसरे से प्रभावित होती है । इससे अनेक बातों | | है और एक दूसरे से प्रभावित होती है । इससे अनेक बातों |
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| का. आदान-प्रदान होता है। यह आदान-प्रदान भी | | का. आदान-प्रदान होता है। यह आदान-प्रदान भी |
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| स्वाभाविक है । जब तक यह स्वाभाविक है, वह उचित है | | स्वाभाविक है । जब तक यह स्वाभाविक है, वह उचित है |
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| परंतु जब वह अस्वाभाविक होता है, तब विचित्रता निर्माण | | परंतु जब वह अस्वाभाविक होता है, तब विचित्रता निर्माण |
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| करता है । उदाहरण के लिए विश्व के सभी देशों में लोग वस्त्र | | करता है । उदाहरण के लिए विश्व के सभी देशों में लोग वस्त्र |
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| पहनते हैं । अफ्रीका के जंगलों में रहने वाले लोग वृक्षों के | | पहनते हैं । अफ्रीका के जंगलों में रहने वाले लोग वृक्षों के |
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| छाल के वख््र पहनते हैं । पशुओं की हड्डियों के अलंकार | | छाल के वख््र पहनते हैं । पशुओं की हड्डियों के अलंकार |
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| बनाकर पहनते हैं । यूरोप-अमेरिका के लोग सूट-बूट का | | बनाकर पहनते हैं । यूरोप-अमेरिका के लोग सूट-बूट का |
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| वेश पहनते हैं । भारत में धोती कुर्ता, साड़ी व पगड़ी आदि | | वेश पहनते हैं । भारत में धोती कुर्ता, साड़ी व पगड़ी आदि |
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| पहनते हैं । जापान के लोग किमोनो पहनते हैं । यह सब | | पहनते हैं । जापान के लोग किमोनो पहनते हैं । यह सब |
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| अपने-अपने देश की जलवायु के अनुकूल और प्राप्त सामग्री | | अपने-अपने देश की जलवायु के अनुकूल और प्राप्त सामग्री |
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| के अनुकूल होते हैं, इसलिए वह उन-उन देशों में | | के अनुकूल होते हैं, इसलिए वह उन-उन देशों में |
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| स्वाभाविक है । यूरोप के या भारत के नगरवासी लोग वृक्षों | | स्वाभाविक है । यूरोप के या भारत के नगरवासी लोग वृक्षों |
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| के छाल के वस्त्र पहनने लगे तो अस्वाभाविक लगेगा । भारत | | के छाल के वस्त्र पहनने लगे तो अस्वाभाविक लगेगा । भारत |
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| की गृहिणियाँ किमोनो पहनने लगेंगी तो वह अस्वाभाविक | | की गृहिणियाँ किमोनो पहनने लगेंगी तो वह अस्वाभाविक |
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| लगेगा । इसी प्रकार बड़ी आयु के लोग बच्चों जैसे कपड़े | | लगेगा । इसी प्रकार बड़ी आयु के लोग बच्चों जैसे कपड़े |
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| पहनेंगे तो अस्वाभाविक लगेगा । आज हम देखते हैं कि | | पहनेंगे तो अस्वाभाविक लगेगा । आज हम देखते हैं कि |
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| भारत में लोग यूरोपीय वेशभूषा पहनते हैं । ख्ियों ने पुरुषों | | भारत में लोग यूरोपीय वेशभूषा पहनते हैं । ख्ियों ने पुरुषों |
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| जैसे कपड़े पहनना शुरु किया है । भारत के लोगों का यह | | जैसे कपड़े पहनना शुरु किया है । भारत के लोगों का यह |
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| अनुकरण स्वाभाविक नहीं है, क्योंकि वह देशानुकूल नहीं | | अनुकरण स्वाभाविक नहीं है, क्योंकि वह देशानुकूल नहीं |
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| है । इसी प्रकार भारत के लोग जब यूरोपीय जीवन दृष्टि | | है । इसी प्रकार भारत के लोग जब यूरोपीय जीवन दृष्टि |
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| अपनाते हैं तो वह भी देशानुकूल नहीं है क्योंकि वह भारत | | अपनाते हैं तो वह भी देशानुकूल नहीं है क्योंकि वह भारत |
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| की संस्कृति और परंपरा से मेल नहीं खाता । इसलिए | | की संस्कृति और परंपरा से मेल नहीं खाता । इसलिए |
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| विवेकशील लोग कहते हैं कि विश्वभर में जहाँ कहीं जो कुछ | | विवेकशील लोग कहते हैं कि विश्वभर में जहाँ कहीं जो कुछ |
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| भी अच्छा है, लाभकारी है, शुभ है उसे खुले मन से अपनाना | | भी अच्छा है, लाभकारी है, शुभ है उसे खुले मन से अपनाना |
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| चाहिए, जो इससे विपरीत है उसे नहीं अपनाना चाहिए । | | चाहिए, जो इससे विपरीत है उसे नहीं अपनाना चाहिए । |
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| ............. page-25 ............. | | ............. page-25 ............. |
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| पर्व १ : विषय प्रवेश | | पर्व १ : विषय प्रवेश |
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| देशानुकूल परिवर्तन क्या है | | देशानुकूल परिवर्तन क्या है |
