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कौटिल्य का नगर नियोजन न केवल भौतिक संरचना तक सीमित था, अपितु उसमें सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय, धार्मिक और नैतिक पक्षों का गहरा समावेश था। कौटिल्य का यह दृष्टिकोण आज के स्मार्ट सिटी मॉडल की नींव रखने वाला एक समग्र एवं दूरदर्शी विचार है।
 
कौटिल्य का नगर नियोजन न केवल भौतिक संरचना तक सीमित था, अपितु उसमें सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय, धार्मिक और नैतिक पक्षों का गहरा समावेश था। कौटिल्य का यह दृष्टिकोण आज के स्मार्ट सिटी मॉडल की नींव रखने वाला एक समग्र एवं दूरदर्शी विचार है।
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== नगर के प्रमुख प्रकार॥ Nagar ke Pramukh Prakara ==
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'''राजधानी'''
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देश विदेश अथवा मण्डल विशेष के कतिपय समुन्नत नगरों में से एक नगर को राजधानी चुना जाता है। शासन सौविध्य अथवा अनुकूल स्थिति ही इसके कारण होते हैं। जिस नगर में राजा रहता है अथवा शासन पीठ होता है उसे राजधानी कहते हैं। वर्तमान में भी यही परंपरा है। मयमतम् शिल्पशास्त्र में राजधानी का बडा सुन्दर विवेचन है जिसमें प्राचीन राजपीठिय नगरों की सुन्दर झलक देखने को मिलती है। जिस नगर की आबादी पश्चिम तथा उत्तर में गहन हो तथा जिसकी समन्तात दीवारें परिखाओं एवं प्राकारों से परिवृत हो।
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'''पत्तन'''
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जिस नगर में राजाओं का उपस्थान हो अर्थात ग्रीष्मकालीन एवं शीतकालीन राज-पीठ हों, उस नगर को पत्तन कहते हैं। मानसार के अनुसार पत्तन एक प्रकार का बृहत वाणिज्य बन्दरगाह है जो किसी सागर या नदी के किनारे स्थित होता है।
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'''पुटभेदन'''
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जिस नगर में राजा के नौकर रहते हैं वह स्थान राजा का उपस्थान कहा जाता है। वही उपस्थान यदि व्यवसाय या वाणिज्य का केन्द्र हो तो पुटभेदन नाम से पुकारा जाता है।
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'''निगम'''
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इस नगर की सर्व प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें विशेषकर कलाकार, कारीगर, शिल्पी लोग रहते हैं। यह बडे ग्राम एवं बडे नगर के मध्य की वसति वाला नगर कहलाता है। निगम नगर के विकास की परम्परा में इसकी संज्ञा निगम का महत्व है। निगम का शब्दार्थ तो व्यापार मार्ग है।
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'''खेट'''
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खेट के सम्बन्ध में यह निर्देश प्राप्त होते है कि नगर, खेट एवं ग्राम इन तीनों के निवेश में खेट बीच का है नगर से छोटा परन्तु ग्राम से बडा। अत एव नगर के विष्कम्भ के आधे के प्रमाण से खेट का विष्कम्भ प्रतिपादित किया गया है। नगर से एक योजन की दूरी पर खेट का निवेश अभीष्ट है। खेट एक प्रकार छोटा नगर होता है जो कि समतल भूमि पर किसी सरिता तट पर स्थित होता है अथवा वन प्रदेश में भी इसकी स्थिति अनुकूल है यदि छोटी-छोटी पहाडियाँ समीपस्थ है। इसके चारों ओर ग्राम होते हैं। दो ग्रामों के मध्य में अथवा ग्राम समूहों के मध्य में एक समृद्ध नगर को खेट के नाम से पुकारा जाता है।
    
==सारांश॥ Summary==
 
==सारांश॥ Summary==
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*प्रत्येक यानमार्ग के दोनों ओर जंघापथ (फुटपाथ) अवश्य होने चाहिए। इनकी चौडाई ५ फीट हो।
 
*प्रत्येक यानमार्ग के दोनों ओर जंघापथ (फुटपाथ) अवश्य होने चाहिए। इनकी चौडाई ५ फीट हो।
 
*जल-निकासी के लिए नगर में नालियों की व्यवस्था होनी चाहिए। ये नालियाँ ३ फीट या डेढ फुट चौडी हों। इनको सदा ढककर रखा जाए।
 
*जल-निकासी के लिए नगर में नालियों की व्यवस्था होनी चाहिए। ये नालियाँ ३ फीट या डेढ फुट चौडी हों। इनको सदा ढककर रखा जाए।
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वास्तुशास्त्र के अनुसार नगरों के निम्नलिखित भेद प्राप्त होते हैं -
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1. ज्येष्ठ नगर 2. मध्यम नगर 3. कनिष्ठ नगर। शाखा नगर के निम्नलिखित भेद हैं जैसे - 1 राजधानी, 2 पत्तन, 3 पुटभेदन, 4 निगम, 5 खेट, 6 कर्वट, 7 ग्राम।
    
==उद्धरण॥ References==
 
==उद्धरण॥ References==
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