प्राचीन भारतीय परम्परा में प्राय: आचार्यों ने अपनी अहंता बुद्धि को सदा ही पृष्ठ में रखा है। यही कारण है बहुत सारे शास्त्रीय ग्रन्थों में प्रणेताओं का परिचय नहीं मिलता है। यद्यपि महात्मा लगध ने स्वयं का कोई परिचय नहीं दिया है तथापि ऋक्ज्योतिष के द्वितीय श्लोक में उनका कुछ परिचय प्राप्त होता है-
अर्थात् सरस्वती देवी का अभिवादन करके और सिर झुकाकर प्रणाम करते हुये महात्मा लगध के (द्वारा उपस्थापित) काल-ज्ञान को कहूंगा।
+
+
लगध मुनि सम्बन्धी एक मात्र परिचयात्मक इस श्लोक से यह पता चलता है कि यद्यपि महात्मा लगध ज्योतिष शास्त्र के आचार्य रहे हैं तथापि वेदाङ्ग-ज्योतिष के रचयिता वह स्वयं नहीं अपितु उनका कोई शिष्य है। तथा सम्भवतः लगध के ही प्रतिपादित सूत्रों का संकलन ऋक्ज्योतिष, याजुष ज्योतिष एवं अथर्व ज्योतिष इत्यादि नाम से उनके शिष्यों ने किया। इसके अतिरिक्त लगध मुनि के विषय में अन्य कोई प्रामाणिक सूचना नहीं मिलती है क्यूंकि संस्कृत वाङ्मय में इस नाम के किसी आचार्य का अन्यत्र उल्लेख नहीं मिलता है। पाश्चात्य विद्वान ‘लगध' को ‘लगड़’ या ‘लाट’ कहते हैं, जिससे उनका समय पांचवी शताब्दी के आस-पास आता है जो कि सर्वथा निराधार है। इसका कारण ग्रन्थोक्त उत्तरायण-बिन्दु की स्थिति है जो खगोलीय गणना के आधार पर लगध का काल १४००-१५०० ईसा पूर्व निश्चित करता है।
== वेदाङ्गज्योतिष की परिभाषा॥ Definition of Vedanga Jyotisha ==
== वेदाङ्गज्योतिष की परिभाषा॥ Definition of Vedanga Jyotisha ==