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== यत् पिंडे तत् ब्रह्माण्डे ==
 
== यत् पिंडे तत् ब्रह्माण्डे ==
 
जो बातें एक छोटी इकाई में पायी जातीं है वैसीं हीं बातें बडी इकाई में भी पायी जातीं है। जो गुणधर्म धातु के एक छोटे कण में पाये जाते है वही गुणधर्म एक बडे धातुखण्ड में भी पाए जाते है। उसी प्रकार जो गुणधर्म एक छोटी जीवंत इकाई में पाये जाते है वही गुणधर्म बडी और विशाल ऐसी जीवंत इकाई में भी पाये जाते है। जैसे जन्म, शैशव, यौवन, जरा और मरण सभी जीवंत इकाई में स्वाभाविक बातें है। यह सिद्धांत की बात है। उसी तरह हम सब के अनुभव की भी बात है। एक परिवार में भी ऐसी चार वृत्तियों के काम होते ही है।   
 
जो बातें एक छोटी इकाई में पायी जातीं है वैसीं हीं बातें बडी इकाई में भी पायी जातीं है। जो गुणधर्म धातु के एक छोटे कण में पाये जाते है वही गुणधर्म एक बडे धातुखण्ड में भी पाए जाते है। उसी प्रकार जो गुणधर्म एक छोटी जीवंत इकाई में पाये जाते है वही गुणधर्म बडी और विशाल ऐसी जीवंत इकाई में भी पाये जाते है। जैसे जन्म, शैशव, यौवन, जरा और मरण सभी जीवंत इकाई में स्वाभाविक बातें है। यह सिद्धांत की बात है। उसी तरह हम सब के अनुभव की भी बात है। एक परिवार में भी ऐसी चार वृत्तियों के काम होते ही है।   
इस दृष्टि से भारतीय जाति व्यवस्था में एक जाति में भी उन्हीं गुणधर्मों का होना जो एक जीवंत इकाई जैसे मनुष्य या एक जीवंत बडी इकाई समाज या राष्ट्र में पाये जाते है, उन का होना यह स्वाभाविक ही है। इस का कारण है कि जाति यह भी एक जीवंत इकाई है। भारतीय मान्यता के अनुसार समाज की कल्पना एक विराट समाज पुरूष के रूप में की गयी है। जैसे एक सामान्य मनुष्य के भिन्न भिन्न अंग मनुष्य के लिए भिन्न भिन्न क्रियाएं करते है। इसी तरह यह कहा गया कि समाज में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार वर्णों के लोग हर समाज में होते ही है। यह केवल भारतीय समाज में होते है ऐसी बात नहीं है। जिन समाजों में वर्णव्यवस्था नहीं है ऐसे विश्व के सभी समाजों का निरीक्षण करने से यह ध्यान में आ जाएगा कि उन में भी ऐसी चार वृत्तियों के लोग पाये जाते है। उन समाजों में वर्णव्यवस्था नहीं है लेकिन वर्ण तो हैं ही।
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इस दृष्टि से भारतीय जाति व्यवस्था में एक जाति में भी उन्हीं गुणधर्मों का होना जो एक जीवंत इकाई जैसे मनुष्य या एक जीवंत बडी इकाई समाज या राष्ट्र में पाये जाते है, उन का होना यह स्वाभाविक ही है। इस का कारण है कि जाति यह भी एक जीवंत इकाई है। भारतीय मान्यता के अनुसार समाज की कल्पना एक विराट समाज पुरूष के रूप में की गयी है। जैसे एक सामान्य मनुष्य के भिन्न भिन्न अंग मनुष्य के लिए भिन्न भिन्न क्रियाएं करते है। इसी तरह यह कहा गया कि समाज में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार वर्णों के लोग हर समाज में होते ही है। यह केवल भारतीय समाज में होते है ऐसी बात नहीं है। जिन समाजों में वर्णव्यवस्था नहीं है ऐसे विश्व के सभी समाजों का निरीक्षण करने से यह ध्यान में आ जाएगा कि उन में भी ऐसी चार वृत्तियों के लोग पाये जाते है। उन समाजों में वर्णव्यवस्था नहीं है लेकिन वर्ण तो हैं ही।  
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इस तर्क के आधारपर यदि कहा जाए कि हर जाति एक जीवंत इकाई होने के कारण इस में भी ऐसी ही चार वृत्तियों के लोगों का होना अनिवार्य है, स्वाभाविक है तो इस तर्क को गलत नहीं कहा जा सकता । अर्थात् हर जाति में चार वर्णों के लोग होते ही है, इसे मान्य करना होगा। कोई भी शास्त्र इसे नकारता नहीं है।  
 
इस तर्क के आधारपर यदि कहा जाए कि हर जाति एक जीवंत इकाई होने के कारण इस में भी ऐसी ही चार वृत्तियों के लोगों का होना अनिवार्य है, स्वाभाविक है तो इस तर्क को गलत नहीं कहा जा सकता । अर्थात् हर जाति में चार वर्णों के लोग होते ही है, इसे मान्य करना होगा। कोई भी शास्त्र इसे नकारता नहीं है।  
  
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