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| # मनोरंजन का क्षेत्र भीषण संकट निर्माण करने वाला बन गया है। फिल्म, धारावाहिक, नाच गाने के कार्यक्रम और विज्ञापन एक साथ मन के निम्नतर भावों को भड़काने वाले और वासनाओं को बढ़ाने वाले ही होते हैं। संयम को आवश्यक माना ही नहीं जाता है इसलिये उसकी शिक्षा भी किसी माध्यम से होती नहीं है। इस क्षेत्र पर आज साधु संतों, संन्यासियों, धर्माचार्यों, शिक्षकों या किसी भी समझदार लोगों का नियंत्रण या निर्देशन नहीं है। यह क्षेत्र केवल बाजार से निर्देशित होता है और कामोपभोग के लिये लोगों को भड़काकर पैसे बनाने का ही विचार करता है। इसका उपाय करने की आवश्यकता है। | | # मनोरंजन का क्षेत्र भीषण संकट निर्माण करने वाला बन गया है। फिल्म, धारावाहिक, नाच गाने के कार्यक्रम और विज्ञापन एक साथ मन के निम्नतर भावों को भड़काने वाले और वासनाओं को बढ़ाने वाले ही होते हैं। संयम को आवश्यक माना ही नहीं जाता है इसलिये उसकी शिक्षा भी किसी माध्यम से होती नहीं है। इस क्षेत्र पर आज साधु संतों, संन्यासियों, धर्माचार्यों, शिक्षकों या किसी भी समझदार लोगों का नियंत्रण या निर्देशन नहीं है। यह क्षेत्र केवल बाजार से निर्देशित होता है और कामोपभोग के लिये लोगों को भड़काकर पैसे बनाने का ही विचार करता है। इसका उपाय करने की आवश्यकता है। |
| # कामजीवन के स्वास्थ्य हेतु केवल त्याग औरसंयम ही नहीं है। आनंद प्रमोद के सारे क्रियाकलाप हैं। शिशुअवस्था से शुरू कर बड़ी आयु तक रसिकता, सौन्दर्यबोध, उच्च और संस्कारपूर्ण रुचि और आभिजात्य का विकास करना चाहिये। आज देखा जाता है कि नृत्य, गीत, खेल आदि का रस केवल अक्रिय श्रोता या दर्शक बनकर लिया जाता है। लोग गायन सुनते हैं, गाते नहीं हैं। नाटक या खेल देखते हैं, स्वयं खेलते नहीं हैं। नृत्य देखते हैं, करते नहीं। स्वादिष्ट आहार खाते हैं, बनाते नहीं हैं। ये जब भी वे गाते या नाचते हैं तब वह अत्यन्त कुरूप और भोंडा होता है। मनोरंजन के इन क्रियाकलापों में सक्रिय होने से ही सच्ची रसिकता का विकास होता है। कल्पनाशीलता और सृजनशीलता का भी विकास होता है। मन स्वच्छ और स्वस्थ होता है और काम का उन्नयन होता है। आहार, वस्त्र, अलंकार, संगीत, नृत्य, नाटक, पर्यटन आदि में संस्कारिता होनी चाहिये। इसकी शिक्षा, सम्पूर्ण शिक्षा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह शिक्षा घर में भी देनी चाहिये और विद्यालय में भी। वास्तव में इसका मुख्य केन्द्र घर है परन्तु आज घर इस शिक्षा के लिये सक्षम नहीं होने के कारण विद्यालय को घर का भी मार्गदर्शन करने का दायित्व निभाने की आवश्यकता है । | | # कामजीवन के स्वास्थ्य हेतु केवल त्याग औरसंयम ही नहीं है। आनंद प्रमोद के सारे क्रियाकलाप हैं। शिशुअवस्था से शुरू कर बड़ी आयु तक रसिकता, सौन्दर्यबोध, उच्च और संस्कारपूर्ण रुचि और आभिजात्य का विकास करना चाहिये। आज देखा जाता है कि नृत्य, गीत, खेल आदि का रस केवल अक्रिय श्रोता या दर्शक बनकर लिया जाता है। लोग गायन सुनते हैं, गाते नहीं हैं। नाटक या खेल देखते हैं, स्वयं खेलते नहीं हैं। नृत्य देखते हैं, करते नहीं। स्वादिष्ट आहार खाते हैं, बनाते नहीं हैं। ये जब भी वे गाते या नाचते हैं तब वह अत्यन्त कुरूप और भोंडा होता है। मनोरंजन