Line 1: |
Line 1: |
| वैशम्पायन उवाच | | वैशम्पायन उवाच |
| | | |
− | पाण्डवास्तु वने वासमुद्दिश्य भरतर्षभाः। | + | पाण्डवास्तु वने वासमुद्दिश्य भरतर्षभाः। |
| + | प्रययुः जाह्नवीकूलात्कुरुक्षेत्रं सहानुगाः॥ 3-5-1 |
| + | सरस्वतीदृषद्वत्यौ यमुनां च निषेव्य ते। |
| + | ययुर्वनेनैव वनं सततं पश्चिमां दिशम्॥ 3-5-2 |
| + | [[:Category:Pandava's exile|''Pandava's exile'']] [[:Category:वनवास|''वनवास'']] |
| | | |
− | प्रययुः जाह्नवीकूलात्कुरुक्षेत्रं सहानुगाः॥ 3-5-1
| + | ततः सरस्वतीकूले समेषु मरुधन्वसु। |
| + | काम्यकं नाम ददृशुर्वनं मुनिजनप्रियम्॥ 3-5-3 |
| + | तत्र ते न्यवसन्वीरा वने बहुमृगद्विजे। |
| + | अन्वास्यमाना मुनिभिः सान्त्व्यमानाश्च भारत॥ 3-5-4 |
| + | [[:Category:Kamyavan|''Kamyavan'']] [[:Category:काम्यवन|''काम्यवन'']] |
| | | |
− | सरस्वतीदृषद्वत्यौ यमुनां च निषेव्य ते।
| + | विदुरस्त्वथ पाण्डूनां सदा दर्शनलालसः। |
− | | + | जगामैकरथेनैव काम्यकं वनमृद्धिमत्॥ 3-5-5 |
− | ययुर्वनेनैव वनं सततं पश्चिमां दिशम्॥ 3-5-2
| + | ततो गत्वा विदुरः काम्यकं तच्छीघ्रैरश्वैर्वाहिना स्यन्दनेन। |
− | | + | ददर्शासीनं धर्मात्मानं विविक्ते सार्धं द्रौपद्या भातृभिर्ब्राह्मणैश्च॥ 3-5-6 |
− | ततः सरस्वतीकूले समेषु मरुधन्वसु।
| + | ततोऽपश्यद्विदुरं तूर्णमारादभ्यायान्तं सत्यसन्धः स राजा। |
− | | + | अथाब्रवीद्भ्रातरं भीमसेनं किं नु क्षत्ता वक्ष्यति नः समेत्य॥ 3-5-7 |
− | काम्यकं नाम ददृशुर्वनं मुनिजनप्रियम्॥ 3-5-3
| + | [[:Category:Vidura meets Pandavas|''Vidura meets Pandavas'']] [[:Category:विदुर पांडव मिलन |''विदुर पांडव मिलन '']] |
− | | |
− | तत्र ते न्यवसन्वीरा वने बहुमृगद्विजे।
| |
− | | |
− | अन्वास्यमाना मुनिभिः सान्त्व्यमानाश्च भारत॥ 3-5-4
| |
− | | |
− | विदुरस्त्वथ पाण्डूनां सदा दर्शनलालसः। | |
− | | |
− | जगामैकरथेनैव काम्यकं वनमृद्धिमत्॥ 3-5-5 | |
− | | |
− | ततो गत्वा विदुरः काम्यकं तच्छीघ्रैरश्वैर्वाहिना स्यन्दनेन। | |
− | | |
− | ददर्शासीनं धर्मात्मानं विविक्ते सार्धं द्रौपद्या भातृभिर्ब्राह्मणैश्च॥ 3-5-6 | |
− | | |
− | ततोऽपश्यद्विदुरं तूर्णमारादभ्यायान्तं सत्यसन्धः स राजा। | |
− | | |
− | अथाब्रवीद्भ्रातरं भीमसेनं किं नु क्षत्ता वक्ष्यति नः समेत्य॥ 3-5-7 | |
| | | |
| कच्चिन्नायं वचनात्सौबलस्य समाह्वाता देवनायोपयातः। | | कच्चिन्नायं वचनात्सौबलस्य समाह्वाता देवनायोपयातः। |
Line 39: |
Line 31: |
| वैशम्पायन उवाच | | वैशम्पायन उवाच |
| | | |
− | तत उत्थाय विदुरं पाण्डवेयाः प्रत्यगृह्णन्नृपते सर्व एव। | + | तत उत्थाय विदुरं पाण्डवेयाः प्रत्यगृह्णन्नृपते सर्व एव। |
− | | + | तैः सत्कृतः स च तानाजमीढो यथोचितं पाण्डुपुत्रान्समेयात्॥ 3-5-10 |
