Difference between revisions of "आर्न्तर्रा्ट्रीय विश्वविद्यालय"
Line 81: | Line 81: | ||
==== ५. देशों की आर्थिक, राजनीतिक, भौगोलिक स्थिति का अध्ययन ==== | ==== ५. देशों की आर्थिक, राजनीतिक, भौगोलिक स्थिति का अध्ययन ==== | ||
− | यह अध्ययन बहुत ही रोचक रहेगा। कुछ इस प्रकार की जानकारी एकत्रित की जा सकती है। | + | यह अध्ययन बहुत ही रोचक रहेगा। कुछ इस प्रकार की जानकारी एकत्रित की जा सकती है। |
− | और पर्वतों से जो विभाजित होते हैं वे देश कहे जाते हैं। अखण्ड भारत की सीमायें प्राकृतिक हैं। उसके उत्तर में पर्वत है और शेष तीनों दिशाओं में समुद्र है। | + | देश का क्षेत्र कितना है। यह क्षेत्र काल प्रवाह में कितना, किस प्रकार, किस रूप में बदलता रहा है । वर्तमान क्षेत्र कब से है। वर्तमान नाम क्या है। पूर्व में कौन कौन से नाम रहे हैं। वर्तमान नामकरण कैसे हुआ। |
+ | |||
+ | देश की सीमायें प्राकृतिक हैं कि मानवसर्जित । इसे ठीक से समझना होगा। विश्व में भौगोलिक दृष्टि से दो शब्द प्रचलित हैं एक है देश और दूसरा है महाद्वीप । इन दोनों की रचना प्राकृतिक आधार पर होती है। समुद्र से जो विभाजित होते हैं वे महाद्वीप और पर्वतों से जो विभाजित होते हैं वे देश कहे जाते हैं। अखण्ड भारत की सीमायें प्राकृतिक हैं। उसके उत्तर में पर्वत है और शेष तीनों दिशाओं में समुद्र है। परन्तु पाकिस्तान, बंगलादेश, अफघानिस्थान आदि देशों की सीमायें मानवसर्जित हैं । देशों की सीमाओं की जानकारी से पता चलता है कि ये देश किसी युद्ध जैसे मानवसर्जित संकट के अथवा राजनीति के परिणामस्वरूप बने हैं। इन संकटों का निराकरण करने पर वे पुनःएक हो सकते हैं। | ||
+ | |||
+ | देश का तापमान, वर्षा, ऋतुर्ये आदि कैसे हैं । पानी की और भूमि के उपजाऊपन की स्थिति कैसी है। अनाज, सब्जी, फल, औषधी, वनस्पति, प्राणी, अरण्य आदि की स्थिति कैसी है । प्राकृतिक स्थिति के आधार पर इनकी रचना कैसी बनाई गई है। | ||
+ | |||
+ | इन देशों के अर्थोत्पादन की व्यवस्था कैसी है। जनसंख्या का विनियोग उत्पादन के क्षेत्र में फैला होता है। मानव और प्राणियों की ऊर्जा और विद्युत आदि की ऊर्जा का यन्त्रों के संचालन हेतु कैसा अनुपात है। इसका पर्यावरण पर क्या परिणाम होता है। | ||
+ | |||
+ | ५. देश की भौतिक समृद्धि के आधार कौन से है। भौतिक समृद्धि के लिये आवश्यक प्राकृतिक सम्पदा, कार्यकुशलता, काम करने की वृत्ति और बुद्धिसम्पदा का अनुपात कैसा है। कारीगरी के क्षेत्र में विविधता, उत्कृष्टता और सृजनशीलता कितने हैं। | ||
+ | |||
+ | उत्पादन कितना विकेन्द्रित है और वितरण की व्यवस्था कितनी कम खर्चीली है।। | ||
+ | |||
+ | ७. जीडीपी के मापदण्ड के अनुसार देश विकसित, विकासशील या अविकसित है। जीडीपी को छोड दिया जाय तो देश भौतिक समृद्धि के आधार पर देश कौन से श्रेणी में होगा। | ||
+ | |||
+ | ८. देश के विदेशव्यापार, विदेशी या आन्तर्राष्ट्रीय, ऋण, आयात और निकास की स्थिति कैसी है ? | ||
+ | |||
+ | शिक्षित रोजगारी, अशिक्षित रोजगारी, शिक्षित बेरोजगारी, अशिक्षित बेरोजगारी का अनुपात कैसा है। उत्पादक और अनुत्पादक व्यवसायों का अनुपात कैसा है। | ||
+ | |||
+ | १०. नौकरी करने वाले और स्वतन्त्र व्यवसाय कनरे वालों | ||
==References== | ==References== |
Revision as of 13:03, 14 January 2020
This article relies largely or entirely upon a single source. |
अध्याय ४२
विश्व को सहायक बनने हेतु भारत क्या करे इसका विचार करना चाहिये, केवल चिन्ता करने से काम नहीं चलेगा।
हमें एक आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना करनी चाहिये । ऐसा विश्वविद्यालय वास्तव में आन्तर्राष्ट्रीय स्तर और स्वरूप क्या होता है इसका नमूना प्रस्तुत करने हेतु होना चाहिये। इस विश्वविद्यालय में अध्ययन का स्वरूप कुछ इस प्रकार का हो सकता है...
