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== ज्ञान पवित्र है ==
 
== ज्ञान पवित्र है ==
हमारे देश का नाम भारत है। इस नाम का अर्थ है ज्ञान के प्रकाश में रत रहने वाला देश। हम भारतीय हैं। हम ज्ञान के उपासक हैं। ज्ञान को श्रेष्ठ मानते हैं। ज्ञान को पवित्र मानते हैं। जिस प्रकार अग्नि सभी पदार्थों को तपाकर उनमें जो भी अशुद्धियाँ हैं उनको जलाकर पदार्थ को शुद्ध बनाती है उसी प्रकार ज्ञान हमारे मनोभावों, विचारों, वृत्तियों, व्यवहारों की मलीनता को दूर कर उन्हें शुद्ध बनाता है। इस ज्ञान और ज्ञानोपासना को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित कर हमने ज्ञानपरम्परा बनाई है। ज्ञानपरम्परा को निरन्तर बनाये रखने की व्यवस्था को शिक्षा कहते हैं। जैसा हमारा ज्ञान श्रेष्ठ वैसी ही हमारी शिक्षाव्यवस्था भी श्रेष्ठ रही है। इस शिक्षाव्यवस्था के विषय में हमारे समर्थ पूर्वजों ने बहुत चिन्तन किया है और उसके शास्त्र को प्रस्तुत किया है। उस शास्त्र का अनुसरण कर हमने पीढ़ी दर पीढ़ी अध्ययन और अध्यापन का कार्य किया है। परिणामस्वरूप हमारे ज्ञानभाण्डार की रक्षा करने में, उसे परिष्कृत करने में और उसमें वृद्धि करने में हम समर्थ हुए हैं। समय समय पर इस ज्ञानधारा पर विभिन्न प्रकार के आक्रमण हुए हैं परन्तु हम उन आक्रमणों का प्रतिकार करने में समर्थ सिद्ध हुए हैं। इस प्रकार आज तक हमने भारतीय ज्ञानधारा को अविरत रूप से प्रवाहित रखा है। आज भी ऐसा ही आक्रमण का काल है। यह आक्रमण बाह्य और आन्तरिक दोनों प्रकार का है। इस कारण से वह अधिक भीषण है।
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हमारे देश का नाम भारत है। इस नाम का अर्थ है ज्ञान के प्रकाश में रत रहने वाला देश। हम भारतीय हैं{{Citation needed}}। हम ज्ञान के उपासक हैं। ज्ञान को श्रेष्ठ मानते हैं। ज्ञान को पवित्र मानते हैं। जिस प्रकार अग्नि सभी पदार्थों को तपाकर उनमें जो भी अशुद्धियाँ हैं उनको जलाकर पदार्थ को शुद्ध बनाती है उसी प्रकार ज्ञान हमारे मनोभावों, विचारों, वृत्तियों, व्यवहारों की मलीनता को दूर कर उन्हें शुद्ध बनाता है। इस ज्ञान और ज्ञानोपासना को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित कर हमने ज्ञानपरम्परा बनाई है। ज्ञानपरम्परा को निरन्तर बनाये रखने की व्यवस्था को शिक्षा कहते हैं। जैसा हमारा ज्ञान श्रेष्ठ वैसी ही हमारी शिक्षाव्यवस्था भी श्रेष्ठ रही है। इस शिक्षाव्यवस्था के विषय में हमारे समर्थ पूर्वजों ने बहुत चिन्तन किया है और उसके शास्त्र को प्रस्तुत किया है। उस शास्त्र का अनुसरण कर हमने पीढ़ी दर पीढ़ी अध्ययन और अध्यापन का कार्य किया है। परिणामस्वरूप हमारे ज्ञानभाण्डार की रक्षा करने में, उसे परिष्कृत करने में और उसमें वृद्धि करने में हम समर्थ हुए हैं। समय समय पर इस ज्ञानधारा पर विभिन्न प्रकार के आक्रमण हुए हैं परन्तु हम उन आक्रमणों का प्रतिकार करने में समर्थ सिद्ध हुए हैं। इस प्रकार आज तक हमने भारतीय ज्ञानधारा को अविरत रूप से प्रवाहित रखा है। आज भी ऐसा ही आक्रमण का काल है। यह आक्रमण बाह्य और आन्तरिक दोनों प्रकार का है। इस कारण से वह अधिक भीषण है।
    
आन्तरिक होने के कारण वह जल्दी समझ में भी नहीं आता है। आन्तरिक होने के कारण से उसे परास्त करना भी अधिक कठिन हो जाता है। इसलिये हमें सावधान रहना है। आक्रमण के स्वरूप को भलीभाँति पहचानना है और कुशलतापूर्वक उपाययोजना बनानी है।
 
आन्तरिक होने के कारण वह जल्दी समझ में भी नहीं आता है। आन्तरिक होने के कारण से उसे परास्त करना भी अधिक कठिन हो जाता है। इसलिये हमें सावधान रहना है। आक्रमण के स्वरूप को भलीभाँति पहचानना है और कुशलतापूर्वक उपाययोजना बनानी है।

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