सृष्टि की धारणा हेतु मनुष्य को अपने में अनेक गुण विकसित करने होते हैं । ये सदुण कहे जाते हैं । ये सदुण HTS
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सृष्टि की धारणा हेतु मनुष्य को अपने में अनेक गुण विकसित करने होते हैं । ये सदुण कहे जाते हैं । ये सदुण भी धर्म के आयाम हैं । इसीलिए कहा गया है .
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भी धर्म के आयाम हैं । इसीलिए कहा गया है ... इन सभी धर्मों के पालन से व्यक्ति को और समष्टि
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धृतिक्षमा दमोस्तेयम् शौचमिन्दट्रिय निग्रह: ।
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धृतिक्षमा दमोस्तेयम् शौचमिन्दट्रिय निग्रह: । को अभ्युद्य और निःश्रेयस की प्राप्ति होती है । अभ्युद्य
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धीर्विद्या सत्यमक्रो धो दशकं धर्म लक्षणम् ।।
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धीर्विद्या सत्यमक्रो धो दशकं धर्म लक्षणम् ।। का अर्थ है सर्व प्रकार की भौतिक समृद्धि और निःश्रेयस
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इन सभी आयामों में धर्म धारण करने का ही कार्य करता है । इन सभी धर्मों के पालन से व्यक्ति को और समष्टि को अभ्युद्य और निःश्रेयस की प्राप्ति होती है । अभ्युद्य
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मनुस्मृति अ. ६।। का अर्थ है आत्यन्तिक कल्याण |
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इन सभी आयामों में धर्म धारण करने का ही कार्य
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का अर्थ है सर्व प्रकार की भौतिक समृद्धि और निःश्रेयस का अर्थ है आत्यन्तिक कल्याण |