Difference between revisions of "Vanaparva Adhyaya 5 (वनपर्वणि अध्यायः ५)"
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वैशम्पायन उवाच | वैशम्पायन उवाच | ||
− | पाण्डवास्तु वने वासमुद्दिश्य भरतर्षभाः। | + | पाण्डवास्तु वने वासमुद्दिश्य भरतर्षभाः। |
+ | प्रययुः जाह्नवीकूलात्कुरुक्षेत्रं सहानुगाः॥ 3-5-1 | ||
+ | सरस्वतीदृषद्वत्यौ यमुनां च निषेव्य ते। | ||
+ | ययुर्वनेनैव वनं सततं पश्चिमां दिशम्॥ 3-5-2 | ||
+ | [[:Category:Pandava's exile|''Pandava's exile'']] [[:Category:वनवास|''वनवास'']] | ||
− | + | ततः सरस्वतीकूले समेषु मरुधन्वसु। | |
+ | काम्यकं नाम ददृशुर्वनं मुनिजनप्रियम्॥ 3-5-3 | ||
+ | तत्र ते न्यवसन्वीरा वने बहुमृगद्विजे। | ||
+ | अन्वास्यमाना मुनिभिः सान्त्व्यमानाश्च भारत॥ 3-5-4 | ||
+ | [[:Category:Kamyavan|''Kamyavan'']] [[:Category:काम्यवन|''काम्यवन'']] | ||
− | + | विदुरस्त्वथ पाण्डूनां सदा दर्शनलालसः। | |
− | + | जगामैकरथेनैव काम्यकं वनमृद्धिमत्॥ 3-5-5 | |
− | + | ततो गत्वा विदुरः काम्यकं तच्छीघ्रैरश्वैर्वाहिना स्यन्दनेन। | |
− | + | ददर्शासीनं धर्मात्मानं विविक्ते सार्धं द्रौपद्या भातृभिर्ब्राह्मणैश्च॥ 3-5-6 | |
− | + | ततोऽपश्यद्विदुरं तूर्णमारादभ्यायान्तं सत्यसन्धः स राजा। | |
− | + | अथाब्रवीद्भ्रातरं भीमसेनं किं नु क्षत्ता वक्ष्यति नः समेत्य॥ 3-5-7 | |
− | + | [[:Category:Vidura meets Pandavas|''Vidura meets Pandavas'']] [[:Category:विदुर पांडव मिलन |''विदुर पांडव मिलन '']] | |
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− | विदुरस्त्वथ पाण्डूनां सदा दर्शनलालसः। | ||
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− | जगामैकरथेनैव काम्यकं वनमृद्धिमत्॥ 3-5-5 | ||
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− | ततो गत्वा विदुरः काम्यकं तच्छीघ्रैरश्वैर्वाहिना स्यन्दनेन। | ||
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− | ददर्शासीनं धर्मात्मानं विविक्ते सार्धं द्रौपद्या भातृभिर्ब्राह्मणैश्च॥ 3-5-6 | ||
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− | ततोऽपश्यद्विदुरं तूर्णमारादभ्यायान्तं सत्यसन्धः स राजा। | ||
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− | अथाब्रवीद्भ्रातरं भीमसेनं किं नु क्षत्ता वक्ष्यति नः समेत्य॥ 3-5-7 | ||
कच्चिन्नायं वचनात्सौबलस्य समाह्वाता देवनायोपयातः। | कच्चिन्नायं वचनात्सौबलस्य समाह्वाता देवनायोपयातः। | ||
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वैशम्पायन उवाच | वैशम्पायन उवाच | ||
− | तत उत्थाय विदुरं पाण्डवेयाः प्रत्यगृह्णन्नृपते सर्व एव। | + | तत उत्थाय विदुरं पाण्डवेयाः प्रत्यगृह्णन्नृपते सर्व एव। |
− | + | तैः सत्कृतः स च तानाजमीढो यथोचितं पाण्डुपुत्रान्समेयात्॥ 3-5-10 | |
