बाल संस्कार - पुण्यभूमि भारत
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्वेश्चेव दक्षिणम्।
वर्ष तद्भारत नाम भारती यत्र सन्तति:।
हिन्द महासागर के उत्तर में तथा हिमालय के दक्षिण में स्थित महान देश भारतवर्ष के नाम से जाना जाता है, यहाँ का पुत्र रूप समाज भारतीय हैं । प्रत्येक भारतीय को यह देश प्राणों से प्यारा है। क्योंकि इसका कण-कण पवित्र है, तभी तो प्रत्येक सच्चा भारतीय (हिन्दू) गाता है-"कण-कण में सोया शहीद, पत्थर-पत्थर इतिहास है"। इस भूमि पर पग-पग में उत्सर्ग और शौर्य का इतिहास अंकित है। स्वामी विवेकानन्द ने श्रीपाद शिला पर इसका जगन्माता के रूप में साक्षात्कार किया। वह भारत माता हमारी आराध्या है। उसके स्वरूप का वर्णन वाणी व लेखनी द्वारा असंभव है, फिर भी माता के पुत्र के नाते उसके भव्य-दिव्य स्वरूप का अधिकाधिक ज्ञान हमें प्राप्त करना चाहिए। कैलास से कन्याकुमारी, अटक से कटक तक विस्तृत इस महान भारत के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों व धार्मिक स्थानों का वर्णन यहाँ दिया जा रहा हैं ।
इस लेख में पुण्यभूमि भारत की विशेष परिचयों को दर्शाया गया है जिनसे हमारे पुरातन इतिहास को वर्त्तमान की धारा के साथ परिचय बनाया जा सके । इतिहास के शौर्य को भुलाने के कारण आज की पीढ़ी अपने आपको निर्बल और असहाय समझती है ।
पुण्यभूमि भारत का परिचय निम्नलिखित बिन्दुओ द्वारा :-
- पवित्र नदियाँ
- पंच सरोवर
- सप्त पर्वत
- चार धाम
- मोक्षदायिनी सप्तपुरी
- द्वादश ज्योतिलिंग
- शक्तिपीठ
- उत्तर-पश्चिम एवं उत्तर भारत
- पूर्वोत्तर एवं पूर्वी भारत
- मध्य भारत
- दक्षिण भारत
आइये अब हम सभी इन सभी बिन्दुओ को विस्तृत रूप से जानने का प्रयास करेंगे ।
पवित्र नदियाँ
अनेक पवित्र नदियाँ अपने पवित्र जल से भारत माता का अभिसिंचन करती हैं। सम्पूर्ण देश में इन नदियों को आदर व श्रद्धा के साथ स्मरण किया जाता है। इनके पवित्र तटों पर विभिन्न धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन किये जाते हैं, प्रत्येक हिन्दू इनके जल में डुबकी लगाकर अपने आपको को धन्य मानता है। ये नदियाँ भारत के उतार-चढ़ाव की साक्षी हैं। हमारी सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अंसख्य तीर्थ इन नदियों के तटों पर विकसित हुए।
१. गंगा
२. यमुना
३. सिन्धु
४. सरस्वती
५. ब्रह्मपुत्र
६. रेवा (नर्मदा)
७. गोदावरी
८. कृष्णा
९. कावेरी
१०. महानदी
इन पवित्र नदियों पर यह विस्तृत लेख देखें ।
पञ्च सरोवर
जिस प्रकार भारत के चार कोनों पर चार धाम (उत्तरी सीमा पर बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम्, पूर्व में जगन्नाथपुरीतथा पश्चिम में द्वारिका स्थापित कर देश की एकता को सुदृढ़ किया गया।) उसी प्रकार मनीषियों ने पंच सरोवरों की मान्यता देकर समस्त भारतवासियों को प्रान्त व जातिभेद से ऊपर उठकर भारत को एक राष्ट्र के रूप में सुदूढ़ करने की प्रेरणा दी। सभी हिन्दू इनके प्रतिश्रद्धाभाव रखते हैं। ये पांच सरोवर निम्नलिखित हैं
१. विन्दु सरोवर
२. नारायण सरोवर
३. पम्पा सरोवर
४. पुष्कर झील
५. मान सरोवर
इन सरोवरों पर यह विस्तृत लेख देखें ।
सप्त पर्वत
जिस प्रकार पीयूष-प्रवाहिनी नदियाँ राष्ट्र की एकात्मता को सुदृढ़ कड़ियाँ हैं वैसे ही देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित पर्वत और शिखर सर्वत्र सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं। एकात्मता-स्तोत्र में वर्णित पर्वतों के नाम हैं-हिमालय, महेन्द्र, मलयगिरी, सहयाद्रि, रैवतक, विंध्याचल तथा अरावली। इनके अतिरिक्त अमरकण्टक, सरगमाथा, अर्बुदांचल, कैलास आदि शिखरऔर बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि पर्वतीय स्थल भी वन्दनीय हैं।
इन पर्वतों पर यह विस्तृत लेख देखें ।
चार धाम
भारत वर्ष अनादि काल से एक इकाई के रूप में विद्यमान रहा है। भारत की एकात्मता चारों दिशाओं में स्थित चार धामों के द्वारा और अधिक पुष्ट हुई है। जातिबन्धन से मुक्त होकर पूजा-अर्चना के लिए इनकी यात्रा का विधान है । देश के सभी प्रान्तों के निवासी इनकी यात्रा कर स्वयं को धन्य मानते है ।
इन धामों पर यह विस्तृत लेख देखें ।
मोक्षदायिनी सप्त पुरी
अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिक:।
अयोध्या, मथुरा हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम् अवन्तिका (उज्जयिनी) तथा द्वारिका, ये सात मोक्षदायिनी पुरियाँ है। ये पुरियाँ सम्पूर्ण देश में अलग-अलग क्षेत्र व दिशा में स्थित होने के कारण राष्ट्र की एकात्मता की सुदूढ़ कड़ियाँ हैं। प्रत्येक भारतीय, भले ही वह किसी भी जाति, पंथ या प्रान्त का हो, श्रद्धा के साथ इन (सप्तपुरियों) की यात्रा के लिए लालायित रहता है।
इन पुरियों पर यह विस्तृत लेख देखें ।
द्वादश ज्योतिर्लिंग
अनादि काल से भारत एक इकाई के रूप में विकसित हुआ है। यहाँ विकसित सभी मत-सम्प्रदायों के तीर्थ-स्थान सम्पूर्ण देश में फैले हैं। शैव मत के अनुयायियों के लिए पूज्य १२ शिव-मन्दिरों के शिवलिंगों को द्वादश ज्योतिर्लिंग नाम से अभिहित किया गया है। ये सम्पूर्ण देश में फैले होने के कारण राष्ट्र की एकात्मता के भी प्रतीक हैं।
इन द्वादश ज्योतिर्लिंग पर यह विस्तृत लेख देखें ।
शक्तिपीठ
भारतवर्ष भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से एक रहा है । समय - समय पर विकसित उपासना पद्धतियों से इसकी एकात्मता अधिक पुष्ट हुई है । विभिन्न पन्थो के पवित्र तीर्थ समस्त राष्ट्र में फैले हुए है । सम्पूर्ण भारत भूमि उनके लिए पवित्र है । शैव मतावलम्बियों के प्रमुख तीर्थ सभी दिशाओं में फैले है । शक्ति के उपासको के पूज्य तीर्थ शक्तिपीठ भी इसी प्रकार सर्व दूर एकात्मता का सन्देश देते है । इनकी संख्या ५१ है । तंत्र - चूड़ामणि में ५३ शक्ति पीठो का वर्णन किया गया है , परन्तु वामगंड (बाएं कपोल ) के गिरने की पुनरुक्ति हुई है , अतः ५२ शक्ति पीठ रह जाते है । प्रसिद्धि ५१ शक्तिपीठो की ही है । शिव - चरित्र , दाक्षायणीतंत्र एवं योगिनीहृदय - तंत्र में इक्यावन ही गिनाये गये है ।
इन शक्तिपीठों पर यह विस्तृत लेख देखें ।
उत्तर- पश्चिम एवं उत्तर भारत
अमरनाथ
कश्मीर हिमालय में स्थित महादेव शिव का स्थान है। यहाँ लगभग १५ फूट ऊँची प्राकृतिक गुफा में हिम का शिवलिंग है। हिम का यह शिवलिंग प्रत्येक मास की शुक्ल प्रतिपदा को बनना प्रारम्भ होता है, पूर्णिमा को पूर्णकार होकर कृष्णपक्ष में धीरे-धीरे घटता है। श्रावण पूर्णिमा (रक्षाबन्धन) को यहाँ बृहत् समागम होता है। देश के सभी भागों से एकत्र भक्तजन श्रद्धा से पूजा-अर्चना करते हैं।
श्रीनगर
वर्तमान जम्मू-कश्मीर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। आद्य शंकराचार्य ने इस क्षेत्र की यात्रा की और एक पहाड़ी पर शिवलिंग स्थापित किया। इस पहाड़ी का नाम शकराचार्य पर्वत और मन्दिर शंकराचार्य मन्दिर के नाम से विख्यात हैं। शंकराचार्य पर्वत की तलहटी में शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठ भी है। पास में एक मस्जिद भी हैं जो मन्दिर के ध्वंसावशोष से बनी है। स्थानीय जनता इसे काली मन्दिर का स्थान मानती है और लोग मस्जिद के कोने में स्थित जलस्रोत की पूजा कर सन्तुष्टिप्राप्त करते हैं। श्रीनगर में हरिपर्वत पर निर्मित एक परकोटे में मन्दिर और गुरुद्वारा बने हैं। सैन्य-सुरक्षित क्षेत्र होने के कारण इनकी पवित्रता अभी तक अक्षुण्ण है। श्रीनगर के आसपास अनेक तीर्थ स्थल बिखरे पड़े हैं। जिनमें क्षीरभवानी, अनन्त नाग, मार्तण्डमन्दिर(मट्टन),पुंछ(बूढ़ेअमरनाथ) आदि प्रमुख हैं।श्रावण मास मेंअमरनाथ जाने वाली यात्रा (छड़ी साहब) यहीं से प्रारम्भ होती है।
वाराहमूल (बारामूला)