१. विश्व के देशों के सांस्कृतिक इतिहास के अध्ययन की योजना बनानी चाहिये।
इतिहास का वर्तमान स्वरूप राजकीय इतिहास का है। शासकों को केन्द्र में रखकर सारी बातों का अध्ययन होता है। सबके अध्ययन में शासकों के स्थान पर प्रजाओं को केन्द्र में रखकर अध्ययन की योजना बनानी चाहिये।
ऐसे अध्ययन हेतु प्रथम विश्व की प्रजाओं के कुछ समूह भी बना सकते हैं। प्राथमिक स्वरूप बनाकर अध्ययन प्रारम्भ करना और बाद में आवश्यकता के अनुसार समूह बदलते जा सकें ऐसी सम्भावना हो सकती है । अध्ययन में इस प्रकार का लचीलापन हो सकता है।
इतिहास के अध्ययन के लिये हम प्राचीन काल से आज तक आने की दिशा न पकडें । हम आज जहाँ हैं वहाँ से शुरू करें और अतीत की ओर चलें । यह अपेक्षाकृत सरल होगा और व्यावहारिक भी क्योंकि अध्ययन के लिये हमें जीवित सन्दर्भ प्राप्त होंगे।
अध्ययन का स्वरूप व्यापक रखना आवश्यक रहेगा । एक छोटा मुद्दा पकडकर उसकी गहराई तक जाकर छानबीन करने के स्थान पर या एक छोटा प्रदेश चुनकर उसका अतीत में पहुंचने तक का अध्ययन करने के स्थान पर स्थान और प्रजाओं का व्यापक रूप में चयन कर अध्ययन प्रारम्भ करना चाहिये।
अध्ययन हेतु हमें उन उन देशों में जाकर दो पाँच वर्ष तक रहने की योजना बनानी चाहिये । व्यावहारिक कारणों से वर्ष के आठ मास उस देश में और चार मास भारत में विश्वविद्यालय केन्द्र में रहना उचित रहेगा। इसमें अध्येता को आवश्यक लगे ऐसा परिवर्तन किया जा सकता है।
इस अध्ययन के लिये उस देश के विद्वज्जन और सामान्यजन दोनों की सहायता प्राप्त की जा सकती है। उस देश का विश्वविद्यालय और शासन हमारे सहयोगी हो सकते हैं। उस देश का अध्ययन किया हो अथवा कर रहे हों ऐसे अन्य देशों के विद्वानों के साथ सम्पर्क स्थापित करना भी आवश्यक रहेगा।
उस देश का वर्तमान जीवन जानना प्रारम्भ बिन्दु रहेगा। अर्थव्यवस्था, अर्थ के सम्बन्ध में दृष्टि, समाजव्यवस्था के मूल सिद्धान्त, कानून की दृष्टि, धार्मिक आस्थायें, शिक्षा का स्वरूप, शासन का स्वरूप, प्रजामानस आदि हमारे अध्ययन के विषय बनेंगे। लोगों के साथ बातचीत, प्रजाजीवन का अवलोकन, विद्वज्जनों से चर्चा और लिखित साहित्य हमारे साधन होंगे।
