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लेख सम्पादित किया
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विभिन्न प्रकार की शिक्षायोजना से व्यक्ति की... किस प्रकार किया जा सकता है यह अब देखेंगे ।
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''विभिन्न प्रकार की शिक्षायोजना से व्यक्ति की... किस प्रकार किया जा सकता है यह अब देखेंगे ।''
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अंतर्निहित क्षमताओं का विकास करना चाहिए यह हमने
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''अंतर्निहित क्षमताओं का विकास करना चाहिए यह हमने''
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पूर्व के अध्याय में देखा । अब प्रश्न यह है कि अपनी
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''पूर्व के अध्याय में देखा । अब प्रश्न यह है कि अपनी''
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विकसित क्षमताओं का व्यक्ति क्या करेगा ? इस विषय में मनुष्य अकेला नहीं रह सकता । अपनी अनेक प्रकार
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''विकसित क्षमताओं का व्यक्ति क्या करेगा ? इस विषय में मनुष्य अकेला नहीं रह सकता । अपनी अनेक प्रकार''
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यदि कोई निश्चित विचार नहीं रहा तो वह भटक जायेगा । ... की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसे अन्य मनुष्यों की
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''यदि कोई निश्चित विचार नहीं रहा तो वह भटक जायेगा । ... की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसे अन्य मनुष्यों की''
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वैसे भी अपनी प्राकृतिक अवस्था में जिस प्रकार पानी नीचे... सहायता की आवश्यकता होती है । मनुष्य की अल्पतम
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''वैसे भी अपनी प्राकृतिक अवस्था में जिस प्रकार पानी नीचे... सहायता की आवश्यकता होती है । मनुष्य की अल्पतम''
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की ओर ही बहता है, उसे ऊपर की ओर उठाने के लिए... आवश्यकताओं की अर्थात्‌ अन्न, वस््र और आवास की ही
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''की ओर ही बहता है, उसे ऊपर की ओर उठाने के लिए... आवश्यकताओं की अर्थात्‌ अन्न, वस््र और आवास की ही''
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विशेष प्रयास करने होते हैं उसी प्रकार बिना किसी प्रयास... बात करें तो कोई भी अकेला व्यक्ति अपने लिए अनाज
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''विशेष प्रयास करने होते हैं उसी प्रकार बिना किसी प्रयास... बात करें तो कोई भी अकेला व्यक्ति अपने लिए अनाज''
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के बलवान और जिद्दी मन विकृति की ओर ही खींच कर... उगाना, वस्त्र बनाना और आवास निर्माण करना स्वयं नहीं
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''के बलवान और जिद्दी मन विकृति की ओर ही खींच कर... उगाना, वस्त्र बनाना और आवास निर्माण करना स्वयं नहीं''
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ले जाता है । अत: क्षमताओं के विकास के साथ साथ उन... कर सकता । फिर मनुष्य की इतनी कम आवश्यकताएँ भी
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''ले जाता है । अत: क्षमताओं के विकास के साथ साथ उन... कर सकता । फिर मनुष्य की इतनी कम आवश्यकताएँ भी''
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क्षमताओं के सम्यकू उपयोग के मार्ग भी विचार में लेने... तो नहीं होतीं । इन तीनों के अलावा उसे औषधि चाहिए,
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''क्षमताओं के सम्यकू उपयोग के मार्ग भी विचार में लेने... तो नहीं होतीं । इन तीनों के अलावा उसे औषधि चाहिए,''
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चाहिए । यह शिक्षा का दूसरा पहलू है । अथवा यह भी कह... वाहन चाहिए, परिवहन चाहिए। जैसे जैसे सभ्यता का
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''चाहिए । यह शिक्षा का दूसरा पहलू है । अथवा यह भी कह... वाहन चाहिए, परिवहन चाहिए। जैसे जैसे सभ्यता का''
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सकते हैं कि मनुष्य के व्यक्तित्व विकास का यह दूसरा... विकास होता जाता है उसकी दैनंदिन आवश्यकताएँ बढ़ती
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''सकते हैं कि मनुष्य के व्यक्तित्व विकास का यह दूसरा... विकास होता जाता है उसकी दैनंदिन आवश्यकताएँ बढ़ती''
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सम्टि के साथ समायोजन
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== ''समष्टि के साथ समायोजन'' ==
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''आयाम है । जाती हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उसे कुछ''
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आयाम है । जाती हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उसे कुछ
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''इस दूसरे आयाम को हम व्यक्ति का सृष्टि के साथ... व्यवस्था बिठानी होती है ।''
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इस दूसरे आयाम को हम व्यक्ति का सृष्टि के साथ... व्यवस्था बिठानी होती है ।
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''समायोजन कह सकते हैं । सृष्टि में जैसे पूर्व के अध्याय में दूसरा भी एक विचार है। कदाचित अपनी''
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समायोजन कह सकते हैं । सृष्टि में जैसे पूर्व के अध्याय में दूसरा भी एक विचार है। कदाचित अपनी
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''बताया है मनुष्य के साथ साथ प्राणी, वनस्पति और आवश्यकताओं की पूर्ति वह अकेला कर भी ले, अथवा''
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बताया है मनुष्य के साथ साथ प्राणी, वनस्पति और आवश्यकताओं की पूर्ति वह अकेला कर भी ले, अथवा
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''पंचमहाभूत हैं । हमने यह भी देखा कि इन चार सत्ताओं के. अपनी आवश्यकताएँ इतनी कम कर दे कि उसे अन्य''
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पंचमहाभूत हैं । हमने यह भी देखा कि इन चार सत्ताओं के. अपनी आवश्यकताएँ इतनी कम कर दे कि उसे अन्य
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''दो वर्ग होते हैं , एक वर्ग में मनुष्य है और दूसरे में शेष. किसीकी सहायता लेने की नौबत ही न आये तो भी वह''
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दो वर्ग होते हैं , एक वर्ग में मनुष्य है और दूसरे में शेष. किसीकी सहायता लेने की नौबत ही न आये तो भी वह
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''तीनों । हम सुविधा के लिए इन्हें क्रमश: समष्टि और सृष्टि _ अकेला नहीं रह सकता । उसे बात करने के लिए, खेलने''
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तीनों हम सुविधा के लिए इन्हें क्रमश: समष्टि और सृष्टि _ अकेला नहीं रह सकता । उसे बात करने के लिए, खेलने
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''कहेंगे इस सृष्टि को निसर्ग भी कह सकते हैं । अत: मनुष्य... के लिए,सैर करने के लिए दूसरा व्यक्ति चाहिए । सृष्टि के''
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कहेंगे । इस सृष्टि को निसर्ग भी कह सकते हैं । अत: मनुष्य... के लिए,सैर करने के लिए दूसरा व्यक्ति चाहिए । सृष्टि के
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''को दो स्तरों पर समायोजन करना है, एक समष्टि के स्तर. प्रारम्भ में परमात्मा को भी अकेला रहना अच्छा नहीं''
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को दो स्तरों पर समायोजन करना है, एक समष्टि के स्तर. प्रारम्भ में परमात्मा को भी अकेला रहना अच्छा नहीं
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''पर अर्थात अपने जैसे अन्य मनुष्यों के साथ और दूसरा. लगता था इसलिए तो उसने सृष्टि बनाई । जब उसे ही''
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पर अर्थात अपने जैसे अन्य मनुष्यों के साथ और दूसरा. लगता था इसलिए तो उसने सृष्टि बनाई । जब उसे ही
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''निसर्ग के साथ । इस समायोजन के लिए शिक्षा का विचार... अकेले रहना अच्छा नहीं लगता तो उसके ही प्रतिरूप''
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निसर्ग के साथ । इस समायोजन के लिए शिक्षा का विचार... अकेले रहना अच्छा नहीं लगता तो उसके ही प्रतिरूप
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मनुष्य को कैसे लगेगा ? अतः: केवल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही नहीं तो संवाद के लिए भी मनुष्य को अन्य मनुष्यों की आवश्यकता होती है । इन दोनों बातों का एक साथ विचार कर हमारे आर्षद्रष्टा मनीषियों ने मनुष्यों के लिए एक स्चना बनाई । इस स्वना को भी हम चार चरण में विभाजित कर समझ सकते हैं ।
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Qo
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== परिवार ==
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मनुष्य का मनुष्य के साथ समायोजन का प्रथम चरण है स्त्री और पुरुष का सम्बन्ध । स्त्रीधारा और पुरुषधारा इस सृष्टि की मूल दो धाराएँ हैं । इनका ही परस्पर समायोजन होने से शेष के लिए सुविधा होती है । इसलिए सर्वप्रथम दोनों को साथ रहने हेतु विवाह संस्कार की योजना हुई और उन्हें दंपती बनाकर कुटुम्ब का केंद्र बिंदु  बनाया। विवाह के परिणामस्वरूप बच्चों का जन्म हुआ और कुटुम्ब का विस्तार होने लगा । प्रथम चरण में मातापिता और संतानों का सम्बन्ध बना और दूसरे क्रम में सहोदरों का अर्थात भाई बहनों का सम्बन्ध बनता गया । इन दोनों आयामों को लेकर लंब और क्षैतिज दोनों प्रकार के सम्बन्ध बनते गए । पहली बात यह है कि कुटुम्ब रक्तसंबंध से बनता है।  परंतु रक्तसंबंध के साथ साथ भावात्मक सम्बन्ध भी होता है। केवल मनुष्य ही अन्नमय और प्राणमय के साथ साथ मनोमय से आनंदमय तक और उससे भी परे आत्मिक स्तर पर भी पहुँचता है यह हमने विकास के प्रथम आयाम में देखा ही है । अत: स्त्रीपुरुष के वैवाहिक सम्बन्ध को केवल जैविक स्तर पर सीमित न करते हुए आत्मिक स्तर तक पहुंचाने की मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति बनी । पति-पत्नी के सम्बन्ध का आदर्श एकात्म सम्बन्ध बना । सम्बन्ध की इसी एकात्मता का विस्तार सर्वत्र स्थापित किया गया | अपने अंतः:करण को इतना उदार बनाना कि सम्पूर्ण वसुधा एक ही कुटुम्ब लगे, यह मनुष्य का आदर्श बना ।
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इस परिवारभावना की नींव पर मनुष्य को संपूर्ण समष्टि और सृष्टि के साथ समायोजन बनाना चाहिए और शिक्षा के द्वारा इस परिवारभावना को सिखाना यह शिक्षा का केन्द्रवर्ती विषय है ।
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पर्व २ : उद्देश्यनिर्धारण
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कुटुम्ब समाज जीवन की लघुतम इकाई है, व्यक्ति नहीं यह प्रथम सूत्र है। इस इकाई का संचालन करना सीखने का प्रथम चरण है । कुटुम्ब उत्तम पद्धति से चले इस दृष्टि से कुटुम्ब के सभी सदस्यों को मिलकर कुछ इस प्रकार की बातों का ध्यान रखना होता है।
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मनुष्य को कैसे लगेगा ? अतः: केवल आवश्यकताओं की
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== सब के प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार ==
 