श्रीनगर से पश्चिमोत्तर दिशा में वाराह मूल स्थित है।इसका सम्बन्ध वाराह अवतार से जोड़ा जाता है। जब हिरण्याक्ष्य पृथ्वी का अपहरण कर पाताल ले गया तो भगवान विष्णु ने वाराह अवतार धारण कर उस अत्याचारीसे पृथ्वी को मुक्त कराया। कई प्राचीन मन्दिर तथा तीर्थों के ध्वंस अवशेष यहाँ आज भी विद्यमान हैं।
वैष्णवी देवी
जम्मू से लगभग ७० कि. मी. दूर माता वैष्णवी का पावन स्थान है। जम्मू के बाद कटरा नामक स्थान से १३ किमी. चढ़ाई पैदल चलकर यात्री माता के दर्शन करता है। यहाँ एक पर्वत-कन्दरा में महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली की मूर्तियाँ स्थापित हैं इन प्रतिमाओं के चरणों से निरन्तर जल प्रवाहित होता रहता है। इसे बाणगंगा कहते हैं। वैष्णवी देवी सिद्धपीठ माना जाता है।
जम्मू
यह वर्तमान जम्मू-कश्मीर की शीतकालीन राजधानी है। यहाँ कई प्राचीन तथा भव्य मन्दिरहैं। जम्मू नगर की स्थापना राजा जम्बूलोचन ने ३ हजार वर्ष पूर्व की। जम्बूलोचन केभाई नेतवी नदी के तटपर एक दुर्ग बनवाया। उसके अवशोष नदी के तट पर आज भी विद्यमान हैं। यहाँ मौर्य तथा गुप्तकालीन अवशेष भी मिले हैं।जम्मू डोगरा की केन्द्रीय कार्यस्थली रहा है। प्रसिद्ध रघुनाथ मन्दिर यहीं पर स्थित है।
पुरुषपुर (पेशावर)
वायव्य (पश्चिमोत्तर) प्रान्त की राजधानी। खैबर दरें से आने वाली विदेशी आक्रान्ताओं को धूल चटाने का सौभाग्य इस नगर को प्राप्त हुआ है। पुरूषपुर कुभा (काबुल) नदी के तट पर स्थित है। इस नदी का उद्गम वर्तमान काबुल नगर से आगे हिन्दुकुश पर्वतमाला में है।
तक्षशिला
प्राचीन शिक्षा-केन्द्र जो रावलपिण्डी के पास स्थित हैं। आचार्य चाणक्य इसी विद्यापीठ के स्नातक थे जो कालान्तर में यही परआचार्य बने तथा चन्द्रगुप्त आदि राष्ट्रपुरूषों का निर्माण कर उन्होंने आचार्य विशेषण को सार्थक किया।अपने पूर्वज महाराजा परिक्षित की सर्पदंश से हुई मृत्यु का प्रतिकार करने के लिए जन्मेजय ने यहीं नागयज्ञ किया था। महर्षि वैशम्पायन ने महाभारत का प्रथम पाठ यहीं पर सुनाया था। पाणिनि ने भी यहाँ अध्ययन किया।
काबुल (कुभानगर)
आधुनिकअफगानिस्तान की राजधानी, हिन्दूकुश पर्वतमाला की तराई में स्थित है। महाभारतकालीन उपगणस्थान (अफगानिस्ता) जिसे अहिंगण स्थान भी कहा जाता था। यह प्राचीन नगर है। काबूल से आगे ईरान (आर्यान) की सीमा तक क्रमु (वर्तमान कुर्रम), सुवास्तु (स्वात),गोमती(गुमल) आदि नदियों के क्षेत्र में विकसित गणराज्यों का यह केन्द्र रहा है। इन गणराज्यों ने दो शताब्दियों तक मुस्लिम आक्रमण रोके रखा।
पंजा साहिब
तक्षशिला के समीप स्थित इस स्थान की गुरु नानक देव ने यात्रा की तथा पीरअली कन्धारी नामक धर्मान्ध मुस्लिम पीर के अत्याचारों से जनता को मुक्ति दिलाकर अजस्त्रधारा जल की उत्पत्ति की। पीर अली ने क्रोधित होकर एक विशाल पर्वतखण्ड गुरु नानक की ओर धकेल दिया।अपनी ओर पर्वतखण्ड को आता देख श्री नानकदेव ने अपना पंजा अड़ाकर उसे रोक दिया। आज भी वह पंजा और उसकी रेखाएँ यहाँ स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। विधर्मी लोगों द्वारा खोदने पर पंजा पुन: वैसा ही हो जाता है। यहाँ पवित्र गुरुद्वारा तथा तालाब है। वैशाख मास की प्रथम तिथि को यहाँ मेला लगता था,परन्तुआजकल सीमित संख्या में ही तीर्थयात्री यहाँ पहुँच पाते हैं ।
साधुवेला तीर्थ
पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में सक्खर नगर के पास यह तीर्थ क्षेत्र स्थित हैं। यहाँ अनेक पक्के घाट तथा ध्यान करने के स्थान बने हैं। तीर्थ क्षेत्र में भगवान राम, लक्ष्मण, सीता, पवनपुत्र हनुमान, गणेश दुग, महादेव शिव के मन्दिर बने हैं। पाकिस्तान बनने से पूर्व यहाँ नियमित रूप से कथा-प्रवचन, कीर्तन व धमॉपदेश होते थे, परन्तु पाकिस्तान बनने के बाद यहाँ की दशा शोचनी हो गयी है।
कटाक्षराज (कटास राज )
लाहौर, पेशावर रेल मार्ग पर कटाक्षराज नामक स्थान पर यह प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र है। यहाँ पर प्रतिवर्ष वैशाख संक्रांति के अवसर पर ५ दिन का मेला लगा करता था। संक्रांति के दिन यहाँ स्थित तालाब में स्नान का विशेष महात्म्य है।तालाब का नाम अमर कुण्डहै। पाकिस्तान बनने के बाद यहाँ पर मेला बन्द हो गया। अब पुन:इस क्षेत्र की यात्रा प्रारम्भ हुई है। तालाब के पानी का उपयोग आसपास के गावों में सिंचाई के लिए किया जाने लगा है।
ननकाना साहब
सिक्खों का प्रमुख तीर्थ स्थान हैं यहाँ प्रथम गुरु नानकदेव जी का जन्म तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था। वहीं पर गुरुद्वारा बना है। प्रारम्भ में यहाँ पर तीर्थयात्रा की कोई व्यवस्था नहीं थी, परन्तु इधर पिछले कुछ वर्षों से गुरु नानक देव के जन्म-दिवस पर यात्रा की व्यवस्था की जाती हैं ।
हिंगलाज
यह ५१ शक्तिपीठों में से एक है। परन्तु पाकिस्तान (बलोचस्थान) में होने के कारण यहाँ भक्तगण इस पीठ के दर्शनों से वंचित रहते हें। यह स्थान हिंगोल नदी के तट पर स्थित है। प्रमुख स्थान गुफा में है जहाँ भगवती के दर्शन पृथ्वी सेनिकली ज्योति के रूप में होते हैं। साथ में काली मां के भी दर्शन किये जा सकते हैं। भगवती सती का ब्रह्मरिन्ध यहाँ गिरा था; उसी स्थान पर शक्तिपीठ का उद्भव हुआ।
मुलस्थान (मुल्तान)
पंजाब (पाकिस्तान) में स्थित यह नगर दैत्यराज हिरण्यकशिपु की राजधानी तथा भक्त प्रहलाद का जन्म-स्थान है। यहीं पर नृसिंह अवतारलेकर भगवान ने निरंकुश हिरण्यकशिपु का वध किया।भगवान नूसिंह काभव्य मन्दिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था मेंआज भी है। नृसिंह चतुर्दशों को यहाँ मेला लगता था। पास में ही सूर्यकुण्ड सरोवर है वहाँ पर माघ शुक्ल षष्ठी व सप्तमी को भी मेला लगता था, परन्तु आज सब अस्त - व्यस्त है । प्रहलादपुरी इसका पुराना नाम था।
लवपुर (लाहौर)
भगवान राम के पुत्र लव द्वारा बसाया गया। प्राचीन नगर। महाराजा रणजीत सिंह की राजधानी यह नगर रहा। धर्मवीर हकीकत की समाधि यहीं पर है। गुरु अर्जुनदेव का बलिदान यहींहुआ। कई मन्दिर व गुरुद्वारे यहाँ आज वीरान पड़े है। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान रावी-तट पर स्थित इसी नगर में कांग्रेस ने १९२९ में पूर्ण स्वराज्य-प्राप्ति को अपना लक्ष्य घोषित किया।
करवीर
यहाँभगवती जगज्जननी का मन्दिर है. इसे शक्तिपीठ माना गया है। सिन्ध प्रांत में यह स्थित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार सती के नेत्र यहाँ गिरे थे।
मोहनजोदड़ो व हड़प्पा
सिन्धुघाटी सभ्यता से सम्बन्धित नियोजित नगर-द्वय । लगभग ६००० वर्ष पहले इन नगरों का विकास हुआ था। बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में यहाँ खुदाई प्रारम्भ की गयी। तब ही इनका पता चला। इन नगरों का विकास नियोजित व व्यवस्थित रूप से किया गया था। सड़क मार्ग, पीने नगरों में उत्तम रीति से उपलब्ध करायी गयीं थीं। हड़प्पा नगर साहीवाल जिला पं. पंजाब में तथा मोहनजोदड़ो सिन्ध (पाकिस्तान) में स्थित है।
कराची
सिन्धु नदी के मुहाने पर स्थित यह नगर पाकिस्तान का प्रमुख पत्तन (बन्दरगाह) है। पाकिस्तान का यूरोप के देशों के साथ व्यापार में इसका सर्वाधिक योगदान रहता है। अखण्ड भारत में कराची का पृष्ठपेद्रश पंजाब व गुजरात तक फैला था। विभाजन के बाद कराची पाकिस्तान में चला गया, जिससे भारत के उत्तर-पशिचमी भागों के लिए नये पत्तन का निर्माण आवश्यक हो गया। कच्छ की खाड़ी पर स्थित कांदला पत्तन के विकास से यह कमी पूरी हो पायी है।
श्री महावीर जी
