Changes

Jump to navigation Jump to search
m
no edit summary
Line 26: Line 26:  
*व्रत-पर्व निर्धारण में भी तिथि ज्ञान आवश्यक है।
 
*व्रत-पर्व निर्धारण में भी तिथि ज्ञान आवश्यक है।
 
*लौकिक कार्यों के लिये सूर्योदय के क्षण की तिथि, उस क्षण से लेकर आगामी सूर्योदय तक, बदली नहीं जाती है।<ref>गोरख प्रसाद, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.347253/page/n1/mode/1up?view=theater भारतीय ज्योतिष का इतिहास], सन् १९५६,उत्तरप्रदेश सरकार, लखनऊ (पृ० २६३)।</ref>
 
*लौकिक कार्यों के लिये सूर्योदय के क्षण की तिथि, उस क्षण से लेकर आगामी सूर्योदय तक, बदली नहीं जाती है।<ref>गोरख प्रसाद, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.347253/page/n1/mode/1up?view=theater भारतीय ज्योतिष का इतिहास], सन् १९५६,उत्तरप्रदेश सरकार, लखनऊ (पृ० २६३)।</ref>
 +
चान्द्र दिवस को भी तिथि नाम के द्वारा व्यवहार किया जाता है। इसके सन्दर्भ में कालमाधव नामक ग्रन्थ में कहा गया है कि - <blockquote>मास्यन्ते परिमीयन्ते स्वकलावृद्धिर्हानितः। मासः एते स्मृता मासास्त्रिंशत्तिथिसमन्विताः॥ (कालमाधव)</blockquote>अर्थात तीस तिथि विशिष्ट माह को चान्द्रमास कहते हैं। प्रतिपदा आदि पन्द्रह तिथियाँ कृष्णपक्ष एवं पन्द्रह शुक्ल पक्ष में होती हैं। अमावस्या उपरान्त एक-एक चन्द्रकला वृद्धि से पूर्णिमा पर्यन्त शुक्ल पक्ष तथा पूर्णिमा उपरांत एक-एक कला ह्रास द्वारा कृष्ण पक्ष होता है।<ref>सस्मिता पाढी, [https://sanskritarticle.com/wp-content/uploads/33-43-Sasmita.Padhi_.pdf तिथेः स्वरूपं भेदाश्च], सन २०२२, नेशनल जर्नल ऑफ हिन्दी एण्ड संस्कृत रिसर्च (पृ० १०१)।</ref>
 +
 
'''तिथियों के नाम'''
 
'''तिथियों के नाम'''
   Line 219: Line 221:  
|शशि( चन्द्रमा)
 
|शशि( चन्द्रमा)
 
|}
 
|}
  −
===तिथियों का ऐतिहासिक स्वरूप===
      
===तिथियों के स्वामी तथा संज्ञाएं===
 
===तिथियों के स्वामी तथा संज्ञाएं===
1,239

edits

Navigation menu