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* बड़ों का छोटों के प्रति वात्सल्यभाव और छोटों का बड़ों के प्रति आदर का भाव होना मुख्य बात है। अपने से छोटों का रक्षण करना, उपभोग के समय छोटों का अधिकार प्रथम मानना, कष्ट सहने के समय बड़ों का क्रम प्रथम होना, अन्यों की सुविधा का हमेशा ध्यान रखना, कुटुम्बीजनों की सुविधा हेतु अपनी सुविधा का त्याग करना, बड़ों की आज्ञा का पालन करना, बड़ों की सेवा करना, कुटुम्ब के नियमों का पालन करना, अपने पूर्वजों की रीतियों का पालन करना, सबने मिलकर कुटुम्ब का गौरव बढ़ाना आदि सब कुटुम्ब के सदस्यों के लिए सीखने की और आचरण में लाने की बातें हैं।
पूर्ति के लिए ही नहीं तो संवाद के लिए भी मनुष्य को
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* कुटुम्ब में साथ रहने के लिए अनेक काम सीखने होते हैं। भोजन बनाना, घर की स्वच्छता करना, साज सज्जा करना, पूजा, उत्सव, ब्रत, यज्ञ, अतिथिसत्कार, परिचर्या, शिशुसंगोपन, आवश्यक वस्तुओं की खरीदी आदि अनेक बातें ऐसी हैं जो कुटुम्बीजनों को आनी चाहिए। ये सारी बातें शिक्षा से ही आती हैं।
 