यह जैन समाज का प्रमुख तीर्थ है। यहाँ वर्षभर लाखों तीर्थयात्री भगवान महावीर स्वामी के दर्शनार्थ आते रहते हैं। श्रद्धालुओं का ऐसा विश्वास है कि यहाँ उनकीमनोकामना पूरी हो जाती है। मन्दिर में महावीर स्वामी की कत्थई रंग की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा एक भक्त ग्वाले को भूमि केअन्दर दबी मिली थी जिसे पास में प्रतिष्ठित करा दिया गया। मन्दिर का निर्माण भरतपुर के दीवान जोधराज ने कराया। मन्दिर के चारों ओर तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए कई धर्मशालाएँ बनी हैं। जैनियों के अतिरिक्त भी सभी स्थानीय लोग महावीर जी के प्रति श्रद्धा रखते हैं। सम्पूर्ण उत्तर भारत में इस तीर्थ की अतिशय क्षेत्र के रूप में मान्यता है।
रणथम्भौर ( सवाई माधोपुर )
यह एक ऐतिहासिक दुर्ग है। दुर्ग के परकोटे में गणेश जी की विशाल प्रतिमा है। अलाउद्दीन खिलजी को पराजित करने वाले हमीरसिंह कीराजधानी यहाँ थी। किले के पास ही पहाड़ी पर अमरेश्वर-शैलेश्वर के प्राचीन मन्दिर हैं।थोड़ी दूरी पर सीता जी का मन्दिर है जहाँ पर सीताजी के चरणों के पास से निरन्तर जल प्रवाहित होता रहता है।
जयपुर
जयुपर राजस्थान की वर्तमान राजधानी व प्रसिद्ध नगर है। इसकी स्थापना महाराजा जयसिंह ने की थी। नगर के भवन प्राय: गुलाबी पत्थर के बने हैं। नगर के चारों ओर चारदीवारी बनायी गयी हैं, जिसमें सात द्वार बनाये गये हैं। नगर में कई दर्शनीय व पूजनीय स्थान है। हवामहल, सिटी पैलेस, राम बाग, जन्तर-मन्तर, केन्द्रीय संग्रहालय प्रमुख दर्शनीय स्थान हैं।आमेर का किला, नाहरगढ़ का किला जयपुर के पास पुराने किले हैं। श्री गोविन्द देव, श्री गोकुलनाथ जी नामक पवित्र मन्दिर हैं। इन मन्दिरों में स्थापित प्रतिमाओं को औरंगजेब के शासनकाल में वृन्दावन से यहाँ लाया गया था। इनके अतिरिक्त विश्वेश्वर महादेव, राधा-दामोदर अन्य प्रमुख मन्दिर हैं। जयपुर का जन्तर-मन्तर ज्योतिष तथा खगोलीय ज्ञान के लिए महत्वपूर्ण है ।
अजमेर ( अजयमेरु )
पहाड़ियों से घिरा हुआ सुरम्य स्थल हैअजमेर। पहाड़ी की तलहटी में तारागढ़ नामक दुर्ग है।अजमेर अजयमेरू का अपभ्रंश है। चौहान राजा अजयपाल ने इसकी स्थापना की थी तथा सुरक्षा की दृष्टि से एक सुदृढ़ किला भी बनवाया। पृथ्वीराज विजय’ तथा ‘हम्मीर महाकाव्य में इस बात का प्रमाण भी मिलता है। कुछ विद्वानों के अनुसार महाभारत काल में अजय मेरू विद्यमान था। महमूद गजनवी ने सन् १०२५ में इस नगर को लूटा। अजमेर कभी चौहान, कभी पठान, कभी राठौर तो कभी मुगल शासकों के अधीन रहा। अजमेर के आसपास के राज्य को पुराने समय में सपादक्ष के नाम सेपुकारा जाता था। कर्नल टॉड के अनुसारअजमेर का आधा दिन का झोपड़ा' हिन्दू मन्दिर का विध्वंस करके बनाया गया था। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह अजमेर का मुख्य आकर्षण है। ख्वाजा विदेश आक्रान्ता शहाबुद्दीन गौरी के साथ दिल्ली आये और अजमेर में रहने लगे। संक्षेप में अजयमेरू (अजमेर) ने उत्थान व पतन दोनों इझेले हैं।अजमेर के पास ही पवित्र पुष्कर झील है।
जोधपुर
जोधपुर थार के मरूस्थल का प्रवेश-द्वार कहा जा सकता है। इसकी स्थापना सन 1459 ई. में कु. जोधासिंह ने कीथी। यहाँ पर पहाड़ी पर एक सुदृढ़ किला बना हुआ है। नगर के चारों ओर परकोटा है। अनेक झील, महल तथा मन्दिर नगर के सौन्दर्य को बढ़ाते हैं। मोतीमहल, फूलमहल तथा मानमहल यहाँ के दर्शनीय भवन हैं। अनेक वैष्णव, शैव तथा जैन मन्दिर यहाँ पर विद्यमान हैं। जोधपुर में विजयादशमी आदि पवाँ पर मेले का आयोजन भी किया जाता है।
कोटा-बूढ़ी
नगरद्वय राजस्थान के प्रमुख नगरहैं और राजपूतीइतिहास के साक्षी हैं। यहाँ (कोटा) का पुराना राजवंश वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित रहा है। अतः यहाँ वल्लभ सम्प्रदाय के कई पुराने व सुन्दर मन्दिर हैं।पुराने किले में भी मधुरेश, श्री नवनीतप्रिया, बालकृष्ण आदि मन्दिरहैं। नगर के पूर्व में किशोर सागर नामक पवित्र सरोवर हैं। भीमताल, क्षेमकरी देवी मन्दिर, रामेश्वर आदि बून्दी के समीपवर्ती धार्मिक स्थान हैं।
नाथद्वारा
उदयपुर से ४८ कि.मी. दूर बनास नदी पर नाथद्वार स्थित है। यहाँ भगवान श्रीनाथ का सुन्दर मन्दिर है। श्री नाथजी की प्रतिमा मूलत: वज्रभूमि में गोवर्धन पर प्रतिष्ठित थी। औरंगजेब के शासन के दौरान वहाँ से हटाकर नाथद्वारा मेंप्रस्थापित करा दी गयी। स्वयं महाप्रभु वल्लभाचार्य श्री विग्रह को लेकरआये थे। अत: यह स्थान वल्लभाचार्य के शिष्यों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। नाथद्वारा में वनमाली जी का मन्दिर, मीरा मन्दिर, नवनीतलाल जी का मन्दिर तथा अन्य प्रमुख मन्दिरहैं। नाथद्वारा मन्दिर के माध्यम से यहाँ हस्तलिखित व मुद्रित ग्रन्थों का विशाल पुस्तकालय संचालित किया जाता है।
एकलिंग जी
उदयपुर से नाथद्वारा जाते समय रास्ते में भगवान एकलिंगजी का पवित्र स्थान पड़ता है। एकलिंग जी मेवाड़भूषण बप्पा रावल से लेकर महाराणा राजसिंह तक प्रतापी नरेशों की प्रेरणा देने वाला आराध्य देव है। महाराणा प्रताप ने इन्हीं एकलिंग जी का पुण्य स्मरण करमुगलों से लोहा लिया औरअपनी मातृभूमि मेवाड़ की स्वतंत्रता अक्षुण्ण रखी। यहाँ भगवान एकलिंग जी का चतुर्मुखी विग्रह एक विशाल मन्दिर में प्रतिष्ठित है।थोड़ी दूर पर इन्द्र सागर नामक सरोवर है। सरोवर के आसपास गणेश, धारेश्वर, लक्ष्मी के मन्दिर बने हैं। वनवासिनी देवी का पवित्र मन्दिर यहाँ से कुछ दूर है।
आबू (अर्बुदाचल )
राजस्थान का यह अति सुन्दर व पवित्र स्थान अरावली पर्वतमाला के दक्षिणी भाग में स्थित है। यह पावन क्षेत्र समुद्रतल से १२२० मीटर ऊँचाई पर है। महाभारत के अनुसार मथुरा से द्वारिका जाते हुए भगवान श्रीकृष्ण यहाँ रुके थे। यहाँ पर वसिष्ठ मुनि का आश्रम था,अत:अति प्राचीन समय से यह पवित्र तीर्थ स्थान रहा है। उत्तरी पहाड़ी पर विश्व-प्रसिद्ध दिलवाड़ा के जैन मन्दिरहैं जो कला की दृष्टि से विश्व में बेजोड़ कहे जा सकते हैं। दूर-दूर से जैन तीर्थयात्री यहाँआते रहते हैं। एक शिखर पर अचलेश्वर लिंग तु वर्तते यत्र वीरक। (स्कन्दपुराण-माहेश्वर खण्ड-५९२६८) इस क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी अर्बुदादेवी का मन्दिर है और थोड़ी दूर पर अचलेश्वर महादेव विराजमान हैं। अचलेश्वर महादेव परमार व चौहान नरेशों के कुलदेवता के रूप में पूजित हैं। स्कन्द पुराण में इसकी महिमा का बखान है।'आबू-नरेश धारावर्ष ने कुतुबुद्दीन ऐबक को सन् ११९७ ई. तथा शहाबुद्दीन गौरी को सन् ११७८ ई. में परास्त कर इस प्रेदश में घुसने से रोक दिया।आबू वैष्णव,शैव व जैन सम्प्रदाय के लोगों का तीर्थ स्थान तो है ही, ब्रह्मा कुमारी पंथ का भी पवित्रतम केन्द्र है।
चित्तौड़गढ़
राणा सांगा, बप्पा रावल के शौर्य से अलंकृत चित्तौड़गढ़ गम्भीर नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। चित्तौड़गढ़ का निर्माण कब हुआ, कहना कठिन है। कुछ विद्वानों का कहना है कि इसका निर्माण पाण्डवों ने किया तथा इसका मूल नाम चित्रा कोट है। यह मेवाड़ राज्य की राजधानी रहा हैं महारानी पदिमनी ने इसी गढ़ में जौहर किया। पन्ना धाय के बलिदान (उदय सिंह की रक्षा के लिए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान) का साक्षी भी है यह दुर्ग। दिल्ली का सुल्तान मोहम्मद तुगलक हमीर के हाथों यहीं पर परास्त हुआ तथा ५० लाख रूपये, एक सौ हाथी तथा विशाल क्षेत्र भेंट करने पर मुक्त हो सका था। यह दुर्ग राजस्थान के उन शूरवीरों का अमर स्मारक है जिन्होंने परतंत्रता के स्थान पर मरना बेहतर समझा और मातृभूमि की मुक्ति के लिए न केवल संघर्षरत रहे वरन् आक्रमणकारियों की आंधी को शान्त कर दिया। हल्दीघाटी, जयस्तंभ, प्रताप स्मारक, चेतक समाधि, शैव, वैष्णव व जैन मन्दिर यहाँ के आसपास ऐतिहासिक आकर्षण हैं।
बाड़मेर, बीकानेर, और जैसलमेर
