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{{One source|date=March 2019}}
 
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१. ज्ञान
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== ज्ञान ==
 
ज्ञान का अर्थ है, जानना । परन्तु इतने मात्र से
 
ज्ञान का अर्थ है, जानना । परन्तु इतने मात्र से
 
अर्थबोध नहीं होता । वास्तव में ज्ञान को अध्यात्म के
 
अर्थबोध नहीं होता । वास्तव में ज्ञान को अध्यात्म के
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परमात्मा जब सृष्टि के रूप में व्यक्त होता है तब
 
परमात्मा जब सृष्टि के रूप में व्यक्त होता है तब
 
विविध रूप धारण करता है । उसी प्रकार ज्ञान भी विभिन्न
 
विविध रूप धारण करता है । उसी प्रकार ज्ञान भी विभिन्न
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स्तरों पर विभिन्न रूप धारण करता है ।
 
स्तरों पर विभिन्न रूप धारण करता है ।
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है।
 
है।
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ये सारे ज्ञान के विभिन्न लौकिक
 
ये सारे ज्ञान के विभिन्न लौकिक
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विभिन्न स्तरों पर विभिन्न स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करने
 
विभिन्न स्तरों पर विभिन्न स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करने
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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हेतु उन-उन करणों का अभ्यास करना होता है और
 
हेतु उन-उन करणों का अभ्यास करना होता है और
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उद्देश्य है।
 
उद्देश्य है।
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२. धर्म
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== धर्म ==
 
   
इस सृष्टि में असंख्य पदार्थ हैं। ये सारे पदार्थ
 
इस सृष्टि में असंख्य पदार्थ हैं। ये सारे पदार्थ
 
गतिमान हैं । सबकी भिन्न भिन्न गति होती है, भिन्न भिन्न
 
गतिमान हैं । सबकी भिन्न भिन्न गति होती है, भिन्न भिन्न
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नहीं खाता । यह सिंह का धर्म है । गाय घास खाती है और
 
नहीं खाता । यह सिंह का धर्म है । गाय घास खाती है और
 
मांस नहीं खाती, यह गाय का धर्म है ।
 
मांस नहीं खाती, यह गाय का धर्म है ।
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२०
      
यह धर्म विश्वनियम का ही एक आयाम है ।
 
यह धर्म विश्वनियम का ही एक आयाम है ।
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इन संप्रदायों को भी धर्म कहते हैं ।
 
इन संप्रदायों को भी धर्म कहते हैं ।
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सृष्टि की धारणा हेतु मनुष्य को अपने में अनेक गुण
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सृष्टि की धारणा हेतु मनुष्य को अपने में अनेक गुण विकसित करने होते हैं । ये सदुण कहे जाते हैं । ये सदुण HTS
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पर्व १ : उपोद्धात
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विकसित करने होते हैं । ये सदुण कहे जाते हैं । ये सदुण HTS
      
भी धर्म के आयाम हैं । इसीलिए कहा गया है ... इन सभी धर्मों के पालन से व्यक्ति को और समष्टि
 
भी धर्म के आयाम हैं । इसीलिए कहा गया है ... इन सभी धर्मों के पालन से व्यक्ति को और समष्टि
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इन सभी आयामों में धर्म धारण करने का ही कार्य
 
इन सभी आयामों में धर्म धारण करने का ही कार्य
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३. वैश्विकता
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== वैश्विकता ==
 
   
वैश्विकता वर्तमान समय की लोकप्रिय संकल्पना है ।.. अभारतीयता की छाप दिखाई देती है । इसलिए इस विषय
 
वैश्विकता वर्तमान समय की लोकप्रिय संकल्पना है ।.. अभारतीयता की छाप दिखाई देती है । इसलिए इस विषय
 
सबको सबकुछ वैश्विक स्तर का चाहिये । वैश्विक मापद्ण्ड .... में जरा स्पष्टता करने की आवश्यकता है ।
 
