Difference between revisions of "Samhita Skandha (संहिता स्कन्ध)"
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== परिचय == | == परिचय == | ||
+ | ज्योतिष से कालचक्र समस्त दृश्यादृश्य विश्व, खगोलीय ज्योतिषपिण्ड, पिण्डाण्डीय संस्थान, मान, संचार, संरचना आदि तथ्य जुडे हैं। काल एवं पिण्डापिण्डों का सापेक्षिक प्रभाव, मानव तथा विश्व एवं समस्त विश्वाभिप्रायिक त्रिगोलीय प्रभाव निरूपक यह शास्त्र त्रिस्कन्धात्मक ज्यौतिष है। वेद एवं वैदिक दर्शन अनादि अनन्त सीमाहीन अव्यक्त-महाकाल एवं सीमाहीन महाकाश में सृष्टिचक्र को पर्ययात्मक मानता है। यह चक्र भी अनवरत संचरणशील तथा परिवर्तनशील है। कालान्तर एवं क्षेत्रान्तर जन्य निष्पत्ति व्यक्त सापेक्षिक काल तथा ग्रहर्क्ष पिण्डों के आधार पर व्यक्त होते हैं। | ||
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+ | ज्योतिष शास्त्र के प्रधान तीन स्कन्ध हैं - सिद्धान्त, संहिता और होरा। इन प्रधान स्कन्धत्रय में से जिसमें सम्पूर्ण ज्योतिष शास्त्र के विषयों का वर्णन हो, उसको संहिता कहते हैं। संहिता ज्योतिष में बिन्दु से सिन्धु तक, व्यक्ति से समष्टि तक, भूगर्भ से अन्तरिक्ष तक, ग्रह-नक्षत्र-तारादिपिण्डों से लेकर धूमकेतु, उल्कादि पिण्डों तक, वृष्टि-कृषि-पर्यावरणादि से लेकर समस्त सृष्टि पर्यन्त की यात्रा है। | ||
== परिभाषा == | == परिभाषा == | ||
+ | ज्योतिष शास्त्र के जिस स्कन्ध में ग्रहचारवश ग्रह- नक्षत्रादि बिम्बों के शुभाशुभ लक्षण से पशु-पक्षी-कीटादियों का भूसापेक्ष सामूहिक विवेचन, आकाशीय घटनाओं का ज्ञान किया जाता हो, उसे संहिता शास्त्र कहते हैं। | ||
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+ | सम्यक् हितं प्रतिपाद्यं यस्याः सा संहिता। | ||
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+ | ज्योतिषशास्त्र के जिस स्कन्ध में सभी का सम्यक् प्रकार से हित प्रतिपादित किया गया हो वह संहिता है। सभी में केवल मनुष्यों का समावेश नहीं है अपितु क्षेत्र, प्रदेश, राष्ट्र, पशु पक्षी प्राणिमात्र सहित सम्पूर्ण विश्व से संबंधित विषयों का समावेश है। जैसे- पर्यावरण विज्ञान, रसायन विज्ञान, मौसम विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान, वृष्टि विज्ञान, दकार्गल, प्राकृतिक आपदा, वनस्पति विज्ञान, ग्रहचार, ग्रह-नक्षत्रादि बिम्बों के शुभाशुभ लक्षण, पशु- पक्षी-कीटादियों से संबंधित विषय, वास्तुशास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र, विचित्र आकाशीय व भौमिक घटनाओं का ज्ञान व उनके प्रभाव का अध्ययन इत्यादि अनेकानेक विषयों का अध्ययन जिसमें किया जाता हो, उसे संहिता कहते हैं। बृहत्संहिता में वराहमिहिर का कथन है- तत्कार्त्स्न्योपनयस्य नाममुनिभिः संकीर्त्यते संहिता। | ||
== संहिता स्कन्ध का महत्व == | == संहिता स्कन्ध का महत्व == | ||