ये तीनों नगर मरुस्थलीय क्षेत्र के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल हैं। यहाँ मन्दिर व खण्डहरों में हमारे संघर्ष का इतिहास बिखरा पड़ा है। जैसलमेर में कई प्राचीन व भव्य जैन मन्दिरहैं। यहाँ पर एक पुराना किला भी है जो अब स्थान-स्थान पर टूट रहा है। बाड़मेरऔर बीकानेर में भी कई जैन मन्दिर हैं। बीकानेर के पासअशोक के पौत्र का बनवाया हुआ मन्दिरआज भी विद्यमान है। लोककला की दृष्टि से ये नगर समृद्ध हैं। यहाँ पर कई मेले और उत्सव प्रतिवर्ष मनाये जाते हैं।
अमृतसर
पंजाब का धार्मिक-ऐतिहासिक नगर जो सिख पन्थ का प्रमुख तीथ-स्थान है। उसकी नींव सिख पन्थ के चौथे गुरु रामदास ने युगाब्द ४६७९ (सन् १५७७ ई.) में डाली। मन्दिर का निर्माण-कार्य आरम्भ होने से पूर्व उसके चारों ओर एक सरेवर बनवाया। मन्दिर-निर्माण का कार्य उनके पुत्र तथा पाँचवे गुरु श्री अर्जुनदेव ने हरिमन्दिर (स्वर्णमन्दिर) बनवाकर पूरा किया। सरोवर एवं हरिमन्दिर के पूर्ण होने पर गुरु अर्जुनदेव ने कहा भगवान की कृपा से ही यह कार्य पूर्ण हो सका है। जो भी इस सरोवर में स्नान करेगा उसे भारत के 64 तीर्थों के स्नान का पुण्य मिलेगा। महाराजा रणजीत सिंह ने मन्दिर कीशोभा बढ़ाने के लिए बहुत धन व्यय किया । अंग्रेजी दासता के काल में 13अप्रैल 1919 को स्वर्ण मन्दिर से लगभग दो फलॉग की दूरी पर जलियांवाला बाग में स्वतंत्रता की माँग कर रही एक शान्ति-पूर्ण सभा पर जनरल डायर ने गोलीचलाकर भीषण नरसंहार किया था। डेढ़ हजार व्यक्ति घायल हुए अथवा मारे गयेथे। वहाँ पर उन आत्म बलिदानियों की स्मृति में एक स्मारक बनाया गया है। बाग की दीवार पर उस बर्बरतापूर्ण घटना की साक्षीरूप गोलियों के निशान आज भी विद्यमान हैं। नगर में स्वर्ण मन्दिर केअतिरिक्त दुग्र्याणा मन्दिर, सत्य नारायण मन्दिर तथा लक्ष्मीनारायण मन्दिर प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।
ज्वालामुखी
हिमाचल प्रदेश के अन्तर्गत ज्वालामुखीदेवी प्रमुख शक्तिपीठ है। सती की जिहुवा इस स्थान पर गिरी थी। ज्वालामुखी देवी का ऊपरी भाग स्वर्णमण्डित है। मन्दिर के भीतरी भाग में कई स्थानों से अग्नि की लपटें निकलती रहती हैं। मन्दिर की पिछली दीवार से भी कई प्रकाश-पुंज निकलते हैं मन्दिर के सामने एक कुओं तथा एक कुण्ड है। आस-पास मेला लगता है। दूर-दूर से भक्त देवी-दर्शन के लिए यहाँ आते रहते हैं।
नैना देवी
आनन्दपुर साहिब से लगभग ३५ कि.मी. दूर एक मनोरम पहाड़ी पर भगवती नैना देवी का मन्दिर है। यह तीर्थ विलासपुर के समीप स्थित है। दशवें गुरु गोविन्दसिंह जी ने यहाँ चण्डी यज्ञ तथा तपश्चर्या की थी। नैना देवी एक सिद्धपीठहै।प्रतिवर्ष श्रावण शुक्लप्रतिपदा से नवमी तक यहाँ मेला लगता है। नवरात्र में असंख्य तीर्थयात्री यहाँ देवी-दर्शन को आते हैं।
आनन्दपुर साहिब
आनन्दपुर साहिब एक ऐतिहासिक व धार्मिक नगरहै। इसकी स्थापना नवें गुरु तेगबहादुर जी ने की थी। यहाँ पर कई प्रसिद्ध गुरुद्वारे हैं। यथा-श्री केशवगढ़ साहिब, लौहगढ़ तथा आन्नदगढ़ साहिब । कशगढ़ साहिब गुरुद्वारे के स्थान पर गुरु गोविन्दसिंह ने वैशाखी के पावन पर्व पर 'पंच प्यारों को दीक्षा देकर खालसा पंथ का श्रीगणेश किया तथा हिन्दू धर्म की रक्षा का दायित्व पूरा करने के लिए सैनिक वेश (पाँच कक्के)धारण करने का आदेश दिया । स्मरण रहे कि पंच प्यारे भारत के विभिन्न प्रान्तों के तथा भिन्न-भिन्न जातियों से लिये गये थे। यहाँ पर वैशाखी, होली के पर्वो पर बुहद् समागम आयोजित किये जाते हैं।
सरहिन्द
पंजाब प्रान्त के पटियाला जिले में सरहिन्द नामक स्थान सिख पंथ के अनुयायी जनों का प्रमुख प्रेरणा-स्रोत है। जब दशम् गुरु आततायियों से लोहा ले रहे थे, उस समय उनके पुत्र भी उनके साथ योगदान कर रहे थे। सरहिन्द के मुसलमान शासक ने गुरु गोविन्द सिंहपर दबाव डालने के लिए उनके सुकुमार पुत्रोंफतेह सिंह व जोरावर सिंह को धोखे से बन्दी बना लिया। मुसलमानों ने उन बच्चों को तौबा करने और इस्लाम कबूल करने के लिए अनेक लालच दिये। जब वे "स्वधर्म निधनों श्रेय: परधामों भयावह" केअनुसार टस सेमस नहीं हुए तो उन निर्दय विधर्मियों ने दोनों को किले की दीवार में जिन्दा चुनवा दिया। हरिसिंह नलवा के बाद में सरहिन्द के नवाब से गुरुपुत्रों की क्रूर हत्या का बदला लिया। आज देवी, काली अर्जुन देवी तथा अन्य कई मन्दिरहैं। नवरात्र में यहाँ विशाल सरहिन्द में स्थापित पवित्र गुरुद्वारा गुरुपुत्रों की शहादत का स्मारक बना हुआ है ।
चण्डीगढ़
वर्तमान हरियाणा व पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ नियोजन की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ नगर माना जाता है। इसका नाम यहाँ के प्राचीन चंडीदेवी मन्दिर के कारण चंडीगढ़ पड़ा। चंडी देवी का मन्दिर प्राचीन तथा सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ पर कई दर्शनीय पार्क तथा प्रसिद्ध संग्रहालय हैं। औद्योगिक विकास की दृष्टि से इस नगर ने काफी प्रगति की हैं।
शिमला
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला भारतवर्ष का प्रमुख पर्यटन-स्थल है।यहाँ की जलवायुशीतल व स्वास्थ्यवर्धक है।शीत ऋतु मेंयहाँ पर्याप्त हिमपात होता है। अनेक पर्यटक हिमपात के मनोरम दृश्य का आनन्द लेने सर्दियों में यहाँ पहुँचते हैं। अंग्रेजी शासनकाल में ब्रिटिश सरकार के प्रमुख कार्यालय ग्रीष्म ऋतु में शिमला में स्थानान्तरित हो जाते थे, अत: उस दौरान कई सरकारी भवनों तथा विश्रामगृहों का निर्माण हुआ। शिमला में भगवती दुग, काली आदि के कई प्रसिद्ध मन्दिर हैं।
कुरुक्षेत्र
विश्व के सर्वोत्कृष्ट ज्ञान 'गीता' का उपदेश कुरुक्षेत्र के पवित्र स्थल पर प्रकट हुआ। महाभारत के इस प्राचीन युद्धक्षेत्र का हमारे देश के इतिहास की प्रमुख घटनाओं से घनिष्ठतम सम्बन्ध है। थानेश्वर, पानीपत, तरावड़ी, कंथलआदि इतिहास-प्रसिद्ध युद्धमैदान कुरुक्षेत्र की भूमि में ही स्थित हैं। ३२६ ईसा-पूर्व से लेकर सन् ४८० ई.तक यह क्षेत्र मौर्य शासकों के अधिकार में रहा। कालान्तर में गुप्तवंश के राजाओं के राज्य का प्रमुख क्षेत्र रहा। इस दौरान यहाँ का सर्वतोमुखी विकास हुआ। प्रसिद्ध कवि बाणभट्ट ने हर्षचरित' में इस क्षेत्र के ऐश्वर्य का विस्तार से वर्णन किया है। महाभारत, पद्म पुराण, स्कन्दपुराण, शतपथ ब्राह्मण, यजुर्वेद आदि ग्रन्थों में इसका श्रद्धा के साथ वर्णन किया गया है। इस पवित्र क्षेत्र में अनेक यज्ञों का विश्वकल्याण के लिए आयोजन किया गया। यहाँ अनेक वाराहतीर्थ, शुकदेव मन्दिर, गीता मन्दिर,भगवती सती मन्दिर) विराजित हैं । द्वेपायन सरोवर के पास स्थित देवी-मन्दिर प्रधान शक्तिपीठ हैं। कहते हैं यहाँ सती का दक्षिण गुल्फ गिरा था।अन्त:सलिला सरस्वती इसी स्थान के पास से बहती थी। सूर्य-ग्रहण के समय यहाँ विशाल मेला लगता है। इस मेले में भारत के सभी प्रान्तों के नर-नारी एकत्र होते हैं तथा पवित्र सरोवर में स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं।
इन्द्रप्रस्थ(दिल्ली)
महाभारत में उल्लिखित यह नगर वर्तमान दिल्ली के समीप था, जिसे पाण्डवों ने बसाया था। कहा जाता है कि पहले या खाण्डव नामक बीहड़ वन था, जिसे काटकरइन्द्रप्रस्थ का निर्माण कराया गया। हस्तिनापुर का राज्य स्वयं लेने के लिए दुर्योधन के हठ और छल-प्रपंच के कारण कुरुवंश के राज्य का विभाजन कर पाण्डवों को यह बीहड़ प्रदेश दिया गया था। किन्तुमय दानव की अद्भुत स्थापत्यकला ने इन्द्रप्रस्थ की भव्यता प्रदान कर दी। युधिष्ठर ने यहीं राजसूय यज्ञ किया था। यह वर्तमान भारत संघ की राजधानी है। यहाँ अनेक ऐतिहासिक व धार्मिक स्थान हैं। विष्णुध्वज (कुतुबमीनार), पाण्डवों का किला, लालकोट, शीशगंज, रकाबगंज, भाई मतिदास चौकआदि ऐतिहासिक स्थान आज भी भारत के ज्ञान, वैभव और शौर्य की कहानी कहते हैं। योगमाया देवी, कालिका देवी, बिरला मन्दिर, संकट मोचन हनुमान मन्दिर, बौद्ध विहार, लालजैन मन्दिर, शीशगंज गुरुद्वारा, रकाबगंज गुरुद्वारा, दीवान हाल, आर्य समाज मन्दिर तथा गौरी-शंकर मन्दिर आदि नये-पुराने धार्मिक स्थल जनता की श्रद्धा के केन्द्र हैं। विदेशी आक्रमणों की आधी में दिल्ली कई बार उजड़ी और बसी है। यहाँ केअनेक प्राचीन मन्दिरऔर ऐतिहासिक स्थानों का रूप ही आक्रमणकारियों ने बदल दिया। आज जहाँ जामा मस्जिद है वहाँ कभी विशाल शिवालय था। दक्षिणी दिल्ली में एक पहाड़ी पर कालिका देवी का प्राचीन मन्दिर है, इसे शक्तिपीठ माना जाता है।
