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४. मिट्टी का और ताँबे का पात्र पानी को निर्जन्तुक बनाता है।  
 
४. मिट्टी का और ताँबे का पात्र पानी को निर्जन्तुक बनाता है।  
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५. पानी यदि क्षारों के कारण भारी हुआ हो तो उसे
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५. पानी यदि क्षारों के कारण भारी हुआ हो तो उसे उबालकर ठण्डा करना चाहिये और बाद में छान लेना चाहिये।
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६. पानी भरा रहता है ऐसी टंकियों में सहजन या निर्मली के बीज तथा चूने का पथ्थर पानी की मात्रा के अनुपात में डालना चाहिये ये पानी को कचरारहित और जन्तुरहित बनाते हैं।
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७. हवा और सूर्यप्रकाश पानी के लिये प्राकृतिक शुद्धीकारक हैं । इनका सम्पर्क नित्य रहना चाहिये ।
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८. पानी कहीं पर भी रुका न रहे इस ओर ध्यान देना चाहिये । इसी प्रकार एक ही पात्र में पानी तीन चार दिन भरा रहे ऐसा भी नहीं होना चाहिये।
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९. कारखानों के रसायनों से जब नदियों का पानी अशुद्द होता है तब उसे शुद्ध करने का कोई प्राकृतिक उपाय नहीं है । उसे रसायनों से ही शुद्ध करना पडता हैं । रसायनों से शुद्ध किया हुआ पानी वास्तव में शुद्ध
    
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