− | तैः सत्कृतः स च तानाजमीढो यथोचितं पाण्डुपुत्रान्समेयात्॥ 3-5-10 | + | समाश्वस्तं विदुरं ते नरर्षभास्ततोऽपृच्छन्नागमनाय हेतुम्। |
− | + | स चापि तेभ्यो विस्तरतः शशंस यथावृत्तो धृतराष्ट्रोऽम्बिकेयः॥ 3-5-11 | |
− | समाश्वस्तं विदुरं ते नरर्षभास्ततोऽपृच्छन्नागमनाय हेतुम्। | + | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] |
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− | स चापि तेभ्यो विस्तरतः शशंस यथावृत्तो धृतराष्ट्रोऽम्बिकेयः॥ 3-5-11 | ||
विदुर उवाच | विदुर उवाच | ||
− | अवोचन्मां धृतराष्ट्रोऽनुगुप्तमजातशत्रो परिगृह्याभिपूज्य। | + | अवोचन्मां धृतराष्ट्रोऽनुगुप्तमजातशत्रो परिगृह्याभिपूज्य। |
− | + | एवं गते समतामभ्युपेत्य पथ्यं तेषां मम चैव ब्रवीहि॥ 3-5-12 | |
− | एवं गते समतामभ्युपेत्य पथ्यं तेषां मम चैव ब्रवीहि॥ 3-5-12 | + | मयाप्युक्तं यत्क्षेमं कौरवाणां हितं पथ्यं धृतराष्ट्रस्य चैव। |
− | + | तद्वै तस्मै न रुचामभ्युपैति ततश्चाहं क्षेममन्यन्न मन्ये॥ 3-5-13 | |
− | मयाप्युक्तं यत्क्षेमं कौरवाणां हितं पथ्यं धृतराष्ट्रस्य चैव। | + | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] |
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− | तद्वै तस्मै न रुचामभ्युपैति ततश्चाहं क्षेममन्यन्न मन्ये॥ 3-5-13 | ||
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− | + | परं श्रेयः पाण्डवेया मयोक्तं न मे तच्च श्रुतवानाम्बिकेयः। | |
+ | यथाऽऽतुरस्येव हि पथ्यमन्नं न रोचते स्मास्य तदुच्यमानम्॥ 3-5-14 | ||
+ | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Accepting advice|''Accepting advice'']] | ||
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− | + | न श्रेयसे नीयतेऽजातशत्रो स्त्री श्रोत्रियस्येव गृहे प्रदुष्टा। | |
+ | ध्रुवं न रोचेद्भरतर्षभस्य पतिः कुमार्या इव षष्टिवर्षः॥ 3-5-15 | ||
+ | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Accepting advice|''Accepting advice'']] | ||
− | + | ध्रुवं विनाशो नृप कौरवाणां न वै श्रेयो धृतराष्ट्रः परैति। | |
+ | यथा च पर्णे पुष्करस्यावसिक्तं जलं न तिष्ठेत्पथ्यमुक्तं तथास्मिन्॥ 3-5-16 | ||
+ | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Accepting advice|''Accepting advice'']] | ||
− | + | ततः क्रुद्धो धृतराष्ट्रोऽब्रवीन्मां यस्मिन्श्रद्धा भारत तत्र याहि। | |
+ | नाहं भूयः कामये त्वां सहायं महीमिमां पालयितुं पुरं वा॥ 3-5-17 | ||
+ | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Dhrtarashtra|''Dhrtarashtra'']] | ||
− | + | सोऽहं त्यक्तो धृतराष्ट्रेण राज्ञा प्रशासितुं त्वामुपयातो नरेन्द्र। | |
+ | तद्वै सर्वं यन्मयोक्तं सभायां तद्धार्यतां यत्प्रवक्ष्यामि भूयः॥ 3-5-18 | ||
+ | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Qualities of a king|''Qualities of a king'']] | ||
− | + | क्लेशैस्तीव्रैर्युज्यमानः सपत्नैः क्षमां कुर्वन्कालमुपासते यः। | |
+ | संवर्धयन्स्तोकमिवाग्निमात्मवान्स वै भुङ्क्ते पृथिवीमेक एव॥ 3-5-19 | ||
+ | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Qualities of a king|''Qualities of a king'']] | ||
− | सहायानामेष सङ्ग्रहणेऽध्युपायः सहायाप्तौ पृथिवीप्राप्तिमाहुः॥ 3-5-20 | + | यस्याविभक्तं वसु राजन्सहायैस्तस्य दुःखेऽप्यंशभाजः सहायाः। |
+ | सहायानामेष सङ्ग्रहणेऽध्युपायः सहायाप्तौ पृथिवीप्राप्तिमाहुः॥ 3-5-20 | ||
+ | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Qualities of a king|''Qualities of a king'']] | ||
− | सत्यं श्रेष्ठं पाण्डव विप्रलापं तुल्यं चान्नं सह भोज्यं सहायैः। | + | सत्यं श्रेष्ठं पाण्डव विप्रलापं तुल्यं चान्नं सह भोज्यं सहायैः। |
− | + | आत्मा चैषामग्रतो न स्म पूज्य एवंवृत्तिवर्धते भूमिपालः॥ 3-5-21 | |
− | आत्मा चैषामग्रतो न स्म पूज्य एवंवृत्तिवर्धते भूमिपालः॥ 3-5-21 | + | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Qualities of a king|''Qualities of a king'']] |
युधिष्ठिर उवाच | युधिष्ठिर उवाच | ||
− | एवं करिष्यामि यथा ब्रवीषि परां बुद्धिमुपगम्याप्रमत्तः। | + | एवं करिष्यामि यथा ब्रवीषि परां बुद्धिमुपगम्याप्रमत्तः। |
− | + | यच्चाप्यन्यद्देशकालोपपन्नं तद्वै वाच्यं तत्करिष्यामि कृत्स्नम्॥ 3-5-22 | |
− | यच्चाप्यन्यद्देशकालोपपन्नं तद्वै वाच्यं तत्करिष्यामि कृत्स्नम्॥ 3-5-22 | + | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] |
इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि अरण्यपर्वणि विदुरनिर्वासे पञ्चमोऽध्यायः॥ 5 ॥ | इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि अरण्यपर्वणि विदुरनिर्वासे पञ्चमोऽध्यायः॥ 5 ॥ |
Revision as of 07:58, 22 July 2019
वैशम्पायन उवाच
पाण्डवास्तु वने वासमुद्दिश्य भरतर्षभाः। प्रययुः जाह्नवीकूलात्कुरुक्षेत्रं सहानुगाः॥ 3-5-1 सरस्वतीदृषद्वत्यौ यमुनां च निषेव्य ते। ययुर्वनेनैव वनं सततं पश्चिमां दिशम्॥ 3-5-2 Pandava's exile वनवास
ततः सरस्वतीकूले समेषु मरुधन्वसु। काम्यकं नाम ददृशुर्वनं मुनिजनप्रियम्॥ 3-5-3 तत्र ते न्यवसन्वीरा वने बहुमृगद्विजे। अन्वास्यमाना मुनिभिः सान्त्व्यमानाश्च भारत॥ 3-5-4 Kamyavan काम्यवन
विदुरस्त्वथ पाण्डूनां सदा दर्शनलालसः। जगामैकरथेनैव काम्यकं वनमृद्धिमत्॥ 3-5-5 ततो गत्वा विदुरः काम्यकं तच्छीघ्रैरश्वैर्वाहिना स्यन्दनेन। ददर्शासीनं धर्मात्मानं विविक्ते सार्धं द्रौपद्या भातृभिर्ब्राह्मणैश्च॥ 3-5-6 ततोऽपश्यद्विदुरं तूर्णमारादभ्यायान्तं सत्यसन्धः स राजा। अथाब्रवीद्भ्रातरं भीमसेनं किं नु क्षत्ता वक्ष्यति नः समेत्य॥ 3-5-7 Vidura meets Pandavas विदुर पांडव मिलन