के इन क्रियाकलापों में सक्रिय होने से ही सच्ची रसिकता का विकास होता है। कल्पनाशीलता और सृजनशीलता का भी विकास होता है। मन स्वच्छ और स्वस्थ होता है और काम का उन्नयन होता है। आहार, वस्त्र, अलंकार, संगीत, नृत्य, नाटक, पर्यटन आदि में संस्कारिता होनी चाहिये। इसकी शिक्षा, सम्पूर्ण शिक्षा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह शिक्षा घर में भी देनी चाहिये और विद्यालय में भी। वास्तव में इसका मुख्य केन्द्र घर है परन्तु आज घर इस शिक्षा के लिये सक्षम नहीं होने के कारण विद्यालय को घर का भी मार्गदर्शन करने का दायित्व निभाने की आवश्यकता है । |
− | # कला और कारीगरी का रक्षण और संवर्धन करने की महती आवश्यकता है । इस दृष्टि से छात्रों को हाथ से काम करना सिखाना और हर काम को उत्तम पद्धति से कर उत्कृष्टता के स्तर तक ले जाना सिखाना चाहिये । शिक्षा केवल पढने लिखने की और लिखित परीक्षा की नहीं � | + | # कला और कारीगरी का रक्षण और संवर्धन करने की महती आवश्यकता है । इस दृष्टि से छात्रों को हाथ से काम करना सिखाना और हर काम को उत्तम पद्धति से कर उत्कृष्टता के स्तर तक ले जाना सिखाना चाहिये। शिक्षा केवल पढने लिखने की और लिखित परीक्षा की नहीं होती। वह हर स्तर पर प्रायोगिक होनी चाहिये। |
− | होती । वह हर स्तर पर प्रायोगिक होनी... चाहिये । इसके अनुकूल व्यवस्थाएँ कैसी होंगी, यह भी
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− | चाहिये । हर व्यक्ति के हाथ कुशल कारीगर होने चाहिये । शिक्षा का विषय है । महाविद्यालयीन शिक्षा का यह | + | # इसके अनुकूल व्यवस्थाएँ कैसी होंगी, यह भी चाहिये । हर व्यक्ति के हाथ कुशल कारीगर होने चाहिये । शिक्षा का विषय है । महाविद्यालयीन शिक्षा का यह हर व्यक्ति का मन सेवाभाव से युक्त होना चाहिये ।.... महत्वपूर्ण विषय बनना चाहिये । चित्तशुद्धि के लिये सेवाभाव अत्यन्त आवश्यक है। (७) यौनशिक्षा भी तरुणों की शिक्षा का महत्वपूर्ण सृजनशीलता का विकास, उत्कृष्ट निर्माणशीलता, सेवाभाव, fee है । परन्तु यह सामूहिक शिक्षा का विषय नहीं है । सृजन से प्राप्त होने वाला आनन्द काम का उन्नयन करते... वह व्यक्तिगत शिक्षा का विषय है । वह शास्त्रीय रूप में हैं । इसका असर समाजजीवन पर भी पड़ता है । समाज में... विद्यालय में और व्यावहारिक रूप में परिवार में देने की एक प्रकार की शान्ति और सुरक्षा प्रस्थापित होती है । श्रेष्ठ. अनिवार्य व्यवस्था होनी चाहिये । इसके अभाव में ही समाज में संस्कारितापूर्ण समृद्धि होती है । काम gerd लोगों का कामजीवन भटक जाता है । समाज को निर्धन या दृ्रिद्र नहीं रहने देता । काम पुरुषार्थ (८) विवाह होने तक ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य समाज को आलसी भी नहीं रहने देता । परन्तु नियमन में... बनाना चाहिये । इसे नकारने वाला समाज अत्यन्त रखा गया काम, समाज को संस्कारित समृद्धि और उद्यम... असंस्कारी होता है । ब्रह्मचर्य पालन को सहज बनाने वाले को विनय से अलंकृत करता है । आहार विहार की चिन्ता करनी चाहिये । इसे आग्रहपूर्वक (६) स्त्रीपुरुष सम्बन्ध का क्षेत्र बहुत ध्यान देने योग्य. समाज की तथा छात्रों की मानसिकता में प्रतिष्ठित करना है। आज यह विशेष चिन्ता का विषय बन गया है।.. चाहिये । सामाजिक