− | भवानी का आठवां स्वरूप महागौरी रूप कहा जाता है। सुख-समृद्धि की प्रतीक और सौन्दर्य की यह देवी अधिष्ठात्री हैं। कृषभ वाहिनी और चतुर्भुजी महागौरी अनेक नामों से पुकारी जाती हैं। डमरू वरमुद्रा धारण करने | + | भवानी का आठवां स्वरूप महागौरी रूप कहा जाता है। सुख-समृद्धि की प्रतीक और सौन्दर्य की यह देवी अधिष्ठात्री हैं। कृषभ वाहिनी और चतुर्भुजी महागौरी अनेक नामों से पुकारी जाती हैं। डमरू वरमुद्रा धारण करने |
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| + | वाली महागौरी सुवासिनी हैं। देवी भागवत में विश्व प्रसूता, सर्वभूतेश महेश्वर सच्चिदानन्द स्वरूपिणी। आत्म-स्वरूपिणी ब्रह्मा, विष्णु, महेश, रूपा आदि नामों से देवी की स्तुति की गयी है। देवी स्वयं कहती हैं, मैं सबकी ईश्वरी, स्वामिनी हूं. उपासकों को धन देने वाली, सूर्य, चन्द्रादि नक्षत्रों को चलाने वाली परब्रह्म ज्ञान स्वरूपा में ही हूं। ऐसी गुणों वाली सच्चिदानन्द स्वरूपा सब प्राणियों में चैतऱ्य रूप से रहने वाली मुझको सब कर्मों में विद्यान करते हैं । नारद पांचराक्ष के अनुसार भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए गौरी ने कठोर तप किया। तप व धूल-मिट्टी से उनका शरीर मलीन हो गया था। शिव ने गंगाजल छिड़का तो उनका शरीर कान्तिमय होकर महागौरी हो गया। महांगौरी अंक्षत सुहाग की ही अधिष्ठात्री हैं। |
| + | देवी का नवां स्वरूप सिद्धदात्री है। देवी ही अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, सौम्य, वारीत्व और रशत्व जैसी आठ सिद्धियों को देने वाली है। मानव जीवन के यही सिंह तत्व हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान शंकर ने उनकी उपासना से सम्पूर्ण शक्तियों को सिद्ध किया। इसलिये इनकी समस्त शक्तियों के रूपों में पूजा हुई। सिंहसवार, प्रसन्नवदना, दिव्यपुंज, चंचल नेत्र वाग्देवी, सिद्धदात्री, धनधान्य की अधिष्ठा श्री तथा सरस्वती के समान वाणी को अमूत प्रदान करने वाली हैं। ऋतु परिवर्तन से होने वाले विकार, व्याधियां चैत्र नवरात्रों की पूजा और उपवास और तप से हो जाते हैं। दुर्गा सप्तशती में सिद्धदात्री देवी को सदानन्द, परानन्द और सर्वमंगलों की आराध्य कहा गया है। चैत्र शुक्ल प्रतिस्पदा के ही दिन से घट-स्थापना और जौ बोने की क्रिया भक्तों द्वारा की जाती है। दुर्गा सप्तशती का पाठ होता है, नौ दिन पाठ के साथ हवन और ब्राह्मण भोजन कराना वांछनीय है। नवरात्रि व्रत कथा-प्राचीन काल में सुरथ नामक राजा थे। एक बार शत्रुओं ने उन पर चढ़ाई कर दी। कात्री आदि लोग राजा के साथ विश्वासधात करके पक्ष से मिल गये। इस तरह राजा की हार हुई। वे दुःखी और निराश होकर तपस्वी वेष में वन में निवास करने लगे। उसी वन में उन्हें समाधि नाम का वाणिक मिला जो अपने स्त्री-पुत्रों के दुर्व्यवहार से अपमानित होकर वहां निवास करता था। दोनों में परस्पर परिचय हुआ। वे महर्षि मेधा के आश्रम में पहुंचे महामुनि मेधा के आने का कारण पूछने पर दोनों ने बताया कि "यद्यपि हम दोनों ही अपनों से ही अत्यन्त अपमानित एवं तिरस्कृत हैं, फिँर भी उनके प्रति मोह नहीं छूटता, इसका क्या कारण है?" महर्षि मेधा ने बताया कि-"मन शक्ति के अधीन होता है। आदिशक्ति भगवती के दो रूप हैं-विद्या एवं अविद्या। प्रथम ज्ञान स्वरूप। है तथा दूसरी अज्ञान स्वरूपा। अविद्या के आदि कारण रूप में उपासना करते हैं । उन्हें वे विद्या स्वरूपा प्राप्त होकर मोक्ष प्रदान करती हैं। |