यह संघर्ष मनुष्य के मन में भी है और मनुष्य का जहाँ जहाँ संचार है वहाँ बाहर के जगत में भी है। इस संघर्ष का कारण मनुष्य ही है । बाहरी संघर्ष का स्रोत भी उसका आन्तरिक संघर्ष है । मनुष्य सत्य और धर्म को नहीं जानता है ऐसा भी नहीं है । सत्य और धर्म का भान ही ज्ञान है । परन्तु इन बातों पर अज्ञान का आवरण छाया हुआ होने के कारण वह असत्य और अधर्म का आचरण करता है। कभी कभी तो वह असत्य और अधर्म को जानता भी है तथापि मन की दुर्बलता के कारण अनुचित व्यवहार करता है । सत्य और धर्म का आचरण उसके लिये सहज नहीं होता है । | यह संघर्ष मनुष्य के मन में भी है और मनुष्य का जहाँ जहाँ संचार है वहाँ बाहर के जगत में भी है। इस संघर्ष का कारण मनुष्य ही है । बाहरी संघर्ष का स्रोत भी उसका आन्तरिक संघर्ष है । मनुष्य सत्य और धर्म को नहीं जानता है ऐसा भी नहीं है । सत्य और धर्म का भान ही ज्ञान है । परन्तु इन बातों पर अज्ञान का आवरण छाया हुआ होने के कारण वह असत्य और अधर्म का आचरण करता है। कभी कभी तो वह असत्य और अधर्म को जानता भी है तथापि मन की दुर्बलता के कारण अनुचित व्यवहार करता है । सत्य और धर्म का आचरण उसके लिये सहज नहीं होता है । |