स्थानेश्वर
कुरुक्षेत्र के पास स्थित वर्तमान हरियाणा का प्रमुख ऐतिहासिक नगर। पवित्र सरोवर (ब्रह्मासर, ज्योतिसर), तीर्थ क्षेत्र (काम्यकत्वन, आदितिवन, इसको स्थाण्वीश्वर नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर पवित्र सरोवर के तटपर भगवान शिव का प्राचीन मन्दिरहै। पुराणों में इस सरोवर व मन्दिर की महिमा का वर्णन किया गया है। महाभारत युद्ध के समय भी इस पवित्र तीर्थ की मान्यता थी। युद्ध से पूर्व पाण्डवों ने यहीं पर शिव की पूजा-अर्चना की और विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया।
पानीपत
अनेक युद्धों का साक्षी पानीपत आजकल हरियाणा राज्य का प्रमुख औद्योगिक नगर है। पानीपत के प्रथम, द्वितीय और तृतीय युद्ध यहाँ लड़े गये। इन युद्धों का भारत के इतिहास मेंअतिविशिष्ट स्थान है। पानीपत ने भारत के उत्थान व पतन को कई बार देखा है।
कपिस्थल, पृथुदक, गुरुग्राम
कंथल (कप-स्थल), पेहोवा(पृथूदक) भी अति प्राचीन नगर और धार्मिक स्थान हैं। दिल्ली के निकट स्थित गुरुग्राम (गुड़गांव) सिद्धदेवीपीठ है। गुरुग्राम का सम्बन्ध कौरवों व पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य जी से है। आज भी यहाँ द्रोणाचार्य का मन्दिर बना हुआ है। भगवती देवी का भी यहाँ प्राचीन मन्दिर है। चैत्र नवरात्र में यहाँ दूर-दूर से देवी के भक्त आते हैं और मां भगवती के चरणों में श्रद्धा-सुमन चढ़ाते हैं हिमालय क्षेत्र में अनेक प्रमुख स्थान, पवित्र तीर्थ तथा मनोरम सुषमायुक्त नगर व क्षेत्र हैं। देश की एकात्मता व समरसता की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण स्थानों का विवरण यहाँ दिया जा रहा है।
यमुनोत्री व गंगोत्री
देवापग, पतित-पावनी गंगा का उद्गम गंगोत्री है। गांगोत्री शिखर समुद्रतल से लगभग ६५०० मीटर ऊँचा है। यहाँ सदैव हिमपात होता रहता है, अत: सारा प्रदेश हिमाच्छादित रहता है। पर्वतीय ढालों पर हिमानियाँ फिसलती हैं। ऐसी ही एक हिमानी गांगोत्री के नाम से जानी जाती है तथा इसके पिघलने से गंगा सदा स्वच्छ जल से आपूरित रहती है। यहाँ का मुख्य मन्दिर आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित है। इस मन्दिरमें गांगा मैया की भव्य प्रतिमा है। पास में ही सूर्यकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड तथा भागीरथ शिला है। जाड़ोंमें जब शीत का प्रकोप बहुत बढ़ जाता हैं तो पुजारी गंगा जी लिए बन्द हो जाता है। गंगोत्री के समान ही यमुनोत्री पवित्र शिखरहै। यह यमुना का उद्गम स्थान हैं। यद्यपि सारा क्षेत्र हिमाचछादित है. हिमानियों का सर्वत्र प्रसार हैं। तो भी यहाँ कई गर्म पानी के कुण्ड हैं। कई कुण्डों का जल तो इतना गरम है कि पोटली में आलू,चावल बांध कर थोड़ी देर पानी में डुबो देने से पक जाते हैं। बराबर में ही कनिन्दगिरि है जहाँ से हिम पिघल-पिघल कर यमुना में बहता जाता है।अत: यमुना का एक नाम कालिन्दी भी है। एक गर्म जल का झरना भी यमुना जी के मन्दिर के पास है। यमुना जी के मन्दिर में यमुना जी की प्रतिमा विराजमान है। हिमालय के गांगोत्री-यमुनोत्री क्षेत्र से उत्तर में तिब्बत जाने के लिए कई संकरे दरें हैं। नीति, माणा और शिप किला इनमें प्रमुख हैं। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से यह अति महत्व का क्षेत्र है।
नन्दादेवी
कुमायूँ. हिमालय के अन्तर्गत कईपर्वत-शखर स्थित है। केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री का वर्णन पहले किया जा चुका है। नीलकण्ठ, कामेत तथा नन्दा देवीअन्य प्रमुख उच्च शिखर हैं। नन्दादेवी इनमें सर्वोच्च है।इसकी समुद्रतल से ऊँचाई ७८१७ मीटर है। नन्दादेवी साक्षात् भगवती देवी का स्वरूप है। भाद्र शुक्ला सप्तमी को इस क्षेत्र की यात्रा होती है। यह यात्रा कब प्रारम्भ हुई कुछ पता नहीं चलता है।आसपास शिलासमुद्र, नन्दापीठ तीर्थ स्थित है। नन्दादेवी ने अत्याचारीअसुरों का वध कर इस क्षेत्र को मुक्ति प्रदान की थी।
ऋषिकेश
हरिद्वार से उत्तर-पूर्व में स्थित यह पवित्र तीर्थ शैव व वैष्णव दोनों द्वारा समान रूप से पूजनीय है। यहाँ से तीर्थयात्री गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ की यात्रा के लिएआगे बढ़ते हैं। श्रीराम मन्दिर,भरत मन्दिर, वराह मन्दिर प्रमुख मन्दिर हैं। मुनि की रेती, स्वगाँश्रम, परमार्थ निकेतन, लक्ष्मण झूला यहाँ के पवित्र दर्शनीय स्थान हैं।
मुक्तिनाथ
नेपाल स्थित यह नगर प्रसिद्ध तथा प्राचीन धार्मिक नगर है। भगवान शंकर और विष्णु यहाँ पर्वत रूप में स्थित हैं। पुलह और पुलस्त्य ऋषियों ने इस क्षेत्र को अपनी तपस्या से पावन किया। पवित्र शालिग्राम शिलाओं के लिए विख्यात गण्डकी नदी मुक्तिनाथ के पास से बहती है। यही वह स्थान है जहाँ भगवान विष्णुने भक्त हाथी को बलशाली ग्रह के जबड़ों से मुक्त कराया था। भगवती सती का दाहिना गण्डस्थल यहीं पर गिरा था। अत: भगवती के प्रमुख शक्तिपीठों में इसकी गणना की जाती है।
पशुपतिनाथ ( काठमाण्डू )
नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में विराजित पशुपतिनाथ भगवान शिव कीअष्ट मूर्तियों में प्रमुख है। विश्वभर के शैव मतानुयायी पशुपति नाथ के प्रति अविचल श्रद्धा रखते हैं। काठमाण्डू तीर्थस्थान बागमती व विष्णुमती नदियों के संगम पर बसा है। बागमती के तट पर नेपाल के रक्षक मस्येन्द्रनाथ और विष्णुमती के तट पर पशुपति नाथ विराजमान हैं। पशुपतिनाथ मन्दिरमें पंचमुखी शिवअधिष्ठित हैं। बाहर नन्दी की विशाल प्रस्तर-मूर्ति है। पशुपति नाथ सेथोड़ी दूर गुहुयेश्वरी देवी का मन्दिर है। यह विशाल व भव्य मन्दिर ५१ शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ सती के दोनों जानु गिरे थे। धवलगिरि, गौरीशंकर सरगमाथा (एवरेस्ट) तथा कचनजघा नेपाल स्थित हिमालय के उच्चतम शिखर हैं। धार्मिक व आध्यात्मिक दृष्टि से ये शिखर श्रद्धा के केन्द्र हैं। महाभारतादि ग्रन्थों में इनका वर्णन आया है। सागरमाथा (एवरेस्ट) विश्व का सर्वोच्च पर्वत है। इसकी समुद्रतल से ऊँचाई ८८४८ मीटर है। कच्चनजंघा नेपाल-सिक्किम सीमा स्थित पर्वत श्रृंग है। समुद्र-ताल से कंचनजघा की ऊंचाई लगभग ८५०० मीटर है।
लुम्बिनी
हिमालय की तलहटी में भगवान बुद्ध से सम्बन्धित अनेक स्थान महत्वपूर्ण हैं। जिनमें लुम्बिनी, कपिलवस्तु, श्रावस्ती, कुशीनगर तथा कौशाम्बी प्रमुख हैं। कपिलवस्तु के पास लुम्बनी में भगवान बुद्ध का जन्म हुआ। यहाँ पर अनेक बौद्ध विहार थे, जो अब नष्ट हो चुके हैं। सम्राट अशोक के एक स्तम्भ से, यहीं पर बुद्ध का जन्म हुआ, यह पता चलता है । स्तम्भ के पास ही एक ही स्तूप भी है जिसमे भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थित है ।
श्रावस्ती
श्रावस्ती बलरामपुर (उत्तरप्रदेश) के समीप स्थित सहेट-महेठ गाँव ही है। कहते हैं श्रावस्ती की स्थापना भगवान राम के पुत्र लव ने की थी। महाभारत काल में युधिष्ठिर के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े की रक्षा के लिए अर्जुन व सुधन्वा के मध्य यहीं पर युद्ध हुआ।भगवान बुद्ध यहाँ दीर्घकाल तक रहे।तीसरेतीर्थकर सम्भवनाथ का जन्मभी यहीं हुआ था। इस प्रकार श्रावस्ती बौद्ध व जैन दोनों का तीर्थ स्थान है। यहाँ पर कई जैन व बौद्ध मन्दिर धर्मशालाएँ तथा बौद्ध मठ हैं।