सबको सबकुछ वैश्विक स्तर का चाहिये । वैश्विक मापद्ण्ड .... में जरा स्पष्टता करने की आवश्यकता है ।
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भारत में वैश्विकता का आकर्षण कुछ अधिक ही... आज जिस वैश्विकता का प्रचार चल रहा है वह आर्थिक है
 
भारत में वैश्विकता का आकर्षण कुछ अधिक ही... आज जिस वैश्विकता का प्रचार चल रहा है वह आर्थिक है
दिखाई देता है। भाषा से लेकर सम्पूर्ण जीवनशैली में. जबकि भारत की वैश्विकता सांस्कृतिक है । यह अन्तर हमें
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दिखाई देता है। भाषा से लेकर सम्पूर्ण जीवनशैली में. जबकि भारत की वैश्विकता सांस्कृतिक है । यह अन्तर हमें समझ लेना चाहिये । भारत ने भी
 
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समझ लेना चाहिये । भारत ने भी
   
प्राचीन समय से निरन्तर विश्वयात्रा की । भारत के लोग
 
प्राचीन समय से निरन्तर विश्वयात्रा की । भारत के लोग
 
अपने साथ ज्ञान, कारीगरी, कौशल लेकर गये हैं । विश्व के
 
अपने साथ ज्ञान, कारीगरी, कौशल लेकर गये हैं । विश्व के
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तात्पर्य यह है कि भारत का चिन्तन तो हमेशा वैश्विक
 
तात्पर्य यह है कि भारत का चिन्तन तो हमेशा वैश्विक
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ही रहा है। भारत की जीवनदृष्टि अर्थनिष्ठ नहीं अपितु
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ही रहा है। भारत की जीवनदृष्टि अर्थनिष्ठ नहीं अपितु धर्मनिष्ठ है इसलिए भारत की वैश्विकता भी सांस्कृतिक है ।
 
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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धर्मनिष्ठ है इसलिए भारत की वैश्विकता भी सांस्कृतिक है ।
   
आज स्थिति यह है कि भारत आर्थिक वैश्विकता में
 
आज स्थिति यह है कि भारत आर्थिक वैश्विकता में
 
उलझ गया है । पश्चिम की यह आर्थिक वैश्विकता विश्व को
 
उलझ गया है । पश्चिम की यह आर्थिक वैश्विकता विश्व को
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सांस्कृतिक वैश्विकता की ही आवश्यकता रहेगी |
 
सांस्कृतिक वैश्विकता की ही आवश्यकता रहेगी |
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४. राष्ट्र
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== राष्ट्र ==
 
   
राष्ट्र सांस्कृतिक dao है । हम पश्चिम की
 
राष्ट्र सांस्कृतिक dao है । हम पश्चिम की
 
विचारप्रणाली के प्रभाव में आकर राष्ट्र को देश कहते हैं
 
विचारप्रणाली के प्रभाव में आकर राष्ट्र को देश कहते हैं
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तर्क की दृष्टि से प्रश्न भले ही ठीक हो परन्तु वास्तविकता
 
तर्क की दृष्टि से प्रश्न भले ही ठीक हो परन्तु वास्तविकता
 
की दृष्टि से प्रजाओं का दर्शन भिन्न भिन्न होता है यह सत्य
 
की दृष्टि से प्रजाओं का दर्शन भिन्न भिन्न होता है यह सत्य
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है । उदाहरण के लिये भारत की प्रजा जन्मजन्मान्तर को
 
है । उदाहरण के लिये भारत की प्रजा जन्मजन्मान्तर को
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एकदूसरे से अलग होते हैं वे महाद्वीप और पर्वतों से जो
 