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== संहिता स्कन्ध के प्रमुख ग्रन्थ एवं आचार्य == | == संहिता स्कन्ध के प्रमुख ग्रन्थ एवं आचार्य == | ||
+ | इस संहिता स्कन्ध के विषयों का धिअकता से वर्णन ज्योतिष शास्त्र की प्रतिष्ठा के समय से ही वेदों एवं वेदांग - साहित्य में स्मृतियों, पुराणों में है। इनमें आचार्यों के मत यत्र-तत्र प्रकीर्ण अवस्था में प्रसंगवशात् हैं, जिनका आगे चलकर संहिता-ग्रन्थों में संकलन किया गया। इनमेंसे कुछ संहिताएं मिलती हैं तो अधिकतर लुप्तप्राय हैं। गर्गसंहिता, बार्हस्पत्य संहिता, काश्यपसंहिता, पाराशर संहिता जैसे कुछ संहिता ग्रन्थ क्वचित अंशों में तो कहीं पूर्णरूपेण मिलते हैं किन्तु इतना निश्चित् है कि अनेक आचार्यों के संहिता-ज्योतिष विषयक मत मिलते हैं जिनका संकलन परवर्ती आचार्यों जैसे- वराहमिहिर-बृहत्संहिता , बल्लासेन- अद्भुत सागर, भद्रबाहु- भद्रबाहु संहिता में क्रमशः किया है। | ||
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+ | == संहिता स्कन्ध के प्रमुख विषय == | ||
+ | अद्भुत सागर ग्रन्थ में भी बृहत्संहिता के समान ही विषयों का वर्णन है, परन्तु उसमें अनेक नवीन विषयों का भी विवेचन किया गया जिनकी चर्चा बृहत्संहिता में भी चर्चा नहीं है। उसमें दिव्याश्रय, अन्तरिक्षाश्रय और भौमाश्रय संज्ञक तीन भागों में विविध उत्पातों का सोपपत्तिक वर्णन किया है व उनकी शान्ति के उपाय भी वर्णित किये हैं। | ||
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+ | भौमाश्रय में भूकम्प, जलाशय अग्नि, दीप, देव प्रतिमा, शक्रध्वज, व्र्क्ष, गृह, वातज उपस्कर, वस्त्र, उपाहन, आसन, शस्त्र,दिव्य स्त्रीपुरुष दर्शन, मानुष, पिटक, स्वप्न, कायरिष्ट, दन्त जन्म, प्रसव, सर्वशाकुन, नाना मृग, विहग, गज, अश्व, वृष, महिष, बिडाल, शकुन, शृगाल, गृहगोधिका, पिपीलिका, पतंग, मशक, मक्षिक, लूता, भ्रमर, भेक, खञ्जरीट दर्शन, पोतकी, कृष्णपेचिका, वायसाद्भुतावर्त, मिश्रकाद्भुतावर्त्त, अद्भुतशान्त्यद्भुतावर्त्त, सद्योवर्षनिमित्ताद्भुतावर्त्त, अविरुद्धाद्भुतावर्त्त और पाकसमयाद्भुतावर्त का निरूपण किया है जिनमें से अनेक विषयों की चर्चा बृहत्संहिता में नहीं प्राप्त होती। | ||
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== संहिता स्कन्ध के उपस्कन्ध == | == संहिता स्कन्ध के उपस्कन्ध == |
Revision as of 14:05, 12 May 2023
ज्योतिष शास्त्र के दूसरे स्कन्ध संहिता का भी विशेष महत्त्व है। इन ग्रन्थों में मुख्यतः फलादेश संबंधी विषयों का बाहुल्य होता है। आचार्य वराहमिहिरने बृहत्संहिता में कहा है कि जो व्यक्ति संहिता के समस्त विषयों को जानता है, वही दैवज्ञ होता है। संहिता ग्रन्थों में भूशोधन, दिक् शोधन, मेलापक, जलाशय निर्माण, मांगलिक कार्यों के मुहूर्त, वृक्षायुर्वेद, दर्कागल, सूर्यादि ग्रहों के संचार, ग्रहों के स्वभाव, विकार, प्रमाण, गृहों का नक्षत्रों की युति से फल, परिवेष, परिघ, वायु