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* कुटुम्ब में वंशपस्म्परा चलती है। रीतिरिवाज, गुणदोष, कौशल, मूल्य, पद्धतियाँ, खूबियाँ आदि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होते हैं। इन सभी बातों की रक्षा करने का यही एक मार्ग है। ये सारे संस्कृति के आयाम हैं । पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होते हुए संस्कृति न केवल जीवित रहती है अपितु वह समय के अनुरूप परिवर्तित होकर परिष्कृत भी होती रहती है । संस्कृति की धारा जब इस प्रकार प्रवाहित रहती है तब उसकी शुद्धता बनी रहती है। संस्कृति की ऐसी नित्य प्रवाहमान धारा के लिए ही चिरपुरातन नित्यनूतन कहा जाता है। ये दोनों मिलकर संस्कृति का सनातनत्व होता है ।
अन्य मनुष्यों की आवश्यकता होती है । इन दोनों बातों का
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* वंशपरम्परा खंडित नहीं होने देना कुटुम्ब का कर्तव्य है। इस दृष्टि से पीढ़ी दर पीढ़ी समर्थ संतानों को जन्म देना भी पतिपत्नी का कर्तव्य है, साथ ही अपनी संतानों को भी समर्थ बालक को जन्म देने वाले मातापिता बनाना उनका कर्तव्य है । अर्थात्‌ अच्छे कुटुंब के लिए अपने पुत्रों को अच्छे पुरुष, अच्छे पति, अच्छे गृहस्थ और अच्छे पिता बनाने की तथा पुत्रियों को अच्छी स्त्री, अच्छी पत्नी, अच्छी गृहिणी और अच्छी माता बनाने की शिक्षा देना कुटुम्ब का कर्तव्य है।
 
