प्रभु सम्मित वाक्य के द्वारा तथा कहीं पर कान्ता सम्मित उपदेश वाक्य के द्वारा तदरूप मार्गों पर चलने का निर्देश दिया गया है। इन्हीं नीति वचनों के अनुपालन से मनुष्य पुरुषार्थों की प्राप्ति में सिद्ध और सफल हो जाता है। [[Bhagavad Gita (भगवद्गीता)|भगवद्गीता]] में श्रीकृष्ण जी कहते हैं - <blockquote>नीतिरस्मि जिगीषताम् ॥ (भगवद्गीता 10-38)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0%E0%A4%AE%E0%A5%8D:%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A4%97%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE.pdf/%E0%A5%A9%E0%A5%A8%E0%A5%AC श्रीमद्भगवद्गीता], अध्याय-10, श्लोक-38।</ref></blockquote>विजयकी इच्छा रखनेवालों के लिये मैं नीतिस्वरूप हूँ।
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प्रभु सम्मित वाक्य के द्वारा तथा कहीं पर कान्ता सम्मित उपदेश वाक्य के द्वारा तदरूप मार्गों पर चलने का निर्देश दिया गया है। इन्हीं नीति वचनों के अनुपालन से मनुष्य पुरुषार्थों की प्राप्ति में सिद्ध और सफल हो जाता है। [[Bhagavad Gita (भगवद्गीता)|भगवद्गीता]] में श्रीकृष्ण जी कहते हैं - <blockquote>नीतिरस्मि जिगीषताम् ॥ (भगवद्गीता 10-38)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0%E0%A4%AE%E0%A5%8D:%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A4%97%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE.pdf/%E0%A5%A9%E0%A5%A8%E0%A5%AC श्रीमद्भगवद्गीता], अध्याय-10, श्लोक-38।</ref></blockquote>विजयकी इच्छा रखनेवालों के लिये मैं नीतिस्वरूप हूँ। नीतिशास्त्र (The Science of Ethics or of Politics) मुख्यता धर्मशास्त्र और राजनीति या दण्डनीति (Polity & administration) विषयों से संबंधित है । अर्थशास्त्र के अंतर्गत नीतिशास्त्र ग्रंथ भी है।<ref>डॉ० लालसिंहपठानिया, [https://sanskritarticle.com/wp-content/uploads/50-48-Dr.L.S.Pathania.pdf नीतिशास्त्रों की उपादेयता], सन २०२३, नेशनल जर्नल ऑफ हिन्दी एण्ड संस्कृत रैसर्च (पृ० १६७)।</ref>