शिष्टाचार का यह एक महत्वपूर्ण अंग बलात्कार और अनाचार की मात्रा बढ़ गई है । feat .. बनना चाहिये । सुरक्षित नहीं हैं और पुरुष लज्जाहीन हो गए हैं । खियाँ भी (९) काम पुरुषार्थ के लिये शिक्षा कैसी हो इसका लजा का त्याग कर रही हैं। वसख्त्रालंकार, प्रसाधन, यहाँ अत्यन्त संक्षिप्त विवेचन किया गया है । इसके एक अंगविन्यास, वेषभूषा, बोलचाल आदि में मर्यादा नहीं. एक बिन्दु का अधिक विवेचन स्वतन्त्र रूप से करने की दिखाई देती है । उन्मुक्तता और स्वैराचार को ही स्वतन्त्रता... आवश्यकता है । शिक्षा में सर्वथा उपेक्षित यह विषय पुन: कहा जाता है । इस स्थिति में मर्यादापूर्ण व्यवहार सिखाने. स्थान प्राप्त करे इस दृष्टि से शिक्षाविदों और कि आवश्यकता है । ख्रियों के प्रति देखने का पुरुषों का... समाजहितर्चितकों को प्रयास करने चाहिये । धर्माचार्यों को दृष्टिकोण और पुरुषों के प्रति देखने का खियों का दृष्टिकोण. इस विषय को अपने उपदेश का विषय बनाना चाहिये । स्वस्थ बनाने की आवश्यकता है । समाज को टीवी चैनलों. कला, साहित्य, खेल आदि क्षेत्रों में भी इस विषय की के माध्यम से प्रस्तुत की जाने वाली सामग्री को नियंत्रित. चर्चा होनी चाहिये । सबसे मुख्य स्थान घर है। करने की आवश्यकता है । बालक बालिकाओं, किशोर. परिवारशिक्षा को एक स्वतन्त्र विषय बनाने से और उसमें किशोरियों, युवक युवतियों के परस्पर संपर्क को स्वस्थ इसे महत्वपूर्ण स्थान देने से कुछ परिणाम मिल सकता 2 | कैसे बनाया जाय इसकी शिक्षा उस उस स्तर के विद्यालयों. उच्चशिक्षा के क्षेत्र में अध्ययन और अनुसन्धान की योजना और घरों में आग्रहपूर्वक देनी चाहिये । आज इस विषय में... बनना भी आवश्यक है । लेखकों ने इस विषय को लेकर सर्वत्र उदासीनता दिखाई देती है। उसका त्याग करना... युगानुकूल स्वरूप का. साहित्य निर्माण करने की चाहिये । उसके स्थान पर विनय, सख्त्रीदाक्षिण्य (खियों के... आवश्यकता है । काम पुरुषार्थ ठीक होने से अर्थ पुरुषार्थ प्रति सम्मानजनक व्यवहार) मर्यादा आदि की शिक्षा छात्रों. भी ठीक होता है । काम और अर्थ ठीक होने से समृद्धि को प्राप्त होनी चाहिये । पतिपत्नी के सम्बन्धों को. प्राप्त होती है। सुख और आनन्द प्राप्त होते हैं। कामुकता से मुक्त कर एकात्मता की ओर विकसित करना. इहलौकिक जीवन अच्छा बनता है । |
− | हर व्यक्ति का मन सेवाभाव से युक्त होना चाहिये ।.... महत्वपूर्ण विषय बनना चाहिये । | + | # #### |
− | चित्तशुद्धि के लिये सेवाभाव अत्यन्त आवश्यक है। (७) यौनशिक्षा भी तरुणों की शिक्षा का महत्वपूर्ण | |
− | सृजनशीलता का विकास, उत्कृष्ट निर्माणशीलता, सेवाभाव, fee है । परन्तु यह सामूहिक शिक्षा का विषय नहीं है । | |
− | सृजन से प्राप्त होने वाला आनन्द काम का उन्नयन करते... वह व्यक्तिगत शिक्षा का विषय है । वह शास्त्रीय रूप में | |
− | हैं । इसका असर समाजजीवन पर भी पड़ता है । समाज में... विद्यालय में और व्यावहारिक रूप में परिवार में देने की | |
− | एक प्रकार की शान्ति और सुरक्षा प्रस्थापित होती है । श्रेष्ठ. अनिवार्य व्यवस्था होनी चाहिये । इसके अभाव में ही | |
− | समाज में संस्कारितापूर्ण समृद्धि होती है । काम gerd लोगों का कामजीवन भटक जाता है । | |