कुशीनगर
कुशीनगर(देवरिया)में 80 वर्ष कीआयु में भगवानबुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया। बौद्ध मत से सम्बन्धित परिनिर्वाण स्तूप तथा विहार स्तूप विशेष उल्लेखनीय हैं।पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई से इसके गौरवशाली अतीत की झांकी प्राप्त होतीहै।प्रयाग के पास स्थित कौशाम्बी भी भगवान बुद्ध से सम्बन्धित ऐतिहासिक नगरी है। काशी के पास विद्यमान उपनगर सारनाथ में भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश जनता को सुनाया,अत: यहभी प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ के रूप में जाना जाता है। भगवान बुद्ध तथा हिमालयक्षेत्र मेंस्थिति प्रमुख क्षेत्रों के वर्णन के बाद अब उत्तर प्रदेश के प्रमुख नगरों का वर्णन यहाँ दिया जा रहा है।
हस्तिनापुर
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में गांगा के किनारे यह गौरवशाली नगर स्थित है। हस्तिनापुर कुरुवंशी राजाओं की राजधानी रहा है। पुराने समय में हस्तिनापुर गांगा के किनारे स्थित था। बाद में गंगा की प्रमुख धारा यहाँ से लगभग 10 किमी. दूर हटगयी और हस्तिनापुर के पास एक पतली सी धारा रह गयी जो अब बूढ़ी गंगा के नाम से जानी जाती है। बौद्ध साहित्य में भी हस्तिनापुर को कुरुओं की राजधानी के रूप में निरूपित किया गया है। तीन जैन तीर्थकरोंशान्तिनाथ, कुन्थुनाथ औरअहंन्नाथ का जन्म यहीं है। स्तम्भ के पास ही एक स्तूप भी है जिसमें भगवान बुद्ध की प्रतिमा हुआ था।इन तीर्थकरों ने यहीं तपस्या की।आदि तीर्थकर श्रषभदेव जी भी यहाँ पधारे थे। अत: यह अतिशय क्षेत्र कहलाता है। यहाँ जैन मन्दिर तथा धर्मशालाएँ हैं।आज हस्तिनापुर जैनतीर्थों के रूप में पूजित है।
नैमिषारण्य
पुराणों का उद्गम स्थान नैमिषारण्य गोमती नदी के किनारे स्थितहै। नौ अरण्यों (वनों) में नैमिषारण्य प्रमुख माना जाता है। निमिष (समय की अतिसूक्ष्म इकाई) मात्र में दैत्यों का वध कर इस क्षेत्र को शान्तिक्षेत्र बनाने के कारण वराह पुराण में इसे नैमिषारण्य कहा गया है। भगवान के मनोमय चक्र की नेमि(हाल) यहाँ गिरी थी इसलिए भी यह नैमिषारण्य कहलाया। वायुपुराण के अनुसार आज भी सूक्ष्म शरीरधारी ऋषिगण लोककल्याण के लिए स्वाध्याय में संलग्न हैं। लोमहर्षक के पुत्र सौति उग्रश्रवा ने यहीं ऋषियों कोपुराण सुनाये। बलरामजीभी यहाँ पधारे और एक यज्ञ किया। यहाँ एक भव्य प्राकृतिक सरोवर है जिसके गोलाकार मध्यवर्ती भाग से जल निकलता रहता है। इसके चारों ओर कई मन्दिर व देवस्थान हैं।सोमवती अमावस्या को यहाँ मेला लगता है। प्रति वर्ष फाल्गुन अमावस्या से फाल्गुन पूर्णिमा तक यहाँ की परिक्रमा की जाती है।
गोलागोकर्ण नाथ
छोटी काशी नाम से प्रसिद्ध प्राचीन तीर्थ गोला गोकर्णनाथ भगवान शिव का प्रिय स्थान है। यहाँ भगवान शिव का आत्मतत्व लिंग अधिष्ठित है। प्रमुख मन्दिर एक विशाल सरोवर के किनारे स्थित है। मन्दिर व सरोवर बहुत अच्छी अवस्था में नहीं है। वहाँ स्वच्छता की व्यवस्था अति आवश्यक है। भारत में दो गोकर्णनाथक्षेत्र एक दक्षिण मेंतथा दूसरा गोला गोकर्णनाथ यहाँ विद्यमान है। देवताओं द्वारा स्थापित भगवान शिव का विग्रह यहाँप्राचीन काल से पूजित रहा है। आसपास के तीर्थों में भद्रकुण्ड, पुनभूकुण्ड, देवेश्वर महादेव, बटेश्वर तथा स्वर्णश्वर महादेव प्रमुख हैं। यहाँ शिवरात्रि तथा श्रावण पूर्णिमा को मेला लगता है।
लक्ष्मणपुर( लखनऊ )
रघुकुलभूषण श्रीराम के अनुज लक्ष्मणजी नेइस नगर की स्थापना की गोमती नदी के दोनों तटों पर बसा है। अतिप्राचीन नगर होने के कारण इसने भारत के उत्कर्ष औरअपकर्ष दोनों को देखा है। परतंत्रता के काल में इस नगर की मौलिकता समाप्त हो गयी। प्राचीन ऐतिहासिक स्थलों पर नये स्थान तत्कालीन शासकों ने जबरदस्ती बना दिये। प्रेसीडेन्सी भवन तथा इमामबाड़ा इसके प्रमुख उदाहरण हैं। वर्तमान में लखनऊ उत्तर प्रदेश प्रान्त की राजधानी है।
गोरखपुर
नाथ सम्प्रदाय का सबसे प्रमुख तीर्थस्थान गोरखपुर हीहै। योगियों में श्रेष्ठ गोरखनाथ जी ने जिस स्थान पर तपस्या की और जहाँ उन्होंने गहन समाधि का अभ्यास किया, वहीं पर बाबा गोरखनाथ का पावन मंदिर बना हुआ है। मुस्लिम शासनकाल में अनेक प्रतिकूल परिस्थितियों में भी इस तीर्थ की पवित्रता अक्षुण्ण रही। यह गोरख पंथियों की वीरता का ही प्रमाण है।अलाउद्दीन खिलजी ने एक बार इसकी पवित्रता भंग करने की कोशिश की थी, योगियों ने तुरन्त इसकी पवित्रता को प्रतिष्ठित कर दिखाया। औरंगजेब के शासनकाल में एक बार यह पवित्र मन्दिर ध्वस्त किया गया था,परन्तु फिर भत्तों की कर्मठता ने इसे अमरत्व प्रदान कर दिया। मन्दिर के केन्द्र में एक विस्तृत यज्ञस्थली है और पाश्र्व में एक दीपशिखा चारों ओर प्रकाश बिखेरती है। गीता प्रेस के वर्णन के बिना गोरखपुर का वर्णन अधूरा ही माना जायेगा। गोरखपुर स्थित यह प्रेस श्रद्धेय जयदयाल गोयन्दका और भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार की कर्मठता का जीता जागता उदाहरण है।इस प्रेस नेअति अल्प मूल्य परहिन्दूधर्म-ग्रन्थों का प्रचार-प्रसार किया औरइस प्रकार सांस्कृतिक धरोहर के पुनरुत्थान और संरक्षण के लिए सराहनीय योगदान दिया। प्रेस के परिसर में निर्मित लीलाचित्र मन्दिर दर्शनीय है।
सीतामढ़ी
जगज्जननी सीता का उद्भव यहीं हुआ था। यह स्थान लखनदेई नामक नदी के तट पर स्थित है। कहते हैं एक बार मिथिला राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए एक विशाल यज्ञ थी। लक्ष्मणपुर या लखनावती इसके प्राचीन नाम है। यह नगर पवित्र किया गया। मिथिला नरेश ने स्वयं हल चलाया तो वहाँ पर एक दिव्य कन्या प्रकटहुई। सीता (हल की खड) से उत्पन्न होने के कारण उसका नाम सीता पड़ा । यहाँ सीताजी का मन्दिर बना है। जिस स्थान पर सीताजी प्रकट हुई वहाँ यज्ञवेदी बनी हुई है।
जनकपुर (मिथिला)
जनकपुर का प्राचीन नाम मिथिला, तैरमुक्त विदेहनगर रहा। जनकपुर या मिथिला नेपाल राज्य के अन्तर्गत पड़ता है। यह मिथिला राज्य की राजधानी थी। महाराज जनक ने यहीं पर सीता स्वयंवर का आयोजन धनुष-यज्ञ के रूप में किया था। जनकपुर मेंएक प्राचीन दुर्ग के खण्डहर मिलते हैं जिसके चारों ओर शिलानाथ, कपिलेश्वर, क्षीरेश्वर तथा मिथिलेश्वर नामक प्राचीन शिव-मन्दिर हैं। गौतम, विश्वामित्र, याज्ञवल्क्य के आश्रम भी यहाँ पर थे। महाभारत युद्ध के बाद यह क्षेत्र निर्जन हो गया था। एकान्त के कारण कई सिद्ध ऋषियों ने यहाँ तपस्या की औरअक्षयवट के नीचे से राम पंचायतन की मूर्तियाँ निकलवाकर जनकपुर में प्रतिष्ठित करायीं।
मधुवनी
उत्तरी बिहार का अति प्राचीन नगर है। सीतामढ़ी से पूर्व की ओर स्थित इस नगर में प्राचीन मन्दिर है। आसपास के क्षेत्र में कई पुराने धार्मिक स्थल हैं।
पाटलिपुत्र
बिहार का सुप्रसिद्ध प्राचीन ऐतिहासिक नगर,जो अनेक साम्राज्यों और राज्यों की राजधानी रहा,आजकल पटना नाम से प्रसिद्ध है। प्राचीन समय में उसे पाटलिपुत्र' या पाटलीपुत्र के अतिरिक्त कुसुमपुर, पुष्पपुरी" या कुसुमध्वज नामों से भी जाना जाता था। यह गंगा और शोणभद्र (सोन) नदियों के संगम पर बसा है। ईसा से सैकड़ों वर्ष पूर्व बुद्ध के अनुयायी अजातशत्रु नामक राजा ने इस नगर का निर्माण करवाया था। स्वयं बुद्ध ने इसके उत्कर्ष की भविष्यवाणी की थी। यह दीर्घकाल तक मगध साम्राज्य की राजधानी रहा और इसने नन्द, मौर्य,शगु और गुप्त वंशों के महान् साम्राज्यों का उत्थान-पतन देखा। सिख पन्थ के दसवें गुरु श्री गोविन्द सिंह का जन्म पटना में ही हुआ था। स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद की भी यह कर्मभूमि रहा है। पाटलिपुत्र शक्तिपीठ के रूप में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जिस स्थान पर भगवती सती के पट(वस्त्र) गिरे, वहाँ पटन देवी का मन्दिर चिर काल से शक्तिपीठ के रूप में पूजित है। गुरु गोविन्द सिंह के जन्म-स्थान परपटना साहिब का प्रसिद्ध गुरुद्वारा बना हुआ है। प्रतिवर्ष पौष शुक्ल सप्तमी को यहाँ गुरु गोविन्द सिंह का जन्म महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।पटना सिद्ध क्षेत्र माना गया है। यहाँ कई जैन मन्दिर तथा बौद्ध मठ विद्यमान हैं। प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य आर्यभट्ट का जन्म यहीं हुआ था।आचार्य चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने भी पाटलिपुत्र में ही जन्म लेकर मां भारती की सेवा की।