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| दूसरों से कुछ भी अपनाने पर जो परिवर्तन होता है, | | दूसरों से कुछ भी अपनाने पर जो परिवर्तन होता है, |
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| वह देशानुकूल होना चाहिए । उदाहरण के लिए हम | | वह देशानुकूल होना चाहिए । उदाहरण के लिए हम |
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| अमेरिकन या ऑस्ट्रेलियन प्रजा से कानून का पालन करने का | | अमेरिकन या ऑस्ट्रेलियन प्रजा से कानून का पालन करने का |
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| नागरिक धर्म अपना सकते हैं परंतु समाज व्यवस्था को करार | | नागरिक धर्म अपना सकते हैं परंतु समाज व्यवस्था को करार |
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| मानना स्वीकार नहीं कर सकते । आज के समय में हम देखते | | मानना स्वीकार नहीं कर सकते । आज के समय में हम देखते |
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| हैं कि हमने जो अपनाना चाहिए, वह नहीं अपनाया है और | | हैं कि हमने जो अपनाना चाहिए, वह नहीं अपनाया है और |
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| जो नहीं अपनाना चाहिए, उसे अपना लिया है और हमारे | | जो नहीं अपनाना चाहिए, उसे अपना लिया है और हमारे |
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| स्वयं के लिए बहुत बड़े संकट मोल ले लिए हैं । | | स्वयं के लिए बहुत बड़े संकट मोल ले लिए हैं । |
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| हम ऐसा करते हैं इसका कारण हमारा हीनताबोध है । | | हम ऐसा करते हैं इसका कारण हमारा हीनताबोध है । |
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| ब्रिटिशों के आक्रमण का प्रभाव हमारे मानस पर कुछ ऐसा हुआ | | ब्रिटिशों के आक्रमण का प्रभाव हमारे मानस पर कुछ ऐसा हुआ |
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| है कि हमें यूरोप अमेरिका का सब कुछ अच्छा और श्रेष्ठ लगने | | है कि हमें यूरोप अमेरिका का सब कुछ अच्छा और श्रेष्ठ लगने |
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| लगा है । जब कोई भी व्यक्ति हीनताबोध से ग्रस्त हो जाता है | | लगा है । जब कोई भी व्यक्ति हीनताबोध से ग्रस्त हो जाता है |
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| तब उसका विवेक नष्ट हो जाता है । हमारी संपूर्ण प्रजा की | | तब उसका विवेक नष्ट हो जाता है । हमारी संपूर्ण प्रजा की |
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| आज यही स्थिति हो गई है । अन्यथा हम | | आज यही स्थिति हो गई है । अन्यथा हम |
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| तो ऋग्वेद काल से कहते ही आए हैं कि विश्वभर में जहाँ कहीं | | तो ऋग्वेद काल से कहते ही आए हैं कि विश्वभर में जहाँ कहीं |
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| भी कुछ भी कल्याणकारी हो, हम उसे अपनाएँगे । इस | | भी कुछ भी कल्याणकारी हो, हम उसे अपनाएँगे । इस |
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| हीनताबोध को समाप्त करने का उपाय शिक्षा और धर्म में है । | | हीनताबोध को समाप्त करने का उपाय शिक्षा और धर्म में है । |
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| धर्माचार्य ने प्रजा को धर्मनिष्ठ बनाने के और शिक्षाविदों ने प्रजा | | धर्माचार्य ने प्रजा को धर्मनिष्ठ बनाने के और शिक्षाविदों ने प्रजा |
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| को ज्ञाननिष्ठ बनाने के प्रयास करने चाहिए । धर्म और ज्ञान | | को ज्ञाननिष्ठ बनाने के प्रयास करने चाहिए । धर्म और ज्ञान |
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| ही आत्मबोध और स्वाभिमान निर्माण करते हैं । इन दोनों से | | ही आत्मबोध और स्वाभिमान निर्माण करते हैं । इन दोनों से |
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| ही विवेक जाग्रत होता है । जब तत्त्व का विवेक आता है, | | ही विवेक जाग्रत होता है । जब तत्त्व का विवेक आता है, |
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| तब व्यवहार में भी विवेक आता है । उसके बाद हम दूसरों से | | तब व्यवहार में भी विवेक आता है । उसके बाद हम दूसरों से |
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| अनेक बातें ग्रहण करते हैं और अपनी जीवन पद्धति के अनुसार | | अनेक बातें ग्रहण करते हैं और अपनी जीवन पद्धति के अनुसार |
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| उनको ढालकर लाभान्वित होते हैं । यही देशानुकूल परिवर्तन | | उनको ढालकर लाभान्वित होते हैं । यही देशानुकूल परिवर्तन |
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| है । किसी भी विषय की चर्चा करते समय हम देश-काल- | | है । किसी भी विषय की चर्चा करते समय हम देश-काल- |
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| परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करें, ऐसा ही कहते हैं । यह | | परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करें, ऐसा ही कहते हैं । यह |
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| सर्व स्वीकृत प्रचलन है । | | सर्व स्वीकृत प्रचलन है । |