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प्रयागराज तीर्थ स्थान त्रिवेणी संगम के नाम से प्रसिद्ध है। शास्त्रों में त्रिवेणी से गंगा, यमुना, सरस्वती इन तीन नदियों को बताया गया है। संगम में गंगा, यमुना दृश्य नदियाँ हैं और सरस्वती का दर्शन प्रत्यक्ष आँखों से नहीं होता है। इसलिये इसे अन्तःसलिला अर्थात भूमि के अन्दर बहने वाली माना गया है।<ref>स्वामी हृदयानन्द गिरि, [https://ia601504.us.archive.org/9/items/ZPNA_amrit-kalash-prayag-raj-kumbh-parv-compiled-by-ved-nidhi-vedic-heritage-research/Amrit%20Kalash%20prayag%20Raj%20Kumbh%20Parv%20Compiled%20By%20Ved%20Nidhi%20Vedic%20Heritage%20Research%20Foundation%20-%20Swami%20Hridayanand%20Giri%2C%20Hriday%20Dip%20Ashram%2C%20Jammu%20_text.pdf अमृत-कलश], सन 2019, हृदयदीप आश्रम, जम्मू (पृ० 133)।</ref> पद्मपुराण में प्रयागशताध्यायी के रूप में प्रयाग का बृहत वर्णन प्राप्त होता है। मत्स्यपुराण में प्रयाग माहात्म्य के क्रममें कहा गया है कि -  <blockquote>पञ्चयोजन विस्तीर्ण प्रयागस्य तु मण्डलम्। प्रविष्टस्यैव तद् भूयावश्वमेधः पदे-पदे॥ (मत्स्यपुराण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A7%E0%A5%A6%E0%A5%AE मत्स्य पुराण], अध्याय-१०८, श्लोक-९।</ref> </blockquote>  
 
प्रयागराज तीर्थ स्थान त्रिवेणी संगम के नाम से प्रसिद्ध है। शास्त्रों में त्रिवेणी से गंगा, यमुना, सरस्वती इन तीन नदियों को बताया गया है। संगम में गंगा, यमुना दृश्य नदियाँ हैं और सरस्वती का दर्शन प्रत्यक्ष आँखों से नहीं होता है। इसलिये इसे अन्तःसलिला अर्थात भूमि के अन्दर बहने वाली माना गया है।<ref>स्वामी हृदयानन्द गिरि, [https://ia601504.us.archive.org/9/items/ZPNA_amrit-kalash-prayag-raj-kumbh-parv-compiled-by-ved-nidhi-vedic-heritage-research/Amrit%20Kalash%20prayag%20Raj%20Kumbh%20Parv%20Compiled%20By%20Ved%20Nidhi%20Vedic%20Heritage%20Research%20Foundation%20-%20Swami%20Hridayanand%20Giri%2C%20Hriday%20Dip%20Ashram%2C%20Jammu%20_text.pdf अमृत-कलश], सन 2019, हृदयदीप आश्रम, जम्मू (पृ० 133)।</ref> पद्मपुराण में प्रयागशताध्यायी के रूप में प्रयाग का बृहत वर्णन प्राप्त होता है। मत्स्यपुराण में प्रयाग माहात्म्य के क्रममें कहा गया है कि -  <blockquote>पञ्चयोजन विस्तीर्ण प्रयागस्य तु मण्डलम्। प्रविष्टस्यैव तद् भूयावश्वमेधः पदे-पदे॥ (मत्स्यपुराण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A7%E0%A5%A6%E0%A5%AE मत्स्य पुराण], अध्याय-१०८, श्लोक-९।</ref> </blockquote>  
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पाँच योजन परिधि में फैले इस प्रयाग में प्रवेश करने पर प्रत्येक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। प्रजापिता भगवान ब्रह्मा जी द्वारा किये गये यज्ञों के स्थान अर्थात यज्ञ वेदी भारतवर्ष में चार हैं -  
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पाँच योजन परिधि में फैले इस प्रयाग में प्रवेश करने पर प्रत्येक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। प्रजापिता भगवान ब्रह्मा जी द्वारा किये गये यज्ञों के स्थान अर्थात यज्ञ वेदी भारतवर्ष में तीन हैं -  
    