वर्तमान से प्रारम्भ कर प्रजा के अतीत की ओर जाने का क्रम बनाना चाहिये। इन प्रजाओं का मूल कहाँ कहां है, वे किसी दूसरे देश से कब और क्यों यहां आये हैं, उनसे पहले यहाँ कौन रहता था, वे आज कहाँ है इसकी जानकारी प्राप्त करनी चाहिये । वर्तमान में और अतीत में इस प्रजा का दूसरी कौन सी प्रजाओं के साथ किस प्रकार का सम्बन्ध रहा है, वे आज किस देश से प्रभावित हो रहे हैं यह भी जानना चाहिये । इस देश का पौराणिक साहित्य इस देश का कैसा परिचय देता है और अपने अतीत से वर्तमान किस प्रकार अलग अथवा समान है यह जानना भी उपयोगी रहेगा । वर्तमान से अतीत में और अतीत से वर्तमान में देश की भाषा, वेशभूषा, खानपान, घरों की रचना, सम्प्रदाय, शिक्षा किस प्रकार बदलते रहे हैं यह जानना । । उपयोगी रहेगा। इस देश का नाम, भूगोल, विवाह पद्धति, परिवाररचना भी जानना चाहिये ।
इस प्रकार से विश्व के इतिहास की मोटे तौर पर रूपरेखा हमारे पास तैयार होगी। विश्व को नियन्त्रित करने वाले, नियमन में रखने वाले तत्त्व कौन से हैं यह भी समझ में आयेगा । विश्वजीवन में इन देशों का कैसा योगदान है, ये कितने उपकारक, अपकारक या तटस्थ हैं इसका भी आकलन हम कर सकेंगे । हमारा अध्ययन राजकीय प्रभावों से मुक्त और सांस्कृतिक प्रवाहों के प्रति संवेदनशील होना चाहिये । हमारी इतिहास दृष्टि हमारी ही होगी।
हम जिस देश का अध्ययन कर रहे हैं उस देश की जीवनदृष्टि और विश्वदृष्टि क्या है और किन विविध रूपों में वह अभिव्यक्त हो रही है, देश की समस्यायें और उपलब्धियाँ क्या है, राष्ट्रजीवन का प्रवाह किस गति से किस और बह रहा है, उसमें अवरोध हैं कि नहीं, यदि हैं तो उनका स्वरूप कैसा है, उन अवरोधों को दूर करने का प्रजा का पुरुषार्थ कैसा है आदि बातें हमारे अध्ययन का विषय रहेंगी।
संक्षेप में इस देश का तत्त्वज्ञान और व्यवहार हमारे अध्ययन का विषय रहेगा।
विश्व के विभिन्न सम्प्रदायों का अध्ययन
धर्म निरपेक्षता, पन्थनिरपेक्षता, सेकुलरिझम, धार्मिक सहिष्णुता, साम्प्रदायिक सद्भाव, निधार्मिकता, साम्प्रदायिक कट्टरता आदि बातों का महान कोलाहल विश्व में मचा हुआ है । इस्लाम और इसाइयत विश्व के अर्थकारण, समाजकारण, राजकारण, लोकजीवन आदि को प्रभावित कर रहे हैं, यहाँ तक कि शिक्षा भी इनसे मुक्त नहीं है। धर्मान्तरण का बहुत बडा अभियान इन दोनों सम्प्रदायों के जन्मकाल से ही शुरू हुआ है और पूरा विश्व इसकी चपेट में आया हुआ है। इस स्थिति में सम्प्रदायों का अध्ययन करना आवश्यक रहेगा।
अध्ययन का एक प्रमुख मुद्दा इस्लाम और इसाइयत के प्रादुर्भाव से पूर्व सम्प्रदायों की स्थिति और स्वरूप कैसे थे इसका आकलन करने का रहेगा। ये दोनों सम्प्रदाय किससे प्रभावित हुए और किस रूप में अन्यसम्प्रदायों को प्रभावित कर रहे हैं यह जानना होगा।
सम्प्रदायों को लेकर हमारे अध्ययन के मुद्दे कुछ इस प्रकार के हो सकते हैं...
