Line 1: |
Line 1: |
| {{One source|date=March 2019}} | | {{One source|date=March 2019}} |
− | १. ज्ञान
| |
| | | |
| + | == ज्ञान == |
| ज्ञान का अर्थ है, जानना । परन्तु इतने मात्र से | | ज्ञान का अर्थ है, जानना । परन्तु इतने मात्र से |
| अर्थबोध नहीं होता । वास्तव में ज्ञान को अध्यात्म के | | अर्थबोध नहीं होता । वास्तव में ज्ञान को अध्यात्म के |
Line 36: |
Line 36: |
| परमात्मा जब सृष्टि के रूप में व्यक्त होता है तब | | परमात्मा जब सृष्टि के रूप में व्यक्त होता है तब |
| विविध रूप धारण करता है । उसी प्रकार ज्ञान भी विभिन्न | | विविध रूप धारण करता है । उसी प्रकार ज्ञान भी विभिन्न |
− |
| |
− | 88
| |
| | | |
| स्तरों पर विभिन्न रूप धारण करता है । | | स्तरों पर विभिन्न रूप धारण करता है । |
Line 75: |
Line 73: |
| | | |
| है। | | है। |
− | �
| |
| | | |
− | ............. page-36 .............
| |
| | | |
− |
| |
| | | |
| ये सारे ज्ञान के विभिन्न लौकिक | | ये सारे ज्ञान के विभिन्न लौकिक |
Line 94: |
Line 89: |
| विभिन्न स्तरों पर विभिन्न स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करने | | विभिन्न स्तरों पर विभिन्न स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करने |
| | | |
− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
| | | |
| हेतु उन-उन करणों का अभ्यास करना होता है और | | हेतु उन-उन करणों का अभ्यास करना होता है और |
Line 111: |
Line 101: |
| उद्देश्य है। | | उद्देश्य है। |
| | | |
− | २. धर्म
| + | == धर्म == |
− | | |
| इस सृष्टि में असंख्य पदार्थ हैं। ये सारे पदार्थ | | इस सृष्टि में असंख्य पदार्थ हैं। ये सारे पदार्थ |
| गतिमान हैं । सबकी भिन्न भिन्न गति होती है, भिन्न भिन्न | | गतिमान हैं । सबकी भिन्न भिन्न गति होती है, भिन्न भिन्न |
Line 139: |
Line 128: |
| नहीं खाता । यह सिंह का धर्म है । गाय घास खाती है और | | नहीं खाता । यह सिंह का धर्म है । गाय घास खाती है और |
| मांस नहीं खाती, यह गाय का धर्म है । | | मांस नहीं खाती, यह गाय का धर्म है । |
− |
| |
− | २०
| |
| | | |
| यह धर्म विश्वनियम का ही एक आयाम है । | | यह धर्म विश्वनियम का ही एक आयाम है । |
Line 169: |
Line 156: |
| इन संप्रदायों को भी धर्म कहते हैं । | | इन संप्रदायों को भी धर्म कहते हैं । |
| | | |
− | सृष्टि की धारणा हेतु मनुष्य को अपने में अनेक गुण | + | सृष्टि की धारणा हेतु मनुष्य को अपने में अनेक गुण विकसित करने होते हैं । ये सदुण कहे जाते हैं । ये सदुण HTS |
− | �
| |
− | | |
− | ............. page-37 .............