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* कुटुम्ब का एक अन्य महत्त्वपूर्ण काम होता है सबकी सब प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अथर्जिन करना । इस दृष्टि से कोई न कोई हुनर सीखना, उत्पादन और वितरण, क्रय और विक्रय की कला सीखना बहुत आवश्यक होता है । अथर्जिन जिस प्रकार कुटुम्ब का विषय है उसी प्रकार वह कुटुम्ब को समाज के साथ भी जोड़ता है । व्यवसाय की ही तरह विवाह भी कुटुम्ब को अन्य कुटुंब के साथ जोड़ने का माध्यम है। यह भी समाज के साथ सम्बन्ध बनाता है। इन दो बातों से एक कुटुम्ब समाज का अंग बनता है । अत: समाज के साथ समरस कैसे होना यह भी कुटुम्ब में सीखने का विषय है।
एकसाथ विचार कर हमारे आर्षद्रष्टा मनीषियों ने मनुष्यों के
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* खानपान, वेशभूषा, भाषा, कुलधर्म, नाकनक्शा, इष्टदेवता, कुलदेवता, सम्प्रदाय, व्यवसाय, कौशल, आचार विचार, सद्गुण, दुर्गुण आदि मिलकर कुटुंब की एक विशिष्ट पहचान बनती है । कुटुम्ब की इस विशिष्ट पहचान को बनाए रखना, बढ़ाना, उत्तरोत्तर उससे प्राप्त होने वाली सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि करना कुटुम्ब के हर सदस्य का कर्तव्य है और पूर्व पीढ़ी ने नई पीढ़ी को इसके लायक बनने हेतु शिक्षित और दीक्षित करना उसका दायित्व है । शिक्षा का यह बहुत बड़ा क्षेत्र है जिसकी आज अत्यधिक उपेक्षा हो रही है। अनौपचारिक शिक्षा का यह एक बहुत बड़ा क्षेत्र है।
 
