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→‎चन्द्रघण्टा-: नया लेख बनाया
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==== चन्द्रघण्टा- ====
 
==== चन्द्रघण्टा- ====
 
देवी का तीसरा स्वरूप चन्द्रिका या चन्द्रघण्टा का है। पृथ्वी पर एक बार चण्ड-मुण्ड नाम के दो राक्षस पैदा हुए थे। दोनों इतने बलवान थे कि संसार में अपना राज्य फैला दिया तथा स्वर्ग देवताओं को हराकर वहां भी अपना अधिकार जमा लिया। इस तरह देवता बहुत दुःखी हुए तथा देवी की स्तुति करने लगे। तब देवी चन्द्रघण्टा (चन्द्रिका) के रूप में अवतरित हुईं एवं चण्ड-मुण्ड नामक राक्षसों को मारकर संसार का दुःख दूर किया। देवताओं का गया हुआ स्वर्ग पुनः उन्हें दे दिया। इस तरह चारों ओर सुख का साम्राज्य स्थापित हुआ।
 
देवी का तीसरा स्वरूप चन्द्रिका या चन्द्रघण्टा का है। पृथ्वी पर एक बार चण्ड-मुण्ड नाम के दो राक्षस पैदा हुए थे। दोनों इतने बलवान थे कि संसार में अपना राज्य फैला दिया तथा स्वर्ग देवताओं को हराकर वहां भी अपना अधिकार जमा लिया। इस तरह देवता बहुत दुःखी हुए तथा देवी की स्तुति करने लगे। तब देवी चन्द्रघण्टा (चन्द्रिका) के रूप में अवतरित हुईं एवं चण्ड-मुण्ड नामक राक्षसों को मारकर संसार का दुःख दूर किया। देवताओं का गया हुआ स्वर्ग पुनः उन्हें दे दिया। इस तरह चारों ओर सुख का साम्राज्य स्थापित हुआ।
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==== कूष्माण्डा- ====
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मां भगवती का चौथा या चतुर्थ स्वरूप कृष्माण्डा का है। चैत्र नवरात्र में संयम से व्रत रखने वाले को मां कूष्माण्डा की कृपा से किसी वस्तु की कमी नहीं रहा करती तथा वह हर प्रकार की विपत्तियों को सरलता से प्राप्त कर लेता है |
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==== स्कन्दमाता- ====
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मां भगवती के पांचवें स्वरूप में स्कन्दमाता अवतरित हुईं। युग निर्माण परिवार के लाखों परिजनों ने वंदनीय माताजी का स्नेह, दुलार एवं संरक्षण पाया है। वन्दनीय स्कन्दमाताजी का परिचय भी शब्दों के रूप में नहीं किया  जा सकता, फिर भी साधक मन में अपने ईष्ट का स्मरण और कीर्तन, दृश्यों के भावों तथा शब्दों में ही किया जाता है।
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==== कात्यायिनी- ====
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कात्यायिनी देवी मां भगवती का छठा रूप है। कात्यायन ऋषि के आश्रम में प्रकट होने के कारण इनका नाम कात्यायिनी पड़ा। ऋषिकुल का गोत्र भी कात्या था। अस्तु वह कात्यायिनी के रूप में विख्यात हैं। ऋषि ने देवी  की आराधना व  तप करके प्रार्थना की-"हे देवी, आप मेरे यहां पुत्री के रूप में जन्म लें।"कात्यायन ऋषि का तप सफल हुआ और देवी ने उसके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। ऐसा कहा जाता है कि श्रीकृष्ण को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए गोपियों ने इन्हीं देवी की आराधना की थी। दिव्य स्वरूप और वरणी त्रिनेत्री, अष्टभुजी सिंह पे सवार यह देवी साधना और तपस्या को फलीभूत करने वाली हैं।
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==== कालरात्रि - ====
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काल ही शाश्वत एवं मुक्ति का प्रतीक है। काल की सत्यता से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता। महत्त्वाकांक्षाओं की मुट्ठी बांधकर जीव जगत मेंआता है तथा फिर हाथ पसारे चला जाता है। जो साक्षात् स्वयं में काल हो वह कालरात्रि है। देवी तन्त्र में काली ही कालजयी है। भगवान शंकर मृत्यु तथा प्रलय के देव हैं और काली उनकी शक्ति है। पार्वतीजी को आमोद-प्रमोद में काली कह देने से शक्ति स्वरूपा मां भगवती काली के नाम से भी प्रसिद्ध हो गयी । अनन्त शौर्य और शक्ति की आराध्य देवी काली को उपनिषदों में सर्वलोक प्रतिष्ठा कहा जाता है। यह शक्ति अजन्मा और विघ्न-विनाशिका है। मुक्तकेश, लोलरसना, शमशान, शव जलती हुई चिता, नरमुण्ड, पात्र में परिपूर्ण मदिरा काली को प्रिय है। मनुष्य जिन चीजों से दूर भागता है, देवी काली की वह सब प्रिय हैं। नवरात्रि में काली की पूजा विशिष्ट है। काल और परिस्थितियों को वह पावन और मंगल करती हैं।
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==== महागौरी- ====
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भवानी का आठवां स्वरूप महागौरी रूप कहा जाता है। सुख-समृद्धि की प्रतीक और सौन्दर्य की यह देवी अधिष्ठात्री हैं। कृषभ वाहिनी और चतुर्भुजी महागौरी अनेक नामों से पुकारी जाती हैं। डमरू वरमुद्रा धारण करने
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