सम्प्रदायों की जीवनदृष्टि और विश्वदृष्टि कैसी है। वे जन्मजन्मान्तर में विश्वास करते हैं कि नहीं । अन्य सम्प्रदायों के लोगों के साथ इसके सम्बन्ध कैसे हैं । वे अपने सम्प्रदाय की श्रेष्ठ कनिष्ठ के रूप में तुलना करते है कि नहीं। उनका पंचमहाभूतों, वनस्पति और प्राणियों के साथ कैसा सम्बन्ध है ? पापपुण्य, अच्छाई बुराई, स्वर्ग नर्क आदि के बारे में उनकी कल्पना क्या है। उनके देवी देवता कौन हैं । उनका तत्त्वज्ञान क्या है। उनकी उपासना का स्वरूप कैसा है। उनके कर्मकाण्ड कैसे हैं। भौतिक विज्ञान, व्यापार, राजनीति, शिक्षा, परिवार आदि समाजजीवन के विभिन्न आयामों के साथ उनके साम्प्रदायिक जीवन का सम्बन्ध कैसा है। नीति, सदाचार, संस्कार, कर्तव्य, रीतिरिवाज आदि का सम्प्रदाय के साथ कैसा सम्बन्ध है । इनके धर्मग्रन्थ और शास्त्रग्रन्थ कौन से हैं किस भाषा में लिखे हुए हैं। इनके सम्प्रदाय प्रवर्तक कौन हैं, कैसे हैं। इनके धर्मगुरु किस परम्परा से बनते हैं। परम्परा निर्वहण की इनकी पद्धति कैसी है।
इन मुद्दों पर सम्प्रदायों के अध्ययन के बाद इनका जब संकलन करेंगे तब सम्प्रदाय समूह बनने लगेंगे। जीवनदृष्टि, विश्वदृष्टि और कर्मकाण्डों की पद्धति को लेकर समानता और भिन्नता के आधार पर ये समूह बनेंगे । इस्लाम और इसाइयत का इनके ऊपर कैसे प्रभाव हुआ है इसके आधार पर ये समूह बनेंगे।
भारत में कुछ विशिष्ट संकल्पनायें हैं। वे हैं अध्यात्म, धर्म और आत्मतत्त्व । विश्व के सभी सम्प्रदायों में इन संकल्पनाओं का अस्तित्व है कि नहीं और यदि है तो उन का स्वरूप कैसा है इसका अध्ययन बहुत ही रोचक रहेगा। भारत में साम्प्रदायिक सद्भाव, कट्टरता और धर्मान्तरण कठिन समस्या बने हुए हैं । विश्व के विभिन्न देशों में विभिन्न सम्प्रदायों में ऐसी स्थिति है कि नहीं यह जानना भी उपयोगी रहेगा । सम्प्रदाय परिवर्तन करने से क्या होता है यह भी जानना चाहिये।
भारत में जो धर्म संकल्पना है उसी को हिन्दुत्व कहा जाता है। हिन्दुत्व को मानक के रूप में रखकर सभी सम्प्रदायों का तुलनात्मक अध्ययन करना चाहिये।
इस अध्यनय के आधार पर विश्व की साम्प्रदायिक समस्याओं के निराकरण के उपाय हमें अधिक अच्छी तरह से प्राप्त होंगे । इस प्रकार का अध्ययन विश्व के अन्यान्य देशों के लिये भी उपयोगी होगा।
३. ज्ञानविज्ञान और शिक्षा की स्थिति का अध्ययन
ज्ञानविज्ञान और शिक्षा की स्थिति का अध्ययन किसी भी देश की ज्ञानात्मक स्थिति कैसी है उसके उपर उसका विकसित और विकासशील स्वरूप ध्यान में आता है। विकास का वर्तमान आर्थिक मापदण्ड छोडकर हमें ज्ञानात्मक मापदण्ड अपनाना चाहिये और उसके आधार पर देशों का मूल्यांकन करना चाहिये । ज्ञानविज्ञान और शिक्षा की स्थिति जानने के लिये इस प्रकार के मुद्दे हो सकते हैं...