कच्चिन्नायं वचनात्सौबलस्य समाह्वाता देवनायोपयातः।
कच्चित्क्षुद्रः शकुनिर्नायुधानि जेष्यत्यस्मान्पुनरेवाक्षवत्याम्॥ 3-5-8
समाहूतः केनचिदाद्रवेति नाहं शक्तो भीमसेनापयातुम्।
गाण्डीवे च संशयिते कथं नु राज्यप्राप्तिः संशयिता भवेन्नः॥ 3-5-9
वैशम्पायन उवाच
तत उत्थाय विदुरं पाण्डवेयाः प्रत्यगृह्णन्नृपते सर्व एव। तैः सत्कृतः स च तानाजमीढो यथोचितं पाण्डुपुत्रान्समेयात्॥ 3-5-10 समाश्वस्तं विदुरं ते नरर्षभास्ततोऽपृच्छन्नागमनाय हेतुम्। स चापि तेभ्यो विस्तरतः शशंस यथावृत्तो धृतराष्ट्रोऽम्बिकेयः॥ 3-5-11 Vidura Pandava conversation
विदुर उवाच
अवोचन्मां धृतराष्ट्रोऽनुगुप्तमजातशत्रो परिगृह्याभिपूज्य। एवं गते समतामभ्युपेत्य पथ्यं तेषां मम चैव ब्रवीहि॥ 3-5-12 मयाप्युक्तं यत्क्षेमं कौरवाणां हितं पथ्यं धृतराष्ट्रस्य चैव। तद्वै तस्मै न रुचामभ्युपैति ततश्चाहं क्षेममन्यन्न मन्ये॥ 3-5-13 Vidura Pandava conversation
परं श्रेयः पाण्डवेया मयोक्तं न मे तच्च श्रुतवानाम्बिकेयः। यथाऽऽतुरस्येव हि पथ्यमन्नं न रोचते स्मास्य तदुच्यमानम्॥ 3-5-14 Vidura Pandava conversation Accepting advice
न श्रेयसे नीयतेऽजातशत्रो स्त्री श्रोत्रियस्येव गृहे प्रदुष्टा। ध्रुवं न रोचेद्भरतर्षभस्य पतिः कुमार्या इव षष्टिवर्षः॥ 3-5-15 Vidura Pandava conversation Accepting advice
ध्रुवं विनाशो नृप कौरवाणां न वै श्रेयो धृतराष्ट्रः परैति। यथा च पर्णे पुष्करस्यावसिक्तं जलं न तिष्ठेत्पथ्यमुक्तं तथास्मिन्॥ 3-5-16 Vidura Pandava conversation Accepting advice
ततः क्रुद्धो धृतराष्ट्रोऽब्रवीन्मां यस्मिन्श्रद्धा भारत तत्र याहि। नाहं भूयः कामये त्वां सहायं महीमिमां पालयितुं पुरं वा॥ 3-5-17 Vidura Pandava conversation Dhrtarashtra
सोऽहं त्यक्तो धृतराष्ट्रेण राज्ञा प्रशासितुं त्वामुपयातो नरेन्द्र। तद्वै सर्वं यन्मयोक्तं सभायां तद्धार्यतां यत्प्रवक्ष्यामि भूयः॥ 3-5-18 Vidura Pandava conversation Qualities of a king
क्लेशैस्तीव्रैर्युज्यमानः सपत्नैः क्षमां कुर्वन्कालमुपासते यः। संवर्धयन्स्तोकमिवाग्निमात्मवान्स वै भुङ्क्ते पृथिवीमेक एव॥ 3-5-19 Vidura Pandava conversation Qualities of a king
यस्याविभक्तं वसु राजन्सहायैस्तस्य दुःखेऽप्यंशभाजः सहायाः। सहायानामेष सङ्ग्रहणेऽध्युपायः सहायाप्तौ पृथिवीप्राप्तिमाहुः॥ 3-5-20 Vidura Pandava conversation Qualities of a king
सत्यं श्रेष्ठं पाण्डव विप्रलापं तुल्यं चान्नं सह भोज्यं सहायैः। आत्मा चैषामग्रतो न स्म पूज्य एवंवृत्तिवर्धते भूमिपालः॥ 3-5-21 Vidura Pandava conversation Qualities of a king
युधिष्ठिर उवाच
एवं करिष्यामि यथा ब्रवीषि परां बुद्धिमुपगम्याप्रमत्तः। यच्चाप्यन्यद्देशकालोपपन्नं तद्वै वाच्यं तत्करिष्यामि कृत्स्नम्॥ 3-5-22 Vidura Pandava conversation
इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि अरण्यपर्वणि विदुरनिर्वासे पञ्चमोऽध्यायः॥ 5 ॥