| |
− | | |
− |
| |
− | | |
− | पर्व १ : उपोद्धात
| |
− | | |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− | | |
− | विकसित करने होते हैं । ये सदुण कहे जाते हैं । ये सदुण HTS | |
| | | |
| भी धर्म के आयाम हैं । इसीलिए कहा गया है ... इन सभी धर्मों के पालन से व्यक्ति को और समष्टि | | भी धर्म के आयाम हैं । इसीलिए कहा गया है ... इन सभी धर्मों के पालन से व्यक्ति को और समष्टि |
Line 193: |
Line 167: |
| इन सभी आयामों में धर्म धारण करने का ही कार्य | | इन सभी आयामों में धर्म धारण करने का ही कार्य |
| | | |
− | ३. वैश्विकता
| + | == वैश्विकता == |
− | | |
| वैश्विकता वर्तमान समय की लोकप्रिय संकल्पना है ।.. अभारतीयता की छाप दिखाई देती है । इसलिए इस विषय | | वैश्विकता वर्तमान समय की लोकप्रिय संकल्पना है ।.. अभारतीयता की छाप दिखाई देती है । इसलिए इस विषय |
| सबको सबकुछ वैश्विक स्तर का चाहिये । वैश्विक मापद्ण्ड .... में जरा स्पष्टता करने की आवश्यकता है । | | सबको सबकुछ वैश्विक स्तर का चाहिये । वैश्विक मापद्ण्ड .... में जरा स्पष्टता करने की आवश्यकता है । |
Line 225: |
Line 198: |
| | | |
| भारत में वैश्विकता का आकर्षण कुछ अधिक ही... आज जिस वैश्विकता का प्रचार चल रहा है वह आर्थिक है | | भारत में वैश्विकता का आकर्षण कुछ अधिक ही... आज जिस वैश्विकता का प्रचार चल रहा है वह आर्थिक है |
− | दिखाई देता है। भाषा से लेकर सम्पूर्ण जीवनशैली में. जबकि भारत की वैश्विकता सांस्कृतिक है । यह अन्तर हमें | + | दिखाई देता है। भाषा से लेकर सम्पूर्ण जीवनशैली में. जबकि भारत की वैश्विकता सांस्कृतिक है । यह अन्तर हमें समझ लेना चाहिये । भारत ने भी |
− | | |
− | २१
| |
− | �
| |
− | | |
− | ............. page-38 .............
| |
− | | |
− |
| |
− | | |
− | समझ लेना चाहिये । भारत ने भी | |
| प्राचीन समय से निरन्तर विश्वयात्रा की । भारत के लोग | | प्राचीन समय से निरन्तर विश्वयात्रा की । भारत के लोग |
| अपने साथ ज्ञान, कारीगरी, कौशल लेकर गये हैं । विश्व के | | अपने साथ ज्ञान, कारीगरी, कौशल लेकर गये हैं । विश्व के |
Line 258: |
Line 222: |
| तात्पर्य यह है कि भारत का चिन्तन तो हमेशा वैश्विक | | तात्पर्य यह है कि भारत का चिन्तन तो हमेशा वैश्विक |
| | | |
− | ही रहा है। भारत की जीवनदृष्टि अर्थनिष्ठ नहीं अपितु | + | ही रहा है। भारत की जीवनदृष्टि अर्थनिष्ठ नहीं अपितु धर्मनिष्ठ है इसलिए भारत की वैश्विकता भी सांस्कृतिक है । |
− | | |
− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
| |
− | | |
− |
| |
− | | |
− | धर्मनिष्ठ है इसलिए भारत की वैश्विकता भी सांस्कृतिक है । | |
| आज स्थिति यह है कि भारत आर्थिक वैश्विकता में | | आज स्थिति यह है कि भारत आर्थिक वैश्विकता में |
| उलझ गया है । पश्चिम की यह आर्थिक वैश्विकता विश्व को | | उलझ गया है । पश्चिम की यह आर्थिक वैश्विकता विश्व को |
Line 285: |
Line 243: |
| सांस्कृतिक वैश्विकता की ही आवश्यकता रहेगी | | | सांस्कृतिक वैश्विकता की ही आवश्यकता रहेगी | |
| | | |
− | ४. राष्ट्र
| + | == राष्ट्र == |
− | | |
| राष्ट्र सांस्कृतिक dao है । हम पश्चिम की | | राष्ट्र सांस्कृतिक dao है । हम पश्चिम की |
| विचारप्रणाली के प्रभाव में आकर राष्ट्र को देश कहते हैं | | विचारप्रणाली के प्रभाव में आकर राष्ट्र को देश कहते हैं |
Line 300: |
Line 257: |
| तर्क की दृष्टि से प्रश्न भले ही ठीक हो परन्तु वास्तविकता | | तर्क की दृष्टि से प्रश्न भले ही ठीक हो परन्तु वास्तविकता |
| की दृष्टि से प्रजाओं का दर्शन भिन्न भिन्न होता है यह सत्य | | की दृष्टि से प्रजाओं का दर्शन भिन्न भिन्न होता है यह सत्य |
− |
| |
− | RR
| |
| | | |
| है । उदाहरण के लिये भारत की प्रजा जन्मजन्मान्तर को | | है । उदाहरण के लिये भारत की प्रजा जन्मजन्मान्तर को |
Line 315: |
Line 270: |
| एकदूसरे से अलग होते हैं वे महाद्वीप और पर्वतों से जो | | एकदूसरे से अलग होते हैं वे महाद्वीप और पर्वतों से जो |
| अगल होते हैं वे देश कहे जाते हैं । उदाहरण के लिये | | अगल होते हैं वे देश कहे जाते हैं । उदाहरण के लिये |
− | आस्ट्रेलिया महाद्वीप है जबकि भारत देश है । यह उसकी | + | आस्ट्रेलिया महाद्वीप है जबकि भारत देश है । यह उसकी भौगोलिक पहचान है । भारत एक सार्वभौम प्रजासत्तात्मक ... प्रजा और जीवनदर्शन थे परन्तु भूभाग |
− | �
| |
− | | |
− | ............. page-39 .............