वैशाली
बिहार की प्राचीन नगरी है। प्रसिद्ध लिच्छवि गणराज्य की राजधानी जिसे सम्पूर्ण वजिज संघ की राजधानी होने का भी गौरव प्राप्त है। यह नगरी एक समय अपनी भव्यता और वैभव के लिए सम्पूर्ण देश में विख्यात थी। २४ वें जैन तीर्थकर महावीर का जन्म वैशाली में ही हुआ था। इस नाते यह जैन पंथ का प्रसिद्ध तीर्थ एवं श्रद्धा का केन्द्र है। बुद्ध के समय में भारत के छ: प्रमुख नगरों में वैशाली भी एक थी।बुद्ध ने भी इस नगरी को अपना सान्निध्य प्रदान किया। वैशाली का नामकरण इक्ष्वाकुवंशी राजा विशाल के नाम पर हुआ माना जाता है। भगवान राम ने मिथिला जाते हुए इसकी भव्यता का अवलोकन किया था।
राजगृह
पटना से लगभग १०० किमी. दक्षिण-पूर्व में पहाड़ियों से घिरा हुआ 'राजगिर" (राजगृह) अति प्राचीन नगर है। यहाँ के प्रमुख स्थान हैं राजगृह, वसुमति, बृहद्पुर, गिरिव्रज। यह नगर बौद्ध, जैन तथा सनातनी हिन्दुओं का तीर्थ स्थान है। अनेक शताब्दियों तक राजगिरि मगध गणराज्य की राजधानी रहा। यहाँ परबौद्ध व जैन पंथों का विकास हुआ। इक्कीसवें तीर्थकर मुनि सुव्रतनाथ का जन्म, तप, ज्ञान, कल्याणक यहीं हुए।अन्तिम तीर्थकर महावीर स्वामी ने राजगिर में कई चातुर्मास किये। राजगिर के चारों ओर पाँच पहाड़ियाँ हैं जिन पर जैन व बौद्ध मन्दिर हैं। पहाड़ियों में कई झरने व कुण्ड हैं जिनमें ब्रह्मकुण्ड, सप्तर्षिधारा,गंगा-यमुना कुण्ड, अनन्त कुण्ड, काशीधारा प्रमुख हैं। झरनों में अनेक गन्धक के झरने हैं जिनमें व्याधि-हरण की अद्भुतक्षमता है। रास्वसंघ केआद्य सरसंघचालक डा. हेडगेवार भी यहाँ पधारे थे। वेणुवन, गृधकुटतथा सप्तपणीं बौद्धों के प्रसिद्धतीर्थ स्थान हैं। करकन्द निवास,पीपला गुफा, सोन भण्डार, रणभूमि (भीम-जरासंघ की), जीवक का आम्र कुंज, विश्वशांति स्तूप, बाण गंगा नामक कई दर्शनीय स्थान यहाँ हैं।
नालन्दा
राजगृह से लगभग 11 कि.मी. दूर नालन्दा विश्वविद्यालय के खण्डहर विद्यमान हैं। इसका इतिहास बहुत प्राचीन है। ईसा के कई शताब्दी पूर्व इसकी स्थापना हुई। इस विश्वविद्यालय में संसार के समस्त देशों से विद्याथीं विद्यार्जन के लिएआतेथे।अनेक शताब्दियों तक यह विश्वविद्यालय ज्ञान-सुरभि चतुर्देिक फैलाता रहा। नागार्जुन,शीलभद्र, दिडनाग, धर्मकीर्ति आदि विख्यात आचार्यइस विश्वविद्यालय के शिक्षक रहे।मुस्लिम आक्रमण के समय यह विश्वविद्यालय छवस्त कर दिया गया। इस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय इतना विशाल था कि बख्तियार खिलजी ने जब उसमें आग लगवायी तो वह कई मास तक जलता रहा। नालंदा बौद्ध, जैन तथा सनातनियों का पूज्य स्थल है। यहाँ सूर्य मन्दिर व सरोवर तथा कई जैन व बौद्ध मन्दिर विद्यमान हैं। नालंदा की खुदाई से अनेक महत्वपूर्ण सामग्री प्राप्त हुई जिनसे इसके वैभव का पता चलता है।
पावापुरी
यह प्रसिद्ध जैन तीर्थ हैं। 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी ने यहाँ दीपावली के दिन निर्वाण प्राप्त किया। जहाँ महावीर स्वामी का शरीरान्त उसके बीचोंबीच संगमरमर का भव्य मन्दिर बना है। इसे जल मन्दिर कहा जाता है। जलमन्दिरमें महावीर स्वामी, गौतम स्वामी और सुधर्मस्वामी के चरण-चिह्न अंकित हैं। यहाँ पर दिगम्बर व शवेताम्बर दो सम्प्रदायों के मन्दिरऔर धर्मशालाएँ हैं।प्रतिवर्ष दीपावली केअवसर पर सम्पूर्ण देश से जैन मतावलम्बी यहाँ एकत्रित होते हैं।इसका प्राचीन नाम अपापा पुरी है।
पारसनाथ पहाड़ी ( सम्मेदशिखर )
पारसनाथ पहाड़ी 23वें तीर्थकर पारसनाथ जी से सम्बन्धित है। यहाँ उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया था। पारसनाथ पहाड़ी बहुत ही सुरम्य व प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर है। पहाड़ी परभगवान पारसनाथ का सुन्दर मन्दिर हैं जिसमें पारसनाथ की काले पत्थर की भव्य प्रतिमा स्थापित है। स्थानीय जनता पारस नाथ पहाड़ी को देवी स्थल मानकर श्रद्धा रखती है। इसे सम्मेद शिखर भी कहते हैं। सभी जैन सम्प्रदाय इसे परम पवित्र क्षेत्र मानते हैं। यहाँ परएक अन्य मन्दिर में तीर्थकरों की मूर्तियाँ स्थापित हैं। एक स्थानीय मान्यता के अनुसार इस पर्वत की वन्दना से नरकवास से बचा जा सकता है।
महिषी
महिषी मण्डन मिश्र का निवास स्थान है। इसका प्राचीन नाम सहषाँ भी है। यही वह स्थान है जहाँ पर मण्डन मिश्र और जगद्गुरु आदि शंकराचार्य का इतिहास-प्रसिद्ध शास्त्रार्थ हुआ था। मण्डन मिश्र आदि जगद्गुरु के तकों का सामना नहीं कर सके और पराभूत हो शंकराचार्य के शिष्य बन गये। परन्तु मण्डन मिश्र की धर्मपत्नी ने शंकराचार्य से दाम्पत्य जीवन से सम्बन्धित प्रश्न पूछकर उन्हें निरुत्तर कर दिया। तब शंकराचार्य ने उस प्रश्न का उत्तर देने के लिए समय माँगा लिया। तत्पश्चात् एक राजा की मृत देह में प्रवेश कर उन्होंने इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त किया, तभी शंकराचार्य को विजयी माना गया। यह स्थान उत्तर बिहार में नेपाल सीमा के पास स्थित है।
राँची
हजारीबाग के पठारी व पर्वतीय प्रदेश में स्थित यह आधुनिकऔद्योगिक हुआ, वहाँ एक प्राचीन मन्दिर बना हुआ है। समीप ही एक सरोवर और नगर है। इसे बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी होने का भी श्रेय प्राप्त है। रॉची समुद्रतल से लगभग 700 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। रॉची के चारों ओर प्राकृतिक छटा बिखरी पड़ी है। इसके पास में एक पहाड़ी पर स्थित शिव मन्दिर रॉची के सौन्दर्य को भव्यता प्रदान करता हैं। बिहार के सुन्दरतम प्राकृतिक जल-प्रपात रॉची के समीपवर्ती प्रदेश में पड़ते हैं। इनमें सुवर्ण रेखा नदी पर 107 मीटर ऊँचा हुण्डु, प्रपात तथा इसकी सहायक नदी परजोन्हा प्रपात प्रमुख हैं। रॉची बिहार का औद्योगिक नगर है।जहाँ यंत्र-निर्माण तथा खनिजों से सम्बन्धित उद्योगों का विकास हुआ है। झारखण्ड प्रदेश बनाने के उपरान्त अब रॉची उसकी राजधानी है।
जमशेदपुर ( टाटा नगर )
आज से लगभग ९० वर्ष पूर्व कोई नहीं जानता था कि थोड़े ही दिनों में छोटा सा साक्ची गाँव दुनियाभर में इस्पातनगरी के रूप में प्रसिद्ध हो जायेगा। परन्तुआज यह बात प्रसिद्ध उद्यमी जमशेदजी टाटा के अथक परिश्रम से सर्वविदित है। १९०७ में श्री टाटा ने यहाँ इस्पात का एक कारखाना लगाया और देखते ही देखते पुराना साकची गाँव जमशेदपुर (टाटा नगर) में बदल गया।जमशेदपुर इस बात का जीता-जागता प्रमाण है कि भारत में सभी समुदायों के लोगों को उन्नति के न केवल समान अवसरप्राप्त हैं वरन् वे उन्नति करते-करते चरमोत्कर्ष पर पहुँच सकते हैं।स्मरण रहे कि जमशेद जी टाटा पारसी समुदाय से सम्बन्धित हैं। यह समुदाय सैकड़ों वर्ष पहले मध्य पूर्व से इस्लाम के अनुयायियों से मार खाकर भारत में आया और यहाँ की उन्नति में ही अपनी उन्नति समझने लगा। जमशेदपुर भारत के स्वच्छतम नगरों में गिना जाता है। पास में पहाड़ी पर विजयतारा देवी का मन्दिर, रुद्र हनुमान मन्दिरऔर गुफा में दलमेश्वर शिव, शीतलादेवी तथा कालमैरव मन्दिर स्थित हैं।
