Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "लोगो" to "लोगों"
Line 2: Line 2:  
=== हीनता एक मनोरुग्णता है ===
 
=== हीनता एक मनोरुग्णता है ===
   −
१. पश्चिमीशिक्षा का सर्वाधिक प्रभाव हमारे मानस पर हुआ है । धनसम्पन्न, बुद्धिसम्पन्न, गुणसम्पन्न लोगों को भी इस विकृति ने नहीं बक्षा है । मन में गहरे पैठे इस रोग से मुक्त हुए बिना अन्य अनेक श्रेष्ठ उपायों का भी कोई परिणाम दिखाई नहीं देता ।
+
१. पश्चिमीशिक्षा का सर्वाधिक प्रभाव हमारे मानस पर हुआ है । धनसम्पन्न, बुद्धिसम्पन्न, गुणसम्पन्न लोगोंं को भी इस विकृति ने नहीं बक्षा है । मन में गहरे पैठे इस रोग से मुक्त हुए बिना अन्य अनेक श्रेष्ठ उपायों का भी कोई परिणाम दिखाई नहीं देता ।
    
२. हीनताबोध मानसिक विकृति है, मनोरुग्णता है । इसे बुद्धि से नहीं समझा जाता । इसे बौद्धिक उपायों से दूर भी नहीं किया जाता । शारीरिक व्याधि को दूर करने हेतु जिस प्रकार का औषधोपचार किया जाता है उस प्रकार के औषधोपचार से भी उसे दूर नहीं किया जाता है । समझाना, प्रमाण देना, कार्यकारण भाव बताना आदि बौद्धिक उपाय, दृण्ड, सख्ती, आदि शारीरिक उपायों से, देशभक्ति, स्वतन्त्रता, स्वगौरव जैसे नैतिक और आत्मिक उपदेशों से भी यह रोग दूर नहीं हो सकता |
 
२. हीनताबोध मानसिक विकृति है, मनोरुग्णता है । इसे बुद्धि से नहीं समझा जाता । इसे बौद्धिक उपायों से दूर भी नहीं किया जाता । शारीरिक व्याधि को दूर करने हेतु जिस प्रकार का औषधोपचार किया जाता है उस प्रकार के औषधोपचार से भी उसे दूर नहीं किया जाता है । समझाना, प्रमाण देना, कार्यकारण भाव बताना आदि बौद्धिक उपाय, दृण्ड, सख्ती, आदि शारीरिक उपायों से, देशभक्ति, स्वतन्त्रता, स्वगौरव जैसे नैतिक और आत्मिक उपदेशों से भी यह रोग दूर नहीं हो सकता |
Line 20: Line 20:  
शूद्रों को ब्राह्मणों के विरुद्ध, यहाँ की पूरी प्रजा अन्धविश्वासों से भरी हुई है, पिछडी है ऐसा कहकर पूरी प्रजा को अपने धर्म, संस्कृति और धर्माचार्यों के विरुद्ध भटकाने के लगातार प्रयास किये गये, जो आज भी चल रहे हैं जिसके परिणाम स्वरूप वर्गभेद आज भी दृढमूल बनकर अपना प्रभाव दिखा रहा है ।
 
शूद्रों को ब्राह्मणों के विरुद्ध, यहाँ की पूरी प्रजा अन्धविश्वासों से भरी हुई है, पिछडी है ऐसा कहकर पूरी प्रजा को अपने धर्म, संस्कृति और धर्माचार्यों के विरुद्ध भटकाने के लगातार प्रयास किये गये, जो आज भी चल रहे हैं जिसके परिणाम स्वरूप वर्गभेद आज भी दृढमूल बनकर अपना प्रभाव दिखा रहा है ।
   −
८. तीसरा उपाय शिक्षा का था । समाज के ब्राह्मण वर्ग के कुछ लोगों पर उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा देने की “कृपा' की और उन्हें शेष समाज से अलग कर अपने साथ जोडा । अपने जैसा वेश, अपने जैसा खानपान, अपने जैसा शिष्टाचार, अपनी भाषा और अपना ज्ञान देकर उन्हें अपने जैसा बनाया, उनका सम्मान किया, उनके गुणगान किये और शेष प्रजा को हीन मानना सिखाया । शिक्षित वर्ग में अंग्रेजी, अंगप्रेजीयत और अंग्रेजी ज्ञान अपने आपको श्रेष्ठ मानकर शेष प्रजा को हीन मानता है ।
+
८. तीसरा उपाय शिक्षा का था । समाज के ब्राह्मण वर्ग के कुछ लोगोंं पर उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा देने की “कृपा' की और उन्हें शेष समाज से अलग कर अपने साथ जोडा । अपने जैसा वेश, अपने जैसा खानपान, अपने जैसा शिष्टाचार, अपनी भाषा और अपना ज्ञान देकर उन्हें अपने जैसा बनाया, उनका सम्मान किया, उनके गुणगान किये और शेष प्रजा को हीन मानना सिखाया । शिक्षित वर्ग में अंग्रेजी, अंगप्रेजीयत और अंग्रेजी ज्ञान अपने आपको श्रेष्ठ मानकर शेष प्रजा को हीन मानता है ।
    