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लिए एक स्चना बनाई । इस स्वना को भी हम चार चरण में
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विभाजित कर समझ सकते हैं ।
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परिवार
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मनुष्य का मनुष्य के साथ समायोजन का प्रथम चरण
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है स्त्री और पुरुष का सम्बन्ध । स््रीधारा और पुरुषधारा इस
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सृष्टि की मूल दो धाराएँ हैं । इनका ही परस्पर समायोजन
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होने से शेष के लिए सुविधा होती है । इसलिए सर्वप्रथम
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दोनों को साथ रहने हेतु विवाह संस्कार की योजना हुई और
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उन्हें दंपती बनाकर कुट्म्ब का केन्ट्रबिन्दु बनाया । विवाह
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के परिणामस्वरूप बच्चों का जन्म हुआ और कुट्म्ब का
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विस्तार होने लगा । प्रथम चरण में मातापिता और संतानों
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का सम्बन्ध बना और दूसरे क्रम में सहोदरों का अर्थात
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भाईबहनों का सम्बन्ध बनता गया । इन दोनों आयामों को
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लेकर लंब और क्षैतिज दोनों प्रकार के सम्बन्ध बनते गए ।
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पहली बात यह है कि कुट्म्ब रक्तसंबंध से बनता है ।
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परंतु रक्तसंबंध के साथ साथ भावात्मक सम्बन्ध भी होता
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है । केवल मनुष्य ही अन्नमय और प्राणमय के साथ साथ
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मनोमय से आनंदमय तक और उससे भी परे आत्मिक स्तर
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पर भी पहुँचता है यह हमने विकास के प्रथम आयाम में
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देखा ही है । अत: स्त्रीपुरुष के वैवाहिक सम्बन्ध को केवल
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जैविक स्तर पर सीमित न करते हुए आत्मिक स्तर तक
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पहुंचाने की मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति बनी । पति-पत्नी
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के सम्बन्ध का आदर्श एकात्म सम्बन्ध बना । सम्बन्ध की
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इसी एकात्मता का विस्तार सर्वत्र स्थापित किया गया |
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अपने अंतः:करण को इतना उदार बनाना कि सम्पूर्ण वसुधा
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Uh St Hera लगे यह मनुष्य का आदर्श बना ।
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इस परिवारभावना की नींव पर मनुष्य को संपूर्ण
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समष्टि और सृष्टि के साथ समायोजन बनाना चाहिए और
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शिक्षा के द्वारा इस परिवारभावना को सिखाना यह शिक्षा
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का केन्द्रवर्ती विषय है ।
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कुट्म्ब समाज जीवन की लघुतम
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इकाई है, व्यक्ति नहीं यह प्रथम सूत्र है। इस इकाई का
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संचालन करना सीखने का प्रथम चरण है । कुट्म्ब उत्तम
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पद्धति से चले इस दृष्टि से कुट्म्ब के सभी सदस्यों को
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मिलकर कुछ इस प्रकार की बातों का ध्यान रखना होता
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है...
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सब के प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार
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०. asl a छोटों के प्रति वात्सल्यभाव और छोटों का
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बड़ों के प्रति आदर का भाव होना मुख्य बात है ।
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अपने से छोटों का रक्षण करना, उपभोग के समय
  −
 
