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यह तो हुवा जो जन्म (कुल) से मिले वर्ण के अनुसार कर्म नहीं करता है उस की अवस्था का वर्णन। किंतु कुछ ऐसे भी लोग थे जो आनुवांशिकता के कारण किसी वर्ण के माने गये थे। किंतु अपने गुण कर्मों से उन्हों ने अपने वास्तविक स्वभाव के अनुसार वर्ण को प्राप्त किया। यह लचीलापन व्यवस्था में रखा गया था।
यह तो हुवा जो जन्म (कुल) से मिले वर्ण के अनुसार कर्म नहीं करता है उस की अवस्था का वर्णन। किंतु कुछ ऐसे भी लोग थे जो आनुवांशिकता के कारण किसी वर्ण के माने गये थे। किंतु अपने गुण कर्मों से उन्हों ने अपने वास्तविक स्वभाव के अनुसार वर्ण को प्राप्त किया। यह लचीलापन व्यवस्था में रखा गया था।
शनकैस्तु क्रियालोपादिमा: क्षत्रियजातय: । वृशलत्वं गता लोके ब्राह्मणादर्शनेन च ॥ ( मनुस्मृति १०-४३)
शनकैस्तु क्रियालोपादिमा: क्षत्रियजातय: । वृशलत्वं गता लोके ब्राह्मणादर्शनेन च ॥ ( मनुस्मृति १०-४३)
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आनुवांशिकता का महत्व ध्यान में रखकर दीर्घकालीन विशेष प्रयासों के बाद वर्ण परिवर्तन को मान्यता मिलती थी। मन में आने मात्र से वर्ण परिवर्तन नहीं किया जा सकता। विश्वामित्र को ब्राह्मण वर्ण की प्राप्ति के लिये २४ वर्ष की साधना करनी पडी थी।
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आनुवांशिकता का महत्व ध्यान में रखकर दीर्घकालीन विशेष प्रयासों के बाद वर्ण परिवर्तन को मान्यता मिलती थी। मन में आने मात्र से वर्ण परिवर्तन नहीं किया जा सकता। विश्वामित्र को ब्राह्मण वर्ण की प्राप्ति के लिये २४ वर्ष की साधना करनी पडी थी।
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एक जाति के माता पिता के घर भिन्न भिन्न वर्णों के लोग जन्म लेते थे। इस के कई उदाहरण लक्ष्मणशास्त्री जोशी द्वारा लिखित संस्कृति कोश में मिलते है। - भगवान ॠषभदेव की १००० संतानें थीं। उन में से एक भरत तो राजा बना और ८० पुत्र ब्राह्मण बने।
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एक जाति के माता पिता के घर भिन्न भिन्न वर्णों के लोग जन्म लेते थे। इस के कई उदाहरण लक्ष्मणशास्त्री जोशी द्वारा लिखित संस्कृति कोश में मिलते है। - भगवान ॠषभदेव की १००० संतानें थीं। उन में से एक भरत तो राजा बना और ८० पुत्र ब्राह्मण बने।
- क्षत्रिय मुद्गल जाति के वंशज कालंतर से मौद्गल्य (ब्राह्मण) बने।
- क्षत्रिय मुद्गल जाति के वंशज कालंतर से मौद्गल्य (ब्राह्मण) बने।
- नहुष राजा का पुत्र संयाति तपोबल से ब्राह्मण बना।
- नहुष राजा का पुत्र संयाति तपोबल से ब्राह्मण बना।