| |
− | | |
− |
| |
− | | |
− | पर्व १ : उपोद्धात
| |
− | | |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− | | |
− | भौगोलिक पहचान है । भारत एक सार्वभौम प्रजासत्तात्मक ... प्रजा और जीवनदर्शन थे परन्तु भूभाग | |
| देश है । यह उसकी राजकीय, सांस्कृतिक पहचान है । यह... नहीं था । अतः राष्ट्र था, देश नहीं था । आज ग्रीस और | | देश है । यह उसकी राजकीय, सांस्कृतिक पहचान है । यह... नहीं था । अतः राष्ट्र था, देश नहीं था । आज ग्रीस और |
| पहचान उसे राष्ट्र बनाती है । राष्ट्र के रूप में वह एक... रोम भूभाग के रूप में हैं । परन्तु प्राचीन समय में जो राष्ट्र | | पहचान उसे राष्ट्र बनाती है । राष्ट्र के रूप में वह एक... रोम भूभाग के रूप में हैं । परन्तु प्राचीन समय में जो राष्ट्र |
Line 345: |
Line 287: |
| पर भूभाग के रूप में उभरा । उससे पूर्व दो सहस्रकों तक... यह भी सांस्कृतिक पहचान ही है । | | पर भूभाग के रूप में उभरा । उससे पूर्व दो सहस्रकों तक... यह भी सांस्कृतिक पहचान ही है । |
| | | |
− | ५. वैज्ञानिकता
| + | == वैज्ञानिकता == |
− | | |
| वैश्विकता के समान ही आज बौद्धिकों के लिये... चाहिये। विश्व में केवल भौतिक पदार्थ ही नहीं हैं। | | वैश्विकता के समान ही आज बौद्धिकों के लिये... चाहिये। विश्व में केवल भौतिक पदार्थ ही नहीं हैं। |
| लुभावनी संकल्पना वैज्ञानिकता की है । सब कुछ वैज्ञानिक... भौतिकता से परे बहुत बड़ा विश्व है । यह मन और बुद्धि | | लुभावनी संकल्पना वैज्ञानिकता की है । सब कुछ वैज्ञानिक... भौतिकता से परे बहुत बड़ा विश्व है । यह मन और बुद्धि |
Line 365: |
Line 306: |
| मूर्खता है अथवा अप्रासंगिक है ऐसा कहा जाता है । ऐसे... कोश में व्यवहार कर सकते हैं । मनोमय, विज्ञानमय और | | मूर्खता है अथवा अप्रासंगिक है ऐसा कहा जाता है । ऐसे... कोश में व्यवहार कर सकते हैं । मनोमय, विज्ञानमय और |
| तो सेंकड़ों उदाहरण हैं । आनन्दमय कोश के लिये ये निकष बहुत कम पड़ते हैं । | | तो सेंकड़ों उदाहरण हैं । आनन्दमय कोश के लिये ये निकष बहुत कम पड़ते हैं । |
− | इसमें बहुत अधूरापन है यह बात समझ लेनी भारत में भी विज्ञान संज्ञा है । वह बहुत प्रतिष्ठित भी | + | इसमें बहुत अधूरापन है यह बात समझ लेनी भारत में भी विज्ञान संज्ञा है । वह बहुत प्रतिष्ठित भी है। भारत में वैज्ञानिकता का अर्थ है. उठने पर तेरे लिये शास्त्र ही प्रमाण है । |
− | | |
− | 23
| |
− | �
| |
− | | |
− | ............. page-40 .............
