# प्राकृतिक संसाधन और मानवीय शरीर, मन बुद्धि का उपयोग यही बातें धन का निर्माण करती हैं। ये ठीक रहें इस दृष्टि से शिक्षा और संस्कारों की व्यवस्था करना: अर्थस्य तिस्त्र:गतय: दानं भोगं नाशश्च। संपत्ति की तीन ही सम्भावनाएँ हैं। दान करो, भोग करो यह दो सम्भावनाएँ हैं। अन्यथा तीसरी सम्भावना याने सम्पत्ति का नाश होने ही वाला है। इसलिये उपभोग को कम-कम करते हुए बचाई हुई सम्पत्ति का दान करते जाओ। दान की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन दिया जाए। | # प्राकृतिक संसाधन और मानवीय शरीर, मन बुद्धि का उपयोग यही बातें धन का निर्माण करती हैं। ये ठीक रहें इस दृष्टि से शिक्षा और संस्कारों की व्यवस्था करना: अर्थस्य तिस्त्र:गतय: दानं भोगं नाशश्च। संपत्ति की तीन ही सम्भावनाएँ हैं। दान करो, भोग करो यह दो सम्भावनाएँ हैं। अन्यथा तीसरी सम्भावना याने सम्पत्ति का नाश होने ही वाला है। इसलिये उपभोग को कम-कम करते हुए बचाई हुई सम्पत्ति का दान करते जाओ। दान की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन दिया जाए। |