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इस दृष्टि से भारतीय जाति व्यवस्था में एक जाति में भी उन्हीं गुणधर्मों का होना जो एक जीवंत ईकाई जैसे मनुष्य या एक जीवंत बडी इकाई समाज या राष्ट्र में पाये जाते है, उन का होना यह स्वाभाविक ही है। इस का कारण है कि जाति यह भी एक जीवंत इकाई है। भारतीय मान्यता के अनुसार समाज की कल्पना एक विराट समाज पुरूष के रूप में की गयी है। जैसे एक सामान्य मनुष्य के भिन्न भिन्न अंग मनुष्य के लिए भिन्न भिन्न क्रियाएं करते है। इसी तरह यह कहा गया कि समाज में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैष्य और शूद्र इन चार वर्णों के लोग हर समाज में होते ही है। यह केवल भारतीय समाज में होते है ऐसी बात नहीं है। जिन समाजों में वर्णव्यवस्था नहीं है ऐसे विश्व के सभी समाजों का निरीक्षण करने से यह ध्यान में आ जाएगा कि उन में भी ऐसी चार वृत्तियों के लोग पाये जाते है। उन समाजों में वर्णव्यवस्था नहीं है लेकिन वर्ण तो हैं ही।
इस दृष्टि से भारतीय जाति व्यवस्था में एक जाति में भी उन्हीं गुणधर्मों का होना जो एक जीवंत ईकाई जैसे मनुष्य या एक जीवंत बडी इकाई समाज या राष्ट्र में पाये जाते है, उन का होना यह स्वाभाविक ही है। इस का कारण है कि जाति यह भी एक जीवंत इकाई है। भारतीय मान्यता के अनुसार समाज की कल्पना एक विराट समाज पुरूष के रूप में की गयी है। जैसे एक सामान्य मनुष्य के भिन्न भिन्न अंग मनुष्य के लिए भिन्न भिन्न क्रियाएं करते है। इसी तरह यह कहा गया कि समाज में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैष्य और शूद्र इन चार वर्णों के लोग हर समाज में होते ही है। यह केवल भारतीय समाज में होते है ऐसी बात नहीं है। जिन समाजों में वर्णव्यवस्था नहीं है ऐसे विश्व के सभी समाजों का निरीक्षण करने से यह ध्यान में आ जाएगा कि उन में भी ऐसी चार वृत्तियों के लोग पाये जाते है। उन समाजों में वर्णव्यवस्था नहीं है लेकिन वर्ण तो हैं ही।
इस तर्क के आधारपर यदि कहा जाए कि हर जाति एक जीवंत इकाई होने के कारण इस में भी ऐसी ही चार वृत्तियों के लोगों का होना अनिवार्य है, स्वाभाविक है तो इस तर्क को गलत नहीं कहा जा सकता । अर्थात् हर जाति में चार वर्णों के लोग होते ही है, इसे मान्य करना होगा। कोई भी शास्त्र इसे नकारता नहीं है।
इस तर्क के आधारपर यदि कहा जाए कि हर जाति एक जीवंत इकाई होने के कारण इस में भी ऐसी ही चार वृत्तियों के लोगों का होना अनिवार्य है, स्वाभाविक है तो इस तर्क को गलत नहीं कहा जा सकता । अर्थात् हर जाति में चार वर्णों के लोग होते ही है, इसे मान्य करना होगा। कोई भी शास्त्र इसे नकारता नहीं है।
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वाचनीय साहित्य :
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==References==
मनुस्मृति
मनुस्मृति
प्रजातंत्र अथवा वर्णाश्रम व्यवस्था, लेखक गुरुदत्त, प्रकाशक हिन्दी साहित्य सदन, नई दिल्ली
प्रजातंत्र अथवा वर्णाश्रम व्यवस्था, लेखक गुरुदत्त, प्रकाशक हिन्दी साहित्य सदन, नई दिल्ली
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महाभारत-शांतिपर्व
महाभारत-शांतिपर्व
श्रीमद्भागवत पुराण
श्रीमद्भागवत पुराण
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<references />
[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन (प्रतिमान)]]
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