| |
− | | |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− | | |
− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
| |
− | | |
− |
| |
− | | |
− | है। भारत में वैज्ञानिकता का अर्थ है. उठने पर तेरे लिये शास्त्र ही प्रमाण है । | |
| शास्त्रीयता । शास्त्रों को अनुभूति का आधार होता है । शास्त्र शास्त्र अर्थात विज्ञान । तात्पर्य यह है कि वैज्ञानिकता | | शास्त्रीयता । शास्त्रों को अनुभूति का आधार होता है । शास्त्र शास्त्र अर्थात विज्ञान । तात्पर्य यह है कि वैज्ञानिकता |
| आत्मनिष्ठ बुद्धि का आविष्कार हैं । इसलिए शाख्रप्रामाण्य की तो भारत में भी प्रतिष्ठा है । वह केवल भौतिक विज्ञान | | आत्मनिष्ठ बुद्धि का आविष्कार हैं । इसलिए शाख्रप्रामाण्य की तो भारत में भी प्रतिष्ठा है । वह केवल भौतिक विज्ञान |
Line 396: |
Line 322: |
| अर्थात क्या करना और क्या नहीं करना ऐसा प्रश्न | | अर्थात क्या करना और क्या नहीं करना ऐसा प्रश्न |
| | | |
− | ६. अध्यात्म
| + | == अध्यात्म == |
− | | |
| अध्यात्म भारत की खास संकल्पना है । सृष्टिचना भारत में गृहव्यवस्था, समाजन्यवस्था, अर्थव्यवस्था, | | अध्यात्म भारत की खास संकल्पना है । सृष्टिचना भारत में गृहव्यवस्था, समाजन्यवस्था, अर्थव्यवस्था, |
| के मूल में आत्मतत्त्त है। sears अव्यक्त, ... राज्यव्यवस्था का मूल अधिष्ठान अध्यात्म ही है। अतः | | के मूल में आत्मतत्त्त है। sears अव्यक्त, ... राज्यव्यवस्था का मूल अधिष्ठान अध्यात्म ही है। अतः |
Line 425: |
Line 350: |
| जहां भी एकात्मता है वहाँ आध्यात्मिक अधिष्ठान है ऐसा... आध्यात्मिक है और आध्यात्मिक है वह भौतिक नहीं है । | | जहां भी एकात्मता है वहाँ आध्यात्मिक अधिष्ठान है ऐसा... आध्यात्मिक है और आध्यात्मिक है वह भौतिक नहीं है । |
| हम कह सकते हैं । वास्तव में भौतिक और आध्यात्मिक ऐसे दो विभाग ही | | हम कह सकते हैं । वास्तव में भौतिक और आध्यात्मिक ऐसे दो विभाग ही |
− |
| |
− | 2%
| |
− | �
| |
− |
| |
− | ............. page-41 .............
| |
− |
| |
− | पर्व १ : उपोद्धात
| |
| | | |
| नहीं हैं। भौतिक का अधिष्ठान आध्यात्मिक होता है। | | नहीं हैं। भौतिक का अधिष्ठान आध्यात्मिक होता है। |
Line 486: |
Line 404: |
| आवश्यकता नहीं, आने वाला भी ऐसी अपेक्षा नहीं करेगा | | आवश्यकता नहीं, आने वाला भी ऐसी अपेक्षा नहीं करेगा |
| यह पश्चिम की संस्कृति है । | | यह पश्चिम की संस्कृति है । |
− |
| |
− | Re
| |
| | | |
| केवल कलाकृतियाँ संस्कृति नहीं है अपितु प्रजा की | | केवल कलाकृतियाँ संस्कृति नहीं है अपितु प्रजा की |
Line 514: |
Line 430: |
| मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, अतिथि देवो भव, | | मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, अतिथि देवो भव, |
| आचार्य देवो भव, यह भारतीय संस्कृति का आचार है । | | आचार्य देवो भव, यह भारतीय संस्कृति का आचार है । |
− | �
| |
− |
| |
− | ............. page-42 .............