९. इन तीनों बातों की सहायता से, शिक्षित धार्मिकों का ही साधन के रूप में उपयोग कर सभी राजकीय, प्रशासनिक, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक संस्थाओं को छिन्नविच्छन्न कर उनके स्थान पर युरोपीय संस्थाओं को प्रस्थापित कर दिया । शिक्षा के माध्यम से बुद्धि में, अत्याचार और छल के माध्यम से मन में और व्यवस्थाओं के माध्यम से व्यवहार में वे छा गये ।  
 
९. इन तीनों बातों की सहायता से, शिक्षित धार्मिकों का ही साधन के रूप में उपयोग कर सभी राजकीय, प्रशासनिक, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक संस्थाओं को छिन्नविच्छन्न कर उनके स्थान पर युरोपीय संस्थाओं को प्रस्थापित कर दिया । शिक्षा के माध्यम से बुद्धि में, अत्याचार और छल के माध्यम से मन में और व्यवस्थाओं के माध्यम से व्यवहार में वे छा गये ।  
Line 66: Line 66:  
............. page-283 .............
 
............. page-283 .............
   −
सम्पत्ति, पद, मान, पुरस्कार आदि से सम्बद्ध न हों यह आवश्यक है । वे पूर्ण रूप से निष्पक्षपाती हों ऐसा कम से कम एक हजार लोगों का विश्वास होना चाहिये । इतनी कडाई नहीं की तो उसके द्वारा दी गई व्यवस्था अनुसरणीय नहीं बनेगी ।
+
सम्पत्ति, पद, मान, पुरस्कार आदि से सम्बद्ध न हों यह आवश्यक है । वे पूर्ण रूप से निष्पक्षपाती हों ऐसा कम से कम एक हजार लोगोंं का विश्वास होना चाहिये । इतनी कडाई नहीं की तो उसके द्वारा दी गई व्यवस्था अनुसरणीय नहीं बनेगी ।
    
४७. एक नई व्यवस्था दने के लिये दो तीन बिन्दु पर्याप्त हैं। तीन चार पीढ़ियों में परिष्कृत होते होते वह सर्वस्वीकृत व्यवस्था बन सकती है ।
 
४७. एक नई व्यवस्था दने के लिये दो तीन बिन्दु पर्याप्त हैं। तीन चार पीढ़ियों में परिष्कृत होते होते वह सर्वस्वीकृत व्यवस्था बन सकती है ।
   −
४८. समाज के कुछ लोगों को तो ब्राह्मण बनना ही चाहिये । उन्हें ब्राह्मण न कहकर शिक्षक, याशिक, धर्माचार्य, प्रधान, सेवक, ऋषि ऐसा कुछ भी कह सकते हैं । जो भी नाम दिया जाय स्वयं कुछ न लेते हुए शास्त्रों की रचना करने वाले और समाज और राज्य का मार्गदर्शन करने वाले लोग तो चाहिये ही । समाज ही अपने में से ऐसे व्यक्ति निर्माण करे यह अपेक्षा है ।
+
४८. समाज के कुछ लोगोंं को तो ब्राह्मण बनना ही चाहिये । उन्हें ब्राह्मण न कहकर शिक्षक, याशिक, धर्माचार्य, प्रधान, सेवक, ऋषि ऐसा कुछ भी कह सकते हैं । जो भी नाम दिया जाय स्वयं कुछ न लेते हुए शास्त्रों की रचना करने वाले और समाज और राज्य का मार्गदर्शन करने वाले लोग तो चाहिये ही । समाज ही अपने में से ऐसे व्यक्ति निर्माण करे यह अपेक्षा है ।
    
४९. समाज में जो भी वंचित हैं, दुर्बल हैं, दीन हैं उन सबकी सम्पूर्ण सुरक्षा और पोषण का दायित्व सरकार का न होकर समाज का होना चाहिये । यह कार्य दयाभाव से नहीं अपितु कर्तव्यभाव से होना चाहिये । ऐसे भाव और कृति की प्रेरणा ऋषियों ने देनी चाहिये और धनवानों और बलवानों ने उसका अनुसरण करना चाहिये । इस दृष्टि से यह धर्माचार्यों का काम है, सरकार का नहीं ।
 
