# मानव जन्म के समय तो इतना अक्षम होता है कि वह अन्य लोगोंं की सहायता के बगैर जी नहीं सकता। उसका पूरा विकास ही लोगोंं की यानी समाज की सहायता लेकर ही होता रहता है। समाज का यह ऋण होता है। देवऋण, पितरऋण, गुरूऋण, समाजऋण और भूतऋण ऐसे मोटे मोटे प्रमुख रूप से पाँच ऋण लेता हुआ ही जीवन में मानव आगे बढता है। इन ऋणों से उॠण होने के प्रयास यदि वह नहीं करता है तो इन ऋणों का बोझ, इन उपकारों का बोझ बढता ही जाता है। जिस प्रकार से ऋण नहीं चुकाने से गृहस्थ की साख घटती जाती है उसी तरह जो अपने ऋण उसी जन्म में नहीं चुका पाता वह अधम गति को प्राप्त होता है। यानी घटिया स्तर का मानव जन्म या ऋणों का बोझ जब अत्यधिक हो जाता है तब पशू योनियों में जन्म प्राप्त करता है। कृतज्ञता या ऋण का बोझ और अधम गति को जाना केवल मनुष्य को इसलिये लागू है कि उसे परमात्मा ने श्रेष्ठ स्मृति की शक्ति दी हुई है। ऋण सिध्दांत की अधिक जानकारी के लिये इस [[Elements of Hindu Jeevan Drishti and Life Style (धार्मिक/हिन्दू जीवनदृष्टि और जीवन शैली के सूत्र)|लेख]] और इस [[Personality (व्यक्तित्व)|लेख]] को देखें । | # मानव जन्म के समय तो इतना अक्षम होता है कि वह अन्य लोगोंं की सहायता के बगैर जी नहीं सकता। उसका पूरा विकास ही लोगोंं की यानी समाज की सहायता लेकर ही होता रहता है। समाज का यह ऋण होता है। देवऋण, पितरऋण, गुरूऋण, समाजऋण और भूतऋण ऐसे मोटे मोटे प्रमुख रूप से पाँच ऋण लेता हुआ ही जीवन में मानव आगे बढता है। इन ऋणों से उॠण होने के प्रयास यदि वह नहीं करता है तो इन ऋणों का बोझ, इन उपकारों का बोझ बढता ही जाता है। जिस प्रकार से ऋण नहीं चुकाने से गृहस्थ की साख घटती जाती है उसी तरह जो अपने ऋण उसी जन्म में नहीं चुका पाता वह अधम गति को प्राप्त होता है। यानी घटिया स्तर का मानव जन्म या ऋणों का बोझ जब अत्यधिक हो जाता है तब पशू योनियों में जन्म प्राप्त करता है। कृतज्ञता या ऋण का बोझ और अधम गति को जाना केवल मनुष्य को इसलिये लागू है कि उसे परमात्मा ने श्रेष्ठ स्मृति की शक्ति दी हुई है। ऋण सिध्दांत की अधिक जानकारी के लिये इस [[Elements of Hindu Jeevan Drishti and Life Style (धार्मिक/हिन्दू जीवनदृष्टि और जीवन शैली के सूत्र)|लेख]] और इस [[Personality (व्यक्तित्व)|लेख]] को देखें । |