| Line 1: |
Line 1: |
| − | केन उपनिषद् सामवेदीय तवलकार शाखा से सम्बद्ध है। इसको तवलकार उपनिषद् भी कहते हैं। जैमिनीय तवलकार ब्राह्मण का नवम अध्याय ही यह उपनिषद् है। इसीलिये इसे तवलकारोपनिषद् तथा ब्राह्मणोपनिषद् भी कहते हैं। केनोपनिषद् में आरम्भ से अन्त पर्यन्त परम ब्रह्म के स्वरूप और प्रभाव का वर्णन है। प्रथम दो खण्ड पद्यात्मक हैं और शेष दो गद्यात्मक। इसका संबन्ध सामवेद से है। | + | {{ToBeEdited}} |
| | + | |
| | + | केन उपनिषद् (संस्कृतः केनोपनिषद्) सामवेदीय तवलकार शाखा से सम्बद्ध है। इसको तवलकार उपनिषद भी कहते हैं। जैमिनीय तवलकार ब्राह्मण का नवम अध्याय ही यह उपनिषद है। इसीलिये इसे तवलकारोपनिषद तथा ब्राह्मणोपनिषद भी कहते हैं। केनोपनिषद् में आरम्भ से अन्त पर्यन्त परम ब्रह्म के स्वरूप और प्रभाव का वर्णन है। प्रथम दो खण्ड पद्यात्मक हैं और शेष दो गद्यात्मक, इसका संबन्ध सामवेद से है। |
| | | | |
| | ==परिचय== | | ==परिचय== |