४९. समाज में जो भी वंचित हैं, दुर्बल हैं, दीन हैं उन सबकी सम्पूर्ण सुरक्षा और पोषण का दायित्व सरकार का न होकर समाज का होना चाहिये । यह कार्य दयाभाव से नहीं अपितु कर्तव्यभाव से होना चाहिये । ऐसे भाव और कृति की प्रेरणा ऋषियों ने देनी चाहिये और धनवानों और बलवानों ने उसका अनुसरण करना चाहिये । इस दृष्टि से यह धर्माचार्यों का काम है, सरकार का नहीं ।
Line 100: Line 100:  
५९. भारत हिन्दू राष्ट्र है परन्तु इसे हिन्दू राष्ट्र कहने में अनेक तबकों को आपत्ति है । धर्म और सम्प्रदाय के मध्य का अन्तर बुद्धि से स्पष्ट समझ में आने वाला है तो भी मानसिक उलझनों के कारण उलझाया जाता है और अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के विवाद में फैँसाकर देश को ही अस्थिर बनाया जा रहा है ।
 
५९. भारत हिन्दू राष्ट्र है परन्तु इसे हिन्दू राष्ट्र कहने में अनेक तबकों को आपत्ति है । धर्म और सम्प्रदाय के मध्य का अन्तर बुद्धि से स्पष्ट समझ में आने वाला है तो भी मानसिक उलझनों के कारण उलझाया जाता है और अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के विवाद में फैँसाकर देश को ही अस्थिर बनाया जा रहा है ।
   −
६०. परन्तु सभी के सहअस्तित्व का स्वीकार करने वाला हिन्दू और सहअस्तित्व को सर्वथा अमान्य करने वाले इस्लाम और इसाइयत साथ साथ कैसे रह सकते हैं इस प्रश्न का हल खोजे बिना यह समरसता होने वाली नहीं है । सरकार अल्पसंख्यकों के अधिकार के नाम पर हल निकालने का प्रयास करती है परन्तु उससे हल निकलना तो असम्भव है । मुसलमान और इसाई इसका हल खोजेंगे नहीं क्योंकि उन्हें सहअस्तित्व मान्य नहीं है । जिन्हें सहअस्तित्व मान्य नहीं है उनके साथ रहने की हिन्दू की सांविधानिक बाध्यता है । इन परस्पर विरोधी लोगों का साथ रहना जिसे मान्य नहीं है उसके हिसाब से तो धर्मान्‍्तरण और गैर मुसलमान को मारना यही उपाय है । परन्तु जो सहअस्तित्व में मानता है उस हिन्दू के पास कौन सा उपाय है ?
+
६०. परन्तु सभी के सहअस्तित्व का स्वीकार करने वाला हिन्दू और सहअस्तित्व को सर्वथा अमान्य करने वाले इस्लाम और इसाइयत साथ साथ कैसे रह सकते हैं इस प्रश्न का हल खोजे बिना यह समरसता होने वाली नहीं है । सरकार अल्पसंख्यकों के अधिकार के नाम पर हल निकालने का प्रयास करती है परन्तु उससे हल निकलना तो असम्भव है । मुसलमान और इसाई इसका हल खोजेंगे नहीं क्योंकि उन्हें सहअस्तित्व मान्य नहीं है । जिन्हें सहअस्तित्व मान्य नहीं है उनके साथ रहने की हिन्दू की सांविधानिक बाध्यता है । इन परस्पर विरोधी लोगोंं का साथ रहना जिसे मान्य नहीं है उसके हिसाब से तो धर्मान्‍्तरण और गैर मुसलमान को मारना यही उपाय है । परन्तु जो सहअस्तित्व में मानता है उस हिन्दू के पास कौन सा उपाय है ?
    
६१. इस प्रश्न पर विश्वविद्यालय, धर्मसंस्था और सरकार तीनों ने मिलकर विचार करना चाहिये । सहअस्तित्व को नहीं मानना विश्वधर्म के विरोधी है कि नहीं ऐसा
 
६१. इस प्रश्न पर विश्वविद्यालय, धर्मसंस्था और सरकार तीनों ने मिलकर विचार करना चाहिये । सहअस्तित्व को नहीं मानना विश्वधर्म के विरोधी है कि नहीं ऐसा
Line 114: Line 114:  
६३. संचार माध्यमों का सही ढंग से मार्गदर्शन करने का काम विश्वविद्यालयों के मनोविज्ञान विभाग का है । अभी तो सारे माध्यम बाजार के हि हिस्से बने हुए हैं और अपनी कमाई का ही विचार करते हैं । परन्तु जनमानस प्रबोधन करना उनका प्रथम कर्तव्य है । इस कर्तव्य की घोर उपेक्षा हो रही है ।
 
