Samhita Skandha (संहिता स्कन्ध)

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ज्योतिष शास्त्र के दूसरे स्कन्ध संहिता का भी विशेष महत्त्व है। इन ग्रन्थों में मुख्यतः फलादेश संबंधी विषयों का बाहुल्य होता है। आचार्य वराहमिहिरने बृहत्संहिता में कहा है कि जो व्यक्ति संहिता के समस्त विषयों को जानता है, वही दैवज्ञ होता है। संहिता ग्रन्थों में भूशोधन, दिक् शोधन, मेलापक, जलाशय निर्माण, मांगलिक कार्यों के मुहूर्त, वृक्षायुर्वेद, दर्कागल, सूर्यादि ग्रहों के संचार, ग्रहों के स्वभाव, विकार, प्रमाण, गृहों का नक्षत्रों की युति से फल, परिवेष, परिघ, वायु लक्षण, भूकम्प, उल्कापात, वृष्टि वर्षण, अंगविद्या, पशु-पक्षियों तथा मनुष्यों के लक्षण पर विचार, रत्नपरीक्षा, दीपलक्षण नक्षत्राचार, ग्रहों का देश एवं प्राणियों पर आधिपत्य, दन्तकाष्ठ के द्वारा शुभ अशुभ फल का कथन आदि विषय वर्णित किये जाते हैं। संहिता ग्रन्थों में उपरोक्त विषयों के अतिरिक्त एक अन्य विशेषता होती है कि इन ग्रन्थों में व्यक्ति विषयक फलादेश के स्थान पर राष्ट्र विषयक फलादेश किया जाता है।

परिचय

परिभाषा

संहिता स्कन्ध का महत्व

संहिता स्कन्ध के प्रमुख ग्रन्थ एवं आचार्य

संहिता स्कन्ध के उपस्कन्ध

शकुन

स्वप्न

सामुद्रिकशास्त्र

वास्तु

मुहूर्त

अर्घ

वृष्टि

रामायण में संहिता स्कन्ध के अंश

संहिता स्कन्ध की समाज में उपयोगिता

संहिता स्कन्धमें ग्रह-नक्षत्रोंके द्वारा भूपृष्ठपर पडनेवाले सामूहिक प्रभावका विवेचन किया जाता है। इस स्कन्धको भौतिक एवं वैश्विक ज्योतिष भी कहा जाता है। संहिता स्कन्ध के विषय में वराहमिहिर ने लिखा है-

ज्योतिःशास्त्रमनेकभेदविषयं स्कन्धत्रयाधिष्ठितम्। तत्कार्त्स्न्योपनयनस्य नाम मुनिभिः संहीर्त्यते संहिता॥(बृ०सं० उपनय० श्लो० ९)

वस्तुतः सिद्धान्त और होरा स्कन्धों का संक्षेप में समवेत विवेचन ही संहिता है। संहिता स्कन्ध में ग्रहों की गति, ग्रहयुति, मेघलक्षण, वृष्टिविचार, उल्का-विचार, भूकम्प-विचार, जलशोधन, विभिन्न शकुनों का विचार, वास्तुविद्या तथा ग्रहणादि का समस्त चराचर जगत् पर पडने वाले सामूहिक प्रभाव इत्यादि का विचार किया जाता है। संहिता के विषयोंको भी तीन प्रकार से विभाजित किया जा सकता है-

पंचांगविषयक

राष्ट्रविषयक

व्यक्तिविषयक

उद्धरण