लक्षण, भूकम्प, उल्कापात, वृष्टि वर्षण, अंगविद्या, पशु-पक्षियों तथा मनुष्यों के लक्षण पर विचार, रत्नपरीक्षा, दीपलक्षण नक्षत्राचार, ग्रहों का देश एवं प्राणियों पर आधिपत्य, दन्तकाष्ठ के द्वारा शुभ अशुभ फल का कथन आदि विषय वर्णित किये जाते हैं। संहिता ग्रन्थों में उपरोक्त विषयों के अतिरिक्त एक अन्य विशेषता होती है कि इन ग्रन्थों में व्यक्ति विषयक फलादेश के स्थान पर राष्ट्र विषयक फलादेश किया जाता है।
परिचय
ज्योतिष से कालचक्र समस्त दृश्यादृश्य विश्व, खगोलीय ज्योतिषपिण्ड, पिण्डाण्डीय संस्थान, मान, संचार, संरचना आदि तथ्य जुडे हैं। काल एवं पिण्डापिण्डों का सापेक्षिक प्रभाव, मानव तथा विश्व एवं समस्त विश्वाभिप्रायिक त्रिगोलीय प्रभाव निरूपक यह शास्त्र त्रिस्कन्धात्मक ज्यौतिष है। वेद एवं वैदिक दर्शन अनादि अनन्त सीमाहीन अव्यक्त-महाकाल एवं सीमाहीन महाकाश में सृष्टिचक्र को पर्ययात्मक मानता है। यह चक्र भी अनवरत संचरणशील तथा परिवर्तनशील है। कालान्तर एवं क्षेत्रान्तर जन्य निष्पत्ति व्यक्त सापेक्षिक काल तथा ग्रहर्क्ष पिण्डों के आधार पर व्यक्त होते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के प्रधान तीन स्कन्ध हैं - सिद्धान्त, संहिता और होरा। इन प्रधान स्कन्धत्रय में से जिसमें सम्पूर्ण ज्योतिष शास्त्र के विषयों का वर्णन हो, उसको संहिता कहते हैं। संहिता ज्योतिष में बिन्दु से सिन्धु तक, व्यक्ति से समष्टि तक, भूगर्भ से अन्तरिक्ष तक, ग्रह-नक्षत्र-तारादिपिण्डों से लेकर धूमकेतु, उल्कादि पिण्डों तक, वृष्टि-कृषि-पर्यावरणादि से लेकर समस्त सृष्टि पर्यन्त की यात्रा है।
परिभाषा
ज्योतिष शास्त्र के जिस स्कन्ध में ग्रहचारवश ग्रह- नक्षत्रादि बिम्बों के शुभाशुभ लक्षण से पशु-पक्षी-कीटादियों का भूसापेक्ष सामूहिक विवेचन, आकाशीय घटनाओं का ज्ञान किया जाता हो, उसे संहिता शास्त्र कहते हैं।
सम्यक् हितं प्रतिपाद्यं यस्याः सा संहिता।
ज्योतिषशास्त्र के जिस स्कन्ध में सभी का सम्यक् प्रकार से हित प्रतिपादित किया गया हो वह संहिता है। सभी में केवल मनुष्यों का समावेश नहीं है अपितु क्षेत्र, प्रदेश, राष्ट्र, पशु पक्षी प्राणिमात्र सहित सम्पूर्ण विश्व से संबंधित विषयों का समावेश है। जैसे- पर्यावरण विज्ञान, रसायन विज्ञान, मौसम विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान, वृष्टि विज्ञान, दकार्गल, प्राकृतिक आपदा, वनस्पति विज्ञान, ग्रहचार, ग्रह-नक्षत्रादि बिम्बों के शुभाशुभ लक्षण, पशु- पक्षी-कीटादियों से संबंधित विषय, वास्तुशास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र, विचित्र आकाशीय व भौमिक घटनाओं का ज्ञान व उनके प्रभाव का अध्ययन इत्यादि अनेकानेक विषयों का अध्ययन जिसमें किया जाता हो, उसे संहिता कहते हैं। बृहत्संहिता में वराहमिहिर का कथन है- तत्कार्त्स्न्योपनयस्य नाममुनिभिः संकीर्त्यते संहिता।
संहिता स्कन्ध का महत्व
संहिता स्कन्ध के प्रमुख ग्रन्थ एवं आचार्य