- इस देश के शाखग्रन्थ कौन से हैं । वे किन लोगों ने लिखे हैं। किस भाषा में लिखे हैं।
- इन शाखग्रन्थों की रचना करने वालों की योग्यता किस प्रकार की होनी चाहिये ऐसा विद्वानों का और सामान्यजनों का मत हैं।
- इन शास्त्रग्रन्थों की आधारभूत धारणायें कौन सी हैं ।
- ये शास्त्रग्रंथ कब या कब कब लिखे गये हैं । समय समय पर उनमें क्या परिवर्तन अथवा रूपान्तरण होते रहे हैं । ये परिवर्तन किन लोगों ने किस आशय से किये हैं । रूपान्तरण की आवश्यकता क्यों लगी।
- वर्तमान में इन शास्त्रग्रन्थों का अध्ययन कौन करता है, क्यों करता है।
- ये शास्रग्रन्थ किन किन बातों के लिये प्रमाण माने जाते हैं।
- प्रजा के दैनन्दिन जीवन, राजकाज, अर्थव्यवहार, धार्मिक आस्थायें, शिक्षा आदि के साथ इन शाखग्रन्थों का क्या सम्बन्ध है।
- शास्त्रग्रन्थ और तत्त्वज्ञान, शास्त्रग्रन्थ और विज्ञान, शास्त्रग्रन्थ और राजनीति किस प्रकार एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।
- विज्ञान को हम केवल भौतिक विज्ञान ही न मानें अपितु ज्ञान तक पहुँचने की, शास्त्रों की रचना की प्रक्रिया मानें और उसकी स्थिति देश देश में कैसी है इसका आकलन करें । वैज्ञानिक दृष्टिकोण की क्या स्थिति है इसका भी विचार करें।
- देश में खानपान का, वेशभूषा का, दिनचर्या का, ऋतुचर्या का, जीवनचर्या का, मकान और सड़कें बनाने का कोई शास्त्रीय खुलासा होता है कि नहीं यह जानने से पता चलता है कि विज्ञान की स्थिति क्या है।
- देश का आरोग्यशास्त्र और चिकित्साशास्त्र कैसे विकसित हुआ है । शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की क्या कल्पना है।
- विवाह, परिवाररचना और शिशुसंगोपन की क्या परम्परा है, क्या व्यवस्था है और क्या मान्यता है । विवाह की क्या पद्धति है।
- परम्परा और आधुनिकता का समन्वय किस प्रकार किया जाता है।
- देश भौतिकवादी है, आध्यात्मिक है या दोनों का अशास्त्रीय सम्मिश्रण है।
- देश में शिक्षा का स्वरूप कैसा है । किस आयु में शिक्षा शुरू होती है, तब तक चलती है । किस भाषा में दी जाती है।
- विद्यालय कौनव चलाता है । शुल्क की क्या व्यवस्था है । शिक्षक कैसे होते हैं । किस प्रकार नियुक्त किये जाते हैं । वेतन की क्या स्थिति है।
- शिक्षा प्राप्त करने वाली जनसंख्या का क्या प्रतिशत है ।
- शिक्षा का अर्थार्जन के साथ कैसा सम्बन्ध है ।
- शइक्षा का कैसा शास्त्र विकसित हुआ है । शिक्षा ज्ञान, विज्ञान, धर्म, सम्प्रदाय, व्यवहारजीवन, नीति सदाचार आदि की किस रूप में कितनी वाहक है।
- देश की अर्थव्यवस्था, राज्यव्यवस्था और सम्प्रदायव्यवस्था को कितनी और किस प्रकार प्रभावित करती है।
- तकनीकी शिक्षा का देश के शिक्षाक्षेत्र में क्या स्थान ।
- देश में कितने शोधसंस्थान, विश्वविद्यालय और महाविद्यालय हैं । किन विषयों का अध्ययन और अनुसन्धान होता है।
- आन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालय हैं कि नहीं । राष्ट्रीय स्तर के हैं कि नहीं।
- राष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालयों की क्या पहचान है ।
- शिक्षाविभाग को भारत में मानव संसाधन विकास मन्त्रालय कहा जाता है । इन देशों में क्या कहा जाता है।
- इस देश में अनुसन्धान कैसे होता है । अनुसन्धान का प्रजाजीवन के साथ क्या सम्बन्ध है।
- जिस प्रकार भारत में पूर्व प्राथमिक, प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा जैसे विभाग हैं उस प्रकार इन देशों में कौन से विभाजन किया जाता है । उच्चशिक्षा का अनुपात कैसा है।
- शिक्षित बेरोजगारी, शिक्षा और चरित्र, शिक्षा और सामाजिकता, शिक्षा और भ्रष्टाचार का क्या सम्बन्ध है।
- अध्ययन हेतु विदेशों में जाने का प्रचलन कितना है । किन देशों में जाने का प्रचलन है ।