#प्रथम - कुरुक्षेत्र
 
#प्रथम - कुरुक्षेत्र
 
#द्वितीय - प्रयाग
 
#द्वितीय - प्रयाग
#तृतीय - गया जी
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#तृतीय - गया
#चतुर्थ - पुष्कर
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प्रयागराज ब्रह्मा जी की मध्य वेदी है, भगवान विष्णु का यहाँ पर नित्य वास और शिव इस तीर्थ क्षेत्र के रक्षक हैं। गंगा-यमुना की धाराने पूरे प्रयाग-क्षेत्रको तीन भागोंमें विभक्त कर दिया है। ये तीनों भाग अग्निस्वरूप-यज्ञवेदी माने जाते हैं। गंगा-यमुना के मध्य भागको प्रयाग कहा है गार्हपत्याग्नि, गंगापारका भाग (प्रतिष्ठानपुर-झूँसी) आहवनीय अग्नि और यमुनापारका भाग अरैल या अलर्कपुर दक्षिणाग्नि माना है। इन स्थानों में पवित्र होकर एक-एक रात्रि निवाससे तीनों अग्नियोंकी उपासनाका फल प्राप्त होता है। स्कन्द पुराण, अग्नि पुराण, शिव पुराण, ब्रह्म पुराण, वामन पुराण, बृहन्नारदीय पुराण, मनुस्मृति, वाल्मीकि रामायण, महाभारत, रघुवंश महाकाव्य आदि में भी प्रयाग की महत्ता का विस्तार से वर्णन किया गया है।
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प्रयागराज ब्रह्मा जी की मध्य वेदी है, भगवान विष्णु का यहाँ पर नित्य वास और शिव इस तीर्थ क्षेत्र के रक्षक हैं। गंगा-यमुना की धाराने पूरे प्रयाग-क्षेत्रको तीन भागोंमें विभक्त कर दिया है। ये तीनों भाग अग्निस्वरूप-यज्ञवेदी माने जाते हैं। गंगा-यमुना के मध्य भागको प्रयाग कहा है गार्हपत्याग्नि, गंगापारका भाग (प्रतिष्ठानपुर-झूँसी) आहवनीय अग्नि और यमुनापारका भाग अरैल या अलर्कपुर दक्षिणाग्नि माना है।<ref>डॉ० राजबली पाण्डेय, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.540544/page/n425/mode/1up हिन्दू धर्म कोश], सन १९८८, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ (पृ० ४२३)।</ref> इन स्थानों में पवित्र होकर एक-एक रात्रि निवाससे तीनों अग्नियोंकी उपासनाका फल प्राप्त होता है। स्कन्द पुराण, अग्नि पुराण, शिव पुराण, ब्रह्म पुराण, वामन पुराण, बृहन्नारदीय पुराण, मनुस्मृति, वाल्मीकि रामायण, महाभारत, रघुवंश महाकाव्य आदि में भी प्रयाग की महत्ता का विस्तार से वर्णन किया गया है।
    
==परिभाषा॥ Definition==
 
==परिभाषा॥ Definition==
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दृष्ट्वा प्रकृष्टयागेभ्यः पुष्टेभ्यो दक्षिणादिभिः। प्रयागमिति तन्नाम कृतं हरिहरादिभिः॥ (स्कंद पुराण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%96%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%83_%E0%A5%AA_(%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%96%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%83)/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A6%E0%A5%A8%E0%A5%A8 स्कंद पुराण], काशी खण्ड, अध्याय- २२, श्लोक- ६१।</ref></blockquote>
 
दृष्ट्वा प्रकृष्टयागेभ्यः पुष्टेभ्यो दक्षिणादिभिः। प्रयागमिति तन्नाम कृतं हरिहरादिभिः॥ (स्कंद पुराण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%96%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%83_%E0%A5%AA_(%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%96%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%83)/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A6%E0%A5%A8%E0%A5%A8 स्कंद पुराण], काशी खण्ड, अध्याय- २२, श्लोक- ६१।</ref></blockquote>
 
सृष्टिके आदिमें यहाँ श्रीब्रह्माजी का प्रकृष्ट यज्ञ हुआ था। इसीसे इसका नाम प्रयाग कहलाया।<ref>कल्याण पत्रिका - [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.346899/page/n169/mode/1up तीर्थांक], सन 2018, गीताप्रेस, गोरखपुर (पृ० 171)।</ref>
 
सृष्टिके आदिमें यहाँ श्रीब्रह्माजी का प्रकृष्ट यज्ञ हुआ था। इसीसे इसका नाम प्रयाग कहलाया।<ref>कल्याण पत्रिका - [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.346899/page/n169/mode/1up तीर्थांक], सन 2018, गीताप्रेस, गोरखपुर (पृ० 171)।</ref>
==प्रयागराज एवं त्रिवेणी संगम॥ Prayagraj and Triveni Sangam==
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== प्रयागराज एवं त्रिवेणी संगम॥ Prayagraj and Triveni Sangam==
 
[[File:संगम .png|thumb|331x331px|प्रयागराज: त्रिवेणी संगम]]
 
[[File:संगम .png|thumb|331x331px|प्रयागराज: त्रिवेणी संगम]]
 