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छोटों का अधिकार प्रथम मानना, कष्ट सहने के समय
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बड़ों का क्रम प्रथम होना, अन्यों की सुविधा का
  −
 
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हमेशा ध्यान रखना, कुट्म्बीजनों की सुविधा हेतु
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अपनी सुविधा का त्याग करना, बड़ों की आज्ञा का
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पालन करना, बड़ों की सेवा करना, कुट्म्ब के
  −
 
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नियमों का पालन करना, अपने पूर्वजों की रीतियों
  −
 
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का पालन करना, सबने मिलकर कुट्म्ब का गौरव
  −
 
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बढ़ाना आदि सब कुट्म्ब के सदस्यों के लिए सीखने
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की और आचरण में लाने की बातें हैं ।
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© कुट्म्ब में साथ रहने के लिए अनेक काम सीखने होते
  −
 
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हैं । भोजन बनाना, घर की स्वच्छता करना, साज सज्जा
  −
 
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करना, पूजा, उत्सव, ब्रत, यज्ञ, अतिथिसत्कार,
  −
 
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परिचर्या, शिशुसंगोपन, आवश्यक वस्तुओं की खरीदी
  −
 
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आदि अनेक बातें ऐसी हैं जो कुट्म्बीजनों को आनी
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चाहिए । ये सारी बातें शिक्षा से ही आती हैं ।
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०. कुट्म्ब में वंशपस्म्परा चलती है। रीतिरिवाज,
  −
 
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गुणदोष, कौशल, मूल्य, पद्धतियाँ, खूबियाँ आदि
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एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होते हैं ।
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इन सभी बातों की रक्षा करने का यही एक मार्ग है ।
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ये सारे संस्कृति के आयाम हैं । पीढ़ी दर पीढ़ी
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हस्तान्तरित होते हुए संस्कृति न केवल जीवित रहती
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है अपितु वह समय के अनुरूप परिवर्तित होकर
  −
 
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परिष्कृत भी होती रहती है । संस्कृति की धारा जब
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इस प्रकार प्रवाहित रहती है तब उसकी शुद्धता बनी
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रहती है। संस्कृति की ऐसी नित्य
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प्रवाहमान धारा के लिए ही चिरपुरातन नित्यनूतन
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कहा जाता है। ये दोनों मिलकर संस्कृति का
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सनातनत्व होता है ।
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वंशपरम्परा खंडित नहीं होने देना कुट्म्ब का कर्तव्य
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है। इस दृष्टि से पीढ़ी दर पीढ़ी समर्थ संतानों को
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जन्म देना भी पतिपत्नी का कर्तव्य है, साथ ही
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अपनी संतानों को भी समर्थ बालक को जन्म देने
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वाले मातापिता बनाना उनका कर्तव्य है । अर्थात्‌
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अच्छे Hers के लिए अपने पुत्रों को अच्छे पुरुष,
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अच्छे पति, अच्छे गृहस्थ और अच्छे पिता बनाने
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की तथा पुत्रियों को अच्छी स्त्री, अच्छी पत्नी,
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अच्छी गृहिणी और अच्छी माता बनाने की शिक्षा
  −
 
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देना कुट्म्ब का कर्तव्य है ।
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कुट्म्ब का एक अन्य महत्त्वपूर्ण काम होता है सबकी
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सब प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अथर्जिन
  −
 
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करना । इस दृष्टि से कोई न कोई हुनर सीखना,
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उत्पादन और वितरण, क्रय और विक्रय की कला
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सीखना बहुत आवश्यक होता है । अथर्जिन जिस
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प्रकार कुट्म्ब का विषय है उसी प्रकार वह कुट्म्ब
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को समाज के साथ भी जोड़ता है । व्यवसाय की ही
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तरह विवाह भी कुट्म्ब को अन्य aera के साथ
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जोड़ने का माध्यम है। यह भी समाज के साथ
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सम्बन्ध बनाता है। इन दो बातों से एक कुटुम्ब
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समाज का अंग बनता है । अत: समाज के साथ
  −
 