− | तैः सत्कृतः स च तानाजमीढो यथोचितं पाण्डुपुत्रान्समेयात्॥ 3-5-10 | + | समाश्वस्तं विदुरं ते नरर्षभास्ततोऽपृच्छन्नागमनाय हेतुम्। |
− | | + | स चापि तेभ्यो विस्तरतः शशंस यथावृत्तो धृतराष्ट्रोऽम्बिकेयः॥ 3-5-11 |
− | समाश्वस्तं विदुरं ते नरर्षभास्ततोऽपृच्छन्नागमनाय हेतुम्। | + | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] |
− | | |
− | स चापि तेभ्यो विस्तरतः शशंस यथावृत्तो धृतराष्ट्रोऽम्बिकेयः॥ 3-5-11 | |
| | | |
| विदुर उवाच | | विदुर उवाच |
| | | |
− | अवोचन्मां धृतराष्ट्रोऽनुगुप्तमजातशत्रो परिगृह्याभिपूज्य। | + | अवोचन्मां धृतराष्ट्रोऽनुगुप्तमजातशत्रो परिगृह्याभिपूज्य। |
− | | + | एवं गते समतामभ्युपेत्य पथ्यं तेषां मम चैव ब्रवीहि॥ 3-5-12 |
− | एवं गते समतामभ्युपेत्य पथ्यं तेषां मम चैव ब्रवीहि॥ 3-5-12 | + | मयाप्युक्तं यत्क्षेमं कौरवाणां हितं पथ्यं धृतराष्ट्रस्य चैव। |
− | | + | तद्वै तस्मै न रुचामभ्युपैति ततश्चाहं क्षेममन्यन्न मन्ये॥ 3-5-13 |
− | मयाप्युक्तं यत्क्षेमं कौरवाणां हितं पथ्यं धृतराष्ट्रस्य चैव। | + | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] |
− | | |
− | तद्वै तस्मै न रुचामभ्युपैति ततश्चाहं क्षेममन्यन्न मन्ये॥ 3-5-13 | |
− | | |
− | परं श्रेयः पाण्डवेया मयोक्तं न मे तच्च श्रुतवानाम्बिकेयः।
| |
− | | |
− | यथाऽऽतुरस्येव हि पथ्यमन्नं न रोचते स्मास्य तदुच्यमानम्॥ 3-5-14
| |
− | | |
− | न श्रेयसे नीयतेऽजातशत्रो स्त्री श्रोत्रियस्येव गृहे प्रदुष्टा।
| |
− | | |
− | ध्रुवं न रोचेद्भरतर्षभस्य पतिः कुमार्या इव षष्टिवर्षः॥ 3-5-15
| |
− | | |
− | ध्रुवं विनाशो नृप कौरवाणां न वै श्रेयो धृतराष्ट्रः परैति।
| |
− | | |
− | यथा च पर्णे पुष्करस्यावसिक्तं जलं न तिष्ठेत्पथ्यमुक्तं तथास्मिन्॥ 3-5-16
| |
| | | |
− | ततः क्रुद्धो धृतराष्ट्रोऽब्रवीन्मां यस्मिन्श्रद्धा भारत तत्र याहि।
| + | परं श्रेयः पाण्डवेया मयोक्तं न मे तच्च श्रुतवानाम्बिकेयः। |
| + | यथाऽऽतुरस्येव हि पथ्यमन्नं न रोचते स्मास्य तदुच्यमानम्॥ 3-5-14 |
| + | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Accepting advice|''Accepting advice'']] |
| | | |
− | नाहं भूयः कामये त्वां सहायं महीमिमां पालयितुं पुरं वा॥ 3-5-17
| |
| | | |
− | सोऽहं त्यक्तो धृतराष्ट्रेण राज्ञा प्रशासितुं त्वामुपयातो नरेन्द्र।
| + | न श्रेयसे नीयतेऽजातशत्रो स्त्री श्रोत्रियस्येव गृहे प्रदुष्टा। |
| + | ध्रुवं न रोचेद्भरतर्षभस्य पतिः कुमार्या इव षष्टिवर्षः॥ 3-5-15 |
| + | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Accepting advice|''Accepting advice'']] |
| | | |
− | तद्वै सर्वं यन्मयोक्तं सभायां तद्धार्यतां यत्प्रवक्ष्यामि भूयः॥ 3-5-18
| + | ध्रुवं विनाशो नृप कौरवाणां न वै श्रेयो धृतराष्ट्रः परैति। |
| + | यथा च पर्णे पुष्करस्यावसिक्तं जलं न तिष्ठेत्पथ्यमुक्तं तथास्मिन्॥ 3-5-16 |
| + | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Accepting advice|''Accepting advice'']] |
| | | |
− | क्लेशैस्तीव्रैर्युज्यमानः सपत्नैः क्षमां कुर्वन्कालमुपासते यः।
| + | ततः क्रुद्धो धृतराष्ट्रोऽब्रवीन्मां यस्मिन्श्रद्धा भारत तत्र याहि। |
| + | नाहं भूयः कामये त्वां सहायं महीमिमां पालयितुं पुरं वा॥ 3-5-17 |
| + | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Dhrtarashtra|''Dhrtarashtra'']] |
| | | |
− | संवर्धयन्स्तोकमिवाग्निमात्मवान्स वै भुङ्क्ते पृथिवीमेक एव॥ 3-5-19
| + | सोऽहं त्यक्तो धृतराष्ट्रेण राज्ञा प्रशासितुं त्वामुपयातो नरेन्द्र। |
| + | तद्वै सर्वं यन्मयोक्तं सभायां तद्धार्यतां यत्प्रवक्ष्यामि भूयः॥ 3-5-18 |
| + | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Qualities of a king|''Qualities of a king'']] |
| | | |
− | यस्याविभक्तं वसु राजन्सहायैस्तस्य दुःखेऽप्यंशभाजः सहायाः।
| + | क्लेशैस्तीव्रैर्युज्यमानः सपत्नैः क्षमां कुर्वन्कालमुपासते यः। |
| + | संवर्धयन्स्तोकमिवाग्निमात्मवान्स वै भुङ्क्ते पृथिवीमेक एव॥ 3-5-19 |
| + | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Qualities of a king|''Qualities of a king'']] |
| | | |
− | सहायानामेष सङ्ग्रहणेऽध्युपायः सहायाप्तौ पृथिवीप्राप्तिमाहुः॥ 3-5-20 | + | यस्याविभक्तं वसु राजन्सहायैस्तस्य दुःखेऽप्यंशभाजः सहायाः। |
| + | सहायानामेष सङ्ग्रहणेऽध्युपायः सहायाप्तौ पृथिवीप्राप्तिमाहुः॥ 3-5-20 |
| + | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Qualities of a king|''Qualities of a king'']] |
| | | |
− | सत्यं श्रेष्ठं पाण्डव विप्रलापं तुल्यं चान्नं सह भोज्यं सहायैः। | + | सत्यं श्रेष्ठं पाण्डव विप्रलापं तुल्यं चान्नं सह भोज्यं सहायैः। |
− | | + | आत्मा चैषामग्रतो न स्म पूज्य एवंवृत्तिवर्धते भूमिपालः॥ 3-5-21 |
− | आत्मा चैषामग्रतो न स्म पूज्य एवंवृत्तिवर्धते भूमिपालः॥ 3-5-21 | + | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] [[:Category:Qualities of a king|''Qualities of a king'']] |
| | | |
| युधिष्ठिर उवाच | | युधिष्ठिर उवाच |
| | | |
− | एवं करिष्यामि यथा ब्रवीषि परां बुद्धिमुपगम्याप्रमत्तः। | + | एवं करिष्यामि यथा ब्रवीषि परां बुद्धिमुपगम्याप्रमत्तः। |
− | | + | यच्चाप्यन्यद्देशकालोपपन्नं तद्वै वाच्यं तत्करिष्यामि कृत्स्नम्॥ 3-5-22 |
− | यच्चाप्यन्यद्देशकालोपपन्नं तद्वै वाच्यं तत्करिष्यामि कृत्स्नम्॥ 3-5-22 | + | [[:Category:Vidura Pandava conversation|''Vidura Pandava conversation'']] |
| | | |
| इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि अरण्यपर्वणि विदुरनिर्वासे पञ्चमोऽध्यायः॥ 5 ॥ | | इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि अरण्यपर्वणि विदुरनिर्वासे पञ्चमोऽध्यायः॥ 5 ॥ |