प्रयागराज का सर्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थान त्रिवेणी है। यहाँ दृश्य गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम है। जैसे तीन वेणी (बालों की लट) गूंथने पर दो ही दिखाई देती है, तीसरी वेणी लुप्त हो जाती है वैसे ही तीसरी वेणी सरस्वती भी यहाँ अदृश्य है। त्रिवेणी के संगम में अनेक तीर्थ हैं। प्राचीन काल में प्रयागराज में सरस्वती नदी (प्राची सरस्वती) थी इसके प्रमाण शास्त्रों में प्राप्त होते हैं, जैसे पश्चिम वाहिनी सरस्वती लुप्त हो गई, वैसे ही पूर्व वाहिनी सरस्वती भी लुप्त हो गई। मान्यता है कि सभी नदियाँ ऊपर से सूख जाती है परन्तु उनका जल अन्दर ही अन्दर रहता है इसलिये प्रयागराज तीन नदियों के संगम के नाम से प्रसिद्ध है।<ref>डॉ० पाण्डुरंग वामन काणे, [https://archive.org/details/03.-dharma-shastra-ka-itihas-tatha-anya-smritiyan/03.Dharma%20Shastra%20Ka%20Itihas%20of%20Dr.%20Pandurang%20Vaman%20Kane%20Vol.%203%20-%20Uttar%20Pradesh%20Hindi%20Sansthan%20Lucknow-Reduced/page/n333/mode/1up धर्मशास्त्र का इतिहास - तृतीय भाग] , सन २००३, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ (पृ० १३२६)।</ref>
 
प्रयागराज का सर्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थान त्रिवेणी है। यहाँ दृश्य गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम है। जैसे तीन वेणी (बालों की लट) गूंथने पर दो ही दिखाई देती है, तीसरी वेणी लुप्त हो जाती है वैसे ही तीसरी वेणी सरस्वती भी यहाँ अदृश्य है। त्रिवेणी के संगम में अनेक तीर्थ हैं। प्राचीन काल में प्रयागराज में सरस्वती नदी (प्राची सरस्वती) थी इसके प्रमाण शास्त्रों में प्राप्त होते हैं, जैसे पश्चिम वाहिनी सरस्वती लुप्त हो गई, वैसे ही पूर्व वाहिनी सरस्वती भी लुप्त हो गई। मान्यता है कि सभी नदियाँ ऊपर से सूख जाती है परन्तु उनका जल अन्दर ही अन्दर रहता है इसलिये प्रयागराज तीन नदियों के संगम के नाम से प्रसिद्ध है।<ref>डॉ० पाण्डुरंग वामन काणे, [https://archive.org/details/03.-dharma-shastra-ka-itihas-tatha-anya-smritiyan/03.Dharma%20Shastra%20Ka%20Itihas%20of%20Dr.%20Pandurang%20Vaman%20Kane%20Vol.%203%20-%20Uttar%20Pradesh%20Hindi%20Sansthan%20Lucknow-Reduced/page/n333/mode/1up धर्मशास्त्र का इतिहास - तृतीय भाग] , सन २००३, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ (पृ० १३२६)।</ref>
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*नागवासुकि
 
*नागवासुकि
 
*बलदेव (शेषनाग) जी
 
*बलदेव (शेषनाग) जी
*शिवफुटी
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* शिवफुटी
 
*भरद्वाज-आश्रम
 
*भरद्वाज-आश्रम
 
*अलोपी देवी
 
*अलोपी देवी
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==प्रयागराज एवं पंचप्रयाग॥ Prayagaraja evan  Panchprayaga==
 
==प्रयागराज एवं पंचप्रयाग॥ Prayagaraja evan  Panchprayaga==
 
देवभूमि उत्तराखण्ड में पांच प्रमुख संगम स्थल हैं जिन्हें पंच प्रयाग के नाम से जाना जाता है - देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णुप्रयाग।  
 
देवभूमि उत्तराखण्ड में पांच प्रमुख संगम स्थल हैं जिन्हें पंच प्रयाग के नाम से जाना जाता है - देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णुप्रयाग।  
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===रुद्रप्रयाग॥ Rudraprayaga===
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उत्तराखण्ड का एक पावन तीर्थ है। यहाँ अलकनन्दा और मन्दाकिनी का संगम है। यहाँ से केदारनाथ तथा बद्रीनाथ के मार्ग पृथक होते हैं। देवर्षि नारद ने संगीत विद्या की प्राप्ति के लिए यहाँ शंकरजी की आराधना की थी। हृषीकेश से रुद्रप्रयाग ८४ मील है।
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=== विष्णुप्रयाग॥ Vishnu Prayaga ===
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=== देवप्रयाग॥ Devprayag ===
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=== कर्णप्रयाग॥ Karna Prayaga ===
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=== नन्दप्रयाग॥ Nanda Prayaga ===
    