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
| |
− |
| |
− |
| |
| | | |
| युद्ध करते समय भी धर्म को नहीं संस्कृति में आनन्द का भाव भी जुड़ा हुआ है । | | युद्ध करते समय भी धर्म को नहीं संस्कृति में आनन्द का भाव भी जुड़ा हुआ है । |
Line 535: |
Line 441: |
| करती है । विशेषता है । | | करती है । विशेषता है । |
| | | |
− | ८. संस्कृति और सभ्यता का सम्बन्ध
| + | == संस्कृति और सभ्यता का सम्बन्ध == |
− | | |
| नेपोलियन १५३ से.मी. का नाटा नर था । अपनी. है। किन्तु मन्दिर की मूर्ति का वर्णन थोड़ा ही मिलता है । | | नेपोलियन १५३ से.मी. का नाटा नर था । अपनी. है। किन्तु मन्दिर की मूर्ति का वर्णन थोड़ा ही मिलता है । |
| पहुँच से ऊँचे स्थान पर स्थित किसी चीज को उन्होंने. उस छोटी सी मूर्ति के बिना मन्दिर की कल्पना सम्भव | | पहुँच से ऊँचे स्थान पर स्थित किसी चीज को उन्होंने. उस छोटी सी मूर्ति के बिना मन्दिर की कल्पना सम्भव |
Line 563: |
Line 468: |
| बात सोचें । सर्वत्र वहाँ के गगनचुंबी गोपुर, स्वर्ण मंडित. लिए कोई माध्यम चाहिए; जैसे बिजली को प्रकट करने के | | बात सोचें । सर्वत्र वहाँ के गगनचुंबी गोपुर, स्वर्ण मंडित. लिए कोई माध्यम चाहिए; जैसे बिजली को प्रकट करने के |
| शिखर, सहस्र स्तम्भ मण्डप आदि का चकार्चौंध वर्णन होता... लिए किसी धातु की तार । उसी प्रकार जीवन में संस्कृति | | शिखर, सहस्र स्तम्भ मण्डप आदि का चकार्चौंध वर्णन होता... लिए किसी धातु की तार । उसी प्रकार जीवन में संस्कृति |
− |
| |
− | RG
| |
− | �
| |
− |
| |
− | ............. page-43 .............
| |
− |
| |
− | पर्व १ : उपोद्धात
| |
| | | |
| को प्रगट और प्रयोजक बनाने के लिए अन्यान्य माध्यमों | | को प्रगट और प्रयोजक बनाने के लिए अन्यान्य माध्यमों |
Line 608: |
Line 506: |
| होगा । जब जब सूझा उस समय किया होगा । स्नान के | | होगा । जब जब सूझा उस समय किया होगा । स्नान के |
| समय की नियमितता नहीं रही होगी । जीवन सुल्यवस्थित | | समय की नियमितता नहीं रही होगी । जीवन सुल्यवस्थित |
− |
| |
− | २७
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
| | | |
| करने AL Sea A OMA: BA: | | करने AL Sea A OMA: BA: |
Line 652: |
Line 544: |
| मात्रा में है । उससे उनका निष्कर्ष था कि भारत की सभ्यता | | मात्रा में है । उससे उनका निष्कर्ष था कि भारत की सभ्यता |
| उच्च कोटि की थी । | | उच्च कोटि की थी । |
− | �
| |
− |
| |
− | ............. page-44 .............
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
| |
− |
| |
− |
| |
| | | |
| इसी प्रकार का है विद्यादान का. वैयक्तिक रहते हैं तब उस व्यक्ति का दृष्टिकोण परोपकार से | | इसी प्रकार का है विद्यादान का. वैयक्तिक रहते हैं तब उस व्यक्ति का दृष्टिकोण परोपकार से |
Line 677: |
Line 559: |
| करता है । जब दान, दया, शुचिता, विद्यादान गुण मात्र | | करता है । जब दान, दया, शुचिता, विद्यादान गुण मात्र |
| | | |
− | ९. आधुनिकता
| + | == आधुनिकता == |
− | | |
| “आधुनिक मात्र एक कालवाचक पद नहीं है, यह... सोलहवीं सदी के पुनर्जागरण ने यूनानी एवं रोमन सभ्यता | | “आधुनिक मात्र एक कालवाचक पद नहीं है, यह... सोलहवीं सदी के पुनर्जागरण ने यूनानी एवं रोमन सभ्यता |
| गुणवाचक पद भी है। “आधुनिक' एक काल खंड है और की दुहाई देते हुए जिस “मानववाद' (Humanism) | | गुणवाचक पद भी है। “आधुनिक' एक काल खंड है और की दुहाई देते हुए जिस “मानववाद' (Humanism) |
Line 700: |
Line 581: |
| नैतिक सिद्धांतों के अनुशासन को अनुचित बताया और इस. किया और धर्म तत्त्व का ही तिरस्कार किया। धर्मसुधार | | नैतिक सिद्धांतों के अनुशासन को अनुचित बताया और इस. किया और धर्म तत्त्व का ही तिरस्कार किया। धर्मसुधार |
| प्रकार धर्मसत्ता की सर्वोच्चता एवं व्यापकता को चुनौती दी। आन्दोलन ने पहले संशय और कालान्तर में अनास्था को | | प्रकार धर्मसत्ता की सर्वोच्चता एवं व्यापकता को चुनौती दी। आन्दोलन ने पहले संशय और कालान्तर में अनास्था को |
− |
| |
− | RC
| |
− | �
| |
− |
| |
− | ............. page-45 .............