एकदूसरे से अलग होते हैं वे महाद्वीप और पर्वतों से जो
 
अगल होते हैं वे देश कहे जाते हैं । उदाहरण के लिये
 
अगल होते हैं वे देश कहे जाते हैं । उदाहरण के लिये
आस्ट्रेलिया महाद्वीप है जबकि भारत देश है । यह उसकी
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आस्ट्रेलिया महाद्वीप है जबकि भारत देश है । यह उसकी भौगोलिक पहचान है । भारत एक सार्वभौम प्रजासत्तात्मक ... प्रजा और जीवनदर्शन थे परन्तु भूभाग
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पर्व १ : उपोद्धात
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भौगोलिक पहचान है । भारत एक सार्वभौम प्रजासत्तात्मक ... प्रजा और जीवनदर्शन थे परन्तु भूभाग
   
देश है । यह उसकी राजकीय, सांस्कृतिक पहचान है । यह... नहीं था । अतः राष्ट्र था, देश नहीं था । आज ग्रीस और
 
देश है । यह उसकी राजकीय, सांस्कृतिक पहचान है । यह... नहीं था । अतः राष्ट्र था, देश नहीं था । आज ग्रीस और
 
पहचान उसे राष्ट्र बनाती है । राष्ट्र के रूप में वह एक... रोम भूभाग के रूप में हैं । परन्तु प्राचीन समय में जो राष्ट्र
 
पहचान उसे राष्ट्र बनाती है । राष्ट्र के रूप में वह एक... रोम भूभाग के रूप में हैं । परन्तु प्राचीन समय में जो राष्ट्र
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पर भूभाग के रूप में उभरा । उससे पूर्व दो सहस्रकों तक... यह भी सांस्कृतिक पहचान ही है ।
 
पर भूभाग के रूप में उभरा । उससे पूर्व दो सहस्रकों तक... यह भी सांस्कृतिक पहचान ही है ।
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५. वैज्ञानिकता
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== वैज्ञानिकता ==
 
   
वैश्विकता के समान ही आज बौद्धिकों के लिये... चाहिये। विश्व में केवल भौतिक पदार्थ ही नहीं हैं।
 
वैश्विकता के समान ही आज बौद्धिकों के लिये... चाहिये। विश्व में केवल भौतिक पदार्थ ही नहीं हैं।
 
लुभावनी संकल्पना वैज्ञानिकता की है । सब कुछ वैज्ञानिक... भौतिकता से परे बहुत बड़ा विश्व है । यह मन और बुद्धि
 
लुभावनी संकल्पना वैज्ञानिकता की है । सब कुछ वैज्ञानिक... भौतिकता से परे बहुत बड़ा विश्व है । यह मन और बुद्धि
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मूर्खता है अथवा अप्रासंगिक है ऐसा कहा जाता है । ऐसे... कोश में व्यवहार कर सकते हैं । मनोमय, विज्ञानमय और
 
मूर्खता है अथवा अप्रासंगिक है ऐसा कहा जाता है । ऐसे... कोश में व्यवहार कर सकते हैं । मनोमय, विज्ञानमय और
 
तो सेंकड़ों उदाहरण हैं । आनन्दमय कोश के लिये ये निकष बहुत कम पड़ते हैं ।
 
तो सेंकड़ों उदाहरण हैं । आनन्दमय कोश के लिये ये निकष बहुत कम पड़ते हैं ।
इसमें बहुत अधूरापन है यह बात समझ लेनी भारत में भी विज्ञान संज्ञा है । वह बहुत प्रतिष्ठित भी
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इसमें बहुत अधूरापन है यह बात समझ लेनी भारत में भी विज्ञान संज्ञा है । वह बहुत प्रतिष्ठित भी है। भारत में वैज्ञानिकता का अर्थ है. उठने पर तेरे लिये शास्त्र ही प्रमाण है ।
 
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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है। भारत में वैज्ञानिकता का अर्थ है. उठने पर तेरे लिये शास्त्र ही प्रमाण है ।
   