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समरस कैसे होना यह भी कुट्म्ब में सीखने का विषय
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है।
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खानपान, वेशभूषा, भाषा, कुलधर्म, नाकनक्शा,
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इष्टदेवता, कुलदेवता, सम्प्रदाय, व्यवसाय, कौशल,
  −
 
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आचार विचार, सदुण दुर्गुण आदि Pree Herat
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की एक विशिष्ट पहचान बनती है । कुट्म्ब की इस
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विशिष्ट पहचान को बनाए रखना, बढ़ाना, उत्तरोत्तर
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उससे प्राप्त होने वाली सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि
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करना कुट्म्ब के हर सदस्य का कर्तव्य है और पूर्व
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पीढ़ी ने नई पीढ़ी को इसके लायक बनने हेतु शिक्षित
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RR
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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और दीक्षित करना उसका दायित्व है । शिक्षा का यह
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बहुत बड़ा क्षेत्र है जिसकी आज अत्यधिक उपेक्षा हो
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रही है । अनौपचारिक शिक्षा का यह एक बहुत बड़ा
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क्षेत्र है ।
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समुदाय
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== समुदाय ==
 
सम्पूर्ण समाज व्यवस्था में Hera UH इकाई होता
 
सम्पूर्ण समाज व्यवस्था में Hera UH इकाई होता
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है । ऐसे अनेक कुट्म्ब मिलकर समुदाय बनाता है ।
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है । ऐसे अनेक कुटुम्ब मिलकर समुदाय बनाता है ।
    
समुदाय राष्ट्रजीवन का महत्त्वपूर्ण अंग है। मुख्य रूप
 
समुदाय राष्ट्रजीवन का महत्त्वपूर्ण अंग है। मुख्य रूप
Line 339: Line 126:     
है, जैसे कि राजकीय क्षेत्र का, उद्योगक्षेत्र का या
 
है, जैसे कि राजकीय क्षेत्र का, उद्योगक्षेत्र का या
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पर्व २ : उद्देश्यनिर्धारण
      
शिक्षाक्षेत्र का व्यक्ति उसकी बोलचाल से और कभी
 
शिक्षाक्षेत्र का व्यक्ति उसकी बोलचाल से और कभी
Line 413: Line 196:     
है तब उत्पादक अपने उत्पादन की भरपूर प्रशंसा
 
है तब उत्पादक अपने उत्पादन की भरपूर प्रशंसा
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९३
      
करता है । ऐसा करने का एकमात्र
 
करता है । ऐसा करने का एकमात्र
Line 485: Line 266:     
अज्ञान और उपेक्षा का व्यवहार होने के कारण समाज
 
अज्ञान और उपेक्षा का व्यवहार होने के कारण समाज
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पर सांस्कृतिक संकट छाया है । यह
 
पर सांस्कृतिक संकट छाया है । यह
Line 512: Line 291:  
रहना चाहिए यह घर में सिखाया जाना चाहिए ।
 
रहना चाहिए यह घर में सिखाया जाना चाहिए ।
   −
समुदाय में कोई भूखा न रहे इस दृष्टि से कुट्म्ब में
+
समुदाय में कोई भूखा न रहे इस दृष्टि से कुटुम्ब में
    
दानशीलता बढ़नी चाहिए । श्रम प्रतिष्ठा ऐसा ही
 
दानशीलता बढ़नी चाहिए । श्रम प्रतिष्ठा ऐसा ही
Line 540: Line 319:  
डालना चाहिए । जिस प्रकार Hers के लोग अपनी
 
डालना चाहिए । जिस प्रकार Hers के लोग अपनी
   −
ज़िम्मेदारी पर कुट्म्ब चलाते हैं उसी प्रकार समाज ने
+
ज़िम्मेदारी पर कुटुम्ब चलाते हैं उसी प्रकार समाज ने
    