==प्रयागराज का इतिहास॥ History Of Prayagraja==
 
==प्रयागराज का इतिहास॥ History Of Prayagraja==
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<blockquote>समुद्र-पत्न्योर्जलसन्निपात पूतात्मनामत्र किलाभिषेकात्, तत्त्वावबोधेन विनापि भूय: तनुस्त्यजां नास्ति शरीरबंध:। (रघुवंश महाकाव्य)<ref name=":2">महाकवि कालिदास, [https://archive.org/details/raghuvansh_mahakavya_032598_std_202109/page/n1046/mode/1up?view=theater रघुवंश महाकाव्य] मल्लिनाथ-सञ्जीवनी टीका, धारादत्त मिश्र-संस्कृत व्याख्या एवं हिन्दी अनुवाद सहित, सन १९८७, मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी (पृ० १७४)।</ref></blockquote>भाषार्थ - समुद्र की दो पत्नियों (गंगा-यमुना) के संगम में स्नान करने से, पवित्र मन वाले पुरुष तत्त्वज्ञानी न होने पर भी वर्तमान शरीर छूट जाने पर शरीर के बन्धन से छूट जाते हैं। अर्थात अन्यत्र सब स्थानों में ज्ञान से ही मुक्ति होती है किन्तु यहां संगम में स्नान करने मात्र से मुक्ति मिल जाती है। पुनः शरीर धारण नहीं करना पडता है।<ref name=":2" />
 
<blockquote>समुद्र-पत्न्योर्जलसन्निपात पूतात्मनामत्र किलाभिषेकात्, तत्त्वावबोधेन विनापि भूय: तनुस्त्यजां नास्ति शरीरबंध:। (रघुवंश महाकाव्य)<ref name=":2">महाकवि कालिदास, [https://archive.org/details/raghuvansh_mahakavya_032598_std_202109/page/n1046/mode/1up?view=theater रघुवंश महाकाव्य] मल्लिनाथ-सञ्जीवनी टीका, धारादत्त मिश्र-संस्कृत व्याख्या एवं हिन्दी अनुवाद सहित, सन १९८७, मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी (पृ० १७४)।</ref></blockquote>भाषार्थ - समुद्र की दो पत्नियों (गंगा-यमुना) के संगम में स्नान करने से, पवित्र मन वाले पुरुष तत्त्वज्ञानी न होने पर भी वर्तमान शरीर छूट जाने पर शरीर के बन्धन से छूट जाते हैं। अर्थात अन्यत्र सब स्थानों में ज्ञान से ही मुक्ति होती है किन्तु यहां संगम में स्नान करने मात्र से मुक्ति मिल जाती है। पुनः शरीर धारण नहीं करना पडता है।<ref name=":2" />
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==प्रयागराज माहात्म्य॥ Prayagaraja Mahatmya==
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==प्रयागराज माहात्म्य॥ Prayagaraja Mahatmya ==
 
पद्मपुराण के शताध्यायी में प्रयाग की महिमा को उल्लिखित किया गया है। पद्मपुराण के अन्तर्गत पाताल खण्ड में कथित प्रयाग-माहात्म्य के 100 अध्यायों को शताध्यायी की संज्ञा दी गयी है। इसे शास्त्रीय दृष्टिकोण से तीर्थराज की अन्तर्वेदी एवं बहिर्वेदी दोनों के सम्बन्ध में ज्ञानार्जनार्थ सबसे श्रेष्ठ तथा प्रामाणिक स्रोत माना जाता है। इसमें प्रयाग को क्यों तीर्थराज कहा गया इसका विशद वर्णन और माहात्म्य बताया गया है। जैसा कि -<ref name=":0">शोधगंगा-राजेश कुमार, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/283022/5/chapter%203.pdf संस्कृत वांग्मय में प्रयाग एक समीक्षात्मक अध्ययन], सन 2019, शोधकेंद्र-इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज (पृ० 116)।</ref>  
 
पद्मपुराण के शताध्यायी में प्रयाग की महिमा को उल्लिखित किया गया है। पद्मपुराण के अन्तर्गत पाताल खण्ड में कथित प्रयाग-माहात्म्य के 100 अध्यायों को शताध्यायी की संज्ञा दी गयी है। इसे शास्त्रीय दृष्टिकोण से तीर्थराज की अन्तर्वेदी एवं बहिर्वेदी दोनों के सम्बन्ध में ज्ञानार्जनार्थ सबसे श्रेष्ठ तथा प्रामाणिक स्रोत माना जाता है। इसमें प्रयाग को क्यों तीर्थराज कहा गया इसका विशद वर्णन और माहात्म्य बताया गया है। जैसा कि -<ref name=":0">शोधगंगा-राजेश कुमार, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/283022/5/chapter%203.pdf संस्कृत वांग्मय में प्रयाग एक समीक्षात्मक अध्ययन], सन 2019, शोधकेंद्र-इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज (पृ० 116)।</ref>  
  
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