Asterism - Nakshatras (नक्षत्र)
नक्षत्र भारतीय पंचांग ( तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण) का तीसरा अंग है। नक्षत्र सदैव अपने स्थान पर ही रहते हैं जबकि ग्रह नक्षत्रों में संचार करते हैं। नक्षत्रों की संख्या प्राचीन काल में २४ थी, जो कि आजकल २७ है। मुहूर्तज्योतिषमें अभिजित् को भी गिनतीमें शामिल करने से २८ नक्षत्रों की भी गणना होती है। प्राचीनकाल में फाल्गुनी, आषाढा तथा भाद्रपदा- इन तीन नक्षत्रोंमें पूर्वा तथा उत्तरा- इस प्रकार के विभाजन नहीं थे। ये विभाजन बादमें होनेसे २४+३=२७ नक्षत्र गिने जाते हैं।
परिचय
नक्षत्र को तारा भी कहते हैं। एक नक्षत्र उस पूरे चक्र(३६०॰) का २७वाँ भाग होता है जिस पर सूर्य एक वर्ष में एक परिक्रमा करता है। सभी नक्षत्र प्रतिदिन पूर्व में उदय होकर पश्चिम में अस्त होते हैं। तथा पुनः पूर्व में उदय होते हैं। इसी को नाक्षत्र अहोरात्र कहते हैं। यह चक्र सदा समान रहता है। कभी घटता बढता नहीं है। सूर्य जिस मार्गमें भ्रमण करते है, उसे क्रान्तिवृत्त कहते हैं। यह वृत्त ३६० अंशों का होता है। इसके समान रूप से १२ भाग करने से एक-एक राशि तथा २७ भाग कर देने से एक-एक नक्षत्र कहा गया है। यह चन्द्रमा से सम्बन्धित है। राशियों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। ज्योतिष शास्त्रानुसार २७ नक्षत्र होते हैं। अश्विन्यादि से लेकर रेवती पर्यन्त प्रत्येक नक्षत्र का मान १३ अंश २० कला होता है। नक्षत्र आकाशीय पिण्ड होता है।
परिभाषा
न क्षरतीति नक्षत्राणि।( शब्दकल्पद्रुम)
अर्थात् जिनका क्षरण नहीं होता, वे नक्षत्र कहलाते हैं।
नक्षत्रोंका वर्गीकरण
भारतीय ज्योतिष ने नक्षत्र गणना की पद्धति को स्वतन्त्र रूप से खोज निकाला था। वस्तुतः नक्षत्र पद्धति भारतीय ऋषि परम्परा की दिव्य अन्तर्दृष्टि से विकसित हुयी है जो आज भी अपने मूल से कटे बिना चली आ रही है।
नक्षत्रों का वर्गीकरण दो प्रकार से मिलता है-
- प्रथमप्राप्त वर्णन उनके मुखानुसार है, जिसमें ऊर्ध्वमुख, अधोमुख तथा तिर्यग्मुख- इस प्रकार के तीन वर्गीकरण हैं।
- द्वितीय प्राप्त दूसरे प्रकार का वर्गीकरण सात वारोंकी प्रकृतिके अनुसार सात प्रकारका प्राप्त होता है। जैसे- ध्रुव(स्थिर), चर(चल), उग्र(क्रूर), मिश्र(साधारण), लघु(क्षिप्र), मृदु(मैत्र) तथा तीक्ष्ण (दारुण)।
क्र०सं० | नक्षत्र नाम | पर्यायवाची | नक्षत्र स्वामी |
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1 | अश्विनी | नासत्य, दस्र, अश्वियुक् तुरग, वाजी, अश्व, हय। | अश्विनी कुमार |
2 | भरणी | अन्तक, यम, कृतान्त। | यम |
3 | कृत्तिका | अग्नि, वह्नि, अनल, कृशानु, दहन, पावक, हुतभुक् , हुताश। | अग्नि |
4 | रोहिणी | धाता, ब्रह्मा, कः, विधाता, द्रुहिण, विधि, विरञ्चि, प्रजापति। | ब्रह्मा |
5 | मृगशिरा | शशभृत् , शशी, शशांक, मृगांक, विधु, हिमांशु, सुधांशु। | चन्द्रमा |
6 | आर्द्रा | रुद्र, शिव, ईश, त्रिनेत्र। | रुद्र |
7 | पुनर्वसु | अदिति, आदित्य। | अदिति |
8 | पुष्य | ईज्य, गुरु, जीव, तिष्य, देवपुरोहित। | बृहस्पति |
9 | आश्लेषा | सर्प, उरग, भुजग, भुजंग, अहि, भोगी। | सर्प |
10 | मघा | पितृ, पितर। | पितर |
11 | पूर्वाफाल्गुनी | भग, योनि, भाग्य। | भग(सूर्य विशेष) |
12 | उत्तराफाल्गुनी | अर्यमा। | अर्यमा(सूर्य विशेष) |
13 | हस्त | रवि, कर, सूर्य, व्रघ्न, अर्क, तरणि, तपन। | रवि |
14 | चित्रा | त्वष्टृ, त्वाष्ट्र, तक्ष। | त्वष्टा(विश्वकर्मा) |
15 | स्वाती | वायु, वात, अनिल, समीर, पवन, मारुत। | वायु |
16 | विशाखा | शक्राग्नी, वृषाग्नी, इन्द्राग्नी, द्वीश, राधा। | अग्नि और इन्द्र |
17 | अनुराधा | मित्र। | मित्र(सूर्य विशेष) |
18 | ज्येष्ठा | इन्द्र, शक्र, वासव, आखण्डल, पुरन्दर। | इन्द्र |
19 | मूल | निरृति, रक्षः, अस्रप। | निरृति(राक्षस) |
20 | पूर्वाषाढा | जल, नीर, उदक, अम्बु, तोय। | जल |
21 | उत्तराषाढा | विश्वे, विश्वेदेव। | विश्वेदेव |
22 | अभिजित् | विधि, विरञ्चि, धाता, विधाता। | ब्रह्मा |
23 | श्रवण | गोविन्द, विष्णु, श्रुति, कर्ण, श्रवः। | विष्णु |
24 | धनिष्ठा | वसु, श्रविष्ठा। | |
25 | शतभिषा | वरुण, अपांपति, नीरेश, जलेश। | अष्टवसु |
26 | पूर्वाभाद्रपदा | अजपाद, अजचरण, अजांघ्रि। | वरुण |
27 | उत्तराभाद्रपदा | अहिर्बुध्न्य नाम के सूर्य। | अहिर्बुध्न्य(सूर्यविशेष) |
28 | रेवती | पूषा नाम के सूर्य, अन्त्य, पौष्ण। | पूषा(सूर्य विशेष) |
नक्षत्र फल
आश्विन्यामतिबुद्धिवित्तविनयप्रज्ञायशस्वी सुखी याम्यर्क्षे विकलोऽन्यदारनिरतः क्रूरः कृतघ्नी धनी। तेजस्वी बहुलोद्भवः प्रभुसमोऽमूर्खश्च विद्याधनी। रोहिण्यां पररन्ध्रवित्कृशतनुर्बोधी परस्त्रीरतः॥