शास्त्रीयता । शास्त्रों को अनुभूति का आधार होता है । शास्त्र शास्त्र अर्थात विज्ञान । तात्पर्य यह है कि वैज्ञानिकता
 
शास्त्रीयता । शास्त्रों को अनुभूति का आधार होता है । शास्त्र शास्त्र अर्थात विज्ञान । तात्पर्य यह है कि वैज्ञानिकता
 
आत्मनिष्ठ बुद्धि का आविष्कार हैं । इसलिए शाख्रप्रामाण्य की तो भारत में भी प्रतिष्ठा है । वह केवल भौतिक विज्ञान
 
आत्मनिष्ठ बुद्धि का आविष्कार हैं । इसलिए शाख्रप्रामाण्य की तो भारत में भी प्रतिष्ठा है । वह केवल भौतिक विज्ञान
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अर्थात क्या करना और क्या नहीं करना ऐसा प्रश्न
 
अर्थात क्या करना और क्या नहीं करना ऐसा प्रश्न
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६. अध्यात्म
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== अध्यात्म ==
 
   
अध्यात्म भारत की खास संकल्पना है । सृष्टिचना भारत में गृहव्यवस्था, समाजन्यवस्था, अर्थव्यवस्था,
 
अध्यात्म भारत की खास संकल्पना है । सृष्टिचना भारत में गृहव्यवस्था, समाजन्यवस्था, अर्थव्यवस्था,
 
के मूल में आत्मतत्त्त है। sears अव्यक्त, ... राज्यव्यवस्था का मूल अधिष्ठान अध्यात्म ही है। अतः
 
के मूल में आत्मतत्त्त है। sears अव्यक्त, ... राज्यव्यवस्था का मूल अधिष्ठान अध्यात्म ही है। अतः
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जहां भी एकात्मता है वहाँ आध्यात्मिक अधिष्ठान है ऐसा... आध्यात्मिक है और आध्यात्मिक है वह भौतिक नहीं है ।
 
जहां भी एकात्मता है वहाँ आध्यात्मिक अधिष्ठान है ऐसा... आध्यात्मिक है और आध्यात्मिक है वह भौतिक नहीं है ।
 
हम कह सकते हैं । वास्तव में भौतिक और आध्यात्मिक ऐसे दो विभाग ही
 
हम कह सकते हैं । वास्तव में भौतिक और आध्यात्मिक ऐसे दो विभाग ही
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पर्व १ : उपोद्धात
      
नहीं हैं। भौतिक का अधिष्ठान आध्यात्मिक होता है।
 
नहीं हैं। भौतिक का अधिष्ठान आध्यात्मिक होता है।
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आवश्यकता नहीं, आने वाला भी ऐसी अपेक्षा नहीं करेगा
 
आवश्यकता नहीं, आने वाला भी ऐसी अपेक्षा नहीं करेगा
 
यह पश्चिम की संस्कृति है ।
 
यह पश्चिम की संस्कृति है ।
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Re
      
केवल कलाकृतियाँ संस्कृति नहीं है अपितु प्रजा की
 
केवल कलाकृतियाँ संस्कृति नहीं है अपितु प्रजा की
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मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, अतिथि देवो भव,
 
मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, अतिथि देवो भव,
 
आचार्य देवो भव, यह भारतीय संस्कृति का आचार है ।
 
आचार्य देवो भव, यह भारतीय संस्कृति का आचार है ।
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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युद्ध करते समय भी धर्म को नहीं संस्कृति में आनन्द का भाव भी जुड़ा हुआ है ।
 
युद्ध करते समय भी धर्म को नहीं संस्कृति में आनन्द का भाव भी जुड़ा हुआ है ।
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करती है । विशेषता है ।
 
करती है । विशेषता है ।
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८. संस्कृति और सभ्यता का सम्बन्ध
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== संस्कृति और सभ्यता का सम्बन्ध ==
 