अपनी शिक्षा की व्यवस्था स्वयं करनी चाहिए । उसी
 
अपनी शिक्षा की व्यवस्था स्वयं करनी चाहिए । उसी
Line 557: Line 336:     
बातें बताने के लिए और सिखाने के लिए हमारे
 
बातें बताने के लिए और सिखाने के लिए हमारे
  −
gy
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
      
समाज में पुरोहित की व्यवस्था होती थी । विगत कई
 
समाज में पुरोहित की व्यवस्था होती थी । विगत कई
Line 568: Line 343:  
करना चाहिए ।
 
करना चाहिए ।
   −
इस प्रकार व्यक्ति के कुट्म्ब में और कुट्म्ब के
+
इस प्रकार व्यक्ति के कुटुम्ब में और कुटुम्ब के
    
समुदाय में समायोजन का हमने विचार किया । आगे
 
समुदाय में समायोजन का हमने विचार किया । आगे
Line 576: Line 351:  
करेंगे ।
 
करेंगे ।
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राष्ट्र
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== राष्ट्र ==
 
   
हर व्यक्ति जिस प्रकार अपने परिवार और समुदाय का
 
हर व्यक्ति जिस प्रकार अपने परिवार और समुदाय का
   Line 631: Line 405:     
स्वतंत्र सत्ता का स्वीकार करने के कारण हम संघर्ष में
 
स्वतंत्र सत्ता का स्वीकार करने के कारण हम संघर्ष में
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पर्व २ : उद्देश्यनिर्धारण
      
नहीं अपितु समन्वय में या सामंजस्य में मानते हैं । हम
 
नहीं अपितु समन्वय में या सामंजस्य में मानते हैं । हम
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में इसका समावेश अनिवार्य रूप से होना चाहिए ।
 
में इसका समावेश अनिवार्य रूप से होना चाहिए ।
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fag
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== विश्व ==
 
   
विश्व से तात्पर्य है दुनिया के सभी राष्ट्रों का मानव
 
विश्व से तात्पर्य है दुनिया के सभी राष्ट्रों का मानव
    
समुदाय । हमारा सामंजस्य विश्व के सभी मानव समुदायों के
 
समुदाय । हमारा सामंजस्य विश्व के सभी मानव समुदायों के
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साथ होना अपेक्षित है । यह सामंजस्य
 
साथ होना अपेक्षित है । यह सामंजस्य
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अर्थनिष्ठ है । भारत धर्मनिष्ठ है । स्पष्ट है कि टिकाऊ तो
 
अर्थनिष्ठ है । भारत धर्मनिष्ठ है । स्पष्ट है कि टिकाऊ तो
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
      
भारत ही है क्योंकि धर्म के अधीन अर्थ की व्यवस्था समृद्धि
 
भारत ही है क्योंकि धर्म के अधीन अर्थ की व्यवस्था समृद्धि
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व्यक्तिगत क्षमतायें बढ़ाने से कुछ सिद्ध नहीं होता है ।
 
व्यक्तिगत क्षमतायें बढ़ाने से कुछ सिद्ध नहीं होता है ।
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सृष्टि के साथ समायोजन
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== सृष्टि के साथ समायोजन ==
 
   
परमात्मा की सृष्टि में मनुष्य के साथ साथ और भी
 
परमात्मा की सृष्टि में मनुष्य के साथ साथ और भी
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पर्व २ : उद्देश्यनिर्धारण
      
बहुत कुछ है । जिस पृथ्वी पर हम रहते हैं उसके साथ साथ
 
बहुत कुछ है । जिस पृथ्वी पर हम रहते हैं उसके साथ साथ
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रहे हैं अपितु अपना अधिकार जमाकर उसे अपमानित
 
रहे हैं अपितु अपना अधिकार जमाकर उसे अपमानित
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कर रहे हैं। इस व्यवहार को
 
कर रहे हैं। इस व्यवहार को
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दोनों मिलकर होता है समग्र विकास ।
 
दोनों मिलकर होता है समग्र विकास ।
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
      
==References==
 
==References==

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