| |
− |
| |
− | पर्व १ : उपोद्धात
| |
| | | |
| बल प्रदान किया। अत: जिस मानववाद का प्रतिपादन | | बल प्रदान किया। अत: जिस मानववाद का प्रतिपादन |
Line 743: |
Line 617: |
| पर राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक व्यवस्थाओं का | | पर राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक व्यवस्थाओं का |
| कायाकल्प करने का प्रयास किया गया। इन फ्रान्तियों ने | | कायाकल्प करने का प्रयास किया गया। इन फ्रान्तियों ने |
− |
| |
− | 8
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
| | | |
| एक ऐसे “सेक्युलर यूटोपिया' की खोज | | एक ऐसे “सेक्युलर यूटोपिया' की खोज |
Line 785: |
Line 653: |
| करती है। ज्ञान एवं पुरुषार्थ के उच्चतर सोपानों के प्रति | | करती है। ज्ञान एवं पुरुषार्थ के उच्चतर सोपानों के प्रति |
| उपेक्षा या अस्वीकृति का भाव उसकी विशेषता है। समग्र | | उपेक्षा या अस्वीकृति का भाव उसकी विशेषता है। समग्र |
− | जीवन दृष्टि के अभाव में मावन जीवन के सभी क्षेत्र - | + | जीवन दृष्टि के अभाव में मावन जीवन के सभी क्षेत्र |
− | �
| |
− | | |
− | ............. page-46 .............
| |
− | | |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
| | | |
| समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, कला | | समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, कला |
Line 831: |
Line 692: |
| लोकतंत्रीकरण से उपजी “सापेक्षतावाद की तानाशाही' | | लोकतंत्रीकरण से उपजी “सापेक्षतावाद की तानाशाही' |
| (Dictatorship of Relativism) 4 हर प्रश्न एवं हर उत्तर | | (Dictatorship of Relativism) 4 हर प्रश्न एवं हर उत्तर |
− |
| |
− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
| |
− |
| |
− |
| |
| | | |
| को संदिग्ध बना दिया है। किसी भी विचार दृष्टि को | | को संदिग्ध बना दिया है। किसी भी विचार दृष्टि को |
Line 871: |
Line 728: |
| विरुद्ध हुआ पर वस्तुत: वह हर धर्म व परम्परा की | | विरुद्ध हुआ पर वस्तुत: वह हर धर्म व परम्परा की |
| विघातक है। आधुनिकता यदि प्रकट रूप से नहीं तो | | विघातक है। आधुनिकता यदि प्रकट रूप से नहीं तो |
− | �
| |
− |
| |
− | ............. page-47 .............
| |
− |
| |
− | पर्व १ : उपोद्धात
| |
| | | |
| प्रच्छनन रूप से नास्तिकता की पोषक है। महात्मा गांधी ने | | प्रच्छनन रूप से नास्तिकता की पोषक है। महात्मा गांधी ने |
Line 914: |
Line 766: |
| सीखना शुरू हो जाता है । संस्कारों के रूप में वह सीखता | | सीखना शुरू हो जाता है । संस्कारों के रूप में वह सीखता |
| है। जन्म होता है और उसका शरीर क्रियाशील हो जाता | | है। जन्म होता है और उसका शरीर क्रियाशील हो जाता |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
| | | |
| eal (Creator) मानना। | | eal (Creator) मानना। |
Line 965: |
Line 811: |
| बनने की अंतरतम इच्छा उसे अन्दर से ही कुछ न कुछ | | बनने की अंतरतम इच्छा उसे अन्दर से ही कुछ न कुछ |
| करने के लिए प्रेरित करती रहती है । अंदर की प्रेरणा और | | करने के लिए प्रेरित करती रहती है । अंदर की प्रेरणा और |
− | �
| |
− |
| |
− | ............. page-48 .............
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
| |
− |
| |
− |
| |
| | | |
| बाहर के सम्पर्क ऐसे उसका मानसिक निकालने के लिए है । | | बाहर के सम्पर्क ऐसे उसका मानसिक निकालने के लिए है । |