   
नेपोलियन १५३ से.मी. का नाटा नर था । अपनी. है। किन्तु मन्दिर की मूर्ति का वर्णन थोड़ा ही मिलता है ।
 
नेपोलियन १५३ से.मी. का नाटा नर था । अपनी. है। किन्तु मन्दिर की मूर्ति का वर्णन थोड़ा ही मिलता है ।
 
पहुँच से ऊँचे स्थान पर स्थित किसी चीज को उन्होंने. उस छोटी सी मूर्ति के बिना मन्दिर की कल्पना सम्भव
 
पहुँच से ऊँचे स्थान पर स्थित किसी चीज को उन्होंने. उस छोटी सी मूर्ति के बिना मन्दिर की कल्पना सम्भव
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बात सोचें । सर्वत्र वहाँ के गगनचुंबी गोपुर, स्वर्ण मंडित. लिए कोई माध्यम चाहिए; जैसे बिजली को प्रकट करने के
 
बात सोचें । सर्वत्र वहाँ के गगनचुंबी गोपुर, स्वर्ण मंडित. लिए कोई माध्यम चाहिए; जैसे बिजली को प्रकट करने के
 
शिखर, सहस्र स्तम्भ मण्डप आदि का चकार्चौंध वर्णन होता... लिए किसी धातु की तार । उसी प्रकार जीवन में संस्कृति
 
शिखर, सहस्र स्तम्भ मण्डप आदि का चकार्चौंध वर्णन होता... लिए किसी धातु की तार । उसी प्रकार जीवन में संस्कृति
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पर्व १ : उपोद्धात
      
को प्रगट और प्रयोजक बनाने के लिए अन्यान्य माध्यमों
 
को प्रगट और प्रयोजक बनाने के लिए अन्यान्य माध्यमों
Line 608: Line 506:  
होगा । जब जब सूझा उस समय किया होगा । स्नान के
 
होगा । जब जब सूझा उस समय किया होगा । स्नान के
 
समय की नियमितता नहीं रही होगी । जीवन सुल्यवस्थित
 
समय की नियमितता नहीं रही होगी । जीवन सुल्यवस्थित
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करने AL Sea A OMA: BA:
 
करने AL Sea A OMA: BA:
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मात्रा में है । उससे उनका निष्कर्ष था कि भारत की सभ्यता
 
मात्रा में है । उससे उनका निष्कर्ष था कि भारत की सभ्यता
 
उच्च कोटि की थी ।
 
उच्च कोटि की थी ।
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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इसी प्रकार का है विद्यादान का. वैयक्तिक रहते हैं तब उस व्यक्ति का दृष्टिकोण परोपकार से
 
इसी प्रकार का है विद्यादान का. वैयक्तिक रहते हैं तब उस व्यक्ति का दृष्टिकोण परोपकार से
Line 677: Line 559:  
करता है । जब दान, दया, शुचिता, विद्यादान गुण मात्र
 
करता है । जब दान, दया, शुचिता, विद्यादान गुण मात्र
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९. आधुनिकता
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== आधुनिकता ==
 
   
“आधुनिक मात्र एक कालवाचक पद नहीं है, यह... सोलहवीं सदी के पुनर्जागरण ने यूनानी एवं रोमन सभ्यता
 
“आधुनिक मात्र एक कालवाचक पद नहीं है, यह... सोलहवीं सदी के पुनर्जागरण ने यूनानी एवं रोमन सभ्यता
 
गुणवाचक पद भी है। “आधुनिक' एक काल खंड है और की दुहाई देते हुए जिस “मानववाद' (Humanism)
 
गुणवाचक पद भी है। “आधुनिक' एक काल खंड है और की दुहाई देते हुए जिस “मानववाद' (Humanism)
Line 700: Line 581:  
नैतिक सिद्धांतों के अनुशासन को अनुचित बताया और इस. किया और धर्म तत्त्व का ही तिरस्कार किया। धर्मसुधार
 