− | समाज को निर्धन या दृ्रिद्र नहीं रहने देता । काम पुरुषार्थ (८) विवाह होने तक ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य | |
− | समाज को आलसी भी नहीं रहने देता । परन्तु नियमन में... बनाना चाहिये । इसे नकारने वाला समाज अत्यन्त | |
− | रखा गया काम, समाज को संस्कारित समृद्धि और उद्यम... असंस्कारी होता है । ब्रह्मचर्य पालन को सहज बनाने वाले | |
− | को विनय से अलंकृत करता है । आहार विहार की चिन्ता करनी चाहिये । इसे आग्रहपूर्वक | |
− | (६) स्त्रीपुरुष सम्बन्ध का क्षेत्र बहुत ध्यान देने योग्य. समाज की तथा छात्रों की मानसिकता में प्रतिष्ठित करना | |
− | है। आज यह विशेष चिन्ता का विषय बन गया है।.. चाहिये । सामाजिक शिष्टाचार का यह एक महत्वपूर्ण अंग | |
− | बलात्कार और अनाचार की मात्रा बढ़ गई है । feat .. बनना चाहिये । | |
− | सुरक्षित नहीं हैं और पुरुष लज्जाहीन हो गए हैं । खियाँ भी (९) काम पुरुषार्थ के लिये शिक्षा कैसी हो इसका | |
− | लजा का त्याग कर रही हैं। वसख्त्रालंकार, प्रसाधन, यहाँ अत्यन्त संक्षिप्त विवेचन किया गया है । इसके एक | |
− | अंगविन्यास, वेषभूषा, बोलचाल आदि में मर्यादा नहीं. एक बिन्दु का अधिक विवेचन स्वतन्त्र रूप से करने की | |
− | दिखाई देती है । उन्मुक्तता और स्वैराचार को ही स्वतन्त्रता... आवश्यकता है । शिक्षा में सर्वथा उपेक्षित यह विषय पुन: | |
− | कहा जाता है । इस स्थिति में मर्यादापूर्ण व्यवहार सिखाने. स्थान प्राप्त करे इस दृष्टि से शिक्षाविदों और | |
− | कि आवश्यकता है । ख्रियों के प्रति देखने का पुरुषों का... समाजहितर्चितकों को प्रयास करने चाहिये । धर्माचार्यों को | |
− | दृष्टिकोण और पुरुषों के प्रति देखने का खियों का दृष्टिकोण. इस विषय को अपने उपदेश का विषय बनाना चाहिये । | |
− | स्वस्थ बनाने की आवश्यकता है । समाज को टीवी चैनलों. कला, साहित्य, खेल आदि क्षेत्रों में भी इस विषय की | |
− | के माध्यम से प्रस्तुत की जाने वाली सामग्री को नियंत्रित. चर्चा होनी चाहिये । सबसे मुख्य स्थान घर है। | |
− | करने की आवश्यकता है । बालक बालिकाओं, किशोर. परिवारशिक्षा को एक स्वतन्त्र विषय बनाने से और उसमें | |
− | किशोरियों, युवक युवतियों के परस्पर संपर्क को स्वस्थ इसे महत्वपूर्ण स्थान देने से कुछ परिणाम मिल सकता 2 | | |
− | कैसे बनाया जाय इसकी शिक्षा उस उस स्तर के विद्यालयों. उच्चशिक्षा के क्षेत्र में अध्ययन और अनुसन्धान की योजना | |
− | और घरों में आग्रहपूर्वक देनी चाहिये । आज इस विषय में... बनना भी आवश्यक है । लेखकों ने इस विषय को लेकर | |
− | सर्वत्र उदासीनता दिखाई देती है। उसका त्याग करना... युगानुकूल स्वरूप का. साहित्य निर्माण करने की | |
− | चाहिये । उसके स्थान पर विनय, सख्त्रीदाक्षिण्य (खियों के... आवश्यकता है । काम पुरुषार्थ ठीक होने से अर्थ पुरुषार्थ | |
− | प्रति सम्मानजनक व्यवहार) मर्यादा आदि की शिक्षा छात्रों. भी ठीक होता है । काम और अर्थ ठीक होने से समृद्धि | |
− | को प्राप्त होनी चाहिये । पतिपत्नी के सम्बन्धों को. प्राप्त होती है। सुख और आनन्द प्राप्त होते हैं। | |
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| ==References== | | ==References== |
| <references /> | | <references /> |
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