गया
बिहार राज्य में फल्गु नदी के तटपर बसा प्राचीन नगरहै। जिसका उल्लेख पुराणों, महाभारत तथा बौद्ध साहित्य में हुआ है। पुराणों के अनुसार गाय नामक महापुण्यवान् विष्णुभक्त असुर के नाम पर इस तीर्थ नगर का नामकरण हुआ। मान्यता है कि गया में जिसका श्राद्ध हो वह पाप मुक्त होकरब्रह्मलोक में वास करता है।भगवान रामचन्द्र और धर्मराज ने गया में पितृश्राद्ध किया था। पितृश्राद्ध का यह विख्यात तीर्थ है। विष्णुपद मन्दिर यहाँ का प्रमुख दर्शनीय स्थान है। गौतम बुद्ध को यहाँ से कुछ दूरी पर बोध प्राप्त हुआ था। वह स्थान बोध गया अथवा बुद्ध गया। कहलाता है। वहाँ प्रसिद्ध बोधिवृक्ष तथा भगवान बुद्ध का विशाल मन्दिर विद्यमान है। महाभारत के वन पर्व में तथा वायु पुराण में गया का विस्तार के साथ वर्णन' किया गया है। सम्पूर्ण मगध क्षेत्र में गया पुणक्षेत्र माना गया है।" विष्णुपद, गदाधर प्रमुख मन्दिर तथा सीताकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड, रामशिला, मतंगवापी, धर्मारण्य आदि पवित्र सरोवर व तीर्थ स्थल गया में विद्यमान हैं।
प्रयाग
उत्तरप्रदेश में गांगा-यमुना के संगम पर स्थित प्रयाग प्रसिद्धतीर्थ है। अपने असाधारण महात्म्य के कारण इसे त्रिवेणी संगम भी कहते हैं। प्रयाग में प्रति बारहवें वर्ष कुम्भ, प्रति छठे वर्षअर्द्ध कुम्भ और प्रतिवर्ष माघ मेला लगता है।इन मेलों में करोड़ों श्रद्धालु और साधु-संत पर्व स्नान करने आते हैं। प्रयाग क्षेत्र में प्रजापति ने यज्ञ किया था जिससे इसे प्रयाग नाम प्राप्त हुआ। भारद्वाज मुनि का प्रसिद्ध गुरुकुल प्रयाग में ही था। वन जाते हुए श्रीराम, सीता और लक्ष्मण उसआश्रम में ठहरेथे। तुलसीकृत रामचरित-मानस के अनुसार वहीं परमुनि याज्ञवल्क्य नेभारद्वाज मुनि को रामकथा सुनायी थी। समुद्रगुप्त के शासन के वर्णन का एक उत्कृष्ट शिलास्तम्भ प्रयाग में पाया गया है। यहीं वह वटवृक्ष (अक्षयवट) है जिसके बारे में मान्यता है कि वह प्रलयकाल में भी नष्ट नहीं होता।" इसी विश्वास और श्रद्धा को तोड़ने के लिए आक्रांता मुसलमानों- विशेषत: जहांगीर- ने उसे नष्ट करने के बहुत प्रयत्न किये, किन्तु वह वटवृक्ष आज भी वहाँ खड़ा है। प्रयाग में माघ मास में स्नान का विशेष महात्म्य हैं।" प्रयाग के गांगापार का भाग प्रतिष्ठानपुर (यूसी) कहलाता है।
गयायाँ नहि तत् स्थानं यत्र तीर्थ न विद्यते। सान्निध्यं सव्र तीथॉनां गया तीर्थ ततो वरम्।
मगधे च गया। पुण्या नदी पुण्या पुन: पुनः।
आदि वट समाख्यातः कल्पान्तेऽय च दृश्यते। शोते विष्णुर्यस्प यत्रे अतोऽयमव्यय, स्मृतः।
प्रयागो तु नरो यस्तु माघस्नानं करोति च।
न तस्य फलसंख्यास्ति श्रृंष्णु देवर्षिसत्तम। (पदम् पुराण)
चित्रकूट
चित्रकूट हिन्दुओं के पवित्रतम् स्थानों में है। यह उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले में मध्यप्रदेश सीमा पर स्थित हैं। पास में ही कामदगिरि नामक पर्वत भी है। वनवास के समय भगवान श्रीराम, माँ सीता व लक्ष्मण यहाँ पधारे थे। चित्रकूटही वह स्थान है, जहाँभरतजी ने श्रीराम से भेंट कर उनकी चरण-पादुकाएँ प्राप्त कीं।' गोस्वामी तुलसीदास ने यहीं प्रभु श्रीराम का साक्षात्कार करजीवन को धन्य किया।" वाल्मीकि- रामायण में कहा गया है कि चित्रकूट के दर्शन करते रहने से मानव कल्याण-मार्ग पर चलते हुए मोह और अविवेक से दूर रहता है। भगवान श्रीराम के चरणों से पवित्र चित्रकूट में महाराज युधिष्ठिर ने कठोर तपस्या की। महाराज नल ने चित्रकूटमेंतप द्वारा अपनेअशुभ कमाँ को जलाकर खोया राज्य पुन:प्राप्त किया। महाकवि कालिदास ने अपने 'मेघदूतम्' में चित्रकूट के सौन्दर्य का मनोहारी वर्णन किया है। पयस्विनी नदी के तट पर स्थित चित्रकूट में रामनवमी, दीपावली तथा चन्द्र व सूर्य ग्रहण के अवसरोंपर मेले आयोजित किये जाते हैं और परिक्रमा की जाती है। यहाँ रामघाट, राम-लक्ष्मण मन्दिर, अनसूया आश्रम, भरतकूप, कोटितीर्थ, हनुमानधारा, गुप्त गोदावरी, देवगांगा आदि धार्मिक व ऐतिहासिक स्थान हैं। अत्रि ऋषि इस क्षेत्र के अधिष्ठाता हैं। अत्रि-अनसूया आश्रम में भगवती सीता ने अनसूया से पति-परायण होने के लिए उपदेश प्राप्त किया था। रामघाट के पास स्थित यज्ञवेदी मन्दिर वह स्थान है जहाँ ब्रह्माजी ने सबसे पहले यज्ञ किया था। यहीं परश्रीराम वभरतमिलाप हुआ। चित्रकूट के पास की बस्ती का नाम सीतापुर है। यहाँ पर जानकी नाम का पवित्र सरोवर है। यहाँ शक्तिपीठ भी हैं।
विंध्यवासिनी ( मिर्जापुर )
मिर्जापुर गांगातट पर बसा प्राचीन नगर है। यहाँ पर गंगा के किनारे-किनारे कई घट व मन्दिर हैं। सबसे प्रसिद्ध मन्दिर श्रीतारकेश्वरनाथ महादेव का है। थोड़ी दूरी पर वामन भगवान का मन्दिर है। यहाँ वामन द्वादशी (भाद्रपद शुक्ल द्वादश) पर मेला लगता है। दुग्धेश्वर शिवमन्दिरअन्य प्रमुख मन्दिर हैं। मिर्जापुर के पास ही विन्ध्यवासिनी नामक प्रसिद्ध देवी का सिद्धपीठ है। यह मन्दिर विध्यांचल के पूर्वी छोर पर एक पहाड़ी पर अधिष्ठित है। महाशक्ति के द्वादश स्वरूपों मे विंध्यवासिनी एक है। इनको कौशिकी देवी भी कहा जाता है। विंध्याचल में महाकाली औरअष्टभुजा के रूप में भी महाशक्ति विराजित है। विंध्यवासिनी से ३ कि.मी.पर महाकाली और महाकाली से लगभग १५ किमी. पर अष्टभुजा देवी मन्दिर विद्यमान है। इस क्षेत्र के अन्य प्रमुख मन्दिर खर्पोरेश्वर शिव,हनुमान, अन्नपूर्णा, श्रीकृष्ण, सीताकुण्ड आदि हैं।
खजुराहो
मूर्तिकला की दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट मन्दिरों के लिए विख्यात खजुराहो मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के अन्तर्गत पड़ता है। लगभग चार शताब्दियों तक खजुराहो चन्देल नरेशों की राजधानी रहा। उसी दौरान इन कलात्मक मन्दिरों का निर्माण हुआ। वास्तव में खजुराहो एक गाँव है जो काजरों अथवा निनोरा ताल के किनारे बसा है। गाँव के बाहर मन्दिरों का एक समूह है, इनमें शैवशाक्त, वैष्णव,जैन व बौद्धमतावलम्बियों के मन्दिरों की संख्या कई हैं। प्रमुख मन्दिरों में कण्डरिया महादेव, काली मन्दिर, विश्वनाथ,चतुर्भुज मन्दिर, मतंगेश्वर,आदिनाथ व पाश्र्वनाथ मन्दिर हैं। ये मन्दिरभी मुस्लिम आक्रान्ताओं की बर्बरता का शिकारहुए। सन् १८९४-९५ ई. में सिकन्दर लोदी ने इनके कुछ भाग को ध्वस्त कर दिया था।
झाँसी
महारानी लक्ष्मीबाई की राजधानी झांसी इतिहास प्रसिद्ध नगर है। यहाँ पर एक पुराना दुर्ग है। इस दुर्ग में ही रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजी सेना से लोहा लिया था। झांसी के राजा गांगाधर राव निस्सन्तान स्वर्गवासी हो गये थे। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने उनके दत्तक पुत्र को मान्यता नहीं दी और झांसी को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी। उधर सम्पूर्ण देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष की रूपरेखा तैयार की जा रही थी। रानीअंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ी और युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई। दुर्ग के अतिरिक्त भी कई ऐतिहासिक भवन व प्राचीन मन्दिर झांसी में विद्यमान हैं।
ग्वालियर
ग्वालियर मध्यप्रदेश का प्रमुख नगर व तोमरतथा सिन्धिया राजवंशों की राजधानी रहा है। ग्वालियर ने अनेक उत्थान व पतन देखें हैं। ग्वालियर नगर ३ छोटे नगरों का मिला जुला रूप है। यहाँ पहाड़ी पर विशाल दुर्ग है। गुप्त, प्रतिहार, तोमर, मराठा कालीन कई स्थान यहाँ पर हैं। भगवान श्रीविष्णु का चतुर्भुज मन्दिर यहाँ का प्रमुख मन्दिर है। गूजरी महल, जयविलास प्रसाद, सास बहु का मन्दिर, तेलिका मन्दिर,तानसेन का समाधि आदि ग्वालियर के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।