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लेख सम्पादित किया
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मधुर गन्ध को नासिका मन तक पहुँचाती हैं । कान मधुर
 
मधुर गन्ध को नासिका मन तक पहुँचाती हैं । कान मधुर
 
 
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पर्व १ : उपोद्धात
      
ध्वनियों को मन तक पहुँचाकर उसे सुख देते हैं । रसना
 
ध्वनियों को मन तक पहुँचाकर उसे सुख देते हैं । रसना
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वाली वस्तुयें केवल अपने ही पास हो ऐसा चाहता है।
 
वाली वस्तुयें केवल अपने ही पास हो ऐसा चाहता है।
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अपने पास नहीं है और दूसरे के पास
 
अपने पास नहीं है और दूसरे के पास
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इस प्रवृत्ति से ही अनेक प्रकार की
 
इस प्रवृत्ति से ही अनेक प्रकार की
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नहीं करता जिससे स्वास्थ्य खराब हो । इंद्रियाँ उसके लिये
 
नहीं करता जिससे स्वास्थ्य खराब हो । इंद्रियाँ उसके लिये
 
उपभोग के माध्यम हैं तो भी वह उनकी सुरक्षा की परवा
 
उपभोग के माध्यम हैं तो भी वह उनकी सुरक्षा की परवा
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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किए बिना विषयों का सुख लेता रहता है । इस काम की
 
किए बिना विषयों का सुख लेता रहता है । इस काम की
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सरल नहीं है । वह अत्यन्त कठिन है । साथ ही उसमें एक
 
सरल नहीं है । वह अत्यन्त कठिन है । साथ ही उसमें एक
 
 
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पर्व १ : उपोद्धात
      
खतरा भी है । सारे पदार्थों का त्याग कर संन्यासी बन
 
खतरा भी है । सारे पदार्थों का त्याग कर संन्यासी बन
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निर्माण होती है । ऐसा होने से काम से मुक्ति नहीं मिलती
 
निर्माण होती है । ऐसा होने से काम से मुक्ति नहीं मिलती
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और कामजनित दुःखों से भी मुक्ति
 
और कामजनित दुःखों से भी मुक्ति
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समझकर उसका उचित सम्मान करना चाहिये और उसके
 
समझकर उसका उचित सम्मान करना चाहिये और उसके
 
 
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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सामर्थ्य को समझ कर उसे नियमन में. से ही स्वस्थ हो यह पर्याप्त नहीं है, वह जन्म से ही
 
सामर्थ्य को समझ कर उसे नियमन में. से ही स्वस्थ हो यह पर्याप्त नहीं है, वह जन्म से ही
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जाता रहा है और गर्भवती महिला की बहुत संभाल रखी... रोकना चाहिये । आजकल यह बात सर्वथा विस्मृत हो गई
 
जाता रहा है और गर्भवती महिला की बहुत संभाल रखी... रोकना चाहिये । आजकल यह बात सर्वथा विस्मृत हो गई
 
जाती रही है । जन्म लेने वाला शिशु केवल शारीरिक दृष्टि है परन्तु यह विस्मरण बहुत भारी पड़ने वाला है क्योंकि
 
जाती रही है । जन्म लेने वाला शिशु केवल शारीरिक दृष्टि है परन्तु यह विस्मरण बहुत भारी पड़ने वाला है क्योंकि
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पर्व १ : उपोद्धात
      
यह विस्मरण हमें पशुता ही नहीं अपितु आसुरी वृत्ति की
 
यह विस्मरण हमें पशुता ही नहीं अपितु आसुरी वृत्ति की
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को भड़काने वाले और वासनाओं को बढ़ाने वाले ही होते
 
को भड़काने वाले और वासनाओं को बढ़ाने वाले ही होते
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हैं । संयम को आवश्यक माना ही नहीं
 
हैं । संयम को आवश्यक माना ही नहीं
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शिक्षा केवल पढने लिखने की और लिखित परीक्षा की नहीं
 
शिक्षा केवल पढने लिखने की और लिखित परीक्षा की नहीं
 
 
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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होती । वह हर स्तर पर प्रायोगिक होनी... चाहिये । इसके अनुकूल व्यवस्थाएँ कैसी होंगी, यह भी
 
होती । वह हर स्तर पर प्रायोगिक होनी... चाहिये । इसके अनुकूल व्यवस्थाएँ कैसी होंगी, यह भी

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