नैतिक सिद्धांतों के अनुशासन को अनुचित बताया और इस. किया और धर्म तत्त्व का ही तिरस्कार किया। धर्मसुधार
 
प्रकार धर्मसत्ता की सर्वोच्चता एवं व्यापकता को चुनौती दी। आन्दोलन ने पहले संशय और कालान्तर में अनास्था को
 
प्रकार धर्मसत्ता की सर्वोच्चता एवं व्यापकता को चुनौती दी। आन्दोलन ने पहले संशय और कालान्तर में अनास्था को
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पर्व १ : उपोद्धात
      
बल प्रदान किया। अत: जिस मानववाद का प्रतिपादन
 
बल प्रदान किया। अत: जिस मानववाद का प्रतिपादन
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पर राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक व्यवस्थाओं का
 
पर राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक व्यवस्थाओं का
 
कायाकल्प करने का प्रयास किया गया। इन फ्रान्तियों ने
 
कायाकल्प करने का प्रयास किया गया। इन फ्रान्तियों ने
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एक ऐसे “सेक्युलर यूटोपिया' की खोज
 
एक ऐसे “सेक्युलर यूटोपिया' की खोज
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करती है। ज्ञान एवं पुरुषार्थ के उच्चतर सोपानों के प्रति
 
करती है। ज्ञान एवं पुरुषार्थ के उच्चतर सोपानों के प्रति
 
उपेक्षा या अस्वीकृति का भाव उसकी विशेषता है। समग्र
 
उपेक्षा या अस्वीकृति का भाव उसकी विशेषता है। समग्र
जीवन दृष्टि के अभाव में मावन जीवन के सभी क्षेत्र -
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जीवन दृष्टि के अभाव में मावन जीवन के सभी क्षेत्र
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समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, कला
 
समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, कला
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लोकतंत्रीकरण से उपजी “सापेक्षतावाद की तानाशाही'
 
लोकतंत्रीकरण से उपजी “सापेक्षतावाद की तानाशाही'
 
(Dictatorship of Relativism) 4 हर प्रश्न एवं हर उत्तर
 
(Dictatorship of Relativism) 4 हर प्रश्न एवं हर उत्तर
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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को संदिग्ध बना दिया है। किसी भी विचार दृष्टि को
 
को संदिग्ध बना दिया है। किसी भी विचार दृष्टि को
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विरुद्ध हुआ पर वस्तुत: वह हर धर्म व परम्परा की
 
विरुद्ध हुआ पर वस्तुत: वह हर धर्म व परम्परा की
 
विघातक है। आधुनिकता यदि प्रकट रूप से नहीं तो
 
विघातक है। आधुनिकता यदि प्रकट रूप से नहीं तो
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पर्व १ : उपोद्धात
      
प्रच्छनन रूप से नास्तिकता की पोषक है। महात्मा गांधी ने
 
प्रच्छनन रूप से नास्तिकता की पोषक है। महात्मा गांधी ने
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सीखना शुरू हो जाता है । संस्कारों के रूप में वह सीखता
 
सीखना शुरू हो जाता है । संस्कारों के रूप में वह सीखता
 
है। जन्म होता है और उसका शरीर क्रियाशील हो जाता
 
है। जन्म होता है और उसका शरीर क्रियाशील हो जाता
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eal (Creator) मानना।
 
eal (Creator) मानना।
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बनने की अंतरतम इच्छा उसे अन्दर से ही कुछ न कुछ
 
बनने की अंतरतम इच्छा उसे अन्दर से ही कुछ न कुछ
 
करने के लिए प्रेरित करती रहती है । अंदर की प्रेरणा और
 
करने के लिए प्रेरित करती रहती है । अंदर की प्रेरणा और
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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बाहर के सम्पर्क ऐसे उसका मानसिक निकालने के लिए है ।
 
बाहर के सम्पर्क ऐसे उसका मानसिक निकालने के लिए है ।

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