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=== परिवार ===
 
=== परिवार ===
मनुष्य का मनुष्य के साथ समायोजन का प्रथम चरण है स्त्री और पुरुष का सम्बन्ध । स्त्रीधारा और पुरुषधारा इस सृष्टि की मूल दो धाराएँ हैं । इनका ही परस्पर समायोजन होने से शेष के लिए सुविधा होती है । अतः सर्वप्रथम दोनों को साथ रहने हेतु विवाह संस्कार की योजना हुई और उन्हें दंपती बनाकर कुटुम्ब का केंद्र बिंदु  बनाया। विवाह के परिणामस्वरूप बच्चों का जन्म हुआ और कुटुम्ब का विस्तार होने लगा । प्रथम चरण में मातापिता और संतानों का सम्बन्ध बना और दूसरे क्रम में सहोदरों का अर्थात भाई बहनों का सम्बन्ध बनता गया । इन दोनों आयामों को लेकर लंब और क्षैतिज दोनों प्रकार के सम्बन्ध बनते गए । पहली बात यह है कि कुटुम्ब रक्तसंबंध से बनता है।  परंतु रक्तसंबंध के साथ साथ भावात्मक सम्बन्ध भी होता है। केवल मनुष्य ही अन्नमय और प्राणमय के साथ साथ मनोमय से आनंदमय तक और उससे भी परे आत्मिक स्तर पर भी पहुँचता है यह हमने विकास के प्रथम आयाम में देखा ही है । अत: स्त्रीपुरुष के वैवाहिक सम्बन्ध को केवल जैविक स्तर पर सीमित न करते हुए आत्मिक स्तर तक पहुंचाने की मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति बनी । पति-पत्नी के सम्बन्ध का आदर्श एकात्म सम्बन्ध बना । सम्बन्ध की इसी एकात्मता का विस्तार सर्वत्र स्थापित किया गया | अपने अंतः:करण को इतना उदार बनाना कि सम्पूर्ण वसुधा एक ही कुटुम्ब लगे, यह मनुष्य का आदर्श बना ।
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मनुष्य का मनुष्य के साथ समायोजन का प्रथम चरण है स्त्री और पुरुष का सम्बन्ध । स्त्रीधारा और पुरुषधारा इस सृष्टि की मूल दो धाराएँ हैं । इनका ही परस्पर समायोजन होने से शेष के लिए सुविधा होती है । अतः सर्वप्रथम दोनों को साथ रहने हेतु विवाह संस्कार की योजना हुई और उन्हें दंपती बनाकर कुटुम्ब का केंद्र बिंदु  बनाया। विवाह के परिणामस्वरूप बच्चोंं का जन्म हुआ और कुटुम्ब का विस्तार होने लगा । प्रथम चरण में मातापिता और संतानों का सम्बन्ध बना और दूसरे क्रम में सहोदरों का अर्थात भाई बहनों का सम्बन्ध बनता गया । इन दोनों आयामों को लेकर लंब और क्षैतिज दोनों प्रकार के सम्बन्ध बनते गए । पहली बात यह है कि कुटुम्ब रक्तसंबंध से बनता है।  परंतु रक्तसंबंध के साथ साथ भावात्मक सम्बन्ध भी होता है। केवल मनुष्य ही अन्नमय और प्राणमय के साथ साथ मनोमय से आनंदमय तक और उससे भी परे आत्मिक स्तर पर भी पहुँचता है यह हमने विकास के प्रथम आयाम में देखा ही है । अत: स्त्रीपुरुष के वैवाहिक सम्बन्ध को केवल जैविक स्तर पर सीमित न करते हुए आत्मिक स्तर तक पहुंचाने की मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति बनी । पति-पत्नी के सम्बन्ध का आदर्श एकात्म सम्बन्ध बना । सम्बन्ध की इसी एकात्मता का विस्तार सर्वत्र स्थापित किया गया | अपने अंतः:करण को इतना उदार बनाना कि सम्पूर्ण वसुधा एक ही कुटुम्ब लगे, यह मनुष्य का आदर्श बना ।
    
इस परिवारभावना की नींव पर मनुष्य को संपूर्ण समष्टि और सृष्टि के साथ समायोजन बनाना चाहिए और शिक्षा के द्वारा इस परिवारभावना को सिखाना यह शिक्षा का केन्द्रवर्ती विषय है ।
 
इस परिवारभावना की नींव पर मनुष्य को संपूर्ण समष्टि और सृष्टि के साथ समायोजन बनाना चाहिए और शिक्षा के द्वारा इस परिवारभावना को सिखाना यह शिक्षा का केन्द्रवर्ती विषय है ।

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