- समाजजीवन में शिक्षा की अनिवार्यता कितनी प्रतीत होती है । बिना शिक्षा के अर्थार्जन हो सकता है कि नहीं । आर्थिक नहीं तो शिक्षा के क्या प्रयोजन होते हैं।
- आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के छात्र अपने अध्यापकों के मार्गदर्शन में ऐसा अध्ययन कर सकते हैं। एक एक देश के ऐसे अध्ययन के बाद एकत्र चर्चा होना आवश्यक है। इस चर्चा के आधार पर विश्वस्थिति का आकलन हो सकता है । इन देशों के संकट क्या हैं और उनके निराकरण के उपाय क्या हैं यह समझना और उन देशों की सहायता करने के लिये प्रस्तुत होना आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का काम है। यहाँ के छात्रों को ऐसा अनुभव अधिक से अधिक मात्रा में मिलना चाहिये जिससे उनका दृष्टिकोण व्यापक बने । तटस्थतापूर्वक और सहृदयतापूर्वक अध्ययन करना आवश्यक है। भारत का इन देशों के साथ सम्बन्ध भी जुडना चाहिये । इसलिये इस अध्ययन में राष्ट्रीय दृष्टि होना भी आवश्यक है।
५. देशों की आर्थिक, राजनीतिक, भौगोलिक स्थिति का अध्ययन
यह अध्ययन बहुत ही रोचक रहेगा। कुछ इस प्रकार की जानकारी एकत्रित की जा सकती है।
देश का क्षेत्र कितना है। यह क्षेत्र काल प्रवाह में कितना, किस प्रकार, किस रूप में बदलता रहा है । वर्तमान क्षेत्र कब से है। वर्तमान नाम क्या है। पूर्व में कौन कौन से नाम रहे हैं। वर्तमान नामकरण कैसे हुआ।
देश की सीमायें प्राकृतिक हैं कि मानवसर्जित । इसे ठीक से समझना होगा। विश्व में भौगोलिक दृष्टि से दो शब्द प्रचलित हैं एक है देश और दूसरा है महाद्वीप । इन दोनों की रचना प्राकृतिक आधार पर होती है। समुद्र से जो विभाजित होते हैं वे महाद्वीप और पर्वतों से जो विभाजित होते हैं वे देश कहे जाते हैं। अखण्ड भारत की सीमायें प्राकृतिक हैं। उसके उत्तर में पर्वत है और शेष तीनों दिशाओं में समुद्र है। परन्तु पाकिस्तान, बंगलादेश, अफघानिस्थान आदि देशों की सीमायें मानवसर्जित हैं । देशों की सीमाओं की जानकारी से पता चलता है कि ये देश किसी युद्ध जैसे मानवसर्जित संकट के अथवा राजनीति के परिणामस्वरूप बने हैं। इन संकटों का निराकरण करने पर वे पुनःएक हो सकते हैं।
देश का तापमान, वर्षा, ऋतुर्ये आदि कैसे हैं । पानी की और भूमि के उपजाऊपन की स्थिति कैसी है। अनाज, सब्जी, फल, औषधी, वनस्पति, प्राणी, अरण्य आदि की स्थिति कैसी है । प्राकृतिक स्थिति के आधार पर इनकी रचना कैसी बनाई गई है।
इन देशों के अर्थोत्पादन की व्यवस्था कैसी है। जनसंख्या का विनियोग उत्पादन के क्षेत्र में फैला होता है। मानव और प्राणियों की ऊर्जा और विद्युत आदि की ऊर्जा का यन्त्रों के संचालन हेतु कैसा अनुपात है। इसका पर्यावरण पर क्या परिणाम होता है।
५. देश की भौतिक समृद्धि के आधार कौन से है। भौतिक समृद्धि के लिये आवश्यक प्राकृतिक सम्पदा, कार्यकुशलता, काम करने की वृत्ति और बुद्धिसम्पदा का अनुपात कैसा है। कारीगरी के क्षेत्र में विविधता, उत्कृष्टता और सृजनशीलता कितने हैं।
उत्पादन कितना विकेन्द्रित है और वितरण की व्यवस्था कितनी कम खर्चीली है।।
७. जीडीपी के मापदण्ड के अनुसार देश विकसित, विकासशील या अविकसित है। जीडीपी को छोड दिया जाय तो देश भौतिक समृद्धि के आधार पर देश कौन से श्रेणी में होगा।
८. देश के विदेशव्यापार, विदेशी या आन्तर्राष्ट्रीय, ऋण, आयात और निकास की स्थिति कैसी है ?
शिक्षित रोजगारी, अशिक्षित रोजगारी, शिक्षित बेरोजगारी, अशिक्षित बेरोजगारी का अनुपात कैसा है। उत्पादक और अनुत्पादक व्यवसायों का अनुपात कैसा है।
१०. नौकरी करने वाले और स्वतन्त्र व्यवसाय कनरे वालों
References
भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे