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→‎धर्म क्या है: लेख सम्पादित किया
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== धर्म क्या है ==
 
== धर्म क्या है ==
काम पुरुषार्थ मनुष्य की प्रकृति के साथ जुड़ा हुआ
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काम पुरुषार्थ मनुष्य की प्रकृति के साथ जुड़ा हुआ है। कामपुरुषार्थ की सिद्धता हेतु अर्थपुरुषार्थ प्रस्तुत होता है। परन्तु कामपुरुषार्थ मन के विश्व की लीला होने के कारण से उसके नियमन और नियंत्रण की आवश्यकता होती है। नियमन और नियंत्रण के लिए धर्मपुरुषार्थ होता है।
है । कामपुरुषार्थ की सिद्धता हेतु अर्थपुरुषार्थ प्रस्तुत होता
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है। परन्तु कामपुरुषार्थ मन के विश्व की लीला होने के
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कारण से उसके नियमन और नियंत्रण की आवश्यकता होती
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है । नियमन और नियंत्रण के लिए धर्मपुरुषार्थ होता है ।
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धर्म क्या है ? धर्म विश्वनियम है । सृष्टि की उत्पत्ति
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धर्म क्या है? धर्म विश्वनियम है। सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही सृष्टि को धारण करने वाले विश्वनियम भी उत्पन्न हुए हैं। इस विश्वनियम की व्यवस्था के अनुसरण में मनुष्य ने भी अपनी जीवनव्यवस्था के लिए जो नियम बनाए हैं वे धर्म हैं। यह व्यवस्था समाज को बनाए रखती है, उसे नष्ट नहीं होने देती। इसी को धारण करना कहते हैं। धर्म समाज को धारण करता है। धारण करने के कारण ही उसे धर्म कहते हैं।
के साथ ही सृष्टि को धारण करने वाले विश्वनियम भी उत्पन्न
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हुए हैं । इस विश्वनियम की व्यवस्था के अनुसरण में मनुष्य
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ने भी अपनी जीवनव्यवस्था के लिए जो नियम बनाए हैं वे
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धर्म हैं । यह व्यवस्था समाज को बनाए रखती है, उसे नष्ट
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नहीं होने देती । इसीको धारण करना कहते हैं । धर्म समाज
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धर्म कर्तव्य के रूप में भी मनुष्य के जीवन के साथ
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धर्म कर्तव्य के रूप में भी मनुष्य के जीवन के साथ जुड़ा है। व्यक्ति को अपना शरीर स्वास्थ्य बनाए रखना चाहिए। पशु को शरीर स्वास्थ्य की इतनी चिन्ता नहीं होती जितनी मनुष्य को होती है। पशु प्रकृति के द्वारा नियंत्रित जीवन जीता है इसलिए उसका आहारविहार नियमित होता है और वह साधारण रूप से बीमार नहीं होता। हो भी गया तो अपनी प्राणिक वृत्ति से प्रेरित होकर उचित आहार नियंत्रण करता है और पुन: स्वस्थ हो जाता है। मनुष्य अपने मन की आसक्ति के कारण आहार विहार में अनियमित हो जाता है और बीमार होता है। धर्म उसे मन को नियंत्रण में रखना सिखाता है जिससे वह अपना स्वास्थ्य ठीक करता है। धर्मबुद्धि ही उसे समझाती है कि शरीर धर्म का पालन करने हेतु साधन है और उसे स्वस्थ रखना चाहिए। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए और बुद्धि को तेजस्वी बनाने हेतु उसने अपने मन को वश में करना चाहिए। मन, जो हमेशा उत्तेजना की अवस्था में रहता है, चंचल रहता है उसे शान्त बनाना चाहिए, एकाग्र बनाना चाहिए। अर्थात्‌ मनुष्य के अपनेआप के प्रति जो कर्तव्य हैं उनका पालन करना ही धर्म का पालन करना है।
जुड़ा है। व्यक्ति को अपना शरीरस्वास्थ्य बनाए रखना
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चाहिए । पशु को शरीरस्वास्थ्य की इतनी चिन्ता नहीं होती
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जितनी मनुष्य को होती है । पशु प्रकृति के द्वारा नियंत्रित
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जीवन जीता है इसलिए उसका आहारविहार नियमित होता
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है और वह साधारण रूप से बीमार नहीं होता । हो भी गया
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नियंत्रण करता है और पुन: स्वस्थ हो जाता है । मनुष्य
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अपने मन की आसक्ति के कारण आहार विहार में
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अनियमित हो जाता है और बीमार होता है । धर्म उसे मन
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स्वास्थ्य ठीक करता है । धर्मबुद्धि ही उसे समझाती है
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स्वस्थ रखना चाहिए । शरीर को स्वस्थ रखने के लिए और
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दूसरे क्रम पर मनुष्य का अपने आसपास के मनुष्यों के प्रति जो कर्तव्य है उसका भी पालन उसे करना है। उसे अपने कुटुंब में पिता, पुत्र, भाई, पति, मामा, चाचा या माता, पुत्री, पत्नी, बहन, भाभी आदि अनेक प्रकार की भूमिकायें निभानी होती हैं। यह भी उसका कर्त्तव्य अर्थात धर्म है। पशु पक्षी, प्राणी, वृक्ष वनस्पति आदि के प्रति जो कर्तव्य है, वह भी उसका धर्म है। समाज में वह शिक्षक, व्यापारी, मंत्री, कृषक, धर्माचार्य आदि अनेक प्रकार से व्यवहार करता है। यह व्यवहार उचित प्रकार से करना उसका धर्म है। अर्थात्‌ कर्तव्यधर्म धर्म का एक बहुत बड़ा और कदाचित सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आयाम है ।
 
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करना चाहिए । मन, जो हमेशा उत्तेजना कि अवस्था में
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रहता है, चंचल रहता है उसे शान्त बनाना चाहिए, एकाग्र
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बनाना चाहिए। अर्थात्‌ मनुष्य के अपने आपके प्रति
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जो ded हैं उनका पालन करना ही धर्म का पालन करना
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दूसरे क्रम पर मनुष्य का अपने आसपास के मनुष्यों
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के प्रति जो कर्तव्य है उसका भी पालन उसे करना है । उसे
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अपने कुट्म्ब में पिता, पुत्र, भाई, पति, मामा, चाचा या
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माता, पुत्री, पत्नी, बहन, भाभी आदि अनेक प्रकार की
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भूमिकायें निभानी होती हैं । यह भी उसका कर्त्तव्य अर्थात
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धर्म है । पशु पक्षी, प्राणी, वृक्ष वनस्पति आदि के प्रति जो
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कर्तव्य है वह भी उसका धर्म है । समाज में वह शिक्षक,
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व्यापारी, मंत्री, कृषक, धर्माचार्य आदि अनेक प्रकार से
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व्यवहार करता है । यह व्यवहार उचित प्रकार से करना
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उसका धर्म है । अर्थात्‌ कर्तव्यधर्म धर्म का एक बहुत बड़ा
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और कदाचित सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आयाम है ।
      
भारत के मनीषियों ने इस कर्तव्यधर्म को अनेक
 
भारत के मनीषियों ने इस कर्तव्यधर्म को अनेक
प्रकार से व्यवस्थित किया है । उसके आयाम इस प्रकार
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प्रकार से व्यवस्थित किया है । उसके आयाम इस प्रकार हैं:
 
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== आश्रमधर्म ==
 
== आश्रमधर्म ==

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