६३. संचार माध्यमों का सही ढंग से मार्गदर्शन करने का काम विश्वविद्यालयों के मनोविज्ञान विभाग का है । अभी तो सारे माध्यम बाजार के हि हिस्से बने हुए हैं और अपनी कमाई का ही विचार करते हैं । परन्तु जनमानस प्रबोधन करना उनका प्रथम कर्तव्य है । इस कर्तव्य की घोर उपेक्षा हो रही है ।
   −
६४. फिल्में और धारावाहिक दर्शकों के मानस को भारी मात्रा में प्रभावित करते हैं । यह वास्तव में साहित्य और कला का क्षेत्र है । रसिकता, सौन्दर्यबोध, वृत्तियों का परिष्कार, जीवन का उन्नयन इनका साध्य है परन्तु दिनोंदिन लोगों की रसवृत्ति अत्यन्त भोंडी बनती जा रही है । इसके चलते ऊँचे दर्ज के साहित्य का सृजन भी नहीं हो रहा है ।
+
६४. फिल्में और धारावाहिक दर्शकों के मानस को भारी मात्रा में प्रभावित करते हैं । यह वास्तव में साहित्य और कला का क्षेत्र है । रसिकता, सौन्दर्यबोध, वृत्तियों का परिष्कार, जीवन का उन्नयन इनका साध्य है परन्तु दिनोंदिन लोगोंं की रसवृत्ति अत्यन्त भोंडी बनती जा रही है । इसके चलते ऊँचे दर्ज के साहित्य का सृजन भी नहीं हो रहा है ।
    
६५. इनको मार्गदर्शन करने का दायित्व सच्चे कलाकारों , साहित्यकारों , प्राध्यापकों आदि का है । एक तो इनमें वृत्ति नहीं होती या तो ये माध्यम किसी की परवाह नहीं करते इसलिये गुणवत्ता धीरे धीरे घटती ही जा रही है ।
 
६५. इनको मार्गदर्शन करने का दायित्व सच्चे कलाकारों , साहित्यकारों , प्राध्यापकों आदि का है । एक तो इनमें वृत्ति नहीं होती या तो ये माध्यम किसी की परवाह नहीं करते इसलिये गुणवत्ता धीरे धीरे घटती ही जा रही है ।
Line 147: Line 147:  
७७. जिस देश में ज्ञानविज्ञान के ग्रन्थों का भाण्डार हो, महान क्रषि मुनियों द्वारा किये गये वैज्ञानिक प्रयोगों के संग्रह हों, टेकनोलोजी के क्षेत्र में जो देश विश्व में सर्वश्रेष्ठ हो उस देश के हम युवा पश्चिमी टेकनोलोजी से कैसे प्रभावित हो सकते हैं ? पश्चिमी टेकनोलोजी की और पश्चिमी अर्थव्यवस्था की विनाशकता हमारे ध्यान में क्यों नहीं आ सकती ?
 
७७. जिस देश में ज्ञानविज्ञान के ग्रन्थों का भाण्डार हो, महान क्रषि मुनियों द्वारा किये गये वैज्ञानिक प्रयोगों के संग्रह हों, टेकनोलोजी के क्षेत्र में जो देश विश्व में सर्वश्रेष्ठ हो उस देश के हम युवा पश्चिमी टेकनोलोजी से कैसे प्रभावित हो सकते हैं ? पश्चिमी टेकनोलोजी की और पश्चिमी अर्थव्यवस्था की विनाशकता हमारे ध्यान में क्यों नहीं आ सकती ?
   −
७८. भारत का संगीत, भारत का नृत्य, भारत का साहित्य विश्व में श्रेष्ठ लोगों की प्रशंसा का विषय बना हुआ है । फिर हम क्यों इतने अनाडी बन कर घूम रहे हैं कि वह हमें आनन्द नहीं देता जबकि बन्दरकूद नृत्य और चिछ्लाहटभरा संगीत हमें आकर्षित करता है ?
+
७८. भारत का संगीत, भारत का नृत्य, भारत का साहित्य विश्व में श्रेष्ठ लोगोंं की प्रशंसा का विषय बना हुआ है । फिर हम क्यों इतने अनाडी बन कर घूम रहे हैं कि वह हमें आनन्द नहीं देता जबकि बन्दरकूद नृत्य और चिछ्लाहटभरा संगीत हमें आकर्षित करता है ?
    
७९. सम्पूर्ण विश्व को एक कुटुम्ब मानने वाला उदार अन्तःकरण जिसका है उस देश के हम नागरिक अपने देश को बदनाम होने से क्यों नहीं बचा सकते ? Bee हम भी उसे बदनाम करने में जुट जाते हैं ?
 
७९. सम्पूर्ण विश्व को एक कुटुम्ब मानने वाला उदार अन्तःकरण जिसका है उस देश के हम नागरिक अपने देश को बदनाम होने से क्यों नहीं बचा सकते ? Bee हम भी उसे बदनाम करने में जुट जाते हैं ?

Navigation menu