इस संहिता स्कन्ध के विषयों का धिअकता से वर्णन ज्योतिष शास्त्र की प्रतिष्ठा के समय से ही वेदों एवं वेदांग - साहित्य में स्मृतियों, पुराणों में है। इनमें आचार्यों के मत यत्र-तत्र प्रकीर्ण अवस्था में प्रसंगवशात् हैं, जिनका आगे चलकर संहिता-ग्रन्थों में संकलन किया गया। इनमेंसे कुछ संहिताएं मिलती हैं तो अधिकतर लुप्तप्राय हैं। गर्गसंहिता, बार्हस्पत्य संहिता, काश्यपसंहिता, पाराशर संहिता जैसे कुछ संहिता ग्रन्थ क्वचित अंशों में तो कहीं पूर्णरूपेण मिलते हैं किन्तु इतना निश्चित् है कि अनेक आचार्यों के संहिता-ज्योतिष विषयक मत मिलते हैं जिनका संकलन परवर्ती आचार्यों जैसे- वराहमिहिर-बृहत्संहिता , बल्लासेन- अद्भुत सागर, भद्रबाहु- भद्रबाहु संहिता में क्रमशः किया है।
संहिता स्कन्ध के प्रमुख विषय
अद्भुत सागर ग्रन्थ में भी बृहत्संहिता के समान ही विषयों का वर्णन है, परन्तु उसमें अनेक नवीन विषयों का भी विवेचन किया गया जिनकी चर्चा बृहत्संहिता में भी चर्चा नहीं है। उसमें दिव्याश्रय, अन्तरिक्षाश्रय और भौमाश्रय संज्ञक तीन भागों में विविध उत्पातों का सोपपत्तिक वर्णन किया है व उनकी शान्ति के उपाय भी वर्णित किये हैं।
भौमाश्रय में भूकम्प, जलाशय अग्नि, दीप, देव प्रतिमा, शक्रध्वज, व्र्क्ष, गृह, वातज उपस्कर, वस्त्र, उपाहन, आसन, शस्त्र,दिव्य स्त्रीपुरुष दर्शन, मानुष, पिटक, स्वप्न, कायरिष्ट, दन्त जन्म, प्रसव, सर्वशाकुन, नाना मृग, विहग, गज, अश्व, वृष, महिष, बिडाल, शकुन, शृगाल, गृहगोधिका, पिपीलिका, पतंग, मशक, मक्षिक, लूता, भ्रमर, भेक, खञ्जरीट दर्शन, पोतकी, कृष्णपेचिका, वायसाद्भुतावर्त, मिश्रकाद्भुतावर्त्त, अद्भुतशान्त्यद्भुतावर्त्त, सद्योवर्षनिमित्ताद्भुतावर्त्त, अविरुद्धाद्भुतावर्त्त और पाकसमयाद्भुतावर्त का निरूपण किया है जिनमें से अनेक विषयों की चर्चा बृहत्संहिता में नहीं प्राप्त होती।
संहिता स्कन्ध के उपस्कन्ध
शकुन
स्वप्न
सामुद्रिकशास्त्र
वास्तु
मुहूर्त
अर्घ
वृष्टि
रामायण में संहिता स्कन्ध के अंश
संहिता स्कन्ध की समाज में उपयोगिता
संहिता स्कन्धमें ग्रह-नक्षत्रोंके द्वारा भूपृष्ठपर पडनेवाले सामूहिक प्रभावका विवेचन किया जाता है। इस स्कन्धको भौतिक एवं वैश्विक ज्योतिष भी कहा जाता है। संहिता स्कन्ध के विषय में वराहमिहिर ने लिखा है-
ज्योतिःशास्त्रमनेकभेदविषयं स्कन्धत्रयाधिष्ठितम्। तत्कार्त्स्न्योपनयनस्य नाम मुनिभिः संहीर्त्यते संहिता॥(बृ०सं० उपनय० श्लो० ९)
वस्तुतः सिद्धान्त और होरा स्कन्धों का संक्षेप में समवेत विवेचन ही संहिता है। संहिता स्कन्ध में ग्रहों की गति, ग्रहयुति, मेघलक्षण, वृष्टिविचार, उल्का-विचार, भूकम्प-विचार, जलशोधन, विभिन्न शकुनों का विचार, वास्तुविद्या तथा ग्रहणादि का समस्त चराचर जगत् पर पडने वाले सामूहिक प्रभाव इत्यादि का विचार किया जाता है। संहिता के विषयोंको भी तीन प्रकार से विभाजित किया जा सकता है-
पंचांगविषयक
राष्ट्रविषयक
व्यक्तिविषयक